पृष्ठ

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

जान निकाला नहीं करो

जान निकाला नहीं करो

बार बार जाने की कह कर ,जान निकाला नहीं करो
यूं ही प्यार के  मारे है हम,   हमको मारा  नहीं करो
अभी अभी आये बैठे हो, थोड़ा सा तो सुस्ता लो
करो प्यार की मीठी बातें ,कुछ पीयो,थोड़ा खा लो
भग्नहृदय हम ,यूं ही तोड़ा,हृदय हमारा नहीं करो
बार बार जाने को कह कर ,जान निकाला नहीं करो
मेरे पहलू में आ बैठो,थोड़ा मुझको अपनाओ
थोड़ा सा सुख मुझको दे दो,थोड़ा सा सुख तुम पाओ
तन्हाई में मेरी,अपनी, शाम गुजारा नहीं करो
बार बार जाने की कह कर ,जान निकाला नहीं करो
कभी कभी तो आते हो ,आते ही कहते जाने की
रत्ती भर भी फ़िक्र नहीं है ,तुम को इस दीवाने की
यूं ही तड़फा तड़फा कर के ,हमसे किनारा नहीं करो
बार बार जाने की कह कर,जान निकाला नहीं करो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।