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सोमवार, 8 अगस्त 2016

ना तुम हारे ,ना मैं जीता

ना तुम हारे ,ना मैं जीता

तुमने अगर कहा कुछ होता, मै कुछ कहता ,
तुमने कुछ भी नहीं कहा ,तो मैं भी चुप हूँ
ना तुम हारे ,ना मै जीता ,बात बराबर ,
शायद इससे ,तुम भी खुश और मैं भी खुश हूँ
इसमें ना तो कोई कमी दिखती तुम्हारी ,
ना ही जाहिर होती कुछ मेरी लाचारी
यूं ही शांति से बैठे हम तुम ,सुख से जीएं ,
क्यों आपस में हमको करनी ,मारामारी
तुम मुझको गाली देते ,मैं  तुमको देता ,
हम दोनों की ही जुबान बस गन्दी होती
बात अगर बढ़ती तो झगड़ा हो सकता था,
कोर्ट कचहरी में जा नाकाबन्दी  होती
कुछ तुम्हारे दोस्त  साथ तुम्हारा देते  ,
मेरे मिलने वाले  ,मेरा साथ निभाते
रार और तकरार तुम्हारी मेरी होती,
लेकिन दुनियावाले इसका मज़ा उठाते
हो सकता है कि कुछ गलती मेरी भी हो,
हो सकता है कि कुछ गलती हो तुम्हारी
तुम जो तमक दिखाते  बात बिगड़ सकती थी ,
मैं भी अगर बिगड़ता ,होती मारामारी
इसीलिये ये अच्छा होता है कि जब जब ,
गुस्से की अग्नि भड़के तो उसे दबाओ
सहनशीलता का शीतलजल उस पर छिड़को,
एक छोटी सी चिगारी को मत भड़काओ
क्रोध छोड़ ,शान्ति रखना सबके हित में है,
तुम भी सदा रहोगे खुश और मैं भी खुश हूँ
तुमने खुद पर किया नियंत्रण ,कुछ ना बोले ,
तुमने कुछ भी नहीं कहा तो मैं भी चुप हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

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