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गुरुवार, 28 जुलाई 2016

कविता की बरसात

      कविता की बरसात

बात बचपन की करें क्या ,वो जमाना और था
जवानी में, सर पे ,जिम्मेदारियों का जोर था
हुए चिता मुक्त हम जब बच्चे सेटल  हो गए
साठ  से ऊपर हुए और  हम रिटायर  हो गए
आजकल स्वच्छन्द होकर जी रहे हम जिंदगी
थोड़ा सा आराम,मस्ती,कुछ खुदा की  बन्दगी
कोई पाबन्दी नहीं,खुद पर खुदी का राज  है
उम्र भर की कमाई का खा रहे हम ब्याज है
भावनाएं जब घुमड़ती है हृदय  आकाश में
बरसती है ,बन के कविता ,एक नए अंदाज में
बरसते बूंदों में रिमझिम,हृदय के जज्बात है
इसलिए ही कविता की हो रही बरसात  है

मंडन मोहन बाहेती'घोटू'


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