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रविवार, 7 अगस्त 2016

दास्ताँ -चार दिन की

दास्ताँ -चार दिन की

पहला दिन
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चेहरे पर चमक है
बातों में खनक है
आजाद पंछी सी ,
ख़ुशी और चहक है
कौन ऐसी ख़ुशी की,
हुई बात नयी  है
क्या बताएं यार ,
बीबी मइके गयी है
दूसरा दिन 
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रोज की दिनचर्या
हुई अस्तव्यस्त है
दिखते कुछ त्रस्त पर,
कहते हम मस्त  है
मन में परेशानियां ,
कही अनकही  है
क्या कहें,दो दिन से ,
बीबी मइके गयी है
तीसरा दिन
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रात,दिवस तन्हाई,
बुरी हो गयी है गत
काटने घर दौड़े ,
देवदास सी हालत
पति को अकेला यूं,
छोड़ कर सताती है
पता नहीं औरतें,
मइके क्यों जाती है
चौथा दिन
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कल तक जो थे ढीले ,
आज हुए फुर्तीले
चमक रहा है चेहरा ,
 चहक रहे ,रंगीले
लगते है बेसब्रे ,
हालत ,मतवाली है
पत्नीजी ,मइके से
आज आने वाली है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

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