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बुधवार, 14 दिसंबर 2016

मटर के दानो सी मुस्कान

 

माँ ,जो सारा जीवन,
सात बच्चों के परिवार को ,
सँभालने में रही व्यस्त 
हो गयी काम की इतनी अभ्यस्त 
बुढापे में ,बिमारी के बाद ,
जब डॉक्टर ने कहा करने को विश्राम 
बच्चे ,काम नहीं करने देते ,
और उसका मन नहीं लगता 
बिना किये काम 
हर बार ,हर काम के लिए ,
हमेशा आगे बढ़ती है 
और मना करने पर ,
नाराज़ हो,लड़ती है 
सर्दियों में जब कभी कभी ,
मेथी या बथुवे की भाजी आती है 
तो वो उन्हें सुधार कर ,
बड़ा संतोष पाती है 
 परसों ,पत्नी जब पांच किलो, 
मटर ले आयी 
तो माँ मुस्कराई 
झपट कर मटर की थैली ली थाम 
बोली वो कम से कम ,कर ही सकती है ,
मटर छीलने का काम 
वो बड़ी  खुश थी ,यह सोच कर कि ,
घर के काम में उसका भी हाथ है 
उसने जब मटर की  फली छीली,
तो मटर की फली से झांकते हुए दाने ,
ऐसे नज़र आये जैसे वो मटर नहीं,
ख़ुशी छलकाते ,माँ के मुस्कराते दांत है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (16-12-2016) को "रहने दो मन को फूल सा... " (चर्चा अंक-2558) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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