एक सन्देश-

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सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

हे माँ दुर्गा !


प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री, कष्ट मेरी हर लेना,
मानव जीवन को मेरे, साकार यूंही कर देना |

द्वितीय दिवस हे ब्रह्मचारिणी, विद्या का फल मांगू,
जीवन हो उज्ज्वल सबका, उज्ज्वलता तुझसे चाहूँ |

तृतीय दिवस माँ चंद्रघंटा, मुझको बलशाली करना,
हर मुश्किल से लड़ पाऊँ माँ, शक्तिशाली करना |

चतुर्थ दिवस हे कुष्मांडा, जगत की रक्षा करना,
भक्तों का अपने हे माता, तू सुरक्षा करना |

पंचम दिवस स्कन्द-माता, जगत की माता तू,
मातृत्व तू बरसाना माता, सब कुछ की ज्ञाता तू |

षष्ठी दिवस माँ कात्यायिनी, दुष्टों की तू नाशक,
तू ही तो सर्वत्र व्याप्त माँ, तू ही सबकी शासक |

सप्तम दिवस माँ कालरात्रि, पापी तुझसे भागे,
सेवक पे कृपा करना, जो ना पूजे वो अभागे |

अष्टम दिवस माँ महागौरी, श्वेतांबर धारिणी,
अंधकार को हरना माता, तू ही तो तारिणी |

नवम दिवस हे सिद्धिदात्री, कमलासन तू विराजे,
शंख, सुदर्शन, गदा, कमल, माँ तुझपे ही तो साजे |

नौ रूपों में हे माँ दुर्गा, कृपा सदैव बरसाना,
पूजूँ तुझको, ध्याऊँ तुझको, सत्य मार्ग दिखलाना |

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

हुआ करता काँटों में भी दिल तो है

  हुआ करता काँटों में भी दिल तो है

भावनाएं सिर्फ फूलों में नहीं ,
                    हुआ करता काँटों में भी दिल तो है
जरूरी ना प्यार ही हरदम मिले ,
                     जिन्दगी में ,नफरतें ,मुश्किल तो है
देवता गण ,सिर्फ आशीर्वाद ना ,
                      श्राप भी दे देते  कितनी  बार  है
पवन शीतल ,जाती बन तूफ़ान है ,
                       वरुण लाता क़यामत ,बन बाढ है ,
 कोप से  करते सभी को राख है ,
                        भड़क यदि जाते है अग्नी देवता
छुपा हर इंसान में एक राक्षस ,
                         नहीं लग पाता मगर इसका पता
राक्षस भी भक्त बन भगवान के,
                          कठिन करते तपस्या और ध्यान है
बदल जाता उनका सब व्यवहार है ,
                           जैसे ही  मिलता उन्हें  वरदान  है
भस्मासुर की तरह जाते पीछे पड ,
                             दाता के,जिनने था उनको वर दिया
निकलता मतलब तो देतें है भुला ,
                               बड़े नाशुक्रे ,न कहते  शुक्रिया
कौन कैसा दिखता है ,दिल में है क्या ,
                                 बड़ा ही दुरूह है पहचानना
कौन कब व्यवहार कैसा करेगा ,
                                  बड़ा मुश्किल होता है  यह जानना
   
मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

पत्थर के भी दिल होता है

             पत्थर के भी दिल होता  है

दिखती  काली  घनघोर घटा ,पर उसमे होता शीतल जल
बाहर से सख्त मगर अन्दर ,होता है स्वाद भरा नारियल
मिलती गुणकारी शिलाजीत ,पत्थर पसीजते है जब जब
कांटे तन  पर,पर  तना चीर ,देते   तरु  गोंद , शक्तिवर्धक
पत्थर दिल लोगों के मन में ,भी रहता छुप,दब ,दया ,रहम
दुर्दान्त दस्यु भी बाल्मीकि  बन कर लिख देते रामायण
कोई कितना भी सख्त ह्रदय ,दिखता हो पर उसके अन्दर
कोमलता होती छुपी हुई ,देखो टटोल कर उर अंतर
जो विषम परिस्तिथी के कारण ,पाषाण ह्रदय जा बनता है
पर  उसे प्रेम की गरमी से ही पिघलाया  जा  सकता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्यार से जब भी पुकारा आपने ---

      प्यार से जब भी पुकारा आपने ---

प्यार से जब भी  पुकारा आपने ,
                         हम चले आये सपन बन नींद में
प्यार हमने आपसे जी भर किया ,
                          आपके प्यारे सजन बन  नींद में
       पडी रहती किसी कोने में ह्रदय के ,
          हमारे मन की अधूरी कामनाएं
       रूपसी प्यारी परी का रूप धर कर ,
       सपन बन कर,नींद में वो मुस्कराएं
जब भी हो उन्मुक्त चाहा नाचना ,
                            हम चले आये  गगन बन नींद में
प्यार से जब भी पुकारा आपने ,
                             हम चले आये सपन बन नींद  में
          प्रीत बचपन की हमारी और तुम्हारी,
          कारणों से कुछ ,मिलन पर हो न पाया
          याद आई ,कुञ्ज गलियाँ ,कालिंदी तट ,
          चाँद जब पूनम शरद का मुस्कराया
लगी मन में रास की जब भी लगन तो,
                               हम चले आये किशन बन नींद में               
प्यार से जब भी पुकारा आपने ,
                                हम चले आये सपन बन ,नींद में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बचपना वचपना मस्तियां वस्तियां

/////// एक गजल ///////

बचपना वचपना मस्तियां वस्तियां
भूल बैठे हैं हम तख्तियां वख्तियां

अब वो गेंदों से बचपन का रिश्ता नहीं
घूमते थे कभी बस्तियां बस्तियां

टीवी नेट की लतें लग गयीं इस कदर
अब लुभाती नहीं कश्तियां वश्तियां

खुदकुशी तक की नौबत पढ़ाई में है
क्या करेंगे मटरगश्तियां वश्तियां

ऐब बच्चों में तो चाहिये ही नहीं
बस बड़े ही करें गल्तियां वल्तियां

- विशाल चर्चित

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

इस जीवन में कितने प्रेशर

           इस जीवन में कितने प्रेशर

माँ बाप हमारे बचपन में ,डाला करते हम पर प्रेशर 
जीवन में आगे बढना है तो बेटा खूब पढाई  कर
एडमिशन अच्छा लेना हो तो काम्पिटिशन का प्रेशर
अच्छा सा जॉब चाहिए तो ,ऊंची पढाई का फिर प्रेशर
मिल गया जॉब ,हालत खराब ,कर देता ,ऑफिस का प्रेशर
तुम ये न करो,तुम यूं न करो ,घर पर है बीबी का प्रेशर
प्रेशर के चक्कर में हम पर ,इतना दबाब बन जाता है
लेती बीमारियाँ घेर हमें ,ब्लड का प्रेशर बढ़ जाता है
प्रेशर लगाओ तब मुश्किल से ,ये पेट साफ़ हो पाता है  
इतना दबाब पड़ता हम पर कि हार्ट वीक हो जाता है
जैसे कि प्रेशर कूकर में हर चीज शीध्र पक जाती है
हम जल्दी पकने लगते  है ऐसी हालत हो जाती  है
बुढापे का पड़ता प्रेशर ,होती बीमारियाँ,तन जर्जर
जीवन में प्रेशर का महत्त्व ,लेकिन रहता है जीवन भर
प्रेशर के कारण ही तो हम ,जीवन में पाते ,  आगे बढ़
प्रेशर से जन्मी बीमारी का एक इलाज एक्युप्रेशर
हो जाते सारे काम शीध्र ,जब ऊपर से पड़ता प्रेशर
जीवन गाडी चलती स्मूथ ,पहियों में सही ,हवा प्रेशर
हम तब तक ही ज़िंदा रहते ,रहता जब तक खूं का प्रेशर
जो प्रेशर से ना घबराते ,वो ही उठ पाते है ऊपर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 


परिवर्तन

जिन्दगी तेरा गुजारा
तब बड़ा मुश्किल न था
तेरे राहो में किसी के
यादो का रहबर न था
जब तलक नशा उनकी
बातो का छाया न था
याद में उनके तडप कर
ये मजा आया न था
जिन्दगी तेरा गुजारा
तब बड़ा मुश्किल न था
तेरे रातो में किसी के
खाब का रहबर न था
प्यार सब करते खुदा से
दीदार पर मुमकिन नहीं
छोड़ दे जो शक करे वो
दिल मेरा काफिर न था
मेरे इश्क के अश्क उनके
आँख में टिकते अगर
दौड़ के मिलते गले वो
मै बुरा कातिल न था
जिंदगी तेरा गुजारा तब
बड़ा मुश्किल न था
तेरी राहो में किसी के
इश्क का रहबर न था ..............अमित

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

कसक

जिन्दगी तेरा गुजारा
तब बड़ा मुश्किल न था
तेरे राहो में किसी के
यादो का रहबर न था
जब तलक नशा उनकी
बातो का छाया न था
याद में उनके तडप कर
ये मजा आया न था
जिन्दगी तेरा गुजारा
तब बड़ा मुश्किल न था
तेरे रातो में किसी के
खाब का रहबर न था
प्यार सब करते खुदा से
दीदार पर मुमकिन नहीं
छोड़ दे जो शक करे वो
दिल मेरा काफिर न था
मेरे इश्क के अश्क उनके
आँख में टिकते अगर
दौड़ के मिलते गले वो
मै बुरा कातिल न था
जिंदगी तेरा गुजारा तब
बड़ा मुश्किल न था
तेरी राहो में किसी के
इश्क का रहबर न था ...............अमित
 

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

समझोता या समर्पण

          समझोता या समर्पण

समझे थे सिंह दहाड़ेंगा ,रह गया मगर म्याऊं कर के
हो रिंग मास्टर से जलील,फिर भी उसकी'हाँ'हूँ'कर के
शायद उसकी मजबूरी थी ,या फिर था प्रेम पिंजरे से ,
या फिर वो उसको फंसा न दे,बोला'मै क्यों जांऊ',डर के

घोटू 

बेहतर है चुप ही रह जाना

उनको कुछ कहने सुनने से .
बेहतर है चुप ही रह जाना ..
जिसको अपना मान चुके हम.
अपनापन क्या है दिखलाना.
हम जाने वो दिल में रहते
दुनिया को क्या है बतलाना
वो समझे ना समझे हमको
बेहतर है चुप ही रह जाना
छुप छुप अश्क पिए दिल ने
अब और नहीं है पास खजाना
उनको कुछ कहने सुनने से
बेहतर है चुप ही रह जाना
दिल में प्रीत अगर इतनी फिर
झूठ मुठ क्यों दोस्त बनाना
वो हमसे जो रुठ  गये  तब
बेहतर है अपना मर जाना
उनको कुछ कहने सुनने से
बेहतर है चुप ही रह जाना
अलग मड़ईया डाल शिखर पर
उनका नाम सदा गोहराना
उनके कुछ कहने सुनने से
बेहतर है चुप ही रह जाना
हम अपना जीवन जी लेंगे
गम तुम उनके पास न जाना
उनको कुछ कहने सुनने से
बेहतर है चुप ही रह जाना  ................अमित




बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

कायापलट

        कायापलट

 आपने मुझको है ये क्या  कर दिया
गेंहूं था मै ,पीस   आटा  कर दिया
इस तरह ,कायापलट ,मेरी  करी ,
घी लगा ,सेका ,परांठा  कर दिया
बांह में एसा समेटा ,आपने ,
समोसे में जैसे  आलू भर दिया
प्यार में अपने डुबाया इस तरह,
रस से रसगुल्ला बना कर भर दिया
मै सडा ,मैदा पड़ा ,उफना हुआ,
टेडा मेडा आपने  जब तल दिया
डुबा कर के चाशनी में प्यार में,
 रस भरे प्यारी जलेबी कर दिया
मै तो सूखी घास का तृण मात्र था,
आपने था प्यार से जब चर लिया
अपने तन में इस तरह से समाया,
दूध सा प्यारा ,सुहाना  कर दिया
गर्ज ये है  ,जो भी था मै ,आपने,
मुझको अपने मन मुताबिक़  गढ़ लिया
काबिले तारीफ़ हरेक अंदाज से,
स्वाद ले लेकर मज़ा पूरा लिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गांधी जयन्ती पर

       गांधी जयन्ती पर
                    १
   गांधीजी ,रह गए ,
   फोटो बन,टंग कर
   या फिर है दिल्ली में,
   वे दस जनपथ पर
                   २
   नाम पर सड़कें है,
   मौन सी  पड़ी
   चलती ही रहती है,
    गड्ढों  से  भरी
                ३
     गांधी के नाम की,
     आज भी है आंधी
      बड़े बड़े नोटों पर,
       गांधी  ही गांधी  
 
घोटू

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

वरदान पर प्रतिबन्ध

         वरदान पर प्रतिबन्ध

प्राचीन काल में जब भी कोई भगवान
होता था किसी पर मेहरबान
दे  दिया करता था उसको वरदान
और उनकी इस कमजोरी का ,
राक्षस बड़ा फायदा उठाते थे
थोड़े दिन तपस्या करके ,मख्खन लगाते थे
और उनको प्रसन्न कर ,मांग लेते थे एसा वर
जो कर देता था,दाता का जीना दुर्भर
जैसे कि भोले भंडारी शंकर भगवान
ने दे दिया था भस्मासुर को वरदान
कि वो जिसके सर पर हाथ रखेगा ,
वो भस्म हो जाएगा
उन्हें क्या पता था कि वो राक्षस ,
उन्ही के सर पर हाथ उठाएगा
वो तो भला हो विष्णु जी का ,
जिन्होंने रूपसी नारी का रूप धर लिया
और उस पर मुग्ध होकर ,
भस्मासुर ने अपने ही सर पर हाथ रख लिया
और खुद हो गया भस्म
वरना त्रिदेव में से एक देव हो जाता कम
महिषासुर,रावण या अन्य असुर ,
भगवान की इस कमजोरी का फायदा उठाते थे
और जिनसे वरदान पाते थे,
उन्ही के सर पर चढ़ जाते थे
हिरनकश्यप ने ,तप कर,प्रभु को प्रसन्न किया
और अपने लिए ,एक 'टेलर मेड ',फूलप्रूफ'
वरदान मांग लिया
जिसे पाकर उसका अत्याचार इतना बढ़ा
कि भगवान को ,उसके संहार के लिए ,
नरसिंह का अवतार लेकर आना पड़ा
द्रौपदी ने भगवान से,
पांच गुण वाले पति का माँगा था वरदान
पर जब नहीं मिला एसा कोई इंसान
तो भगवान ने अपना वरदान पूरा करने के लिए
उसे अलग अलग गुणवाले ,पांच पति दे दिए
कुंती को मिला था वरदान
कि   वो करेगी जिसका ध्यान
वो सामने प्रकट हो जाएगा
और उसे पुत्रवती बनाएगा
गर नहीं होता उसके पास ये वरदान मनोरथ का
तो न पांडव होते ,न कर्ण ,
और न युद्ध होता महाभारत का
तो इसतरह अपने वरदानो का दुरूपयोग ,
और प्रतिफल देख कर
तीनो देवताओं ने आपस में मिल कर
एक ये जरूरी फैसला लिया है
कि आजकल ,वरदान देने पर ,प्रतिबन्ध लगा दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मच्छरों का प्रतिशोध

          मच्छरों का प्रतिशोध

मच्छर ,भगवान  के पास,
लेकर गए एक डेपुटेशन 
और दिया ये  रिप्रेजेंटेशन
कि प्रभो !जैसे आपने बनाया है इंसान ,
वैसे ही हम भी है आपके क्रियेशन
पर आपने हमें इतना कमजोर क्यों बनाया है
ये कैसा जुलम ढाया है
 आदमी जब  चाहे  हमें मसलता है
हमारा कोई बस नहीं चलता है
कभी 'कछुवा' जलाता है ,कभी 'हिट 'छिड़कता है
हमें मिटाने की हर कोशिश करता है
यदि ऐसे ही चलता रहा हमारा कतल
तो ख़तम ही हो जायेगी हमारी नसल
हे प्रभु ,हम भी क्रियेशन है आपके
हमें ऐसी शक्ति दो ,कि हम इंसान से,
अपने खून का बदला ले सकें
भगवान ने उनकी बात ध्यान किया
और उनको,एक नयी शक्ति  का वरदान दिया
एक लीडर मच्छर को बोला ,
आज से तुम मलेरिया के मच्छर कहलाओगे
वो इंसान,बिमारी से होगा परेशान ,
जिसे तुम अपना डंक चुभाओगे
दूसरे मच्छर से बोला ,तुम होगे और भी ताक़तवर
तुम कहलाओगे ,'डेंगू' के मच्छर
तीसरे  मच्छर से बोला ,जो तेरा चुम्बन पायेगा
उसे 'चिकनगुनिया' हो जाएगा
इन सभी बीमारियों से इंसान  काफी क्षति पायेगा
और तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हो जाएगा
भगवान के मच्छरो के दिए वरदान का ,
नतीजा आज इंसान झेल रहा है
हर तरफ ,मलेरिया,डेंगू और
 चिकनगुनिया फैल रहा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 30 सितंबर 2013

पुनर्मिलन

      पुनर्मिलन

निवेदन तुमसे प्रणय का
भाव था मेरे ह्रदय का
प्रकट जो मैंने किया था
झटक बस तुमने दिया था
और फिर रह अनमने से
गर्व से थे पर तुम सने से
आपने ये क्या किया था
निवेदन ठुकरा दिया था
अगर तुम जो ध्यान देते
बात मेरी मान लेते
प्रीत की बगिया महकती
जिंदगानी थी चहकती
पर नहीं एसा हुआ कुछ
चाह  थी,वैसा हुआ  कुछ
आपने दिल तोड़ डाला
मुझे  तनहा छोड़ डाला
आज हम और तुम अकेले
कब तलक तन्हाई झेले
आओ फिर से जाए हम मिल
दूर होगी सभी मुश्किल
लगे ये जीवन चहकने
प्यार की बगिया महकने
देर पर दुरुस्त  आये
फिर से जीवन मुस्कराये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेंकू

         फेंकू

दिल्ली में शेर दहाड़ा
तो सत्तारुढो ने  ताड़ा
मोदी आया पोस्टर फाड़
देगा सबको फेंक ,उखाड़
इसीलिए पोस्टर लगवाया
आया आया ,फेंकू  आया

घोटू

इन्टेरियर

              इन्टेरियर

एक ज़माना होता था जब हम ,
अपने दिवंगत पुरखों को करते थे याद
श्रद्धानत होकर के ,करते थे श्राद्ध
अपने घरों में उनकी तस्वीर टांगा  करते थे
पुष्पमाला चढ़ा ,आशीर्वाद माँगा करते थे
पर आज के इस युग में
ढकोसला कहलाती है ये रस्मे
नयी पीढी ,अक्सर ये तर्क करती है
ब्राह्मण को भोजन कराने  से,
दिवंगत आत्मा को,तृप्ति कैसे मिलती है
आजकल के   सुसज्जित घरों में ,
दिवंगत पुरखों की कोई भी तस्वीर को,
नहीं लटकाया जाता है
क्योंकि इससे ,घर का,
 'इन्टेरियर 'ही बिगड़ जाता है
सच तो ये है कि पाश्चात्य संस्कृति का,
रंग आधुनिक पीढी पर इतना चढ़ गया है
कि इस भौतिकता के युग में,
उनका 'इन्टेरियर'ही बिगड़ गया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 29 सितंबर 2013

mere patne by akhand gahmari

वो कहती है हम उनके दिल अजीज है
जान है वो हमारी हम उनकी जान है
उमड पडा उनका प्‍यार एक दिन
कर दिया निहाल प्‍यार से अपने एक दिन
क्‍या बताउू यारो कैसे किया प्‍यार एक दिन
झाडू मार कर जगाया कुत्‍ते की तरह
घर की सफाई करवायी महरी की तरह
मजवाया बर्तन हमसे कुछ यू इस तरह
पटक कर बर्तन बोली हिटलर की तरह
जानू बर्तन चमकाना बिम बार की तरह
उनके जानू कहने पर जोश था आया
बर्तन क्‍या बतर्न के वाप को चमकाया
चल पडा ये सोच कर करके स्‍नान
करूगा मैटम केा प्‍यार एक मजनू की तरह
लगा ग्रहण मेरे प्‍यार केा चॅाद की तरह
कपडेा की गठरी ले प्रकट हुई भत की तरह
कपडे धुलवाये,खाना बनवायी बास की तरह
हो गया पसीने लतपथ मैं
बैठा पंखे की नीचे मजदूर की तरह
तभी आकर पसर गयी सोफे पर जल्‍लाद की तरह
मेरे माथे पर अपना हाथ प्‍यार से फेर दिया
कोई काम ठीक से नही करते हेा
कह कर सेडिल से हमें पीट दिया
फिर बडे प्‍यार से पास बुलाया
बोली जानू तुम बडे अच्‍छे हेा
कितना प्‍यार करते हेा
आई लव यू कहती हू तुम लव टू ये बोलो जरा
फिर वह हसते हुए बोली जानू
क्‍या करती जानू आज महरी नहीं आयी थी
और मैं 5लाख रूपया दहेज में लेकर आयी थी
मेरे परम ससूर जी ने मेरे पापा से कहा था
बेटी 5 लाख लेकर जायेगी तेा सुख से रहेगी
पाव जमीन पर नहीं पडेगें उसे कामो से रहेगी
अब तुम ही बताओ जानू कैसे मिलता सुख
महरी नही आयी थी इस लिये करना पडा आपको
मैने सोचा सही है अखंड 5 लाख लेकर आयी
डाडू पोछा करने लिये,5 लाख में उसने खरीद लिया
बिक गया है हर इंसान दहेज की लालच में
जल रही दहेज की आग में लडकी लकडी की तहर
अगर मेरी बीबी ने काम ही करनवा महरी कती तरह
तो क्‍या गम है मैं उका जानू और वह मेरी जानू है
5 लाख में बिका हुआ एक खुशनसीब मजदूर हू
अखंड गहमरी

रात से सुबह तक -चार छोटी कवितायें

रात से सुबह तक -चार छोटी कवितायें
                       १
                  झपकी
दिन भर के काम की थकावट
पिया से मिलन की छटपटाहट 
जागने का मन करे ,नींद आये लपकी
                                        झपकी
                    २
             खर्राटे
अधूरी कामनाये ,दबी हुई बांते
जिन्हें दिन में हम ,बोल नहीं पाते
रात को सोने पर ,निकलती है बाहर
                         बन कर खर्राटे
                      ३
             उबासी 
चूम चूम बार बार ,बंद किया मुंह द्वार
निकल ही नहीं पायी ,हवाएं बासी
उठते जब सोकर ,बेचैन होकर ,
निकलती बाहर है ,बन कर  उबासी
                       ४
              अंगडाई
प्रीतम ने तन मन में ,आग सी लगाई
रात भर रही लिपटी ,बाहों में समायी
प्रेम रस लूटा ,अंग अंग टूटा ,
उठी जब सवेरे तो आयी अंगडाई

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ओरेंज काउंटी -दिल से

         ओरेंज काउंटी -दिल से *

यह है एक संतरा
मधुर रस से भरा
संग पर अलग अलग ,है इसकी फांके
ये प्यारा ,परिसर
है पंद्रह  टावर
रहें सभी मिलजुल कर ,रिश्तों को बांधे
एक है परिवार
बरसायें मधुर प्यार
हर दिन हो त्योंहार ,सुख दुःख सब बांटे
साथ साथ,संग संग
बिखराएँ प्रेमरंग
जीवन में हो उमंग,हँसते ,मुस्काते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
*THE RESIDENTIAL COMPLEX,WHERE I LIVE

शनिवार, 28 सितंबर 2013

छोटी सी प्रेमकथा छोटा सा विरहगीत

             छोटी सी प्रेमकथा

वो  आये ,मुस्कराये
हम मिले और खिलखिलाये
मिलन ने ये गुल खिलाये
पका खाना वो खिलाये
और हम बच्चे खिलाएं

          छोटा सा विरहगीत

आप वहाँ ,हम यहाँ ,
इतनी दूर और ऐसे
बीरबल की खिचडी ,
पके तो कैसे?

घोटू

चांदनी छिटकी हुई है ..

        चांदनी छिटकी हुई है ..

चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
                   बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना   
वृक्ष जैसा खड़ा मै  बाहें पसारे ,
                   बावरी सी लता जैसी  आ लिपटना
    इस तरह से हो हमारे  मिलन के पल
    एक हम हो जाएँ जैसे दूध और जल
बांह में मेरी सिमटना प्यार से तुम,
                      लाज के मारे स्वयं में मत सिमटना
चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
                      बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना
         तुम विकसती ,एक नन्ही सी कली हो
         महक फैला रही,   खुशबू  से भरी हो
भ्रमर आ मंडरायेंगे तुमको लुभाने,
                        भावना के ज्वार में तुम मत बहकना
चांदनी छिटकी हुई  है चाँद मेरे ,
                        बांह से मेरी ,मगर तुम मत छिटकना
            कंटकों से भरी जीवन की डगर है
             बड़ा मुश्किल और दुर्गम ये सफ़र है
होंसला है जो अगर मंजिल मिलेगी ,
                          राह से अपनी मगर तुम मत भटकना
चांदनी छिटकी हुई है चाँद मेरे ,
                            बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शहीदे आजम रहा पुकार

सरदार भगत सिंह
(28 सितंबर 1907 – 23 मार्च 1931)
("शहीदे आजम" सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना )

जागो देश के वीर वासियों,
सुनो रहा कोई ललकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो,
चलो लिए जलती मशाल;
कहाँ खो गई जोश, उमंगें,
कहाँ गया लहू का उबाल ?

फिर दिखलाओ वही जुनून,
आज वक़्त की है दरकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

पराधीनता नहीं पसंद थी,
आज़ादी को जान दी हमने;
भारत माँ के लिए लड़े हम,
आन, बान और शान दी हमने |

आज देश फिर घिरा कष्ट में,
भरो दम, कर दो हुंकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

कई कुरीति, कई समस्या,
से देखो है देश घिरा;
अपने ही अपनों के दुश्मन,
नैतिक स्तर भी खूब गिरा |

ऋण चुकाओ देश का पहले,
तभी जश्न हो तभी त्योहार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

भ्रष्टाचार, महंगाई से है,
रो रहा ये देश बड़ा;
अपनों ने ही खूब रुलाया,
देख रहा तू खड़ा-खड़ा ?

पहचानों हर दुश्मन को अब,
छुपे हुए जो हैं गद्दार,
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

लोकतन्त्र अब नोटतंत्र है,
बिक रहा है आज जमीर;
देश भी कहीं बिक न जाए,
जागो रंक हो या अमीर |

चूर करो हर शिला मार्ग का,
तोड़ दो उपजी हर दीवार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

आज गुलामी खुद से ही है,
आज तोड़ना अपना दंभ;
आज अपनों से देश बचाना,
आज करो नया आरंभ |

आज देश हित लहू बहेगा,
आज उठो, हो जाओ तैयार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

-"दीप"

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

महानगरीय जीवन

     महानगरीय  जीवन

भीड़ ही है भीड़ फैली सब कहीं,
लापता से हो गए ,लगता हमीं
हर तरफ अट्टालिकाएं है खड़ी ,
कहाँ पर ढूंढोगे तुम अपनी जमीं
एक घर पर दूसरा घर चढ़ रहा ,
छू रही इमारतें है आसमां
आदमी से आदमी टकरा रहा ,
है अनोखी ,इस शहर की  दास्ताँ
बसे,ट्रेने ,कार ,मोटर साईकिल ,
यहाँ पर हर चीज ही गतिमान है
जिधर देखो ,उधर भागादौड है ,
नहीं ठहरा  कहीं भी इंसान है
प्रगति की गति ने की ये गती ,
सांस लेने को हवा ना शुद्ध है
हो रही है आदमी की दुर्गती ,
इसलिए हर शख्स लगता क्रुद्ध है
है मशीनी सी यहाँ की जिन्दगी,
सिलसिला यूं नौकरी,व्यापार का
हफ्ते में है छह दिवस ,परिवार हित,
और केवल एक दिन परिवार का
दौड़ता है,रात दिन बेचैन है ,
पेट है परिवार का जो पालता
कहने को तो है ये महानगरी मगर,
नहीं आती नज़र कोई महानता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

एक से भले दो

पता नहीं किसने कहा था
एक से भले दो
अब बेचारे भले बन गए
दो हो गए,
पगड़ी बाँध के ढूंड रहे
इस मुहावरा कहनेवाले को
कोई अगर कह देता
एक से भले दो
तो ऊपर से निचे तक
पूरा बारूद हो जाते है
जब मेरे सामने आते
मै कह देता एक भला
तो एक दम पूँछ पर खड़े
खार खा जाते मेरी किस्मत से
अब न एक भला कह पाता हु
न दो भला कह पाता हु
भला हो मुहावरे वालो का ............अमित

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

प्यार का अंक गणित २+२ =१ या १+१ =३

 प्यार का अंक गणित
   २+२ =१ या १+१ =३

दो आँखे जब दो आँखों से मिलती तो मिल जाते है मन
दो लब जब दो लब से टकराते हैं तो बंध जाता बंधन
दो बाहें जब दो बाहों से बंधती तो होता  आलिंगन
तो फिर ये दो ,दो ना रहते ,एक हो जाते इनके तन मन
ये जीवन का अंक गणित भी ,बिलकुल नहीं समझ में आता 
दो और दो मिल ,चार न बनते,उत्तर सिरफ एक है आता 
साथ समय के ,मधुर मिलन ये ,एक तीसरा प्राणी लाता
एक नया ही समीकरण फिर,एक और एक ,तीन बन जाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

चार का चक्कर- चार चौके

      चार का चक्कर- चार चौके
                         १
लोग  यह क्यों कहते है कि जिन्दगी है चार दिन
फिर अंधेरी रात होगी ,चांदनी   है चार  दिन
आरजू में कटे  दो दिन,और दो इन्तजार में,
उम्रे दराज मांग के ,लाये थे केवल चार दिन
                         २
चार दिन की बात ये लगती मुझे बेकार है
अमावस को छोड़ कर के ,चांदनी हर बार है
जिन्दगी में सबसे ज्यादा ,हसीं आता दौर तब,
जब हसीना दिलरुबां से ,आँख होती चार है
                       ३
नींद आती चैन से जब,चारपाई पर पड़े
कुर्सियों पर चार पावों की,उमर भर हम चढ़े
और जब रुखसत हुए तो ,चार काँधे ही मिले,
चार के चक्कर में हम तो जिन्दगी भर ही पड़े
                       ४
चार मिलते यार होती जिन्दगी गुलज़ार है
चार खाने चित्त करती आदमी को हार  है
आपके व्यक्तित्व में ,लग चार जाते चाँद है,
चार पैसे आ गए तो लोग करते प्यार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

परिवर्तन

         परिवर्तन

शिखर ,
जो कभी ज्वालामुखी बनकर
वासना की आग को धधकाते है
समय के साथ ,
वो ही दिनरात
वातसल्य की गंगा यमुना बहाते है
जब भी आता है नवजीवन
लाता है कितने परिवर्तन

घोटू

aajo hmar yad ba by akhand gahmari

डुबुकिया बगिया में खेली कबडीया
आज ले हमरा याद बा
मठीया केण्‍ण्‍ण्‍ उ दौराई
आज ले हमरा याद बा
तीरे जा के उपरा से कूदी
बाबा के पौरावल याद बा
जाई सिवना गईया दूहल
आज ले हमारा याद बा
गउवा के कौनो मुरना होखे
नाइया खेवल याद बा
हाका बाजी पर झिझरी खेलल
आज ले हमारा याद बा
कौनेा बतइयिा पर हमरा के
बाबू के मरईया याद बा
जाके लुकाई आजी के पिछवा
आज ले हमारा याद बा
मेलवा देखे के खातिर बाबा के
दिहल 10 पैइसवा याद बा
हाफ पजामा पहीन के हाई स्‍कूलीया
में गइल आज ले याद बा
गउवा के जरीह स्‍कूलीय में
5 ले पढका याद बा
कैसे मारस बंशीधर उ
आज ले हमारा याद वा
साझ रोज गमछी में लेके
दनवा खाइल याद बा
दुअरा पर बैठ के बाबा के पीयल
हुक्‍का आज ले याद बा
बैठ के माई के उ चुलिहा तर
रोटीया सेकल याद बा
रसता निहोर प्रेम से मातल
अखिया हमारा याद बा
केतना बताइ ये अखंड बचवा
का का हमरा याद
अब कहवा मिली अब कैसे मिली
जौन जौन हमरा याद बा
गइल जमाना कबो ना लौटी
याद में बस रहजाइ उ
रहे हमर गॅाव सलामत
अखंड के सबके प्रणाम बा

बुधवार, 25 सितंबर 2013

धन्यवाद- टी .वी .का

            धन्यवाद- टी .वी .का 

पचास साल पहले ,जो बहुएँ थी ,आज वो सास है
कल भी उदास थी ,आज भी उदास है
क्योंकि तब वो सास से डरती थी ,
और अब बहू से डरती है
तब भी घर का सब काम करती थी ,
अब भी घर का सब काम करती है
पहले पति के प्यार में,
और अब बच्चों के दुलार में ,
तब भी पिसा करती थी ,अब भी पिसा करती है
और फिर भी मुंह से ,चूं तक नहीं करती है
पर एक बात है ,पहले सास बहू ,
दोनों के बन जाते थे ,अलग अलग खेमे
और रोज हुआ करती थी,तू तू,मै मै
पर आजकल ,भले ही ,वो दोनों रहती संग है
तो भी ,उन दोनों की,तू तू,मै ,मै ,बंद है
मेरे विचार से ,इस परिवर्तन का सारा श्रेय ,
टी .वी .के सीरियलों को जाता है
जिनमे ये इतनी उलझी रहती है ,
कि एक दूसरे की टांग खींचने का ,
समय ही कहाँ मिल पाता है
हे टी .वी .महाराज ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया है
आपने ,अधिकतर घरों में ,
सास बहू के झगड़ों को ,बहुत कम  कर दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन- चार दिनों का या महीने भर का

  जीवन- चार दिनों का या महीने भर का

बड़े भाग्य से प्राप्त हुआ है ,यह वरदान हमें इश्वर का
चार दिनों का नहीं दोस्तों,ये जीवन है महीने भर का
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को,जैसे होता है चंद्रोदय
वैसे ही तो इस जगती में ,होता है जीवन का उद्बव
बढ़ता जाता चाँद दिनोदिन ,पूर्ण विकसता ,आती पूनम
वैसे ही विकसित होता है जीवन, पूनम मतलब यौवन
फिर होता है क्षीण दिनोदिन,चालू होता घटने का क्रम
जैसे आता हमें बुढापा ,और जर्जर होता जाता तन
हो जाता है लुप्त एक दिन ,आती है जिस तरह अमावस
कभी उसे ढक  लेते  बादल,लेते कभी राहु केतु  डस
सारा जीवन रहो चमकते ,तम हर लो धरती ,अम्बर का
चार दिनों का नहीं दोस्तों ,ये जीवन है महीने भर का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

तू सृजन की शक्ति

तू सृजन की शक्ति 
मै जगत का आधार 
ये संसार आधा तेरा 
ये संसार आधा मेरा 

मै दिन का दीवानापन 
तू रात की सुख चैन 
ये सुख दुःख आधे तेरे 
ये सुख दुःख आधे मेरे 

मै दुखो में बहता अमृत 
तू ख़ुशी से बहती आंसू
ये आंसू आधे तेरे 
ये आंसू आधे मेरे 

तू बागो की मोहक खुशबु 
मै खुशबु का फुल 
ये गुलशन आधा तेरा 
ये गुलशन आधा मेरा 

...............अमित

बेतुकी रचना

सूरज की तपिश,चाद की शीतलता
चॉद की चादनी में निखरता चेहरा
दिन के उजाले में उभरी प्रतिभा की बाते
की बात करता एक कव‍ि है

शब्‍दो केा मालो में पिरोता कवि
फिॅर भी गुमनामी की जिन्‍दगी जीता कवि है
गुमसुम उदास आखेा में हसीन सपने दिखाता कवि है
भागभाग की जिन्‍दगी में सकून के पल देता कवि है

फिर भी गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता कवि है...
रोते हुए चेहरे को हसाता एक कवि है
जिन्‍दगी से हारे हुए को हौसला देता कवि है
फिर भी गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता एक कवि है

प्रेम की परिभाषा बताता कवि है
दिल का दर्द दिल की बाते बताता एक कव‍ि है
हर शख्‍स को आइना दिखता है एक कव‍ि है
फिर गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता एक कव‍ि है

चंद सिक्‍को का भूखा नहीं है कवि अखंड
सम्‍मान का मोहताज नहीं है कवि
कवि तो बस भूखा है दशाहीन ,दिशाहीन समाज को
दशा और दिशा देने का,भटकते समाज केा सुधारने का 

अखंड को हसाने का दुख और भागमभाग के दौर में
दो पल आपको सूकून के देना का
यह सब केवल सोचता एक कवि है मगर आज भी
गुमनामी की जिन्‍दगी जीता एक ''''''''''''''''

बेटी काहे भईल पराई


लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई
कइ देहलन कन्‍यादान बाबू 
भईया लौआ देइलस मिलाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई | 

नौ महीनवा रहनी तोरा खोखिया में माई 
बधनी रखीवा हम भइया तोरा कलाई 
इस सभे बतीया कैसे हम भूलाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई | 

सास ससुर देवर ननद के करी सेवकाई 
पति के हम देवता बूझी ओकरो करी सेवकाई 
भले देई डाल किरासन उ हमके जराई 
बैईठत डोली इहे बतउलस हमार माई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई |

इंदिरा गाधी,किरण बेदी,कल्‍पना चावला 
केतना नाम हम बताई इहो सब त बेटीये रहली 
देहली कुल के नाम चमकाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई |

बेटी ना करी अब खाली चौका बरतन 
ना रही अब बन के खाली दाई 
तोरा बेटवन से भी आगे 
जा के नाम आगे नाम कमाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई | 

नइखे अब अब कौनो अन्‍तर 
नहीरा ससुरा में ए माई 
कुल के दीपक बेटवे ना 
बेटीओ अब कहाई | 

बेटवे ना जरीई हे अब कुल के दीपक 
अखंड बेटीयो अब जराई 
लगते सिंदूरवा ये माई 
बेटी ना होई पराई | 

सास ससुर मरदा के संगें 
नमवा तोरे आई ये माई 
चढते डोलीया ये अखंड भईया 
बेटीया ना होई पराई |

अन्दर की बात

         अन्दर की बात

सुन्दर ,स्वच्छ ,धवल वस्त्रों में ,नेताजी की भव्य छटा है
पर अन्दर की बात  यही है ,कि इनका बनियान  फटा है
मत जाओ इनकी बातों पर ,ये कहते कुछ,करते कुछ है,
घोटाले और स्केंडल में , इनका  कार्य काल   सिमटा  है
कभी किसी के नहीं हुए है ,बस अपना मतलब साधा है,
दम है जिधर,उधर ही हम है ,कह करके  पाला पलटा है
कोई कितनी भी गाली दे ,इनको फरक नहीं पड़ता है,
लेकिन अपनी स्वार्थ सिद्धी से ,कभी न इनका ध्यान हटा है
देश हमारा प्रगति शील था,इनने  शील हरण कर डाला ,
दुराचार के आरोपों से ,इनका अंग अंग  लिपटा है
शौक बहुत मख्खनबाजी का ,लगवाते है और लगाते,
घिरे रहे चमचों,कड़छों से ,अब तक जीवन यूं ही कटा है
जब से राजनीति में आये ,पाँचों ऊंगली घी में रहती ,
बस केवल करना पड़ता है,दंद फंद  उलटा सुलटा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चाशनी

                चाशनी

पानी को ,चीनी के साथ,
जब गर्मी देकर उबाला जाता है
एक मधुर ,रसीला तरल पदार्थ बन जाता है ,
जो चाशनी कहलाता है
और ये चाशनी जिस पर भी चढ़ जाती है
उसका स्वाद और लज्जत ही बदल जाती है
फटा हुआ दूध भी ,
जब इस चाशनी में उबाला जाता है
रसगुल्ला बन जाता है
और ओटे हुए दूध की गोलियां तल कर,
जब इसमें डाली जाती है
गुलाब जामुन बन जाती है
 सड़ा  हुआ मैदा ,जब अटपटे ,उलटे सीधे ,
उलझे हुए आकारों में तल कर,
जब इसका रस पी लेता है
जलेबी बन कर ,गजब का स्वाद देता है
मैदा या  बेसन,जब अलग अलग आकारों में ,
इसका संग पाते है
तो कभी घेवर ,कभी फीनी ,
कभी बालूशाही बन जाते है  
सिका  हुआ आटा ,सूजी,या पीसी हुई मूंगदाल,
जब इसके संपर्क में आती है
तो हलवा बन कर लुभाती है
ये सारे रसासिक्त व्यंजन
भूख जगाते है और मोहते है मन
पर मुझे इन सबसे ज्यादा ,
लगती है मनमोहक और लुभावनी
तेरा मदभरा प्यार और तेरे रूप की चाशनी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


एक चुप्पी

एक चुप्पी, 
तुम्हारे और मेरे दरमियाँ है ,
तुम्हारे इतने करीब होकर भी 
बेशुमार दूरियाँ है ;

बाते तो कहने को हजार है 
लेकिन कैसी मजबुरियाँ है 
तुम्हारे लफ्ज, 
मेरे लफ्जो पे संवर भी नहीं पाते है 
क्यों शब्द बिखर-बिखर रह जाते है |

जुबान पे आते आते ऐसा क्यों 
जज्बात आँखों से
पिघल पिघल के गिर रहे है 
ऐसा लगे बरसो बाद 
बिछड़े दिल मिल रहे है ...

सोमवार, 23 सितंबर 2013

मन-वृन्दावन

     मन-वृन्दावन

हमारे पड़ोस के प्रोढ़ होते हुए एक सज्जन
हर महीने दो महीने बाद
अपनी पत्नी के साथ
चले जाते  है वृन्दावन
एक दिन हमने उनसे पूछ लिया श्रीमान
दे दो हमको थोडा सा ज्ञान
वो ही मंदिर है ,वो ही मूरतें है
पंडित,पुजारी,धर्माचार्यों की ,वो ही सूरतें है
और जहाँ तक हमें ज्ञान है
हर जगह मौजूद रहते भगवान है
अगर सच्ची भावना से देखो,
तो हर मूर्ती में प्राण है
आपके घर में भी ,राधा कृष्ण की मूरत है
तो हर महीने आपको ,
वृन्दावन जाने की क्या जरूरत है
उन्होंने हमसे मुस्करा कर पूछा
आप  कभी वृन्दावन गए है क्या ?
वहां के चप्पे चप्पे में,बसते घनश्याम है
और हर गली में गूंजता राधा का नाम है
 पूरा वृन्दावन ,राधा कृष्ण मय लगता है
वहां का वातावरण ,
उनके प्यार की,खुशबू से महकता है
वहां के प्रेममय वातावरण की ,हवाओं मे
लेकर तो देखो ,कुछ साँसे
ढलती उमर के साथ ,आपका ढलता प्यार
भी पुनर्जीवन पा जाएगा
आपकी पत्नी को आप कृष्णमय लगेंगे ,
और आपको पत्नी में राधा का रूप नज़र आयेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 22 सितंबर 2013

रितु चुनाव की आयी

         घोटू के पद
रितु  चुनाव की आयी

सखी री ,रितु चुनाव की आयी
मनमोहन ने ,दस वर्षों में ,दुर्गत बहुत बनाई
बेटे को मिल जाए सिंहासन ,चाहे सोनिया माई
बन मुंगेरीलाल ,देखते ,सपन ,मुलायम  भाई
बिल्ली बन ,छींका टूटन की ,आस नितीश लगाई
मौके पर ही ,वार करेंगे,कहे  पंवार  मुस्काई
नमो नमो नारायण की रट ,नारद रहे लगाई
पांच बरस में ऐसी लीला,'घोटू' पड़े  दिखाई
सखी री,रितु चुनाव की आई
 घोटू

किस मुंह माने वोट

   घोटू के पद

किस मुंह माने वोट

अब हम,किस मुंह मांगे वोट
पांच बरस तक,मौज उडाई,करके लूट खसोट
बहुत किये घोटाले हमने ,खूब कमाए नोट
बार बार मंहगाई बढ़ा  कर,करी चोंट पर चोंट
सारे वोटर जान गए है,हम में है कुछ  खोट
एक बार ,फिर से सत्ता में ,मुश्किल आना ,लौट
'घोटू'अब तो,नमो नारायण ,बिठा रहा है गोट
अब हम ,किस मुंह मांगे वोट
घोटू

हे भगवान -दे वरदान

       हे  भगवान -दे वरदान

हे मेरे प्रभू  ,
आजकल कितना बदल गया है तू
मै दिन रात ,
पूरी श्रद्धा और भक्ति  के साथ
तेरे पूजन में रहा लगा
रतजगों में पूरी रात जगा
पर आज महसूस कर रहा हूँ ठगा
क्योंकि शायद तूने आजकल,
छोड़ दिया है रखना भक्तों का ख़याल
इसीलिये ,मै  हूँ बदहाल
मुश्किलों से नसीब होते है रोटी दाल
फिर भी रोज तेरे मंदिर जाता हूँ
आपको दो मुट्ठी चांवल  चढ़ाता हूँ
राशन की दूकान से ख़रीदे सुदामा के चांवल
एक बार प्रेम से चबा लो प्रभुवर
और दीनदयाल,मुझे खुशहाल करदो
सुदामा की तरह निहाल करदो
हे प्रभू ,अपने इस परम भक्त का ,
थोड़ा सा तो ख्याल करो
कोई क्रीमी पोस्टिंग ही दिला कर ,
मुझे मालामाल करो
वरना मै आपके चरण पकड़ कर
बैठा ही रहूँगा यहीं पर
मै विनती कर ही रहा था कि ,
मुझे कुछ रोशनी का आभास हुआ
एक दिव्य प्रकाश हुआ
भगवान प्रकट हुए और बोले ,
अब ज्यादा मत खींच मेरी टांग  
बोल तुझे क्या चाहिये,मांग
मै बोला ,प्रभू ,मुझे न चांदी न सोना चाहिए
बस आपका आशीर्वाद होना चाहिए
मै हूँ निर्बल,असहाय
मुझे तो भगवन ,दिला दो एक गाय
मगर वो गाय हो कपिला
जिससे जो भी मांगो ,देती है दिला
जो भी मै चाहूंगा ,वो मुझे दे देगी
प्रभूजी ने टोका ,भक्त ,छोटा सा है तेरा घर
और वो भी सातवीं मंजिल पर ,
वहां गाय कैसे बंधेगी ?
मै बोला ,अच्छा प्रभू ,गाय नहीं ,
तो कल्पवृक्ष ही दिलवा दो ,
जिसके बारे में ये कहा जाता है
उसके नीचे बैठ कर जो भी मांगो,मिल जाता है
प्रभू बोले ,फिर वही पागलों सी बात ,
तेरे  समझ में कब आयेगा
सातवीं मंजिल के छोटे से फ्लेट में,
कल्पवृक्ष  कैसे समायेगा ?
मै बोला 'सॉरी ' प्रभू ,
मै गया था अपनी औकात भूल
और माँगता रहा यूं ही ऊल जलूल
मुझे तो आप एक छोटी सी वस्तु मात्र  दे दो
जो द्रोपदी को दिया था,वैसा अक्षय पात्र दे दो
उसमे जो भी पकेगा ,वो सदा भरा ही रहेगा
मेरे और मेरे आसपास के ,
गरीबों और भूखों का पेट भरेगा
और मेरे छोटे फ्लेट में आराम से रखा जाएगा
इसके पहले कि प्रभू कुछ कहते ,
पत्नी जी ने झिंझोड़ कर जगाया ,
और दूध  का पात्र देती हुई बोली,
सपने ही देखते रहोगे ,तो दूध कौन लाएगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

इक नई दुनिया बनाना है अभी

आज फिर से, एक नया सा, स्वप्न सजाना है अभी,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

कह दिया है, जिंदगी से, राह न मेरा देखना,
खुद ही जाके, औरों पे, खुद को लुटाना है अभी |

साख पे, बैठे परिंदे, हिल रहे हैं खौफ से,
घोंसला उनका सजा कर, डर भागना है अभी |

लग गई है, आग अब, दुनिया में देखो हर तरफ,
बाँट कर, शीत प्रेम फिर से, वो बुझाना है अभी |

जा रहा है, वह मसीहा, रूठकर हम सब से ही,
रोक कर उसका पलायन, यूँ मनाना है अभी |

दिख रहे, सोये हुए से, जाने कितने कुम्भकरण,
पीट कर के, ढोल को, उनको जगाना है अभी |

देखती, माँ भारती, आँखों में लेके, अश्रु-सा,
सोख ले, उन अश्क को, कुछ कर दिखाना है अभी |

राह को हर, कर दे रौशन, रख दूं ऐसा "दीप" मैं,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

भूल और भूलना

          भूल और भूलना

जन्म देकर तुम्हारा पोषण किया ,
और बनाया वक़्त के अनुकूल है
आज क्यों  तुमने भुलाया है उन्हें,
भूलना उनको तुम्हारी भूल है
सच्चे दिल से प्यार करते है तुम्हे ,
भूल कर माँ बाप को मत भूलना
सूर्य उगता ,चमकता,ढलता भी है,
याद रख,इस बात को मत भूलना
बालपन के पल सुहाने,भोलापन,
भूलना मत ,प्रेमिका के प्यार को
भूल जाना तुम किसी की भूल को,
भूलना मत ,किसी के उपकार को
 दुश्मनी कोई करे तो भुला दो,
भूलना मत दोस्ती का नजरिया
मत भुलाना किसी के अहसान को ,
भूल जाना तुम सभी की गलतियां
भूल जाओ ,अपने सारे गमो को,
कभी खुशियाँ,कभी गम,जीवन यही
ख्याल  पल पल जो तुम्हारा रख रहा ,
उस प्रभू को भूलना किंचित  नहीं
याद रखना गलतियां ,जिनने कभी,
सफलता का पथ प्रदर्शित था किया
दूसरों के  दोष  ढूंढो  बाद में ,
पहले देखो खुद में है क्या खामियां
जवानी के जोश में मत भूलना ,
कल बुढ़ापा भी तुम्हे  तडफायेगा
चार दिन की चांदनी है जिन्दगी ,
क्या पता कब मौत का पल आयेगा
भूलना आदर्श मत,उत्कर्ष हित,
किया जो संघर्ष को मत भूलना
मातृभूमी स्वर्ग से भी बढ़ के है,
अपने भारत वर्ष को मत भूलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

विनती -प्रभू से

    विनती -प्रभू से

प्रभू जी तुम क्यों न आते आजकल
अपनी लीलाये दिखाते  आजकल
तरक्की का गज ग्रसित है ग्राह से,
देश को क्यों ना बचाते आजकल
व्यवस्थाये  अहिल्या सी शिलावत ,
पग लगा क्यों ना जिलाते आजकल
उसको आरक्षण तो है दिलवा दिया ,
बैर शबरी के न  खाते आजकल
जनता का है चीर हरता दुशासन ,
चीर ,आ,क्यों ना बढाते आजकल
तुमसे मिलने फीस देता सुदामा ,
दौड़ ,खुद ना द्वार आते  आजकल
सबसिडी चांवल पे तुमने दिलादी ,
खुद न वो चावल चबाते आजकल
पोल्युशन से यमुना मैली हो गयी ,
कहाँ पर हो तुम नहाते आजकल
दे रहे  शिशुपाल कितनी गालियाँ,
चक्र क्यों ना हो चलाते  आजकल
कंस का है वंश बढ़ता जा रहा ,
क्यों न तुम आकर मिटाते आजकल
आओ,तुमको याद ब्रज आ जाएगा ,
लोग सब ,मक्खन लगाते  आजकल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Compliments; Please read and reply!

Hi,

I got your email from a marketing company, so i decided to let you know about the business opportunity of supplying us raw material from India. I am an employee of a multi-national animal vaccines production company in USA and UK working as the production manager.

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Hope to hear from you soon!

Regards,


Poppel Monrad

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

गलती हमी से हो गयी

          गलती हमी से हो गयी

        आपने जो भी लिखा सब ठीक था ,
          पढने में गलती हमी से हो गयी
बीज बोये और सींचे प्यार से,
चाहते थे ये चमन,गुलजार हो
पुष्प विकसे ,वृक्ष हो फल से लदे,
हर तरफ केवल महकता प्यार हो
          वृक्ष लेकिन कुछ कँटीले उग गये ,
           क्या कोई गलती जमीं से हो गयी
पालने में पूत के पग दिखे थे ,
मोह का मन पर मगर पर्दा पड़ा
उसी पग से लात मारेगा हमें ,
और तिरस्कृत करेगा होकर बड़ा
            पकड़ उंगली ,उसे चलना ,पग उठा,
             सिखाया ,गलती हमी से हो गयी
हमने तो बोये थे दाने पोस्त के,
फसल का रस मगर मादक हो गया
गुरूजी ने तो सिखाया योग था,
भोग में पर लिप्त साधक हो गया
               किस पे अब हम दोष आरोपित करें,
                कमी, कुछ ना कुछ, कहीं से हो गयी  
देख कर हालात  सूखी  धरा के ,
हमने माँगी थी दुआ  बरसात की
जल बरस कर मचा देगा तबाही ,
कल्पना भी नहीं थी इस बात की
                थोडा ज्यादा मेहरबां 'वो ' हो गया ,
                भूल कुछ शायद   हमी से हो गयी
                आपने जो लिखा था ,सब सही था,
                पढने में गलती हमीं से हो गयी   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 18 सितंबर 2013

दक्षिणा के साथ साथ

    दक्षिणा के साथ साथ

अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर  माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको  खाना होगा
पर इतनी सारी  केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

छोटी दुनिया-बड़ा नजरिया


छोटी  दुनिया-बड़ा नजरिया
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मैंने पूछा लिफ्ट  मेन से
ऊपर नीचे, नीचे ऊपर
बार बार आते जाते हो
लोगों को अपनी मंजिल तक,
रोज़ रोज़ तुम पंहुचाते हो
छोटे से इस कोठियारे में,
 टप्पा खाते रहते,दिन भर
तुमको घुटन नहीं होती है?
लिफ्ट मेन बोला  मुस्का  कर
सर,ये तो अपनी ड्यूटी है
इससे ही मिलती रोटी  है
इसमें दुनिया दिख जाती है ,
लिफ्ट भले ही ये छोटी है,
हरेक सफ़र में नयी खुशबूए ,
नूतन सुन्दर चेहरे अच्छे
ऊपर नीचे आते ,जाते ,
झूले का सुख पाते बच्चे
 एक दूसरे से मिलने पर,
 हल्लो करते हुए पडोसी
न कोई अपनापन,
न कोई गर्मजोशी
बच्चों के स्कूली बेग थामती हुई
अस्त व्यस्त मातायें,
कोलेज जाने के नाम पर,
पिक्चर का प्रोग्राम बनाटी हुई कन्याये 
अपनी मालकिन की ,बुराइयाँ करती हुये ,
महरियाँ और  नौकर
सुबह सुबह अख़बारों का बण्डल उठाकर,
दुनिया की खबर बाँटने वाले,
न्यूज़ पेपर वेंडर
बहुओं की बुराई करती हुई सासें,
 सासों की आलोचना करती हुई बहुए
अपने पालतू कुत्ते को
पति से ज्यादा प्यार करती महिलाएं
बसों की भीड़ से उतर
पसीने में तर बतर
कुछ थके हारे पस्त चेहरे
अपनी बीबी के आगे भीगी बिल्ली बनते,
बड़े बड़े साहबों के रोबीले चेहरे
शोपिंग कर ढेरों बैगों का ,बोझ उठाये
थकी हुई पर प्रसन्न  महिलायें
हर बार
आती है एक नयी खुशबू की फुहार
विभिन्न वेशभूषाएं
भिन्न भिन्न भाषाएँ
मुझको इस छोटे से घर में
पूरा हिंदुस्तान नज़र आये
कभी बिछड़ों को मिलाता हूँ
कभी जुदाई के दृश्य देखता हूँ
ऊपर नीचे करते करते
मै रोज़ दुनिया के कई रंग देखता हूँ
और आप सोचते है की मुझे घुटन होती होगी
क्योंकि मै एक छोटे से डिब्बे में सिमटा हूँ
मै तो इस छोटे से डब्बे में भी,
खुश रहता हूँ, बड़े चेन  में
मुझे बताया लिफ्ट मेन ने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हम नूतन घर में आये है

हम नूतन घर में आये है
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नए पडोसी,नयी पड़ोसन
नया चमकता सुन्दर आँगन
नूतन कमरे और वातायन
      ये  सब मन को अति भाये है
       हम नूतन घर में आये है
कोठी में थे,बड़ी शान में
थे जमीन पर ,उस मकान में
आज सातवें आसमान में
        हमने निज पर फैलायें है
        हम नूतन घर में आये है
प्यारा दिखता उगता सूरज
सुदर लगता ढलता सूरज
धूप,रोशनी,दिन भर जगमग
        नवप्रकाश में मुस्काये है
        हम नूतन घर में आये है
तरणताल में नर और नारी
गूंजे बच्चों की किलकारी
 क्लब,मंदिर,सुख सुविधा सारी
          पाकर के हम हर्शायें है
          हम नूतन घर में आये है

झरने,फव्वारे खुशियों के
शीतल,तेज हवा के झोंके
ताक झांक करने के मौके
        इस ऊंचे घर में पायें है
    
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
(यह  कविता मेरे ओरंज काउंटी में
 आने के उपरान्त लिखी गयी है)

विकास की आंधी-पड़ोसियों का दर्द

 विकास की आंधी-पड़ोसियों का दर्द

हमारा छोटा सा घर था,
और उस पर एक छोटी सी छत थी
जहाँ हम सर्दी में ,कुनकुनी धूप का आनंद उठाते थे
 तेल की मालिश कर ,
नंगे बदन को,
सूरज की गर्मी में तपाते थे
और गर्मी की चांदनी रातों में,
जब शीतल बयार चल रही होती  थी,
सफ़ेद चादर पर ,हम दो दो चांदो को निहारते ,
तो तन में सिहरन सी होती थी
पड़े रहते थे ,हम तुम ,साथ साथ
और  मधुचंद्रिका सी होती थी,
हमारी हर रात
पर विकास की आंधी में,
हमारे घरों के आसपास ,
उग आई है,बहुमंजिली इमारते
और बदलने पड़  गयी है,हमें अपनी आदतें
बड़ी मुश्किलें हो  गयी है
हमारी सारी  आजादी खो गयी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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