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गुरुवार, 22 सितंबर 2022

पता ही न लगा 

बचपन की खींची ,
आड़ी तिरछी रेखाएं ,
जाने कब अक्षर बन गई 
और अक्षरों का जमावड़ा ,
जाने कब कविता बन गया ,
पता ही न लगा

बचपन की आंख मिचोली ,
बड़े होते होते
कब आंखों का मिलन 
और प्यार में परिवर्तित हो गई ,
पता ही न लगा 

बालपने की चंचलता,
 कब जवानी की उद्दंडता मे बदल गई
 और पंख लगा कर कब समय
  बुढ़ापे की कगार पर ले आया,
  पता ही न लगा

  रोज-रोज ,
  गृहस्थी की उलझनों में उलझे हुए हम,
  उन्हे सुलझाते सुलझाते,
  अपने लिए कुछ भी नहीं कर पाए,
  और विदा की बेला आ गई,
  पता ही न लगा

देखते ही देखते,
हमारी मानसिकता
और लोगों के व्यवहार में
कितना परिवर्तन आ गया,
पता ही न लगा

मदन मोहन बाहेती घोटू
चांडाल चौकड़ी 

यह सारे उत्दंड तत्व है,
ईर्षा, द्वेष,मोह और माया
इस चंडाल चौकड़ी ने ही,
मिलकर है उत्पात मचाया 
 जग के हर झगड़े की जड़ में 
 हर फसाद में ,हर गड़बड़ में 
 जब भी हमने कारण ढूंढा, 
 छुपा इन्ही तत्वों को पाया 
 
देख फूलता फलता कोई ,
उससे जलना मन ही मन में 
और किसी से द्वेष पालना 
हरदम दुख देता जीवन में

होती प्रगति देख किसी की 
मन लाओ लहर खुशी की 
जिसने भी ये पथ अपनाया  
सच्चा सुख है उसने पाया 
ये सारे उदंड तत्व हैं
ईर्षा, द्वेष मोह और माया

मन जो उलझा अगर मोह में 
तो बिछोह में दुख होता है 
जो फसता माया चक्कर में ,
निज सुखचैन सभी खोता है 

जर,जमीन, जोरू के झगड़े ,
में कितने ही घर है उजड़े
इनमे जो भी कोई उलझा,
होकर दुखी ,बहुत पछताया
ये सारे उदंड तत्व हैं,
ईर्षा, द्वेष, मोह और माया

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 20 सितंबर 2022

आग लगी है 

कोई नहीं चैन से बैठा, 
ऐसी भागम भाग लगी है,
 महंगाई से सभी त्रस्त है,
 हर एक चीज में आग लगी है 
 
घी और तेल, गेंहू और चावल 
दिन दिन महंगे होते जाते 
दाम दूध के और दही के ,
आसमान को छूते जाते 
सब्जी महंगी, फल भी महंगे ,
महंगे कपड़े ,जूते चप्पल 
यातायात हो गया महंगा, 
मंहगे पेट्रोल और डीजल 
कैसे कोई करे गुजारा ,
सभी तरफ बढ़ रही ठगी है 
महंगाई से सभी त्रस्त है, 
हर एक चीज में आग लगी है

पांच रुपए था, कभी समोसा,
अब है बीस रूपए में आता 
महंगा हुआ चाय का प्याला ,
मुंह से गले उतर ना पाता 
दाल और रोटी खाने वाले,
के अब कम हो गए निवाले
अब गरीब और मध्यमवर्गी
कैसे घर का खर्च संभाले 
पेट नहीं भरता भाषण से ,
जबकि पेट में भूख जगी है 
महंगाई से सभी त्रस्त है,
 हर एक चीज में आग लगी है 
 
 आग लगी है जनसंख्या में,
 बढ़ती ही जाती आबादी
 सीमा पर कर रहे उपद्रव,
 कुछ आतंकी और उन्मादी  
 आग लगी है बेकारी की,
  सभी तरफ है मारामारी 
  अर्थव्यवस्था डूब रही है ,
  आवश्यक है जाए संभाली
  मगर देश को कैसे लूटें,
  नेताओं में होड़ लगी है 
  महंगाई से सभी त्रस्त हैं,
  हर एक चीज में आग लगी है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 15 सितंबर 2022

प्रभु कृपा

मैंने बहुत शान शौकत से ,
अभी तलक जीवन दिया है
 मैंने तुझसे कुछ ना मांगा,
 पर तूने भरपूर दिया है 
 
तू तो सबका परमपिता है ,
सब बच्चों का तुझे ख्याल है 
तेरे लिए बराबर सब है 
और सभी से तुझे प्यार है 

तरसे सदा लालची लोभी
माला माल मगर संतोषी 

जिसने जो प्रवर्ती अपनाली,
उसने वह व्यवहार किया है 
मैंने तुझसे कुछ ना मांगा,
पर तूने भरपूर दिया है

आज भोगते हैं हम ,फल है,
 किए कर्म का पूर्व जनम में 
 इसीलिए सौभाग्य ,दरिद्री ,
 का अंतर होता है हम में

 जैसे कर्म किए हैं संचित
  सुखी कोई है कोई वंचित 
  
  सत्कर्मों से झोली भर लो ,
  प्रभु ने मौका तुम्हे दिया है 
  मैंने तुझसे कुछ ना मांगा,
  पर तूने भरपूर दिया है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 11 सितंबर 2022

पुनर्वालोकन 

जाने अनजाने मुझसे कुछ 
गलती कहीं हुई ही होगी ,
वरना कृपा सिंधु परमेश्वर 
मुझ को कष्ट न देता इतने 
वह सब खुशियों का दाता है 
परमपिता है भाग्य विधाता
 प्यार लुटाता संतानों पर,
 है उपकार लुटाता कितने
 
 बचपन में हम जब शैतानी
  करते, पिता पिटाई करते 
  दोषी कभी,कभी निर्दोषी 
  आपस में बस यूं ही झगड़ते 
  इन भोले भाले  झगड़ों में 
  लेकिन राग द्वेष ना होता 
  किंतु बाद में इर्षा से जब,
   कोई अपना धीरज होता 
   उससे पाप कर्म हो जाता
    तो वह गलती निंदनीय है 
    हमें भोगना ही पड़ता है 
    उसका फल इस ही जीवन में 
    जाने अनजाने मुझसे कुछ 
    गलती कही हुई ही होगी ,
    वरना कृपासिंधु परमेश्वर 
    मुझको कष्ट देता है इतने 
    
इसीलिए ये ही अच्छा है
 गलती की है , तुरंत सुधारो 
 मन में चुभन ना हो कोई के 
 क्षमा मांग कर , बैर विसारो
 अंतःकरण शुद्ध कर अपना 
 सारा जीवन जियो प्यार से 
 जीवन में शांति मिलती है 
 सब के प्रति अच्छे विचार से 
 गलती से, गलती हो जाए,
 धो दो बहा क्षमा की गंगा,
 वरना पापों की झोली फिर,
 देती कष्ट लगे जब भरने
 जाने अनजाने मुझसे कुछ
  गलती कहीं हुई ही होगी 
  वरना कृपा सिंधु परमेश्वर 
  मुझको कष्ट न देता है इतने 
  
तन के रोग मानसिक चिंता 
उन्हीं पाप कर्मों का फल है 
जो संचित हो करके सारे ,
करते रहते तुम्हें विकल है 
तुम जो चिंता मुक्त रहोगे 
तो दुख पास नहीं फटकेंगे
 तुम जिनके दुख दूर करोगे 
 वे सब तुम्हें दुआएं देंगे 
 शांतिपूर्ण जीवन जीने का,
  यही तरीका सर्वोत्तम है 
  तुम उतने सुख के भागी हो 
  पाप कर्म  कम होते जितने
  जाने अंजाने मुझसे कुछ,
  गलती कहीं हुई ही होगी,
  वर्ना कृपासिंधु परमेश्वर,
  कष्ट न देता मुझको इतने

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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