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शुक्रवार, 22 जून 2018

नेताजी से 

परेशानी बढ़ , गयी अब चौगुना है 
कर रहे हर शिकायत को अनसुना है 
वोट पाकर , नोट के बस फेर में हो ,
क्या इसी के वास्ते तुमको  चुना है 
दूध चट कर  हमें कह कर चाय है ,
पिलाते तुम सिर्फ  पानी  गुनगुना  है
मुंह हमारा बंद रहे इस वास्ते 
आश्वासन  देते  पकड़ा झुनझुना है 
रजाई की तपिश पाने के लिए ,
रुई जैसा आपने हमको धुना है 
चाह कर भी हम निकल पाते नहीं ,
इस तरह से जाल वादों का बुना है 
अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मार कर ,
मन हमारा ,बहुत जल जल कर भुना है 
ज्यादा उड़ने वाले अक्सर अर्श से ,
फर्श पर गिर जाते ,देखा और सुना है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 17 जून 2018

मुझे याद रहेगी देर तलक 

वो तेरी सूरत  मुस्काती 
वो तेरी जुल्फें  लहराती 
वो चाल तेरी हिरण जैसी ,
वो तेरी कमरिया बल खाती 
       मुझे याद रहेगी  तेरी झलक 
     बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक 
वो महकाता चंदन सा बदन 
वो बहकाती चंचल चितवन 
तू रूप भरी ,रस की गागर ,
वो मचलाता तेरा यौवन 
       जो भी देखे वो जाए बहक 
       बड़ी देर तलक बड़ी दूर तलक 
मुस्कान तेरी वो मंद मंद 
रसभरे ओंठ ,गुलकंद कंद 
तेरी हर एक अदा कातिल ,
मेरे मन को आती पसंद ,
        मद भरे नयन ,अधखुले पलक 
        बड़ी देर तलक,बड़ी दूर तलक 
वो तेरे तन की दहक दहक 
वो तेरी खुशबू,महक महक 
खन खन करती वो तेरी हंसी,
वो तेरी बातें चहक चहक 
        तू जाम रूप का ,छलक छलक 
         बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक 
तू मूरत  संगेमरमर की 
तू अनुपम कृति है ईश्वर की 
जैसे धरती पर उतरी हो ,
तू कोई अप्सरा अंबर की 
       तू सबसे जुदा ,तू सबसे अलग 
        बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

बावन पत्ते 

हम और तुम और बावन पत्ते 

जब तुम पीसो ,तब मै काटूँ 
जब तुम काटो ,तब मैं बांटू 
चौके,पंजे ,अट्ठे,सत्ते 
हम और तुम और बावन पत्ते 

इक्के दुक्के कभी कभी हम 
तीन पांच करते आपस में 
तुम चौका, मैं छक्का मारूं,
बड़ा मज़ा आता है सच में 
ये क्या कम हम साथ साथ है 
और बिखरे, सात आठ नहीं है 
तुम मारो नहले पर दहला ,
फिर भी मन में गाँठ नहीं है 
तुम बेगम बन रहो ठाठ से ,
बादशाह मैं ,पर गुलाम हूँ 
तुम हो हुकुम ,ईंट मैं घर की ,
तुम चिड़िया मैं लालपान हूँ 
कभी जीतते,कभी हारते ,
हँसते हँसते  बावन हफ्ते 
हम और तुम और बावन पत्ते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

पिताजी आप अच्छे थे 

संवारा आपने हमको ,सिखाया ठोकरे सहना 
सामना करने मुश्किल का,सदा तत्पर बने रहना 
अनुभव से हमें सींचा ,तभी तो हम पनप पाये 
जरासे जो अगर भटके ,सही तुम राह पर लाये 
मिलेगी एक दिन मंजिल ,बंधाया हौंसला हरदम 
बढे जाना,बढे जाना ,कभी थक के न जाना थम 
जहाँ सख्ती दिखानी हो,वहां सख्ती दिखाते थे 
कभी तुम प्यार से थपका ,सबक अच्छा सिखाते थे 
तुम्हारे रौब डर  से ही,सीख पाए हम अनुशासन 
हमें मालुम कितना तुम,प्यार करते थे मन ही मन 
सरल थे,सादगी थी ,विचारों के आप सच्चे थे 
तभी हम अच्छे बन पाए ,पिताजी आप अच्छे थे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 13 जून 2018

आजकल तो रह गए हम छाछ है 

जवानी के वो सुहाने दिन गए ,बुढ़ापे का हो गया आग़ाज़ है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है 
जवानी में थोड़ी भी ऊष्मा मिली ,खूं हमारा था उछालें  मारता 
दूध जैसे उफनने लगते थे हम,बड़ा ही मस्ती भरा  संसार था 
मलाई बन हसीं गालों पर लगे ,होते थे टॉनिक सुहागरात के 
उन दिनों की बात ही कुछ और थी ,मुश्किलों से संभलते जज्बात थे 
दिल किया खट्टा किसी ने फट गए ,किसी ने जावन जो डाला ,जम गए 
खोया बन के खोया अपने रूप को ,मथा जो कोई ने मख्खन बन गए 
अब पिघलते झट से आइसक्रीम से ,हमसे यौवन हो गया नाराज है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम ,आजकल तो रह गए बस छाछ है 
जवानी का सारा मख्खन खुट गया ,कुछ यहाँ कुछ वहां यूं ही बंट गया 
लुफ्त तो सबने ही जी भर कर लिया ,खजाना सब लुट यूं ही झटपट गया 
मलाई जो भी थी थोड़ी सी बची ,बुढ़ापे की बिल्ली ,आ चट कर गयी 
स्निग्धता अब भी बची है प्यार की ,दूध की ताक़त भले ही घट गयी 
अब तो खट्टी छाछ सी है जिंदगी ,मगर फिर भी ,स्वास्थवर्धक स्वाद है 
तुम बनाओ कढ़ी चाहे रायता ,अब  भी देती ,हृदय को आल्हाद है 
सुरों में अब भी मधुरता है वही ,भले ही अब ये पुराना  साज है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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