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शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

दिवाली मन गयी 
१ 
कल गया घूमने को मैं तो बाज़ार था 
कोना कोना वहां लगता गुलजार था 
हर तरफ रौशनी ,जगमगाहट दिखी 
नाज़नीनों के मुख,मुस्कराहट दिखी 
चूड़ियां ,रंगबिरंगी ,खनकती  दिखी 
कोई बरफी ,जलेबी,इमरती   दिखी 
फूलझड़ियां दिखी और पटाखे दिखे 
सब ही त्योंहार ,खुशियां,मनाते दिखे 
खुशबुओं के महकते नज़ारे  दिखे 
आँखों आँखों में होते इशारे   दिखे 
कोई हमको मिली,और बात बन गयी 
यार,अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
२ 
कल गया पार्क में यार मैं घूमने 
देख करके नज़ारा, लगा झूमने 
जर्रा जर्रा महक से सरोबार था 
यूं लगा ,खुशबूओं का वो बाज़ार था
 थे खिले फूल और कलियाँ भी कई
रंगबिरंगी दिखी ,तितलियाँ भी कई 
कहीं चम्पा ,कहीं पर चमेली दिखी 
बेल जूही की ,झाड़ी पर फैली दिखी 
थे कहीं पर गुलाबों के गुच्छे खिले 
और भ्रमर उनका रसपान करते मिले 
एक गुलाबी कली ,बस मेरे मन गयी 
यार अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
३ 
 मूड छुट्टी का था,बैठ आराम से 
देखता था मैं टी वी ,बड़े ध्यान से 
आयी आवाज बीबी की,'सुनिए जरा 
कुछ भी लाये ना,सूना रहा दशहरा 
व्रत रखा चौथ का,दिन भर भूखी रही 
तुम जियो सौ बरस,कामना थी यही 
और बदले में तुमने मुझे क्या दिया 
घर की करने सफाई में उलझा दिया 
आज तेरस है धन की ,मुहूरत भी है 
सेट के सोने की,मुझको जरुरत भी है 
अब न छोडूंगी ,जिद पे थी वो ठन गयी 
यार अपनी तो ऐसे दिवाली मन गयी 

घोटू  



मेहमान 

उमर के एक अंतराल के बाद 
 एक कोख के जाये ,
और पले बढे जो एक साथ,
उन भाई बहनो के रिश्ते भी ,
इस तरह बदल जाते है 
कि जब वो कभी ,
 एक दूसरे के घर जाते है ,
तो मेहमान कहलाते है 
जिंदगी में  परिभाषाएं ,
इस तरह बदलती है 
अपनी ही जायी बेटी भी ,
शादी के बाद ,
हमे मेहमान लगती है 

घोटू 
बंटवारा 

जब हम छोटे होते है 
और घर में कोई चीज लाई जाती है 
तो सभी भाई बहनो में ,
बराबर बाँट कर खाई जाती है 
कोई झटपट का लेता है 
कोई बाद मे,सबको टुंगा टुंगा,
खाकर के  मजे लेता है 
बस इस तरह ,हँसते खेलते ,
जब हम बड़े होते है 
तब फिर होना शुरू झगड़े होते है  
एक दूसरे के छोटे हुए,
उतरे कपडे पहनने वाले ,अक्सर 
उतर आते है इतने निम्न स्तर पर 
कि समान 'डी एन ए 'के होते हुए भी ,
अपने अपने स्वार्थ में सिमट जाते है 
और बचपन में लाइ हुई चीजों की तरह ,
आपस में बंट जाते है 

घोटू 
रिश्ते 

जीवन के आरम्भ में ,
किसी के बेटे होते है आप 
और बढ़ते समय के साथ,
बन जाते है किसी के पति ,
और फिर किसी के बाप 
उमर जब बढ़ती है और ज्यादा 
तो आप बन जाते है ,
किसीके ससुर और किसी के दादा 
और इस तरह,
तरह तरह के रिश्ते निभाते हुए,
आप इतने थक जाते है 
कि तस्वीर बन कर ,
दीवार पर लटक कर ,
अपना अंतिम रिश्ता निभाते है 
 
 घोटू                             

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था तन्हा कुआँ,आयी पनिहारिने ,
     गगरियाअपनीअपनी सब भरती गयी 
तुम नदी की तरह यूं ठुमक कर चली,
        पाट  चौड़ा हुआ ,तुम संवरती गयी 
अपने पीतम का ' पी 'तुमने ऐसा पिया ,
     रह गया 'तम' मैं, तुम रौशनी बन गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम'मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी           

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

अहमियत आपकी क्या है 

हमारी जिंदगानी में ,अहमियत आपकी क्या है 
खुदा की ये नियामत है,मोहब्बत आपकी क्या है 
कभी चंदा सी चमकीली ,कभी फूलों सी मुस्काती ,
आपसे मिल समझ आया कि दौलत प्यार की क्या है 
मेरे जीवन का हर मौसम,भरा है प्यार से हरदम,
बनाती लोहे को कुंदन,ये संगत  आपकी क्या  है 
अपनी तारीफ़ सुन कर के ,आपका मुस्कराना ये,
बिना बोले ,बता देता ,कि नीयत  आपकी क्या है 
सुहाना रूप मतवाला ,मुझे पागल बना डाला ,
गुलाबी ओठों को चूमूँ ,इजाजत आपकी क्या है 
कभी आँचल हटा देती,कभी बिजली गिरा देती,
इशारे बतला देते है कि हालत  आपकी  क्या है 
हो देवी तुम मोहब्बत की ,या फिर हो हूर जन्नत की,
बतादो हमको चुपके से, असलियत आपकी क्या है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मुक्ती 

मैं जनम पत्रिकायें   दिखाता रहा ,
और ग्रहों की दशाएं बदलती रही 
पर दशा मेरी कुछ भी तो बदली नहीं ,
जिंदगी चलती ,वैसे ही चलती रही 
कोई ज्योतिष कहे ,दोष मंगल का है,
कोई पंडित कहे ,साढ़ेसाती चढ़ी 
कोई बोले चंदरमा ,तेरा नीच का,
उसपे राहु की दृष्टी है टेढ़ी पड़ी 
तो किसी ने कहा ,कालसर्प दोष है,
ठीक कर देंगे हम ,पूजा करवाइये 
कोई बोलै तेरा बुध कमजोर है ,
रोज पीपल पे जल जाके चढ़वाईये 
कोई बोलै कि लकड़ी का ले कोयला ,
बहते जल में बहा दो,हो जितना बजन 
दो लिटर तैल में ,देख अपनी शकल ,
दान छाया करो,मुश्किलें होगी कम 
मैं शुरू में  ग्रहों से था घबरा गया ,
पंडितों  था  इतना  डराया  मुझे 
मंहगे मंहगे नगों की अंगूठी दिला ,
सभी ने मन मुताबिक़ नचाया मुझे 
और होनी जो होना लिखा भाग्य में ,
वो समय पर सदाअपने घटता गया 
होता अच्छा जो कुछ तो उसे मुर्ख मैं ,
सब अंगूठी बदौलत ,समझता रहा 
रोज पूजा ,हवन और करम कांड  में ,
व्यर्थ दौलत मैं अपनी लुटाता रहा 
जब अकल आई तो ,अपनी नादानी पे,
खुद पे गुस्सा बहुत ,मुझको आता रहा 
उँगलियों की अंगूठी ,सभी फेंक दी ,
और करमकांड ,पूजा भी छोड़े सभी 
भ्रांतियों से हुआ ,मुक्त मानस मेरा ,
हाथ दूरी से पंडित से  जोड़े तभी 
और तबसे बहुत,हल्का महसूस मैं ,
कर रहा हूँ और सोता हूँ मैं चैन से 
रोक सकता न कोई विधि का लिखा,
जो भी घटता है,लेता उसे प्रेम से 
जबसे ज्योतिष और पंडित का चक्कर हटा ,
मन की शंकाये सारी निकलती गयी 
दूर मन के मेरे ,भ्रम सभी हो गए ,
जिंदगी जैसे चलनी थी,चलती रही 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 8 अक्तूबर 2017

मजबूरी 

नींद तो अब लगने का ,नाम नहीं लेती है 
आशिक़ी दूर भगने का,नाम नहीं लेती है 
जी तो करता है ,सेकना अलाव में तन को,
लकड़ियां पर सुलगने का नाम नहीं लेती है 

घोटू 
बदलाव-शादी के बाद 

शिकायत तुमको रहती है,
बदलता जा रहा हूँ मैं ,
रहा हूँ अब न पहले सा,
बना कर तुमसे नाता हूँ 
मैं बदला तो हूँ ,पर डीयर,
हुआ हूँ ,दिन बदिन ,बेहतर 
मैं क्या था ,अब हुआ हूँ क्या ,
हक़ीक़त  ये   बताता  हूँ 
तुम्हारा साथ पाकर के ,
मैं फूला हूँ पूरी जैसा ,
मैं आटा था,छुआ तुमने ,
बना अब मैं परांठा हूँ 
मैं तो था दाल ,पर तुमने,
गला,पीसा,तला मुझको ,
दही में प्यार के डूबा ,
बड़ा अब मैं कहाता हूँ 
मैं खाली गोलगप्पे सा ,
हो खट्टा मीठा पानी तुम,
तुम मेरे साथ होती तब ,
सभी के मन को भाता हूँ 
फटा सा दूध था मैं पर ,
प्यार की चासनी डूबा ,
चौगुना स्वाद भर लाया ,
मैं रसगुल्ला  कहाता हूँ 
भले ही टेढ़ामेढ़ा सा ,
दिया था जिस्म कुदरत ने ,
तुम्हारे प्यार का रस पी,
जलेबी बन लुभाता हूँ 
तुम्हारा साथ पाकर के ,
हुआ है हाल  ये मेरा ,
तुम तबियत से उड़ा देती,
मैं मेहनत से कमाता हूँ 
तुम्हारे मन मुताबिक जब ,
नहीं कुछ काम कर पाता ,
सुधरने की प्रक्रिया में ,
हमेशा जाता डाटा हूँ 
भले कलतक मैं था पत्थर,
बन गया मोम हूँ अब पर,
मिले जब प्यार की गरमी ,
पिघल मैं झट से जाता हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं एक पेड़ हूँ 

मैं सुदृढ़ सा पेड़ ,जड़े है मेरी गहरी 
इसीलिए तूफानों में भी रहती ठहरी 
भले हवा का वेग ,हिला दे मेरी डालें 
पके अधपके ,पत्ते तोड़ ,उड़ादे सारे  
पर मैं ये सब,झेला करता ,हँसते हँसते 
कभी हवा से ,मैंने नहीं बिगाड़े  रिश्ते 
क्योंकि हवा से ही मेरी गरिमा है कायम 
मैं न बदलता,लाख बदलते रहते मौसम 
तेज सूर्य का,जब मुझसे,करता टकराया 
धुप प्रचंड भले कितनी,बन जाती छाया 
छोटे बड़े सभी पत्ते ,संग संग लहराते 
मेरी डालों पर विहंग  सब  नीड बनाते 
मुझे बहुतआनंदित करता,उनका कलरव 
थके पथिक ,छाया में करते,शांति अनुभव 
जड़ से लेकर ,पान पान से ,मेरा रिश्ता 
सेवा भाव,दोस्ती देती ,मुझे अडिगता 

मदन मोहन बाहेती;घोटू'

भगवान का कम्पनसेशन 

भगवान ,
जब तूने रचे नर और नारी 
औरतों के गालों को बालविहीन चिकना बनाया,
और मर्दों के गालों पर उगा दी दाढ़ी 
पर जो एक्स्ट्रा बाल दिए मर्दों के गालों पर 
तो क्षतिपूर्ति के लिए   ,
विशेष कृपा बरसा दी ,नारी के बालों पर 
उन्हें दे दिए ,घने,रेशमी और काले कुंतल 
जिनके जाल में फंस कर ,
आदमी मुश्किल से ही सकता है निकल 
आपने देखा होगा कि बढ़ती हुई उम्र के साथ 
आदमी के सर के बाल उड़ जाते है 
वो कभी आगे से गंजे ,
या कभी पीछे से खल्वाट नज़र आते है 
पर ईश्वर की अनुकम्पा से औरतों के सर पर ,
बालों की छटा ,हरदम रहती छाई है 
क्या आपको कभी कोई औरत ,
आदमी की तरह गंजी नज़र आयी है 
भगवान ,तू बड़ा ग्रेट है 
तेरी नज़र में सब बराबर है,
तू किसी में न रखता भेद है 
अगर तेरी रचना में,
 कहीं कुछ असमानता आयी है 
तो तूने किसी न किसी तरह,
किया 'कम्पनसेट'है 

घोटू 
नकलची औरतें 

औरतें,
अपने अपने पति के ,
हृदय की स्वामिनी होती है 
फिर भी उनकी अनुगामिनी होती है 
उनके पदचिन्हो पर चलती है 
हमेशा उनका अनुसरण करती है 
जब कि आदमी ,
जो कि उन पर रीझा करता है 
उनकी तारीफों के पुल बाँध ,
उनपर मरता है 
पर कभी भी उनके,
 परिधानों की नकल नहीं करता है 
और न ही उनकी तरह ,
पहनता है कोई गहने 
क्या आपने किसी पुरुष को देखा है 
हीरे का नेकलेस या लटकते इयररिंग ,
और  हाथों में कंगन पहने 
हिंदुस्थानी औरतों का लिबास 
जो होता है साड़ी या चोली ख़ास 
क्या किसी पुरुष ने अपनाया है 
क्या कोई मर्द,
 पेटीकोट पहने नज़र आया है 
जबकि औरतें ,
पहन कर मर्दों वाले परिधान 
दिखाती है अपनी शान 
आदमी ने जीन्स पहनी,
औरतें भी पहनने लग गयी 
मर्दों जैसा ही टीशर्ट ,
जिस पर जाने क्या क्या लिखा रहता है ,
पहन कर टहलने लग गयी 
और आदमी ,
जब उस पर क्या लिखा है ,
पढ़ने  को नज़र डालता  है 
तो औरतें शिकायत करती है ,
कि वो उन पर लाइन मारता है 
आदमी का कुरता और पायजामा ,
औरतों ने पूरी तरह हथिया लिया है 
चूड़ीदार पायजामे को 'लेगिंग',
और ढीले पायजामे को'प्लाज़ो'बना लिया है 
मर्दों की हर चीज पर ,
नकलची औरतें दिखाती अपना हक़ है 
और ये एक हक़ीक़त है ,इसमें क्या शक है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 27 सितंबर 2017

विराट 

मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खिलाडी  है   धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
 खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थम कर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर  
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

विराट कोहली 

क्रिकेट का जो धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना 
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले 
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
तिल 

दिखने में अदना होता पर ,बहुत बड़ा इसका दिल होता 
यूं तो तेल ,तिलों से निकले,बिना तेल का भी  तिल होता 
इसकी लघुता मत देखो ,यह ,होता बड़ा असरकारक है 
ख़ास  जगह पर तिल शरीर में ,हो तो वो लाता 'गुडलक'है 
गालों पर तिल ,जालिम होता ,होठों पर तिल ,कातिल होता 
किस्मतवाला वो होता है ,जिसके हाथों में तिल  होता 
तिल मस्तक पर ,बुद्धिदायक,अच्छी बुद्धि,सद्विचार दे
तिल कलाई में ,देता कंगना,तिल गर्दन में,कंठहार दे 
तिल 'ब्यूटीस्पॉट'कहाता ,सबके मन को प्यारा लगता 
चन्द्रमुखी के चेहरे का भी,दूना रूप निखारा करता 
तिल में भी तो रंगभेद है ,कुछ सफ़ेद तिल ,कुछ तिल काले 
कर्मकांड और यज्ञ हवन में , काले तिल ही  जाते  डाले 
तिल सफ़ेद,मोती के जैसा ,कभी रेवड़ी पर है चढ़ता 
स्वाद बढ़ाता है चिक्की का,और गजक को खस्ता करता 
विरह पीर में तिलतिल जल कर ,दिन गुजारना खेल नहीं है 
बात बना, कुछ कर ना पाते ,उन तिल में कुछ तेल  नहीं है  
छोटी सी हो बात लोग कुछ ,इतनी उसे हवा देते है 
अपनी बातों के तिलिस्म से,तिल का  ताड़ बना देते है 
तिल भर होती जगह नहीं पर ,फिर भी लोग समा सकते है 
तिलतिल कर ,हम आगे बढ़ कर,अपनी मंजिल पा सकते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
विरह विरह बहु अंतरा 

शादी के बाद 
जब आती है अपने मम्मी पापा की याद 
और बीबियां मइके चली जाती है 
पर सच,दिल को बड़ा तड़फाती है 
रह रह कर आता है याद 
वो मधुर मिलन का स्वाद 
जो वो हमे चखा जाती है 
रातों की नींद उड़ा जाती है 
उचटा उचटा रहता है मन 
याद आतें है मधुर मिलन के वो क्षण 
दिन भर जी रहता है अनमना 
और जीवन में पहली बार ,
हमें सताती है विरह की वेदना 
फिर नौकरी के चक्कर में 
कईबार आदमी नहीं रह पाता है घर में 
और क्योंकि बच्चों के स्कूल चलते रहते है 
पत्नी घर पर रहती है और हम ,
मजबूरी वश बाहर रहते है 
बीबी बच्चों को अकेला छोड़ते है 
और सटरडे ,सन्डे की छुट्टी में ,
सीधे घर दौड़ते है 
मजबूरी ,हमे वीकएंड हसबैंड देती है बना 
और जीवन में दूसरी बार ,
हमे झेलनी पड़ती है विरह की वेदना 
और फिर जब कोई बच्चा बड़ा हो जाता है 
पढ़लिख अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है 
विदेश में नौकरी कर ,अच्छा कमाता है 
हमारा सीना गर्व से फूल जाता है 
तो मन में भर कर बड़ा उत्साह 
हम कर देतें है उसका विवाह 
वो बसा लेते है विदेश में अपना घरबार 
और मिलने आजाते है कभी कभार 
पर जब हो जाते है बहू के पैर  भारी 
तब उसका ख्याल रखने
 और करने जजकी की तैयारी 
बहूबेटे को अम्मा की याद आती है 
और हमारी बीबीजी ,विदेश बुलवाई जाती है 
तब हमे जीवन में तीसरी बार 
विरह की पीड़ा का होता है साक्षात्कार 
क्योंकि हम होते है कई परिस्तिथियों पर निर्भर 
दोनों एकसाथ नहीं छोड़ सकते है घर 
कभी नौकरी में छुट्टी नहीं मिलती है 
कभी दुसरे बच्चों की पढाई चलती है 
रिटायर हो तो भी ढेर सारी 
आदमी पर होती है जिम्मेदारी 
तो भले ही मन पर लगती है ठेस 
पत्नी को अकेले भेजना पड़ता है विदेश 
बढ़ती उमर में उसकी इतनी आदत पड़ जाती है 
कि हरपल ,हरक्षण वो याद आती है 
वो उधर पूरा करती है अपना दादी बनने का चाव 
इधर हम सहते है विरह की पीड़ा के घाव 
फोन पर बात कर मन को बहला लेते है 
अपने दुखते दिल को सहला लेते है 
जवानी की विरह पीड़ाएँ तो जैसे तैसे सहली जाती है 
पर बुढ़ापे में बीबी से जुदाई,बड़ा जुलम ढाती है 
क्योंकि इस उमर में आदमी ,
पत्नी पर इतना निर्भर हो जाता है 
कि उसके बिना जिंदगी जीना दुर्भर हो जाता है 
एक दुसरे की कमी हमेशा खलती रहती है 
पर जीवन की गाडी,ऐसे ही चलती रहती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ऐसा बाँधा तुमने बाहुपाश में 

बड़ी ही रंगत थी तेरे हुस्न में ,तुम्हे देखा लाल चेहरा हो गया 
बड़ा तीखापन था तेरे हुस्न में,दिल में मेरे घाव गहरा हो गया 
बड़ी ही गर्मी थी तेरे हुस्न में,देख मन में आग सी कुछ लग गयी 
बड़ा आकर्षण था तेरे हुस्न में ,चाह मन में मिलन की थी जग गयी 
बड़ी मादकता थी तेरे हुस्न में ,देख कर के नशा हम पर छा गया 
बड़ी ही दिलकश अदाएं थी तेरी,देख करके,दिल था तुझ पर आ गया 
बड़ी चंचलता थी तेरे हुस्न में ,देख कर मन डोलने सा लग गया 
बावरा सा मन पपीहा बन गया ,पीयू पीयू बोलने सा लग गया 
बड़ा भोलापन था तेरे हुस्न में ,प्यार के दो बोल बोले,पट गयी 
बड़ी शीतलता थी तेरे हुस्न में ,मिल के तुझसे,मन में ठंडक ,पड़ गयी 
ताजगी से भरा तेरा हुस्न था,देख कर के ताजगी सी आ गयी 
सादगी से भरा तेरा हुस्न था,देख कर दीवानगी सी छा गयी 
देख ये सब इतने हम पागल हुए,हमने तुझ संग सात फेरे ले लिए 
लगा हमको ,चाँद हमने पा लिया,क्या पता था ,संग अँधेरे ले लिए 
क्या बने शौहर कि नौकर बन गए,इशारों पर है तुम्हारे नाचते 
क्या पता था ये तुम्हारी चाल थी,हमारा दिल रिझाने के वास्ते 
लुभाया था गर्मी ने जिस जिस्म की,आजकल है वो जलाने लग गयी 
तेरी कोयल सी कुहुक गायब हुई,ताने दे दे ,अब सताने लग गयी 
नज़र तीखी कटारी जो थी चुभी,बन गयी है धार अब तलवार की 
पति बन, हम पर विपत्ति आ गयी,ऐसी तैसी हो गयी सब प्यार की 
पड़ी वरमाला ,बनी जंजीर अब ,पालतू से पशु बन कर रह गए 
ऐसा बाँधा तुमने बाहुपाश में, उमर भर को बन के कैदी रह गए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 20 सितंबर 2017

मन बहला लिया करता 

मैं अपने मन को बस इस तरह से ,बहला लिया करता 
तुम्हारे हाथ, कोमल उँगलियाँ ,सहला  लिया करता 
कभी कोशिश ना की,पकड़ ऊँगली,पहुँचू ,पोंची तक,
मैं अपनी मोहब्बत को ,इस तरह  रुसवा नहीं करता 
जी करता है बढ़ूँ आगे ,शराफत रोक लेती  पर ,
जबरजस्ती कभी ना, तुमसे 'हाँ' कहला लिया करता 
भावना की नदी में जब उमड़ कर बाढ़ आती है,
मैं उसका रुख ,किसी और रास्ते ,टहला लिया करता 
जाम हो सामने ,पीने की पर जुर्रत न कर पाता ,
सब्र का घूँट पीकर ,खुद को मैं बहला लिया करता 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
छोड़े न मगर गुलगुले गए 

कुछ आयेगें और खायेगें ,कुछ आये ,आकर चले गये 
हम तो वो पकोड़े है हरदम, जो गर्म तेल में तले गये 
झूठें वादों से सबने ही ,बस अपना उल्लू सीधा किया,
और सीधेसादे लोग सदा,उनकी बातों से  छले  गये 
हल नहीं हुआ कोई मसला,हालत जैसी थी,वैसी रही ,
सांडों की लड़ाई में हमतुम ,बस यूं ही बीच में दले गये 
इस तरह हुई छीछालेदर ,हम इधर जायें या उधर जायें ,
दुश्मनी मोल ले ली उससे ,यदि लग जो इसके गले गये 
कुछ इस दल में ,कुछ उस दल में,सब फसें हुए है दलदल में ,
इस राजनीती के दंगल में ,कितनो के ही दल बदले गये 
सिद्धांतों की बातें करते ,ऐसे परहेजी लोग मिले ,
कहने को तो गुड़ छोड़ दिया ,छोड़े न मगर गुलगुले गये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सर्वपितृ अमावस -नमन पुरखों को 

हम अपने पुरखों को ,कोटि कोटि करें नमन  ,
दौड़ रहा रग रग में ,अंश उनका अब भी है 
उनकी ही कृपा और आशीषों का फल है,
विकसित,फलफूल रहा वंश उनका अब भी है 
उनके ही भले करम और दिया दान धरम ,
का ही ये  परिणाम ,आज नाम और यश है 
आओ हम श्रद्धा से ,उनको दें श्रद्धांजलि ,
श्राद्ध करें ,क्योंकि आज ,सर्वपितृ मावस है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

हम साथ साथ है 

बहुत उछाला, इक दूजे पर हमने कीचड़ 
बहुत गालियां दी आपस में आगे बढ़ बढ़ 
जो भड़ास थी मन में ,सारी निकल गयी है 
ये जुबान भी अब चुप है,कुछ संभल गयी है 
भाई भाई में ,खटपट तो चलती रहती  है 
जाने अनजाने  होती  गलती   रहती   है 
अहम और दुर्भाव हृदय से सभी निकाले 
बिखर न जाए,ये घर अपना ,इसे  संभाले 
छोड़ दुश्मनी,चलो मिला ले,हाथआज हम 
कल भी थे और सदा रहेंगे ,साथ साथ हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

सोमवार, 11 सितंबर 2017

अकेले जिंदगी जीना 

     किसी को क्या पता है कब ,
     बुलावा किसका  आ जाये 
     अकेले जिंदगी  जीना ,
     चलो अब सीख हम जाये 
अकेला था कभी मैं भी,
अकेली ही कभी थी तुम 
मिलाया हमको किस्मत ने ,
हमारा बंध गया  बंधन 
मिलन के पुष्प जब विकसे,
हमारी बगिया मुस्काई 
बढ़ा परिवार फिर अपना ,
और जीवन में बहार आई 
हुए बच्चे, बड़े होकर 
निकल आये जब उनके पर 
हमारा घोसला छोड़ा ,
बसाया उनने अपना घर 
        अकेले रह गए हमतुम ,
        मगर फिर भी न घबराये 
        अकेले जिंदगी जीना ,
       चलो अब सीख हम जाये 
हुआ चालू सफर फिर से,
अकेले जिंदगी पथ पर 
सहारे एक दूजे  के ,
आश्रित एक दूजे पर 
बड़ा सूना सा था रस्ता ,
बहुत विपदा थी राहों में 
गुजारी जिंदगी हमने ,
एक दूजे की बाहों में 
गिरा कोई जब थक कर ,
दूसरे ने उसे थामा  
कोई मुश्किल अगर आई 
कभी सीखा न घबराना 
       परेशानी में हम ,हरदम,
        एक दूजे के  काम आयें 
        अकेले जिंदगी जीना ,
        चलो अब सीख हम जाये 
ये तय है कोई हम में से,
जियेगा ,ले, जुदाई  गम 
मानसिक रूप से खुद को,
चलो तैयार कर ले हम 
तुम्हारी आँख में आंसूं ,
देख सकता कभी मैं ना  
अगर मैं जाऊं पहले तो ,
कसम है तुमको मत रोना 
रखूंगा खुद पे मैं काबू,
अगर पहले गयी जो तुम 
तुम्हारी याद में जीवन ,
काट लूँगा,यूं ही गुमसुम 
        मिलेंगे उस जहाँ में हम ,
        रखूंगा ,मन को समझाये 
       अकेले जिंदगी जीना ,
       चलो अब सीख हम जाये 
भले ही यूं अकेले में ,
लगेगा ना ,किसी का जी 
काटना वक़्त पर होगा ,
बड़ी मुश्किल से ,कैसे भी 
साथ में रहने की आदत ,
बड़ा हमको सतायेगी 
तुम्हारा ख्याल रखना ,
प्यार,झिड़की ,याद आयेगी 
सवेरे शाम पीना चाय 
तनहा ,बहुत अखरेगा 
दरद  तेरी जुदाई का ,
कभी आँखों से छलकेगा 
        पुरानी यादें आ आ कर ,
       भले ही दिल को तड़फाये 
       अकेले जिंदगी जीना ,
       चलो अब सीख हम जायें 

मदन मोहन बहती'घोटू'
उचकते है 

कुछ पैसे पा उचकते है 
कुछ कुर्सी पा उचकते है 
मिले जो सुंदरी  बीबी ,
कुछ खुश होकर उचकते है 
 कोई सुन्दर ,जवां लड़की ,
गुजरती जो नज़र आती 
झलक हलकी सी पाने को,
वो पागल से उचकते है 
किसी बेगानी शादी में ,
बने अब्दुल्ला दीवाने ,
उनकी फोटो भी आ जाए 
वो रह रह कर उचकते है 
ये पंजों से गले तक की,
उचकना एक कसरत है ,
कई व्यायाम के प्रेमी,
सवेरे से उचकते है
जहाँ कुछ देना होता है ,
वो चुपके से खिसक जाते,
हो लेना तो मुझे दे दो,
ये कह कह कर उचकते है 

घोटू  
क्या मैं न्याय कर पारहा हूँ?

मुझे मेरे माँ बाप ने मिल कर जन्म दिया 
बड़े ही प्यार से मेरा पालन पोषण  किया 
माँ ने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया 
पिताजी ने जीवनपथ में संभलना सिखाया 
माँ ने उमड़ उमड़ कर बहुत सारा लाड़ लुटाया 
पिताजी ने डाट डाट कर अनुशासन सिखलाया 
उन्होंने पढ़ालिखा कर जिंदगी में 'सेटल'किया 
हर मुश्किल में  हाथ  थाम कर ,मुझे संबल दिया 
एक दिन पिताजी ना रहे ,एक दिन माँ भी ना रही  
उनके बिना जीवन में कुछ दिनों बड़ी बेचैनी रही
मैंने उनकी तस्वीर दीवार पर टांगी ,पर इंटीरियर 
डेकोरेटर की सलाह पर पत्नी ने उसे हटा दिया 
फिर पूजागृह में रखी पर मृत व्यक्तियों की तस्वीर 
पूजागृह में रखने से  ,वास्तुशास्त्री ने मना किया 
औरआजकल माताऔर पिताजी मेरी यादो में बंद है  
और उन दोनों की तस्वीरें ,कबाड़ के बक्से में बंद है 
पिताजी का नाम तो जब तक मैं जिन्दा हूँ ,जिंदा रहेगा 
क्योकि मेरे नाम के साथ वल्दियत में वो लिखा जा रहा है 
पर मेरी माँ ,जिसने मुझे नौ महीने तक  कोख में रखा ,
उनका नाम कभी भी,कहीं भी ,नज़र नहीं आ रहा है 
मैं वर्ष में दो बार ,एक उनकी पुण्यतिथि पर और एक श्राद्ध में ,
ब्राह्मण को भोजन करवा कर ,अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ 
पर रह रह कर मेरा दिल मुझ से एक सवाल पूछता है  
कि क्या मैं सचमुच ,उनके साथ न्याय कर पा रहा हूँ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 7 सितंबर 2017

न जाने कौन,कब किस दिन.... 

किसी से भी कभी यारों 
न  कोई  दुश्मनी पालो 
न जाने कौन,कब किस दिन ,तुम्हारे काम आ जाये  
मिटा दो मैल सब मन का 
भरोसा क्या है जीवन का ,
न जाने किस घडी ,इस जिंदगी की शाम आ जाये 
वही वो काम कर सकता ,
है  जिसका काम जो होता 
नहीं तलवार कर सकती,
सुई का काम  जो   होता 
दवा जब बेअसर होती,
टोटके काम कर जाते 
जो शेरो से नहीं डरते,
वो मच्छर से भी डर जाते 
करे कोई, भरे कोई 
दोष किसका,मरे कोई 
खतावार दूसरा हो पर ,तुम्हारा नाम आ जाये 
न जाने कौन कब किस दिन तुम्हारे काम आजाये 
कभी ये हो नहीं सकता 
कि सबसे दोस्ताना हो 
समझकर सोच कर परखो,
हाथ जिससे मिलाना  हो 
दोस्ती  गर न कर पाओ ,
करो ना दुश्मनी भी तुम 
बना कर जो नहीं रख्खो ,
करो ना अनबनी भी तुम 
मिलो तुम मुस्करा सबसे 
बुरा  सोचो  नहीं अब से 
बुराई करने वाले का ,बुरा अन्जाम  आ  जाये 
न जाने कौन कब किस दिन ,तुम्हारे काम आजाये  
कभी अनजान भी कोई ,
फरिश्ता बन के आता है 
मुसीबत में  ,मदद  देता 
सभी बिगड़ी बनाता  है 
ख़ुशी में होते सब शामिल,
कभी गम में सहारा दो 
किसी भी डूबते को तुम,
बचाओ और ,किनारा दो 
किसी के श्राप से तुम गर,
अहिल्या से बनो ,पत्थर ,
करे उद्धार तुम्हारा ,कोई बन राम आ जाये 
न जाने कौन कब किस दिन ,तुम्हारे काम आजाये 
ख़ुशी बांटो तो दूनी है ,
जो गम बांटो तो आधे है 
सफलताएं चरण छूती ,
अगर अच्छे इरादे है 
दुखाओ मत किसीका दिल,
कोई की बददुआ मत लो 
रखो विश्वास तुम खुद पर,
हौसला और हिम्मत लो 
आशीषें हो बुजुर्गों की 
फतह करवाती दुर्गों की 
तुम्हारी जीत निश्चित गर,कभी संग्राम आ जाये 
न जाने कौन कब किस दिन तुम्हारे काम आजाये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 6 सितंबर 2017

अध्याय नहीं ,परिशिष्ट सही 

तुम्हारी जीवन पुस्तक का ,अगर नहीं अध्याय बना मैं ,
तो कम से कम ,परिशिष्ट ही,अगर बना ,आभार करूंगा 
तुम्हारी जीवनगाथा का ,नहीं पात्र जो  अगर बन सका ,
फिर भी प्यार किया था तुमसे ,और जीवनभर प्यार करूंगा 
मेरा तो ये मन दीवाना ,पागल ,सदा रहेगा  पागल ,
चाह रहा था चाँद चूमना ,मालुम था ,पाना मुश्किल है 
लेकिन इसे चकोर समझ कर ,लेना जोड़ नाम संग अपने ,
बहुत चाहता तुम्हे हृदय से ,नहीं मानता ,दिल तो दिल है 
थाली में जल भर कर मैंने ,तुम्हारी छवि बहुत निहारी ,
कम से कम बस इसी तरह से ,तुम्हे पास पाया है अपने  
छूता तो लहरों में छवि ,हिल ,लगता जैसे ना  ना कहती ,
कर न सका महसूस तुम्हे मैं ,रहे अधूरे मेरे सपने 
कभी दूज में तुम्हे निहारा ,घूंघट में आहट चेहरे की , 
देखा अपलक ,पूरा मुखड़ा ,कभी पूर्णिमा की रातों में 
कभीअमावस को जब बिलकुल,नहीं नज़र आती तो लगता ,
निकली शायद मुझसे मिलने ,मैं खो जाता,जज्बातों में 
मिलन हमारा नहीं हुआ पर,यही लिखा शायद नियति ने ,
किन्तु चांदनी जब छिटकेगी,मैं तुमसे अभिसार करूंगा 
तुम्हारी जीवन पुस्तक का ,अगर नहीं अध्याय बना मैं ,
तो कम से कम परिशिष्ट ही ,अगर बना,आभार करूंगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गणपति बाप्पा से 

बरस भर में ,सिरफ दस दिन,
यहां आते हो तुम बाप्पा 
जमाने भर की सब खुशियां ,
लुटा जाते हो तुम बाप्पा 
तुम्हारे मात्र दर्शन से ,
कामना पूर्ण हो मन से 
भावना ,भक्ति की गंगा,
बहा जाते हो तुम बाप्पा 
लगा कर रोली और चंदन ,
करें तुम्हारा सब वंदन
सभी को रहना मिलजुल कर ,
सिखा जाते हो ,तुम बाप्पा 
भगत सब हो के श्रद्धानत,
चढ़ाते आपको मोदक ,
समृद्धि ,सुख की परसादी ,
खिला जाते हो तुम बाप्पा 
गजानन ,विघ्नहर्ता हो 
सदा आनन्दकर्ता हो 
विनायक हो,हमे लायक ,
बना जाते हो तुम बाप्पा 
साथ दस दिन, लगे प्यारा
विसर्जन होता तुम्हारा 
समाये दिल में पर रहते,
कहाँ जाते हो,तुम बाप्पा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

बिमारी गरदन की 

बड़ी कम्बख्त है, बिमारी यार गरदन की,
जो कि 'स्पेडलाइटिस 'पुकारी जाती है 
इसमें  ना तो गरदन उठाई  जा  सकती,
इसमें  ना  गरदन  झुकाई जाती   है 
पहले वो गैलरी में जब खड़ी हो मुस्काती,
उठा के गरदन  हम दीदार किया करते थे 
दिल में तस्वीरें यार छुपा, जब भी जी करता ,
झुका के गरदन उनको देख लिया करते थे 
अब तो ना इस तरफ ही देख पाते ना ही उधर ,
दर्द जब होता है तो तड़फ तड़फ जाते है 
हुई है जब से निगोड़ी ये बिमारी हमको,
उनके दीदार को हम तरस तरस  जाते है 

घोटू 

सोमवार, 4 सितंबर 2017

तृण से मख्खन 

एक सूखा हुआ सा तृण 
भी निखर कर बने मख्खन 
किन्तु यह सम्भव तभी है,
पूर्णता से हो समर्पण 
घास खाती ,गाय भैंसे ,
और फिर करती जुगाली 
बदलती सम्पूर्ण काया ,
इस तरह से है निराली 
भावना मातृत्व की ,
उसमे मिलाती स्निघ्ता है,
चमत्कारी इस प्रक्रिया  
में बड़ी विशिष्टता  है 
और उमड़कर के थनो से ,
बहा करती दुग्धधारा 
जो है पोषक और जमकर ,
ले दधि का रूप प्यारा 
बिलो कर के जिसे मख्खन ,
तैर कर आता निकल है 
किस तरह हर बार उसका ,
रूप ये जाता बदल है 
कौनसा विज्ञान है ये ,
कौनसी है प्रकृति लीला 
शुष्क तृण का एक टुकड़ा ,
इस तरह बनता रसीला 
दूध हो या दही ,मख्खन ,
सभी देते हमें पोषण 
एक सूखा हुआ सा तृण 
किस तरह से बने मख्खन 

घोटू 
बुढ़ापे की दवा 

वो पागलपन ,वो दीवानगी ,वो जूनून अब हुआ हवा है 
मैं बूढा हो गया ,पुरानी यादें ,दिल में  मगर जवां  है 
जब सूनी सूनी रातों में,तन्हाई  मुझको डसती  है ,
याद पुराने सुखद पलों की,दुखते दिल की एक दवा है
 
घोटू 
तूने तो बस पूत जना था 

तूने तो बीएस पूत जना था ,लायक मैंने उसे बनाया 
तूने लाड़प्यार से   पाला ,नायक  मैने  उसे  बनाया 
संस्कार की पूँजी उसको ,कुछ तूने दी,कुछ मैंने दी,
इसीलिए करआज तरक्की,उसने इतना नाम कमाया 
उसमे आये कुछ गुण  तेरे,उसमे आये कुछ गुण  मेरे,
तुझसा कोमलऔर मुझसा दृढ़,आज निखरकर है वोआया
पर जब से की उसकी शादी प्रीत रह गयी उसकी आधी ,
मात पिता प्रति ममता आदर ,धीरे धीरे हुआ सफाया 
कुछ ना कुछ तो,कहीं ना कही, भूलचूक या कमी रह गयी ,
बहुत गर्व था जिसपर ,उसने ,संस्कार वो सब बिसराया 
भूल गया बस दो दिन में ही ,त्याग तपस्या ,लालनपालन ,
उनका ही दिल तोडा उसने ,जिनने दिल में उसे बसाया 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कंस-एक चितन 

कल सुना आकाशवाणी पर 
जानलेवा होता है डेंगू का मच्छर 
इसके पहले कि वो आपको मारे,
आप उसे मार दें 
उसे पनपने न दें,
कर उसका संहार दें 
मैं घबराया 
पूरे घर में ,कछुवा छाप अगरबत्ती 
का धुवाँ फैलाया 
फिर भी कोई चांस न लिया 
घर के कोने कोने में ,
काला 'हिट' स्प्रे किया 
घर से जब भी निकलता था 
शरीर के खुले हिस्सों पर ,
'आडोमास' मलता था 
ये एक शाश्वत सत्य है कि ,
मौत से सब डरते है 
और अपनी मौत के संभावित कारणों का,
पहले अंत करते है 
ऐसी ही एक भविष्यवाणी सुनी थी कंस ने 
जब वो अपनी बहन देवकी को ,
शादी के बाद बिदा कर रहा था हर्ष में 
आकाशवाणी थी कि देवकी का 
आठवां पुत्र ,उसका काल होगा 
अब आप ही सोचिये ,यह सुन कर ,
उसका क्या हुआ हाल होगा 
अपनी मृत्यु के संभावित कारण का हनन 
एक सहज मानव  प्रवृत्ति है ,
इसमें कंस को क्यों दोष दे हम 
वह चाहता तो अपनी बहन 
और बहनोई को मार सकता था 
ना रहेगा बांस,ना बजेगी बांसुरी 
ऐसा विचार सकता था 
पर शायद उसमे मानवता शेष थी  ,
इसलिए उसने अपनी बहन और बहनोई को 
कारावास दिया 
और उनकी सन्तानो को ,
जन्म होते ही मार दिया 
पर जब उसे मालूम हुआ ,
कि उसका संभावित काल,
आठवीं संतान बच गयी 
तो उसके दिल में खलबली मच गयी 
उसके मन में इतना डर समाया 
कि उसने सभी नवजातों को मरवाया 
और जब उसे कृष्ण का पता लगा ,
तो भयाकुल हो कर काँपा उसका कलेजा 
और उसने कृष्ण को मारने ,
पूतना,वकासुर आदि कितने ही.
 राक्षसों  को भेजा 
पर जब अपने प्रयासों में सफल न हो पाया 
तो उसने कृष्ण को मथुरा बुलवाया 
पर अंत में उसका अहंकार सारा गया 
और वो कृष्ण के हाथों मारा गया 
हम कंस के ,कृष्ण के मारने के ,
सारे राक्षसी प्रयासों की,
कितनी ही करें आलोचना 
पर अपने मृत्यु के संभावित कारणों से 
बचने का प्रयत्न ,करता है हर जना 
पर यह भी एक शाश्वत सत्य है कि ,
किस्मत के आगे इंसान बौना है 
चाहे आकाशवाणी हो या न हो,
जो जन्मा है ,उसका अंत होना है 
नियति के आगे आदमी एक खिलौना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बदलते रहते है मौसम,कभी गर्मी, कभी पतझड़ ,
किसी का भी समय हरदम ,एक जैसा नहीं रहता
कभी किसलय बने पत्ता ,साथ लहराता हवा के ,
सूख जाता कभी झड़ कर ,जुदाई का दर्द सहता
झड़े पतझड़ में जो पत्ते,पड़े देखो जो जमीं पर,
भूल कर भी नहीं चलना कभी भी उनको कुचल तुम
क्योंकि इन पत्तों ने ही तो,तुम्हे शीतल छाँव दी थी,
धूप की जब जब तपन से,परेशां थे हुए जल तुम
समय का ही फेर है ये,डाल से टूटे पड़े ये ,
नहीं तो एक दिन निराली,कभी इनकी शान रहती
नहीं पत्ता कोई हरदम ,डाल से रहता चिपक कर ,
सूख झड़ जाना हवा से ,है हरेक पत्ते की नियति
तुम्हारे माता पिता भी,इन्ही पत्तों की तरह है ,
बचाया हर मुसीबत से,हमेशा थी छाँव जिनकी
हो गए जो आज बूढ़े ,उम्र पतझड़ में गए झड़ ,
कर अनादर,कुचलना मत ,भावनाएं कभी इनकी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मैं क्यों बोलूं ?

मैं क्या बोलूं,? मैं क्यों बोलूं?
सब चुप,मैं ही ,क्यों मुख  खोलूं ?
चीरहरण हो रहा द्रोपदी का सबकी आँखों के आगे 
कुछ अंधे है,कुछ सोये है,मज़ा ले रहे है कुछ जागे  
और कुछ की लाचारी इतनी,मुख पर लगे हुए है ताले 
कुछ चुप बैठे ,डर  के मारे, अपने को रख रहे संभाले 
चीख चीख गुहार कर रही ,त्रसित द्रौपदी,मुझे बचाओ 
मैं ,असमंजस में व्याकुल हूँ ,कोई मुझको राह दिखाओ 
कुटिलों की इस भरी सभा में,मैं सर पर यह आफत क्यों लू 
मैं क्या बोलूं? मैं क्यों बोलूं?
मेरा मन विद्रोह कर रहा ,शशोपज है,उथलपुथल  है
एक तरफ तो मर्यादा है ,एक तरफ शासन का बल है 
मेरा अंतःकरण कह रहा ,गलत हो रहा,सही नहीं है 
लेकिन मैं विद्रोह कर सकूं,हिम्मत मुझमे अभी नहीं है 
मेरा मौन ,स्वकृति लक्षण बन ,मुझे कर रहा है उद्वेलित
किसे पता है ,महासमर का ,बीजारोपण ,है ये किंचित 
मेरा ही जमीर गायब है ,औरों की क्या नब्ज  टटोलूं 
मैं क्या बोलूं?मैं क्यों बोलूं?
होनी को जब होना होता,तारतम्य  वैसा बनता है 
संस्कार सब लोग भुलाते ,बैरभाव मन में ठनता है 
धीरे धीरे ,ये घटनाये ,बन जाती है ,विप्लव मिलकर 
छोटी छोटी कुछ भूलों के ,होते है परिणाम ,भयंकर 
क्या मेरे तटस्थ रहने से ,यह माहौल ,सुधर पायेगा 
दुष्ट और प्रोत्साहित होंगे ,महासमर ना टल पायेगा 
इस विध्वंशक गतिविधि का,करूं विरोधऔर मुंह खोलूं 
मैं क्या बोलूं ?मैं क्यों बोलूं?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 27 अगस्त 2017

पूजन और रिटर्न गिफ्ट 

क्या आपने कभी गौर किया है ,
कि हमारी सोच है कितनी संकुचित 
भगवान को करते है बस पत्र पुष्प अर्पित
गणेशजी को दूर्वा 
शंकरजी को बेलपत्र और अकउवा 
और अन्य देवताओं को पान 
फिर पानी के चंद छींटों से कराते है स्नान 
और फिर ' वस्त्रम समर्पयामि 'कह कर ,
कलावे के धागे  का एक टुकड़ा तोड़ कर ,
उन्हें चढ़ा देते है 
और फिर 'पुंगी फल समर्पयामि 'कह कर ,
एक छोटी सी सुपारी ,
जो खाने योग्य नहीं होती ,
उनकी ओर बढ़ा देते है 
ये वही पूजा की सुपारी होती है ,
जो हर बार,हर पूजा में ,
फिर फिर चढ़ाई जाती है 
क्योकि भगवान इसे खा नहीं सकते ,
और पंडतांइन भी इसे नहीं खाती है
एक जटाधारी सूखा नारियल ,
जो किसी के काम नहीं आता है 
हर पूजा में भगवन को चढ़ाया जाता है 
'गजानन भूत गणादि सेवकं ,
कपित्थ जम्बूफल चारु भक्षणम '
मंत्र वाले गणेशजी को ,
उनका प्रिय कपित्थ या जम्बूफल ,
कभी नहीं चढ़ाया जाता है 
बल्कि उन्हें मोदक चढ़ाते है ,
जो उनका' ब्लड शुगर 'बढ़ाता है 
उन्हें एक किलो का डिब्बा दिखाते है 
एकाध लड्डू चढ़ा कर  ,
बाकि सब घर ले आते है 
सच ,हम है कितने सूरमा 
खुद तो खाते है बाटी और चूरमा 
और प्रभु को खिलाते घासफूस है 
देखलो,हम कितने कंजूस है 
इस तरह की सस्ती चीजों को ,
प्रतीक बना कर चढाने के बाद 
हम प्रभु से करते है फ़रियाद 
'हमें अच्छी बुद्धि दो 
रिद्धि और सिद्धि दो '
ये जानते हुए भी कि ,
रिद्धि सिद्धि उनकी वाईफ है 
एक पति से उसकी पत्नियां माँगना ,
कितना नाजाईश है 
ये आप,हम सब अच्छी तरह जानते है 
फिर भी रिटर्न गिफ्ट में ,
रिद्धि सिद्धि ही मांगते है 
और फिर पांच या दस दिन के बाद ,
जब थक जाते है रोज रोज कर अर्चन 
कर देते है उनका जल में विसर्जन 
जैसे विदेशों में बसे बच्चे ,
अपने बूढ़े  माता पिता को,
वर्ष में एक बार ,
आठ दस दिन के लिए बुलाते है ,
करते है सत्कार 
और फिर उन्हें बिदा कर देते है ,
बाँध कर उनका बिस्तर बोरिया 
यह कह कर कि 'बाप्पा मोरिया 
अगले बरस तू फिर से आ' 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
          क्या करें 

आदतें  बिगड़ी  पड़ी है ,क्या करें 
आशिक़ी सर पर चढ़ी है ,क्या करें 
बीबी हम पर रखती हरदम चौकसी ,
मुसीबत बन कर  खड़ी है,क्या करें 
कहीं नेता ,कहीं बाबा  लूटते,
अस्मतें ,सूली चढ़ी है  ,क्या करें 
काटने को दौड़ती है हर नज़र,
हरतरफ मुश्किल बड़ी है,क्या करें 
जिधर देखो उधर घोटाले मिले ,
हर तरफ ही गड़बड़ी है ,क्या करें 
किसी को भी ,किसी की चिंता नहीं,
सभी को अपनी पड़ी है ,क्या करें 
चैन से ,पल भर कोई रहता नहीं,
सबको रहती हड़बड़ी है ,क्या करें 
'घोटू'करना चाहते है बहुत कुछ ,
जिंदगी पर, दो घड़ी है,क्या करें 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
   पूरी-पंचतत्व से भरी  

गेंहू,'पृथ्वी तत्व 'से युक्त होता है ,
क्योंकि पृथ्वी से उपजता है 
और इसी गेंहू से आटा बनता है 
यह आटा 'जल तत्व' मिला कर ,
जब गूंथा जाता है 
और  खुले वातावरण में ,
जब पूरी सा बेला जाता है 
तो उसमे 'वायु तत्व' मिल जाता है 
ये पूरियां जब 'अग्नि तत्व'से गर्म ,
घी में तली जाती है 
तो फूल कर 
'आकाश तत्व'से भर जाती है 
इसलिए फूली फूली पूरियों का,
ये जो बनता  भोजन है 
इसमें सभी पंचतत्वों का समायोजन है 

घोटू 

शनिवार, 26 अगस्त 2017

    हृदयाभिनन्दन 

तुम राजा राजेश ह्रदय के ,
और शालीन ,शालिनी जैसे 
पंख लगाये है  ईश्वर  ने ,
तुमको हंस ,हंसिनी  जैसे 
खग से उड़ो और इस जग में ,
जगमग जगमग हरदम चमको 
पाकर पुत्र पायलट तुमसा ,
बहुत  गर्व होता है हमको 
जीवन के इस विस्तृत नभ में ,
रहे तुम्हारी शान हमेशा 
वायुयान से पंख तुम्हारे 
भरते रहे  उड़ान हमेशा 
बन कर रहो विशाल ह्रदय तुम,
सदा 'हनी' सा हो मीठापन 
सदा सुखी ,समृद्ध रहो तुम ,
हृदय तुम्हारा है अभिनंदन 

तुम्हे ढेर सा प्यार करनेवाले 
       मम्मी और पापा 

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

हे देवी,पत्नी-परमेश्वरी 

हे  देवी,  पत्नी-परमेश्वरी 
हृदयवासिनी,तू हृदयेश्वरी 

शांतिदायिनी,सुखप्रदायिनी 
अंकशायिनी ,मन लुभावनी 
नवरस भोजन ,स्वाददायिनी 
सब घरभर का बोझ वाहिनी 
मैं तुम्हारा ,दास  अकिंचन ,
सुख दुःख की तुम ,मीत सहचरी 
हे  देवी  पत्नी -परमेश्वरी 

विधि ने तुमको स्वयं बनाया 
खिले कमल सी,कोमलकाया 
महक पुष्प सी,चहक खगों की 
चंचलता और चाल  मृगों  की 
रक्तिम अधर,नयन कजरारे,
कंचन तन की छवि सुनहरी 
हे  देवी - पत्नी परमेश्वरी 

तेरी पूजा ,तेरा  अर्चन 
कर पुलकित होता मेरा मन 
अन्नपूर्णा ,लक्ष्मी है तू 
मैं श्रद्धानत ,तुझको पूजूं 
खुशियां बरसाती जीवन में,
बन कर प्यार भरी तू बदरी 
हे  देवी  पत्नी -परमेश्वरी 

कनकछड़ी सी सुंदर मूरत 
प्रेम घटों से छलके  अमृत 
मैं तुम्हारा ,दास अकिंचन 
निशदिन करू,तुम्हारा वंदन 
रूप गर्विता ,प्रेम अर्पिता 
प्यारी सुन्दर ,छवि नित निखरी 
हे  देवी  पत्नी -परमेश्वरी 
मन को भाता ,मुख मुस्काता 
देख हृदय प्रमुदित हो जाता 
तेरे एक इशारे भर पर 
मैं चकरी सा,खाता चक्कर 
तेरे आगे ,उठ ना पाती ,
नजर हमारी ,डरी डरी 
हे  देवी  पत्नी-परमेश्वरी 

आस लगाए बैठा ये मन 
दे दो मधुर ,अधर का चुंबन 
बाँध मुझे बाहु बंधन में 
उद्वेलन भरदो तन मन में 
पा ये प्रेम प्रसाद आस्था ,
दिन दिन बढे और भी गहरी 
हे  देवी  पत्नी-परमेश्वरी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

भारत देश महान चाहिए
 
पतन गर्त में बहुत गिर चुके,अब प्रगति,उत्थान चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान   चाहिए  

ऋषि मुनियों की इस धरती पर,बहुत विदेशी सत्ता झेली
शीतल मलयज नहीं रही अब ,और  हुई  गंगा भी मैली 
अब ना सुजलां,ना सुफलां है ,शस्यश्यामला ना अब धरती 
पंच गव्य का अमृत देती ,गाय सड़क पर ,आज विचरती 
भूल   धरम की  सब  मर्यादा ,संस्कार भी सब  बिसराये 
 कहाँ गए वो हवन यज्ञ सब,कहाँ गयी वो वेद ऋचाये 
लुप्त होरहा धर्म कर्म अब ,उसमे  नूतन  प्राण चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए  

परमोधर्म  अहिंसा माना ,शांति प्रिय इंसान बने हम 
ऐसा अतिथि धर्म निभाया,बरसों तलक गुलाम बने हम 
पंचशील की बातें करके ,भुला दिया ब्रह्मास्त्र बनाना 
आसपास सब कलुष हृदय है,भोलेपन में ये ना जाना 
मुंह में राम,बगल में छुरी ,रखनेवाले  हमे ठग गए 
सोने की चिड़िया का सोना,चुरा लिया सब और भग गए 
श्वेत कबूतर बहुत उड़ाए ,अब तलवार ,कृपाण चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए 

अगर पुराना वैभव पाना है ,तो हमें बदलना होगा 
जिस रस्ते पर दुनिया चलती उनसेआगे चलना होगा 
सत्तालोलुप कुछ लोगों से ,अच्छी तरह निपटना होगा 
सत्य अहिंसा बहुत हो गयी,साम दाम से लड़ना होगा 
हमकोअब चाणक्य नीति से,हनन दुश्मनो का करना है 
वक़्त आगया आज वतन के,खातिर जीना और मरना है 
हर बंदे के मन में जिन्दा ,जज्बा और  तूफ़ान चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान  चाहिए 

कभी स्वर्ग से आयी थी जो,कलकल करती गंगा निर्मल 
हमें चाहिए फिर से वो ही ,अमृत तुल्य,स्वच्छ गंगाजल 
भारत की सब माता बहने ,बने  विदुषी ,लिखकर पढ़कर  
उनको साथ निभाना होगा ,साथ पुरुष के ,आगे बढ़ कर 
आपस का मतभेद भुला कर ,भातृभाव फैलाना  होगा 
आपस में बन कर सहयोगी ,सबको  आगे आना होगा 
हमे गर्व से फिर जीना है ,और पुरानी  शान चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए 

सभी हमवतन ,रहे साथ मिल ,तोड़े मजहब की दीवारे 
छुपे शेर की खालों में जो ,कई भेड़िये ,उन्हें  संहारे 
जौहर में ना जले  नारियां ,रण में जा दिखलाये जौहर 
पृथ्वीराज ,प्रताप सरीखे ,वीर यहाँ पैदा हो घर घर 
कर्मक्षेत्र या रणभूमि में ,उतरें पहन बसंती बाना 
कुछ करके दिखलाना होगा,अगर पुराना वैभव पाना 
झाँसी की रानी के तेवर और आत्म सन्मान चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला वो ही हिन्दुस्थान चाहिए  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'







बुधवार, 16 अगस्त 2017

आओ,कुछ इंसानियत दिखाए 

खुदा ने जब कायनात को बनाया 
तो उसे कुदरत के रंगो  से सजाया  
नदियाएँ बहने लगी 
सबको मीठा जल देने लगी 
फिर वृक्ष बनाये 
उनमे मीठे मीठे फल आये  
हवाएं बहने लगी 
सबको ठंडक देने लगी 
पहाड़ो पर हरियाली छाई 
ग्रीष्म,शीत ,बारिश और बसंत ऋतू आई 
सूरज ने प्रकाश और ऊष्मा फैलाई 
चाँद ने रात में शीतलता बरसाई 
फूल महकने लगे 
पंछी चहकने लगे 
सबने ,जितना जो दे सकता था ,
खुले हाथों दिया 
और बदले में कुछ नहीं लिया 
और फिर जब भगवान ने इंसान को बनाया 
तो उसने प्रकृति की इन सारी नियामतों का ,
भरपूर फायदा उठाया 
और बदले में क्या दिया 
पेड़ों को कटवा दिया
पहाड़ों का किया दोहन 
 बिगाड़ दिया पर्यावरण 
स्वार्थ में होकर अँधा  
नदियों का पानी किया गंदा 
एक दुसरे से लड़ने लगा  
जमीन के लिए झगड़ने लगा  
धरम के नाम पर आपस में फूट डाल  ली 
कितनी ही बुराइयां पाल ली 
अब तो इस बैरभाव की इंतहा होने लगी है 
धरती भी परेशां होने लगी है 
अब समय आगया है कि हम कुछ सोचे,विचारे 
अपने आप को सँवारे 
अपने फायदे के लिए ,
दूसरों को ना करे बर्बाद 
इसलिए आप सब से है फ़रियाद 
हम इंसान है,थोड़ी इंसानियत फैलाएं 
भाईचारे से रहे ,एक दुसरे के काम आये 
तो आओ ,ऐसा कुछ करें ,
जिससे हमारी छवि सुधरे 
चलो हम किसी रोते  को हंसाये  
किसी भूखे को पेट भर खिलाये  
किसी बिछुड़े को मिलाते है 
किसी गिरते को उठाते है  
किसी प्यासे की प्यास मिटाये 
किसी दुखी का दर्द हटाए 
किसी असहाय को सहारा दे 
किसी डूबते को किनारा दे 
किसी बुजुर्ग के दुःख काटे 
किसी बीमार को दवा बांटे 
किसी को अन्धकार से उजाले में लाये 
किसी भटके को सही राह दिखलाये 
किसी अबला की इज्जत ,लूटने न  दे 
किसी बच्चे का ख्वाब टूटने न दे  
किसी अनपढ़ को चार लफ्ज सिखला दे 
किसी अंधे को रास्ता पार करा दे 
किसी के रास्ते से बुहार दे कांटे 
जितना भी हो सके,सबमे प्यार बांटे 
करे कोशिश कि कोई लाचार न हो 
कम से कम कुछ  ऐसा करे,
जिससे इंसानियत शर्मशार न हो
हमें आजादी मिले बीत गए है सत्तर साल 
फिरभी बिगड़ा हुआ है हमारा हाल 
आपसी मतभेद बढ़ता जा रहा है 
देश का माहौल बिगड़ता जा रहा है 
अरे सत्तर साल की उमर में तो,
झगड़ालू मियां बीबी भी शांति से रहते है 
टकराव छोड़ कर प्रेम की धरा में बहते है 
इसलिए हम मिलजुल कर रहे साथ साथ 
अब गोली से नहीं,गले लगाने से बनेगी बात  
तो आओ ,मिलजुल कर भाईचारे से रहें,
आपस में न लड़े 
ऐसा कुछ न करे जिसका खामियाजा ,
हमारी आनेवाली पीढ़ी को  भुगतना पड़े  
हर तरफ चैन और अमन रहे छाया 
जिससे ऊपरवाले को भी अफ़सोस न हो ,
कि उसने इंसान को क्यों बनाया?  
इसलिए हम साथ साथ आये 
और थोड़ी इंसानियत फैलाये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
      कभी कभार  

 हाय हाय कर हाथ हिलाती 
 बाय बाय कर हाथ हिलाती 
कभी कभार हाथ से मेरे ,
अपने कोमल हाथ  मिला दो 
चढ़ी सदा रहती हो सर पर 
चैन  न  लेने देती पल  भर
कभी कभार ढील देकर तुम,
मेरे दिल का कमल खिला दो 
मुझ से रहती सदा झगड़ती 
सारा दोष मुझी  पर मढ़ती 
रहती हरदम तनी तनी सी ,
कभी कभार झुको तो थोड़ा 
कभी कभार नैन मिल जाए 
कभी कभार  चैन मिल जाए 
हरदम भगती ही रहती हो,
कभी कभार रुको तो थोड़ा 
 रोज रोज ही घर का खाना 
वो ही रोटी,दाल  पकाना 
कभी कभार किसी होटल में ,
स्वाद बदलने का मौक़ा दो 
रोज शाम तक थकी थकी सी 
रहती हो तुम पकी पकी  सी 
कभी कभार मिलो सजधज कर ,
मुझको भी थोड़ा चौंका दो 
काम धाम में सदा  फंसी तुम 
रहती घर में घुसी घुसी तुम 
कभी कभार निकल कर घर से,
साथ घूमने जाएँ हम तुम 
घर का बंधन ,जिम्मेदारी 
यूं ही उमर बिता दी सारी 
कभी कभार बाहों में भर कर ,
मुझको बंधन में बांधो तुम 
जिन होठों पर सदा शिकायत 
और बक बक करने की आदत 
कभी कभार उन्ही होठों से ,
दे दो मुझे प्यार से चुंबन 
जिन आँखों का एक इशारा 
मुझे नचाता दिन भर सारा 
कभी कभार उन्ही आँखों से,
कर दो थोड़ा प्यार प्रदर्शन 
लगे एक रस जब ये जीवन 
तब आवश्यक है परिवर्तन 
कभी कभार 'ब्रेक' जब मिलता,
तो कितना अच्छा लगता है 
थोड़ी थोड़ी रोक टोक हो 
थोड़ी थोड़ी नोक झोंक हो 
कभी कभार अगर झगड़ा हो,
प्यार तभी सच्चा लगता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

मंगलवार, 15 अगस्त 2017

क्या इसीलिये हम है स्वतंत्र 

आओ हाथों में पत्थर ले ,हम एक दूसरे पर  फेंकें 
 मन की भड़ास कोदूर करें  ,हम औरों को गाली देके 
एक दूजे की टांग खींच हम ,कोई को भी ना बढ़ने दे  
कोई ना दोस्त किसीका हो,सबको आपस में लड़ने दे 
अपनी निर्माण शक्तियों को हम चलो बनादे  विध्वंशक 
अपने प्रगतिशील विचारों को ,ले जाएँ हम बर्बादी तक 
आजादी की अभिव्यक्ति का हर व्यक्ति लाभ पूरा ले ले 
एक दूजे पर कालिख पोते ,और कीचड़ से होली खेलें 
हम एक दूजे की निंदा कर ,फैलाये गंदगी यत्र तत्र 
क्या ये मतलब आजादी का ,क्या इसीलिये हम है स्वतंत्र 

घोटू 
भाग्य ना बदल सकोगे 

दिन भर लगे काम में रहते,करते मेहनत 
किसके लिए सहेज रहे हो तुम ये दौलत 
क्योंकि तुमको कोई न बुढ़ापे में  पूछेगा 
जो भी तुमने किया ,फर्ज था ,यह कह देगा 
फिर भी ये तुम्हारी ममता या पागलपन 
सोच रहे उसके भविष्य की हो तुम हर क्षण
लाख करो कोशिश ,भाग्य न बदल  पाओगे 
उसके खतिर ,कितना ही धन छोड़ जाओगे 
निकला नालायक ,फूंकेगा,सारी  दौलत 
कर देगा  बरबाद ,तुम्हारी सारी मेहनत 
उसमे कूवत होगी ,ढेर कमा वो लेगा 
ढंग से अपना ,घर संसार ,जमा वो लेगा 
इसीलिये तुम चाहे जी भर उसे प्यार दो 
देना है ,तो उसको अच्छे संस्कार  दो 
अगर बनाना है तो लायक उसे बनाओ 
बुद्धिमान और सबका नायक उसे बनाओ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू;' 
मोह माया को कब त्यागोगे 

इस सांसारिक सुख के पीछे ,तुम कब तक,कितना भागोगे 
दुनियादारी में उलझे हो , मोह  माया  को  कब  त्यागोगे 

झूंठे है सब रिश्ते नाते ,ये है तेरा  ,ये है मेरा 
तुम तो हो बस एक मुसाफिर ,दुनिया चार दिनों का डेरा 
पता नहीं कब आये बुलावा ,सोये हो तुम,कब जागोगे 
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम कब तक ,कितना भागोगे
 
धरी यहीं पर रह जायेगी ,ये तुम्हारी दौलत सारी 
साथ न जाती कुछ भी चीजें,जो तुमको लगती है प्यारी 
कुछ घंटे भी नहीं रखेंगे,जिस दिन तुम काया त्यागोगे 
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम कब तक,कितना भागोगे
 
सबके सब है सुख के साथी,नहीं किसी में सच्ची निष्ठां 
खाये सब पकवान रसीले,अगले दिन बन जाते विष्ठा 
जरूरत पर सब मुंह फेरेंगे,अगर किसी से कुछ मांगोगे 
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम  कब तक ,कितना भागोगे 

मदन मोहन बहती'घोटू'

सोमवार, 14 अगस्त 2017

जल से 

ए जल ,
चाहे तू पहाड़ों पर 
उछल उछल कर चल 
या झरने सा झर 
या नदिया बन  कर
कर तू  कल कल 
या कुवे में रह दुबक कर 
या फिर तू सरोवर 
की चार दीवारी में रह बंध कर 
या बर्फ बन जा जम कर 
या उड़ जा वाष्प बन  कर 
या फिर बन कर  बादल 
तू कितने ही रूप बदल 
तेरी अंतिम नियति है पर  
खारा समंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
ये बूढ़े बड़े काँइयाँ होते है 

अरे ये तो सबके आनेवाले जीवन की परछाइयां होते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ  होते है 

जवानी की  कटती हुई पतंग को ,उछल उछल  कर 
ये कोशिश करते  है ,और रखते है पकड़ पकड़ कर 
और उसे फिर से उड़ाने का ,करते रहते है प्रयास 
अपनी ढलती हुई उम्र में भी,मन में लेकर के ये आस 
ऊपरवाले की कृपा से ,शायद किस्मत मेहरबान हो जाए 
या उनकी डोर किसी नई नवेली पतंग से उलझ जाए 
क्योकि पुराने पतंगबाज है ,पेंच लड़ाने  में  माहिर है 
लाख कंट्रोल  करें,पर मचलता ही रहता उनका दिल है 
इसलिए कोशिश कर के ,बहती गंगा में हाथ धोते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े  काँइयाँ होते है 

भले ही धुंधलाई सी नज़रों से ,साफ़ नज़र नहीं आता है 
सांस फूल जाती है ,ठीक से चला  भी नहीं जाता  है 
भले ही निचुड़े हुए कपड़ों की तरह शरीर पर सल हो 
चेहरे पर बुढ़ापा ,स्पष्ट नज़र आता हो ,लगते दुर्बल हो 
मगर सजधज कर ,आती जाती महिलाओं को ताड़ते है
कभी तिरछी नज़र से देखते ,या कभी  आँखे फाड़ते है 
बस कुछ ही समझदार है जो कि अपनी उमर विचारते है 
और अपने जैसी ही किसी बुढ़िया पर ,लाइन  मारते है 
वरना बाकी सब तो बस जवान हुस्न के सपने संजोते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ होते है 

हर  बुजुर्ग का अलग अलग ही ,अपना  हाल होता है 
कोई मालामाल होता है तो कोई खस्ताहाल  होता है 
कोई थका तो नहीं है पर फिर भी  रिटायर हो गया है
कोई झुकी हुई  डाल का ,पका हुआ फल हो गया है 
किसी के बच्चे उसे छोड़ कर ,हो गए विदेश वासी है 
इसलिए उसके जीवन में तन्हाई और छाई उदासी है 
फिर भी परिस्तिथियों से समझौता कर के ये जीते है 
बाहर से मुस्कान ओढे रहते  है पर अंदर से  रीते है 
ये अकेलेपन के सताये हुए है,और तन्हाईयाँ ढोते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ होते है 

ऐसे में जो मन बहलाने को जो इधर उधर ताक लेते है 
आते जाते सौंदर्य की तरफ, जो चुपके से  झांक लेते है 
तो ये कोई इनकी शरारत नहीं ,थोड़ा सा टाइमपास है 
जी को लगाने के लिए ये  बस ये ही तो हास परिहास  है 
इनकी हरकतों पर नहीं ,इनकी मनोस्तिथि पर गौर करो 
इनको संवेदना दिखलाओ,इनकी परिस्तिथि पर गौर करो 
इन  हालातों में भी ,उनके जीने के जज्बे को सलाम करो 
इन्हे इज्जत बख्शो ,इनके चरण छुवो और  प्रणाम  करो 
क्योकि आशीर्वाद देने  को ,इनके हाथ हमेशा उठे होते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ होते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
       कृष्णजी का हैप्पी बर्थडे 

माखनचोर बर्थडे  तेरा  ,ख़ुशी ख़ुशी  इस तरह मनाया 
दफ्तर में ,अपने साहब पर ,मैंने  मख्खन खूब  लगाया 
बढ़ती हुई उमर में अपनी ,रास रचाना ,रास न आये 
बालकृष्ण  के जन्मदिवस पर ,उजले बाल, कृष्ण करवाये  
रख कर, दिन भर व्रत ,तुम्हारे जन्मदिवस की ख़ुशी मनाई 
मुझे  रिटर्न गिफ्ट में अब तुम  ,दे दो इतना ज्ञान कन्हाई 
छोड़ी मथुरा ,गए द्वारिका ,यह तो अब बतलादो नटवर 
मज़ा समन्दर तीरे ज्यादा आया या यमुना के तट पर 
तुमने आठ आठ रानी संग , तार तम्य कैसे बिठलाया 
कैसे सबके साथ निभाया, मैं तो  एक संभाल न पाया
ओ  गीता के ज्ञानी  गायक ,कैसी थी तुम्हारी माया 
रह कर बने तटस्थ सारथी ,युद्ध  पांडवों को जितवाया  
उस बंशी में क्या जादू था,राधा मुग्ध हुई जिस धुन पर 
क्यों लड्डूगोपाल रूप में ,अब भी पूजे जाते घर घर 
लोग  आपको खुश करने को , राधे राधे क्यों  है गाये 
इतनी बात अगर समझा दो,मेरा जनम सफल हो जाये  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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