मोह माया को कब त्यागोगे
इस सांसारिक सुख के पीछे ,तुम कब तक,कितना भागोगे
दुनियादारी में उलझे हो , मोह माया को कब त्यागोगे
झूंठे है सब रिश्ते नाते ,ये है तेरा ,ये है मेरा
तुम तो हो बस एक मुसाफिर ,दुनिया चार दिनों का डेरा
पता नहीं कब आये बुलावा ,सोये हो तुम,कब जागोगे
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम कब तक ,कितना भागोगे
धरी यहीं पर रह जायेगी ,ये तुम्हारी दौलत सारी
साथ न जाती कुछ भी चीजें,जो तुमको लगती है प्यारी
कुछ घंटे भी नहीं रखेंगे,जिस दिन तुम काया त्यागोगे
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम कब तक,कितना भागोगे
सबके सब है सुख के साथी,नहीं किसी में सच्ची निष्ठां
खाये सब पकवान रसीले,अगले दिन बन जाते विष्ठा
जरूरत पर सब मुंह फेरेंगे,अगर किसी से कुछ मांगोगे
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम कब तक ,कितना भागोगे
मदन मोहन बहती'घोटू'
उम्दा ! सत्य का अनावरण करती आपकी रचना ,आभार ''एकलव्य"
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