जल से
ए जल ,
चाहे तू पहाड़ों पर
उछल उछल कर चल
या झरने सा झर
या नदिया बन कर
कर तू कल कल
या कुवे में रह दुबक कर
या फिर तू सरोवर
की चार दीवारी में रह बंध कर
या बर्फ बन जा जम कर
या उड़ जा वाष्प बन कर
या फिर बन कर बादल
तू कितने ही रूप बदल
तेरी अंतिम नियति है पर
खारा समंदर
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-08-2017) को "भारत को करता हूँ शत्-शत् नमन" चर्चामंच 2697 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर अभिव्यक्ति! आभार "एकलव्य"
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