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शनिवार, 25 जून 2016

आंसू

            आंसू

 व्यथा और खुशियां सारी ,छलकाते आंसूं
दिल के जाने किस कोने से , आते  आंसूं
कहने को तो पानी की  बूँदें  कुछ होती 
आँखों से निकला करती है ,बन कर मोती 
ये कुछ बूँदें गालों पर जब करती ढलका
मन का सारा भारीपन ,हो जाता  हल्का
तो क्या ये अश्रुजल होता इतना भारी
पिघला देती ,जिसे व्यथा की एक चिंगारी
शायद दिल में कोई दर्द जमा रहता है
जो कि पिघलता ,और आंसूं बन कर बहता है
इसमें क्यों होता हल्का हल्का खारापन
क्यों इसके बह जाने से हल्का होता मन
अधिक ख़ुशी में भी ये आँखें भर देते है
प्रकट भावनाएं सब दिल की ,कर देते है
भावों की गंगा जमुना बन बहते आंसूं
दो बूँदों में ,जाने क्या क्या  कहते आंसूं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

थोड़ा सा एडजस्टमेंट

         थोड़ा सा एडजस्टमेंट

थोड़ा सा एडजस्टमेंट तो करना पड़ता है
पति पर अक्सर रौब जमाने वाली बीबी को,
कभी कभी तो अपने पति से डरना पड़ता है
थोड़ा सा एडजस्टमेंट तो करना पड़ता है
भरी ट्रैन के हर डिब्बे में ,हर स्टेशन पर ,
चार मुसाफिर अगर उतरते ,तो छह चढ़ते है
रखने को सामान ,ठीक से पीठ टिकाने को,
थोड़ी जगह ,कहीं मिल जाए ,कोशिश करते है
ट्रैन चली,दो बात हुई ,सब हो जाते है सेट,
सफर जिंदगी का ऐसे ही कटना पड़ता है
थोड़ा सा एडजस्टमेंट तो करना पड़ता है
एक अंजान  पराये घर से ,दुल्हन आती है,
उसके घर का अपना कल्चर ,परम्पराएं है
ससुराल में नए लोग है ,वातावरण नया ,
जीवनसंगिनी बना पियाजी उसको लाये है
शुरू शुरू में ,थोड़ी सी  दिक्कत तो आती है,
चार दिनों में वो घर उसको ,अपना लगता है
थोड़ा सा एडजस्टमेंट तो करना पड़ता है
एक अंजान पुरुष जब  बनता जीवन साथी है ,
उसकी आदत,खानपान का ज्ञान जरूरी है
सच्चे मन से ,एक दूजे को अगर समर्पित हो ,
तभी एकरसता आती है,मिटती दूरी है
कभी ढालना पड़ता उसको अपने साँचे में ,
कभी कभी उसके साँचे में  ढलना पड़ता है
थोड़ा सा एडजस्टमेंट तो करना पड़ता है
बच्चे जब छोटे होते ,सब बात मानते है ,
लेकिन उनकी सोच समय के साथ बदलती है
होता है टकराव ,पीढ़ियों के जब अंतर में ,
अपनी जिद पर अड़े रहोगे ,तो ये गलती है
थोड़ा सा झुक जाने से यदि खुशियां आती है ,
तो हंस कर ,हमको उस रस्ते चलना पड़ता है
थोड़ा सा एडजस्टमेंट तो करना पड़ता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तुम्हे अगर जो कुछ होता है...

             तुम्हे अगर जो कुछ होता है...

तुम्हे अगर जो कुछ होता है ,हमे बहुत कुछ हो जाता है
क्योंकि हमारा और तुम्हारा ,जन्मों जन्मों का नाता है
तुमको जरा पीर होती है ,हम अधीर से हो जाते है
तेज धूप तुमको लगती है ,और इधर हम कुम्हलाते है
 तुम्हारी आँखों में आंसू  ,देख हमारा दिल रोता है
पता नहीं ये क्यों होता है,पर ये सच, ऐसा होता है
चीख हमारी निकला करती ,जब तुमको चुभता काँटा है
तुम्हे अगर जो कुछ होता है ,हमे बहुत कुछ हो जाता है
हल्की तुम्हे हरारत होती ,चढ़ जाता बुखार हमे है
 एक हाल में  हम जीते है ,इतना तुमसे प्यार हमे है
चेहरा देख उदास तुम्हारा ,हम पर मायूसी छाती है
तुम गमगीन नज़र आते तो ,अपनी रंगत उड़ जाती है
देख तुम्हारी बेचैनी को ,चैन नहीं ये दिल पाता है
तुम्हे अगर जो कुछ होता है ,हमे बहुत  कुछ हो जाता है
पर जब जब तुम मुस्काते हो ,मेरा मन भी मुस्काता है
देख ख़ुशी से रोशन चेहरा ,बाग़ बाग़ दिल हो जाता  है
कभी खिलखिला जब तुम हँसते ,दिल की कलियाँ खिल जाती है 
रौनक देख तुम्हारे मुख पर ,मेरी रौनक बढ़ जाती है
देख खनकता मुख तुम्हारा ,मेरा मन हँसता गाता है
तुम्हे अगर जो कुछ होता है ,हमे बहुत कुछ हो जाता है
हम तुम बने एक माटी के ,एक खून बहता है रग में
तुम पर जान छिड़कता हूँ मैं ,तुम मुझको सबसे प्रिय जग में
यह सब नियति का  लेखा है,बहुत दूर जा बैठे हो तुम
हमको चिता बहुत तुम्हारी ,दिल के टुकड़े ,बेटे हो तुम
लाख दूरियां हो पर खूं का ,रिश्ता नहीं बदल पाता  है
तुम्हे अगर जो कुछ होता है,हमे बहुत कुछ हो जाता है

मदन मोहन बाहेती  'घोटू'

बुधवार, 22 जून 2016

मैं नारी हूँ

 मैं नारी हूँ

मैं विद्या ,संगीत,कविता ,सरस्वती का रूप ,
धन ,वैभव ,ऐष्वर्य दायिनी हूँ,मैं लक्ष्मी  हूँ
मैं ही माता ,मैं ही पत्नी ,मैं ही भगिनी हूँ,
अन्नपूर्णा ,मैं दुर्गा हूँ ,जग की जननी हूँ,
मैं ही धरा हूँ,मैं ही गंगा,मैं ही कालिंदी हूँ,
मैं रति भी हूँ,पार्वती हूँ ,और मैं काली हूँ
मैं शक्ति का रूप मगर मैं क्यों दुखियारी हूँ,
अपनी व्यथा कहूं मैं किस से,मैं तो  नारी हूँ
मातपिता के अनुशासन में बचपन कटता है,
और पति के अनुशासन में कटता यौवन है
बेटे बहू,बुढ़ापे में ,अनुशासित करते है,
क्यों नारी पर ,सदा उमर भर,रहता बंधन है
कभी भ्रूण में मारी जाती ,कभी जन्म के बाद,
कभी दहेज के खतिर मुझे जलाया जाता  है
कभी मुझे बेचा जाता है ,भरे बाजारों में ,
मुझको नोचा जाता है  ,तडफाया जाता है
वरण स्वयंबर में तो मुझको करता अर्जुन है,
पांच पति की भोग्या मुझे बनाया जाता है
भरी सभा में चीरहरण दुःशासन करता है,
जुवे में क्यों ,मुझको दाव लगाया जाता है 
ममता भरी यशोदा सौ सौ आंसूं रोती  है ,
राजपाट पा ,राजाबेटा ,उसे भुलाता है
क्यों राधा की प्रीत भुला कर ,कृश्णकन्हैया भी ,
आठ आठ पटरानी के संग ब्याह रचाता है
इंद्र,रूप धर मेरे पति का,छल करता मुझसे ,
तो पाषाणशिला बन मैं क्यों शापित होती हूँ
क्यों सिद्धार्थ ,बुद्ध बनने को,मुझे त्यागता है ,
यशोधरा मैं ,दुखियारी,जीवन भर रोती हूँ
वन में पग पग साथ निभाने वाली सीता का ,
अगर हरण कर ले रावण,क्या सीता दोषी है
राम युद्ध कर,उसे दिलाते ,मुक्ति रावण से ,
क्यों सतीत्व की उसके अग्नि परीक्षा होती है
लोकलाज के डर से मर्यादा पुरुषोत्तम भी ,
गर्भवती सीता को वन में भिजवा देते है 
रामचरितमानस में तुलसी कभी पूजते है ,
कभी ताड़ना का अधिकारी ,उसको कहते है
भातृप्रेम में लक्ष्मण ,भ्राता संग वन जाते है ,
चौदह बरस उर्मिला ,विरहन,रहती रोती  है
जीवन को गति देनेवाली ,देवी स्वरूपा की,
युगों युगों से ,फिर क्यों ऐसी,दुर्गति होती है
ऊँगली पकड़ सिखाती चलना अपने बच्चों को,
सदाचरण का पाठ पढ़ाती,पहली शिक्षक है
पति प्रेम में पतिव्रता बन ,जीती मरती है,
अनुगामिनी मात्र नहीं,वह मार्ग प्रदर्शक है
मैं  सुखदात्री,अपने पति की सच्ची साथी हूँ,
फिर क्यों दुनिया कहती मै अबला ,बेचारी हूँ
मैं शक्ति का रूप, मगर मैं क्यों दुखियारी हूँ  ,
अपनी व्यथा कहूं मैं किससे ,मैं तो नारी हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

स्मार्ट फोन

 स्मार्ट फोन

जवान होती हुई बेटी, कई दिनों से ,
स्मार्टफोन की जिद कर  रही थी
पर ये बात ,उसके पिता के गले,
 नहीं उतर रही थी
उनकी सोच थी कि स्मार्ट फोन आने से ,
उनकी बेटी उसकी 'एडिक्ट 'हो जाएगी
दिन भर फेसबुक ,व्हाट्सएप में उलझी रहेगी,
पढ़ाई से उसकी रूचि खो जाएगी
माँ ने अपने पति को समझाया
हमने उसको इतना पढ़ाया,लिखाया
कुकिंग की क्लासेस दिलवाई,
होम मैनेजमेंट के गुण  सिखलाये
इसीलिये ना ,कि शादी के बाद ,
वो अपनी गृहस्थी ,ठीक से चला पाये
अब उसे स्मार्टफोन दिलवा दो ,
क्योंकि ये भी ,शादी के बाद ,
सुखी जीवन जीने की कला सिखाता है
इससे ,ऊँगली के इशारों पर ,
दुनिया को नचाने का ,आर्ट आ जाता है
और शादी के बाद ,यदि उसे सुख चाहिए
तो उसे ,अपने पति को ,उँगलियों पर ,
नचाने की कला आनी  चाहिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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