एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 19 सितंबर 2015

चुगलखोर

          चुगलखोर 

तुम मुझसे कुछ भी ना बोलो,मैं तुमसे कुछ भी ना बोलूं ,
हम समझ जाएंगे आपस में ,हमको जो सुनना कहना है
तुम चाहे मेरे पास रहो ,तुम  चाहे   मुझसे दूर  रहो ,
हमको इक दूजे के दिल में, बस साथ साथ  ही रहना है
कुछ भाषाएँ ऐसी होती ,जब मौन मुखर हो जाता है
आखें आँखों से कुछ कहती ,दिल दिल से कुछ कह जाता है
जब प्रेमी युगल मिला करते ,स्पर्श बहुत कुछ है कहता
बोला करते श्वासों के स्वर ,कहने को कुछ भी ना रहता
कुछ बिखरी जुल्फें कह देती,कुछ कह देता फैला काजल
कुछ थकी थकी सी अंगड़ाई ,कुछ कहता अस्तव्यस्त आँचल
वेणी के मसले हुए फूल,चूड़ी के टुकड़े  झड़े हुए
देते है सारा भेद खोल ,वो चादर के सल पड़े   हुए
है इतने सारे चुगलखोर ,इसलिए जरूरत ना पड़ती ,
कुछ कहने या बतलाने की,अब बेहतर चुप ही रहना है
तुम मुझसे कुछ भी ना बोलो,मैं तुमसे कुछ भी ना बोलूं ,
हम  समझ जाएंगे आपस में ,हमको जो सुनना ,कहना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सुलहनामा

        सुलहनामा

  हम दोनों के बीच जम गयी जो दीवार बरफ  की,
आओ उसे ,प्यार की गरमी  देकर हम पिघला लें
ना तुम करो शिकायत ,शिकवा ,ना मैं ही कुछ बोलूं ,
अपनी आपस की उलझन को,आपस में सुलझा लें
मैंने माना खता हो गयी ,कुछ गलती थी मेरी ,
पर थोड़ा तो दोष तुम्हारा भी था इस अनबन में
मेरी इस गुस्ताखी को तुम ,यूं ही टाल सकती थी, 
नहीं इसतरह ,विचलित होती,उसको लेकर मन में
उल्टा तुमने ,उन लपटों में ,तपता घी था डाला ,
तुम्हारी इस प्रतिक्रिया ने आग और भड़का दी
आपस में टकराव अहम का ,ऐसा हुआ हमारे ,
हम दोनों के बीच दूरियां ,इसने और बढ़ा दी
रहें एक छत के नीचे हम ,लेकिन अनजानों से,
तुम भी तड़फ़ो ,मैं भी तड़फूं,मन ना रहता बस में
तुम इस करवट,मैं उस करवट,जाग रहे है दोनों,
बेहतर ये होगा समझौता ,कर लें ,हम आपस में
पहले पहल कौन करता  इस ,इन्तजार में दोनों,
इस प्यारी वासंती ऋतू में,शीत  युद्ध है चलता
कुछ तो कमी रही होगी जो हुई ग़लतफ़हमी ये,
रहना यूं गहमागहमी में,बहुत मुझे है खलता
अब महसूस कर रहे हैं हम ,पीड़ा विच्छेदन की,
अलग एक दूजे से रह कर ,कैसे जी पाएंगे
चार कदम तुम आगे आओ ,चार कदम मैं आऊं ,
तब ही होगी दूर दूरियां ,हम तुम मिल पाएंगे
आओ मिलन राह पर चल कर,हम करीब आ जाएँ
अपने अपने अहम त्याग कर ,दूरी सभी मिटा लें
हम दोनों के बीच जम गई ,जो दीवार बरफ की,
आओ उसे प्यार की गरमी देकर हम पिघला लें

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

राम का नाम

         राम का नाम

बात रामायण काल  की है
लेकिन कमाल की है
राम की सेना के वानर
पत्थरों पर राम का नाम लिख कर 
पानी  में तैरा रहे थे
समुन्दर में पुल बना रहे थे
रामजी ने सुना ,तो चकराए ,
सोचा ये हो सकता है कैसे
वो दूर अकेले निकल गए ,
और उन्होंने एक पत्थर ,
पानी में फेंक दिया ,चुपके से
पत्थर तैरा नहीं,डूब गया तो राम ने ,
सकपका के देखा इधर उधर
तो उन्हें पास ही हनुमानजी आये नज़र
बोले ,हनुमान ,तूने कुछ देखा तो नहीं
तो हनुमान बोले ,प्रभु सब देख लिया
जिसने आपका नाम लिया ,वो तैर गया ,
आपने जिसको छोड़ा,वो डूब गया
ये बात तो हुई आध्यात्मिक
अब बताते है इससे भी कुछ अधिक
लंका में जब पहुंचा ये समाचार
कि समुन्दर के उस पार
पुल बन रहा है,धमाल हो रहा है
रामका नाम लिखा हुआ पत्थर ,
पानी में तैर रहा है,कमाल हो रहा है
रावण जब ये सुना ,तो सोचा ,
इससे तो लंका जनता का
'मोरल डाउन 'हो सकता है 
इसलिए कुछ करने की आवश्यकता है
इसलिए उसने करवा दिया एलान
कि  वो भी पानी में तैरायेगा ,
लिख कर के अपना नाम
एक निश्चित दिन ,जब रावण को था ,
पानी में पत्थर तैराना
लंका के सारी जनता ,एकत्र हो गयी ,
देखने रावण का ये कारनामा
और जब रावण ने ,अपना नाम लिख,
पत्थर को पानी में तैराया
तो पत्थर  डूबने लगा ,बाहर नहीं आया
रावण घबराने लगा
मन ही मन कुछ बुदबुदाने लगा
कुछ ही देर में चमत्कार दिखलाया
डूबता पत्थर ,तैरता हुआ वापस आया
रावण की सांस में सांस आयी ,
वो पसीने पसीने था ,पर मुस्कराया
जनता उसकी जयजयकार कर रही थी
पर मन ही मन ,
रावण की हवा खिसक रही थी 
रात मंदोदरी ने पूछा ,
आपने इतना बड़ा चमत्कार कर दिया ,
फिर क्यों इतना घबरा रहे थे
जब पत्थर डूब रहा था ,
आप कौनसा मन्त्र बुदबुदा रहे थे
रावण ने बोला रानीजी,
मैं कैसे ना घबराता
अगर पत्थर नहीं तैरता तो,
मेरी इज्जत का तो फलूदा हो जाता
इसलिए पत्थर को पानी में ,
 तैराने में आया जो मन्त्र काम
मैं मन ही मन बुदबुदा रहा था
राम का नाम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'





 

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

मेरी सुबह बन जाती है

    मेरी सुबह बन जाती है

सवेरे सवेरे ,
तुम्हारे हाथों से बनाया,
गरम चाय का प्याला ,
 जब मेरे हाथों में आता है
और उससे उठती हुई ,
गरम गरम वाष्प की लहरें ,
जब मेरे ओठों से टकराती है
मुझे तेरे जिस्म की गर्मी ,
महसूस कराती है
चाय के गुलाबी रंग में ,
तेरी छवि दिखलाती है
तेरा ये स्वरूप देख कर ,
मेरे होंठ कुलबुलाने लगते है
मे ,बावरा सा ,
रूप रास पान करने की लालसा में,
उसे होठों से लगा लेता हूँ
और देर तक मेरे होंठ,
उस ऊष्मा की ,
गरमाहट की झनझनाहट से  ,
तरंगित होते रहते है
ऐसा मेरे साथ ,
रोज रोज होता है
जब चाय के रूप में ,
तू मुझे लुभाती है
और मेरी सुबह बन जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-