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सोमवार, 21 अप्रैल 2014

हाथापाई

            हाथापाई
पहलवान दंगल में ,और बच्चे स्कूल में ,
                        आपस मे  करते ही रहते  हाथापाई
सत्तारूढ़ सांसद और विपक्षी दल की ,
                          संसद में चलती ही रहती  हाथापाई
करें  प्रदर्शनकारी,जब भी कहीं प्रदर्शन,
                           उनमे और पुलिस में होती  हाथापाई 
और चुनाव में नेता ,अलग अलग मंचों से ,
                             करते  ही  दिखते ,शब्दों  की  हाथापाई
अगर किसी के संग ,सड़क पर जो हो  झगड़ा ,
                             तो हम उसको भी तो,कहते  हाथापाई
चारपाई पर पति पत्नी का प्रेम का प्रदर्शन,
                              एक तरह वो भी  ,होती  हाथापाई
अलग अलग लोगों संग ,अलग अलग जगहों पर,
                             वो ही क्रिया ,जब जाया करती  दोहराई 
क्रिया वो ही ,प्यार कहीं पर मानी जाती,
                               और कहीं पर खेल,,कहीं पर वही लड़ाई
घोटू

कुछ ऐसे कर

                कुछ ऐसे कर

'घोटू'तुझको कुछ करना है तो तू कर ,पर कुछ ऐसे कर
तेरा भी बन जाए काम सब ,और किसी को नहीं हो खबर
वरना उडी उडी सी रंगत ,सर के गेसू ,बिखर बिखर कर
बतला देंगे सब  दुनिया को,तूने क्या क्या किया रात भर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 20 अप्रैल 2014

एडजस्ट हो जाते है

            एडजस्ट हो जाते है
 
 रेलवे स्टेशन पर,जब ट्रेन आती है
डब्बे में मुसाफिर की ,भीड़ घुस आती है
भीतर बैठे लोग ,'जगह  नहीं' चिल्लातें है
ट्रेन  जब चलती  है,सब  ऐडजस्ट हो जाते है
जोश भरा नया मुलाजिम ,जब नौकरी पाता है
बड़ी तेजी ,फुर्ती से ,काम सब  निपटाता  है
ऑफिस का ढर्रा जब ,समझ वो जाता है
अपने सहकर्मी संग ,एडजस्ट हो जाता है
छोड़ कर माँ बाप ,पिया घर जाती है
नए लोग ,सास ससुर ,थोड़ा घबराती है
प्यार और सपोर्ट जब,निज पति का पाती है
धीरे  धीरे  हर लड़की ,एडजस्ट हो  जाती  है
बड़े बड़े सिद्धांतवादी ,अफ़सरों के  घर पर
 पहुँचते है ब्रीफकेस ,नोटों से भर भर कर
मिठाई के डब्बे और गिफ्ट  रोज आते है
ईमानदार अफसर भी एडजस्ट हो जाते है
जवानी में खूब मौज ,मस्तियाँ मनाते है
उमर के साथ साथ ,ढीले पड़  जाते है
मन मसोस रह जाते ,कुछ ना कर पाते है
बुढ़ापे के साथ  सब ही,एडजस्ट  हो जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जैसा ढर्रा है चलने दो

              जैसा ढर्रा है चलने दो

तुम कुछ बदल नहीं पाओगे ,जैसा  ढर्रा है चलने दो

सबकी अपनी अपनी आदत,अपने ढंग से जीते जीवन
लाख करो कोशिश आप पर,मुश्किल होता है परिवर्तन
कोई कितना ही समझाए,उनको मैनर्स और   सलीके
पडी हुई जो आदत होती ,छूटा करती है मुश्किल से
चावल,दाल और सब सब्जी,मिला और अचार डाल कर
बना बना लड्डू हाथों से ,जो खाया करते खुश होकर
उन्हें कहो ,चम्मच से खालो,तो वो स्वाद नहीं पायेंगे
मुश्किल से आधा ही खाना खा कर, भूखे  रह  जायेंगें
जो जैसे खुश होकर खाता  ,वैसे ही भोजन करने दो
तुम कुछ बदल नहीं पाओगे ,जैसा ढर्रा है चलने दो 
कोई उसको क्या समझाए ,जो कुछ समझ नहीं पाता है
परिवर्तन करने वाला ही खुद परिवर्तित हो जाता है
'ओबामा 'लालू यादव को ,इंग्लिश नहीं सिखा पायेगा
कुछ दिन साथ रहेगा उनके ,भोजपुरी में बतियायेगा
कोशिश कितनी भी करलो तुम,लेकिन व्यर्थ सभी जाती है
टेढ़ी पूंछ मगर कुत्ते की  ,कभी न सीधी  हो पाती है
हर साहब ,बाबू,चपरासी,सभी महकमो मे सरकारी
भ्रस्टाचार लिप्त रहते  है  ,ऊपर  इनकम  है प्यारी
अपना काम अगर करवाना ,तो उनकी मुट्ठी भरने दो
तुम कुछ बदल नहीं पाओगे ,जैसा  ढर्रा है चलने दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ऐसा भी होता है

           ऐसा भी होता है
                   १
करी रक्षा हमारे देश की सरहद की जीवन   भर,
बुढ़ापे में उस सैनिक का ,बिगड़ यूं हाल है जाता
भूख लगती,रसोई से ,दो बिस्किट भी उठा लेता ,
तो अपनी बहू  चोर तक भी ,है उसको कहा जाता
                         २
आता है जब बच्चा पति पत्नी जीवन में
व्यस्त बहुत हो जाते है लालन पालन में
और जाती इस कदर ,बदल उनकी दिनचर्या
जिससे बच्चा आया ,भूल वो जाते किर्या

घोटू
  
        

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