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मंगलवार, 26 मार्च 2013

संध्या

               संध्या

तुम संध्या ,मै सूरज ढलता ,
                       तुम पर जी भर प्यार लुटाता 
तुम्हारे कोमल कपोल पर ,
                        लाज भरी मै  लाली लाता
फिर उतार तुम्हारे तन से ,
                         तारों भरी तुम्हारी चूनर
फैला देता आसमान में ,
                           और तुम्हे निज बाहों में भर
क्षितिज सेज पर मै ले जाता,
                            रत होते हम अभिसार में
हम तुम दोनों खो  जाते है,
                            एक दूजे संग मधुर प्यार में
प्राची आती ,हमें जगाती,
                              चूनर ओढ़ ,सिमिट तुम जाती
मै दिन भर तपता रहता हूँ,
                               याद तुम्हारी ,बहुत सताती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 24 मार्च 2013

होली मनाइये -मुंह तो मीठा करते जाइये

      होली मनाइये -मुंह तो मीठा करते जाइये

देसी घी में गुलाबी गुलाबी तले ,
भुने हुये खोवा और मेवे से भरे ,
खस्ता और चासनी से पगे
स्वादिष्ट होली के गूंझिये आपने चखे
बतलाइये आपको कैसे लगे?
चंद्रकला,लवंगलता और बालूशाही ,
क्या आपने खायी?
सुन्दर स्वादिष्ट रबड़ी के लच्छे 
कभी ऊँगली से चाट कर तो देखो,
लगेंगे बड़े अच्छे
अमृत की तरह इमरती ,या जलेबी का जलवा
मूंग की दाल का या गाजर का हलवा
रसीले रसगुल्ले या गरम गरम गुलाबजामुन
सब के सब मोह लेंगे आपका मन
इन सब देसी मिठाइयों का स्वाद
एक बार खा कर तो देखो,
रहेगा उमर भर याद
कहाँ आप मैदे की बेक की गयी जालीदार , 
और फुसफुसे क्रीम से सजाई हुई,
केक को देख ,मुग्ध हो रहे हो
इन विदेशी मिठाइयों के मोह में खो रहे हो
पता नहीं ,कुछ लोगों को ,
ये क्यों इतना भाती  है
ज़रा सा हाथ से पकड़ो ,पिचक जाती है
थोड़ी सी भी गर्मी हो,पिघल जाती है
इतनी नाजुक है कि दूकान से घर लाने में ही ,
इनका हुलिया बिगड़ जाता  है  
अलग अलग रंग और खुशबू की बनती है ,
पर स्वाद हमेशा एक सा ही आता है
और देशी मिठाइयों का,
अलग अलग स्वाद और अलग अलग लज्जत
बस एक बार प्यार से खाओगे ,
तो कर बैठोगे  मोहब्बत
बस पहले 'क्लोरोस्ट्रल 'और'डायिबिटीज'के,
भूत के डर को भगाना होगा
और चटकारे ले ले कर खाना  होगा
बस एक बार चखोगे
उमर भर याद रखोगे 
क्योंकि देसी हो या विदेशी ,
बिना घी और शक्कर के ,
मिठाई,मिठाई नहीं बनती
और खाने में ,मिठाई खाये बिना,
 तृप्ति नहीं मिलती   
इन देसी मिठाइयों का तो नाम सुन कर ही,
मुंह में भर जाता है पानी
अरे भाई  साहेब ,होली का त्योंहार है,
आज तो आपको ,मिठाई पड़ेगी ही खानी
होली मुबारक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 23 मार्च 2013

ससुर और साला

                   ससुर और साला 

शादी के बाद ,
पत्नी के परिवार के ,चार रिश्ते हो जाते है ख़ास 
साला,साली,ससुर और सास
जो अपने दामाद पर ,
अपने बेटे से भी ज्यादा प्यार लुटाती है ,
वो सास कहलाती है 
ये ही तो वो गंगोत्री है जहाँ से ,
गंगा जैसी पत्नी आती है
इसीलिए सास का अहसास ,
होता है सबसे ख़ास
और दूसरा रिश्ता जो बड़ा प्यारा ,
रसीला और मन को भाता  है 
वो साली का रिश्ता कहलाता है
बड़ी प्यारी,रसीली और चुलबुली होती साली
इसीलिये उसे कहते है आधी घरवाली
पर साली छोटी हो या बड़ी,पराई होती है
फिर भी मन को भाई होती है
अब  तीसरा नंबर ससुर जी  का आता है
ये वो  प्राणी है जिससे दामाद थोडा घबराता है
ये थोडा कड़क और रोबीला लगता है
और शायद मन ही मन,
दामाद से खुंदक रखता है
क्योंकि दामाद के चक्कर में ,
दहेज़ और बिदा देते देते ,
उसको जेब ढीला करना पड़ता है
अक्सर दामाद ,ससुर के संग ,
थोड़े फॉर्मल ही रहते है ,घबराते है
होते है बेसुर ,पर ससुर कहलाते है
और लोग ,दर्दनीय स्थिति  में ,अक्सर ,
ससुर का नाम, काम में लाते है 
 जैसे 'ससुरा मारे भी ,और रोने न दे
ससुरे मच्छर ,रात  भर सोने न दे 
या ये ससुरा कहाँ बीच में कहाँ से आ गया
घर में दो ही लड्डू थे,ससुर चूहा खा गया
अक्सर ऐसी  स्थिति   में ससुर ही याद आता है ,
लोग सास का नाम कभी नहीं लेते है
हां कुछ विशेष परिस्तिथि में ,
सास के बदले ससुरी कहते है
जैसे बीबी जब मइके जाती है
ससुरी नींद नहीं आती है
अब चौथा सम्बन्धी ,जो सबसे निराला होता है
वो आपका साला  होता है 
लोग कहते है ,सारी  खुदाई एक तरफ,
जोरू का भाई एक तरफ ,
और ये सच भी है ,
क्योंकि वो आपकी पत्नी को प्यारा होता है
इसलिए मन चाही बकबक करता  है
पत्नी से ज्यादा ,आपकी चीजों पर ,
अपना हक़ रखता है
वो जब कभी भी आता है
तो समझलो आपका सारा बजट बिगड़ गया
इसीलिए लोग,किसी अनचाहे के आने पर ,
कहते है'साला कहाँ से आ गया '
किसी अवांछित काम को या अनचाहे इंसान को ,
जब हम मीठी सी गाली देते है 
तो उसे साला कहते है
'साला'बोलचाल का ,एक ऐसा शब्द बन गया है
की सबकी जुबान पर चढ़ गया है
हम साले बेवकूफ है  जो लाइन में खड़े है
और वो साला चुगलखोर है
तुम साले बहुत उस्ताद हो ,
और ये नेता साले सब चोर है 
नया बॉस साला  कड़क है 
ऐसे कितने ही वाक्यों में हम,
साले का प्रयोग ,करते बेधडक है
वैसे   कभी कभी साली का नाम भी ले लेते है 
जैसे हमारी साली किस्मत ही ऐसी है या ,
ये साली सरकार निकम्मी है,कह लेते है
पर ये सच है कि ससुराल पक्ष के ये दो रिश्ते ,
जो रोज की बोलचाल की भाषा को,
अलंकृत करते रहते है ,बड़े ख़ास है
वो ससुर और साला  है,जिनका नाम लेकर ,
हम निकालते अपने मन की भड़ास है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'




गुरुवार, 21 मार्च 2013

दुनिया -मिठाई की दूकान

    दुनिया -मिठाई की दूकान

दुनिया क्या है ,मै तो कह्ता,यह दूकान मिठाई की ,
ले कढाई  ,तल रहा जलेबी, हलवाई ,ऊपरवाला
हर  इंसान,जलेबी जैसा ,अलग अलग आकारों का,
जीवन रस की ,मधुर चासनी में ,डूबा है,मतवाला
गरम गरम ,रस भरी ,कुरकुरी,मन करता है खाने को ,
मगर रोकता 'डाईबिटिज'का डर ,कहता ,मत खा ,मत खा
कल जो होना है देखेंगे,मगर आज हम क्यों तरसें,
मन मसोस कर ,क्यों जीता है,जी भर इसका मज़ा उठा
जीवन रस से भरा हुआ है,राजभोग,रसगुल्ला है ,
बर्फी,कलाकंद सा मीठा ,या फिर फीनी घेवर सा 
इसका कोई छोर नहीं है ,ये तो है लड्डू जैसा ,
खालो,वरना लुढ़क जाएगा ,ये प्रसाद है,इश्वर का
बूंदी बूंदी मिल कर जैसे,बनता लड्डू बूंदी का ,
वैसे ही बनता समाज है,हम सब बूंदी के दाने
रबड़ी ,मोह माया जैसी है ,लच्छेदार ,स्वाद वाली,
उंगली डूबा डूबा जो  चाटे ,इसका  स्वाद वही जाने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

काहे बखेड़ा करते है

     काहे बखेड़ा करते है 

मोह माया के चक्कर में हम,मन को मैला करते है
खुश भी होते,परेशान भी,मुश्किल झेला करते है
ऊपर चढ़ते है इठला कर,झटके से नीचे गिरते ,
खेल सांप का  और सीडी का ,हरदम खेला करते है
कोई जरा बुराई करदे ,तो उतरा करता चेहरा ,
कोई जब   तारीफ़ कर देता,खुश हो फैला करते है
सब से आगे बढ़ने की है जिद हममे  इतनी रहती,
सभी परायों और अपनों को,पीछे ठेला करते है
बिना सही रस्ता पहचाने ,पतन गर्द में गिर जाते,
बिना अर्थ जीवन का जाने,व्यर्थ झमेला करते है
खाली हाथों आये थे और खाली हाथों जायेंगे,
कुछ भी साथ नहीं जाता पर तेरा मेरा करते है
'घोटू'जितना भी जीवन है,हंसी ख़ुशी जी भर जी लें ,
उठक पटक में उलझा खुद को,काहे  बखेड़ा  करते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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