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शनिवार, 21 अप्रैल 2012

मिलन संगीत

मिलन संगीत

होठों से निकल साँसे ,जब,

बांसुरी के अंतर्मन से गुजरती है,
और तन के छिद्रों पर,
उंगलियाँ संचालन करती है
तो मुरली की मधुर तान गूंजने लगती है
तबले और ढोलक की,
कसी हुई चमड़ी पर,
हाथ और  उंगलियाँ,
थाप  जब देतें है,
तो   फिर' तक धिन धिन' की,
स्वरलहरी  निकलती है
सितार के कसे हुए तारों को,
जब उंगुलियां हलके से,
स्पर्श कर ,छेड़ती है,
तो सितार  के मधुर स्वर,झंकृत हो जाते है
पीतल के मंजीरे,
जब आपस में दोनों ,मिल कर टकराते है
खनक खनक जाते है
मिलन की बेला में,
गरम गरम साँसे,
उद्वेलित होकर के,
रोम रोम में तन के,
मधुर तान भरती है
स्वर्णिम तन की त्वचा पर,
हाथ और उंगलियाँ,जब जब थिरकती है
मन के तार तार,
जब पाकर प्यार,
उँगलियों की छुवन से,झंकृत हो जाते है
मिलन के उन्माद में,
मंजीरे की तरह,
जब तन से तन टकराते है
ये साज सब के सब,
एक साथ मिल कर जब,
लगते है बजने तो,
जीवन में मिलन का मधुर संगीत,
गुंजायमान हो जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


बृहन्नला-सत्ता

बृहन्नला-सत्ता

उर्वशी सी जनता ने,

अर्जुन सी सत्ता से ,
बोला मै पीड़ित हूँ,
सुख को लालायित हूँ
अर्जुन ने गठबंधन,
की मजबूरी कह कर
इनकार जब  कर दिया
तो उर्वशी ने श्राप दिया
आने वाले  दो साल
नपुंसक सा होगा हाल
गठबंधन से डर कर,
बृहन्नला बन कर,
2014  तक कुछ ना कर पाओगे
बस नाचते रह जाओगे

मदन मोहन बहेती 'घोटू'


गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

द्रौपदी

       द्रौपदी

पत्नी जी,दिन भर,घर के काम काज करती

एक रात ,बोली,डरती डरती
मै सोचती हूँ जब तब
एक पति में ही जब हो जाती ऐसी हालत
पांच पति के बीच द्रौपदी एक बिचारी
होगी किस आफत की मारी
जाने क्या क्या सहती होगी
कितनी मुश्किल रहती होगी
एक पति का 'इगो'झेलना कितना मुश्किल,
पांच पति का 'इगो ' झेलती रहती होगी
उसके बारे में जितना भी सोचा जाए
सचमुच बड़ी दया है आये
उसकी जगह आज की कोई,
जागृत नारी,यदि जो होती
ऐसे में  चुप नहीं बैठती
पांच मिनिट में पाँचों को तलाक दे देती
या फिर आत्मघात कर लेती
किन्तु द्रौपदी हाय बिचारी
कितनी ज्यादा सहनशील थी,
पांच पुरुष के बीच बंटी एक अबला नारी
सच बतलाना,
क्या तुमको नहीं चुभती है ये बात
कि द्रौपदी के  साथ
उसकी सास का ये व्यवहार
नहीं था अत्याचार?
सुन पत्नी कि बात,जरा सा हम मुस्काये
बोले अगर दुसरे ढंग से सोचा जाए
दया द्रौपदी से भी ज्यादा,
हमें पांडवों पर आती है,जो बेचारे
शादीशुदा सभी कहलाते,फिर भी रहते,
एक बरस  में साड़े नौ महीने तक क्वांरे
वो कितना दुःख सहते होंगे
रातों जगते रहते होंगे
 तारे चाहे गिने ना गिने,
दिन गिनते ही रहते होंगे
कब आएगी अपनी बारी
जब कि द्रौपदी बने हमारी
और उनकी बारी आने पर ढाई महीने,
ढाई महीने क्यों,दो महीने और तेरह दिन,
मिनिटों में कट जाते होंगे
पंख लगा उड़ जाते होंगे
और एक दिन सुबह,
द्वार खटकाता होगा कोई पांडव ,
भैया  अब है मेरी बारी
 आज द्रौपदी हुई हमारी
और शुरू होता होगा फिर,वही सिलसिला,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार का
और द्रौपदी चालू करती,
एक दूसरे पांडव के संग,
वही सिलसिला नए प्यार का
तुम्ही बताओ
पत्नी जब महीने भर मैके रह कर आती,
तो उसके वापस आने पर,
पति कितना प्रमुदित होता है
उसके नाज़ और नखरे सहता
लल्लू चप्पू करता रहता
तो उस पांडव पति की सोचो,
जिसकी पत्नी,उसको मिलती,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार में
पागल सा हो जाता होगा
उस पर बलि बलि जाता होगा
जब तक उसका प्यार जरा सा बासी होता,
तब तक एक दूसरे पांडव ,
का नंबर आ जाता होगा
निश्चित  ही ये पांच  पांच पतियों का चक्कर,
स्वयं द्रोपदी को भी लगता होगा सुख कर,
वर्ना वह भी त्रिया चरित्र दिखला सकती थी
आपस में पांडव को लड़ा भिड़ा सकती थी
यदि उसको ये नहीं सुहाता,
तो वह रख सकती थी केवल,
अर्जुन से ही अपना नाता
लेकिन उसने,हर पांडव का साथ निभाया
जब भी जिसका नंबर आया
पति प्यार में रह कर डूबी
निज पतियों से कभी न ऊबी
उसका जीवन रहा प्यार से सदा लबालब
जब कि विरह वेदना में तडफा हर पांडव
तुम्ही सोचो,
तुम्हारी पत्नी तुम्हारे ही घर में हो,
पर महीनो तक तुम उसको छू भी ना पाओ
इस हालत में,
क्या गुजरा करती होगी पांडव के दिल पर,
तुम्ही बताओ?
पात्र दया का कौन?
एक बरस में ,
साड़े साड़े नौ नौ महीने,
विरह वेदना सहने वाले 'पूअर'पांडव
या फिर हर ढाई महीने में,
नए प्यार से भरा लबालब,
पति का प्यार पगाती पत्नी,
सबल द्रौपदी!

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

भगवान जी!आप भी कमाल करते हो

 भगवान जी!आप  भी कमाल करते हो 

भगवान जी!आप भी कमाल करते हो

नए नए ढंग से,धमाल करते  हो
जब रूटीन के काम काज से थक जाते हो
तो नए नए रूप में,अवतार लेकर आते हो
अलग अलग अनुभव,लेने का है शौक
इसीलिए छोड़ कर के  देवलोक
कभी मछली के रूप में अवतार लेते हो
तो कभी कछुवे के रूप में,अपनी पीठ पर,
मंदराचल पर्वत का भार लेते हो
समंदर में रहते हो और समंदर की बेटी से ब्याह किया है
इसीलिए पहले जलचर बनकर,
मच्छ और कच्छ रूप में अवतार लिया है
अगली बार सोचा होगा,चलो कुछ चेंज हो जाए
तो फिर थलचर,वाराह के रूप में अवतार लेकर आये
फिर थोडा अलग थ्रिल करने  का मूड आया
तो आधा नर और आधा जानवर,
याने नरसिंह का रूप बनाया
फिर कुछ डिफरंट करने का  किया मन
तो बस,बन गए वामन
अपने इस शार्ट फार्म में बली को छकाया
और  विराट रूप धर,तीन पग में ही,
तीनो   लोकों को नाप ,सबको चौंकाया
ये सब तो शार्ट टर्म वाले अवतार थे
जिनमे किये कुछ चमत्कार थे
पर इसमें आपको शायद ज्यादा मज़ा नहीं आया
तो फिर आपने ,लाँग टर्म वेकेशन का प्लान बनाया
और राम के रूप में अवतार लिया
और एक नोर्मल मानव की तरह,
फुल टर्म जीवन जिया
रावण को संहारा
पर अधिकतर जीवन ,अकेले ही,
बीबी से दूर ,गुजारा
तो अगले अवतार में,
 इसका कंपनसेशन भी किया
और कृष्ण के रूप में प्रकटे और,
सोलह हजार एक सौ आठ रानियों से ब्याह किया
और वैवाहिक जीवन का भरपूर सुख लिया
सच भगवान जी,आप बड़े ही एडवेंचरस हो
और सबके संकट मोचक हो
देवताओं पर जब भी प्रॉब्लम आती है
उनको बस,आपकी ही याद आती है
कभी मोहिनी रूप धर ,देवताओं को अमृत बाँट ,
उनका उद्धार करते हो
कभी सुन्दर नारी का रूप धर,
भस्मासुर का संहार करते हो
उनकी सब प्रोब्लेम्स को आप  सोल्व करते हो
भगवान जी!तुस्सी  ग्रेट  हो,कमाल करते हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

भैयाजी! स्माईल!!

      भैयाजी ! स्माईल !!

गाँव गाँव घूमे हम,किये बहुत वादे
क्लीन स्वीप करने के लेकर  इरादे
जनता को तरक्की का, सपना दिखलाया
गरीबों के झोंपड़े में,खाना भी खाया
पर लगता समझदार,हो गयी है जनता
जबानी जमा खर्च से काम नहीं बनता
गोवा भी गया  और पंजाब हारे,
यू, पी . में 'हाथ' कुचल ,निकल गयी 'साईकिल'
और टी वी वाले कहते है "भैयाजी! स्माईल!
दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स भी करवाये
कितने ही बड़े बड़े ,फ्लायओवर बनवाये
मेट्रो भी लाये और नयी बसें आयी
क्या करें थोड़ी  जो बढ़ गयी मंहगाई
हम तो बस रह गए 'हाथ' ही हिलाते
और एम.सी.डी.भी गयी,'कमल'के खाते
लगता है 'अन्ना 'ने,जगा दिया इनको,
दिल्ली की जनता ने ,तोड़ दिया है दिल
और टी.वी.वाले कहते है"भैयाजी! स्माईल!! 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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