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शुक्रवार, 31 जनवरी 2020
【SEAnews】Review:The baptism of the Holy Spirit (Aramaic roots II)-e
बुधवार, 29 जनवरी 2020
बासंती मधुमास आ गया
आज प्रफुल्लित धरा व्योम है
पुलकित तन का रोम रोम है
पिक का प्रियतम पास आ गया
बसंती मधुमास आ गया
डाल डाल पर फुदक फुदक कर
कोकिल गूंजा रही है मधुस्वार
पुष्पित हुआ पलाश केसरी
सरसों स्वर्णिम हुई मदभरी
सजी धरा पीली चूनर में
लगे वृक्ष स्पर्धा करने
उनने पान किये सब पीले
आये किसलय नवल रंगीले
शिशिर ग्रीष्म की यह वयःसंधि
हुई षोडशी ऋतू बासंती
गेहूं की बाली थी खली
हुई अब भरे दानो वाली
नाच रही है थिरक थिरक कर
बाली उमर ,रूप यह लख कर
वृक्ष आम का बौराया है
मादकता से मदमाया है
रसिक भ्रमर डोले पुष्पों पर
महकी अवनि ,महका अम्बर
मदन पर्व है ऋतू रसवंती
आया ऋतुराज वासंती
खुशियां और उल्हास आ गया
बासंती मधुमास आ गया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
आज प्रफुल्लित धरा व्योम है
पुलकित तन का रोम रोम है
पिक का प्रियतम पास आ गया
बसंती मधुमास आ गया
डाल डाल पर फुदक फुदक कर
कोकिल गूंजा रही है मधुस्वार
पुष्पित हुआ पलाश केसरी
सरसों स्वर्णिम हुई मदभरी
सजी धरा पीली चूनर में
लगे वृक्ष स्पर्धा करने
उनने पान किये सब पीले
आये किसलय नवल रंगीले
शिशिर ग्रीष्म की यह वयःसंधि
हुई षोडशी ऋतू बासंती
गेहूं की बाली थी खली
हुई अब भरे दानो वाली
नाच रही है थिरक थिरक कर
बाली उमर ,रूप यह लख कर
वृक्ष आम का बौराया है
मादकता से मदमाया है
रसिक भ्रमर डोले पुष्पों पर
महकी अवनि ,महका अम्बर
मदन पर्व है ऋतू रसवंती
आया ऋतुराज वासंती
खुशियां और उल्हास आ गया
बासंती मधुमास आ गया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मंगलवार, 28 जनवरी 2020
अगर तुम आगयी होती
सुधा भरती समंदर में ,हरे हो जाते मरुस्थल
गरज कर जो घुमड़ते है ,बरस जाते सभी बादल
अँधेरा लील सब जाती ,तुम्हारे प्यार की ज्योती
अगर तुम आ गयी होती
अमा की रात में जगमग ,चमकता चाँद पूनम सा
मेरे जीवन को महकाता ,तुम्हारा प्यार चंदन सा
नयन से बह रहे अश्रु ,टपकते बनके फिर मोती
अगर तुम आ गयी होती
मेरा संसार सूना था ,उसमे कुछ सार आ जाता
खनकते चूड़ियों के स्वर ,मधुर अभिसार आ जाता
रेशमी बाहों में बंध कर ,मेरी तन्हाईयाँ खोती
अगर तुम आगयी होती
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सुधा भरती समंदर में ,हरे हो जाते मरुस्थल
गरज कर जो घुमड़ते है ,बरस जाते सभी बादल
अँधेरा लील सब जाती ,तुम्हारे प्यार की ज्योती
अगर तुम आ गयी होती
अमा की रात में जगमग ,चमकता चाँद पूनम सा
मेरे जीवन को महकाता ,तुम्हारा प्यार चंदन सा
नयन से बह रहे अश्रु ,टपकते बनके फिर मोती
अगर तुम आ गयी होती
मेरा संसार सूना था ,उसमे कुछ सार आ जाता
खनकते चूड़ियों के स्वर ,मधुर अभिसार आ जाता
रेशमी बाहों में बंध कर ,मेरी तन्हाईयाँ खोती
अगर तुम आगयी होती
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जयचंदों के मारे है
कुछ तो उलटे सीधे धंधों के मारे है
विभीषणों के या जयचंदों के मारे है
शब्द शब्द को पिरो बनाते कविता माला ,
अलंकार के ,लय और छंदों के मारे है
ज्ञान नहीं पर हरेक बात में राय बताते ,
हम ऐसे कई रायचंदो के मारे है
जादू टोना और टोटका ,वशीकरण सब ,
ऐसे कितने दंदों फंदों के मारे है
रोज रोज ला ,नयी कबूतरी ,ऐश कर रहे ,
हमें जलाते ,उन्ही परिंदों के मारे है
ऊँगली पकड़ा है मनाही पहुंचा छूने की,
यार इश्क़ में हम प्रतिबंधों के मारे है
नहीं पास में दाने ,अम्मा चली भुनाने ,
मंहगे मंहगे शौक ,पसंदों के मारे है
बन कर के हमदर्द ,दर्द जो देते हमको ,
बन्दे हम अपने ही बंदो के मारे है
घोटू
कुछ तो उलटे सीधे धंधों के मारे है
विभीषणों के या जयचंदों के मारे है
शब्द शब्द को पिरो बनाते कविता माला ,
अलंकार के ,लय और छंदों के मारे है
ज्ञान नहीं पर हरेक बात में राय बताते ,
हम ऐसे कई रायचंदो के मारे है
जादू टोना और टोटका ,वशीकरण सब ,
ऐसे कितने दंदों फंदों के मारे है
रोज रोज ला ,नयी कबूतरी ,ऐश कर रहे ,
हमें जलाते ,उन्ही परिंदों के मारे है
ऊँगली पकड़ा है मनाही पहुंचा छूने की,
यार इश्क़ में हम प्रतिबंधों के मारे है
नहीं पास में दाने ,अम्मा चली भुनाने ,
मंहगे मंहगे शौक ,पसंदों के मारे है
बन कर के हमदर्द ,दर्द जो देते हमको ,
बन्दे हम अपने ही बंदो के मारे है
घोटू
जयचंदों के मारे है
कुछ तो उलटे सीधे धंधों के मारे है
विभीषणों के या जयचंदों के मारे है
शब्द शब्द को पिरो बनाते कविता माला ,
अलंकार के ,लय और छंदों के मारे है
ज्ञान नहीं पर हरेक बात में राय बताते ,
हम ऐसे कई रायचंदो के मारे है
जादू टोना और टोटका ,वशीकरण सब ,
ऐसे कितने दंदों फंदों के मारे है
रोज रोज ला ,नयी कबूतरी ,ऐश कर रहे ,
हमें जलाते ,उन्ही परिंदों के मारे है
नहीं पास में दाने ,अम्मा चली भुनाने ,
मंहगे मंहगे शौक ,पसंदों के मारे है
बन कर के हमदर्द ,दर्द जो देते हमको ,
बन्दे हम अपने ही बंदो के मारे है
घोटू
कुछ तो उलटे सीधे धंधों के मारे है
विभीषणों के या जयचंदों के मारे है
शब्द शब्द को पिरो बनाते कविता माला ,
अलंकार के ,लय और छंदों के मारे है
ज्ञान नहीं पर हरेक बात में राय बताते ,
हम ऐसे कई रायचंदो के मारे है
जादू टोना और टोटका ,वशीकरण सब ,
ऐसे कितने दंदों फंदों के मारे है
रोज रोज ला ,नयी कबूतरी ,ऐश कर रहे ,
हमें जलाते ,उन्ही परिंदों के मारे है
नहीं पास में दाने ,अम्मा चली भुनाने ,
मंहगे मंहगे शौक ,पसंदों के मारे है
बन कर के हमदर्द ,दर्द जो देते हमको ,
बन्दे हम अपने ही बंदो के मारे है
घोटू
कड़की में हूँ
मैं कड़क नहीं हूँ मगर,आजकल कड़की में हूँ
है मस्ती का मर्ज ,मस्त मन मर्जी में हूँ
मैं चारा ना खाऊं ,कहा जाता बेचारा ,
चारा खाऊ नेता बने विपुल धनस्वामी
पड़ी वक़्त की मार मुझे बीमार कर गयी ,
कुछ न किया बद ,मगर मिली मुझको बदनामी
कार नहीं ,बेकार समझते है मुझको सब ,
मिली न बस ,बेबस ,आवारागर्दी में हूँ
मैं कड़क नहीं हूँ ,मगर आजकल कड़की में हूँ
मेरे तन में, मन में विष का वास नहीं ,
फिर भी मुझ पर लोगों का विश्वास नहीं
सांस सांस में प्यार लुटाता मैं जिन पर ,
उन लोगों को होता पर अहसास नहीं
रहा हर बरस ,तरस तरस ,वो ना बरसे ,
जेब गरम ना रहती है पर गरमी में हूँ
मैं कड़क नहीं हूँ मगर आजकल कड़की में हूँ
वृहद विचारों वाला हूँ पर हद में रहता ,
सदाचार का मारा सदा चार की सुनता
भाव बढे जिसके प्रभाव से भाव न उठते ,
लिखना चाहूँ गीत ,मिले ना धुन ,सर धुनता
सदा चरण छूता हूँ सदाचरण के कारण ,
बिना सुरा ,बेसुरा होगया ,सरदी में हूँ
मैं कड़क नहीं हूँ ,मगर आजकल कड़की में हूँ
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
मैं कड़क नहीं हूँ मगर,आजकल कड़की में हूँ
है मस्ती का मर्ज ,मस्त मन मर्जी में हूँ
मैं चारा ना खाऊं ,कहा जाता बेचारा ,
चारा खाऊ नेता बने विपुल धनस्वामी
पड़ी वक़्त की मार मुझे बीमार कर गयी ,
कुछ न किया बद ,मगर मिली मुझको बदनामी
कार नहीं ,बेकार समझते है मुझको सब ,
मिली न बस ,बेबस ,आवारागर्दी में हूँ
मैं कड़क नहीं हूँ ,मगर आजकल कड़की में हूँ
मेरे तन में, मन में विष का वास नहीं ,
फिर भी मुझ पर लोगों का विश्वास नहीं
सांस सांस में प्यार लुटाता मैं जिन पर ,
उन लोगों को होता पर अहसास नहीं
रहा हर बरस ,तरस तरस ,वो ना बरसे ,
जेब गरम ना रहती है पर गरमी में हूँ
मैं कड़क नहीं हूँ मगर आजकल कड़की में हूँ
वृहद विचारों वाला हूँ पर हद में रहता ,
सदाचार का मारा सदा चार की सुनता
भाव बढे जिसके प्रभाव से भाव न उठते ,
लिखना चाहूँ गीत ,मिले ना धुन ,सर धुनता
सदा चरण छूता हूँ सदाचरण के कारण ,
बिना सुरा ,बेसुरा होगया ,सरदी में हूँ
मैं कड़क नहीं हूँ ,मगर आजकल कड़की में हूँ
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
सोमवार, 27 जनवरी 2020
सरहदों के मौसम एक से
बस अलग था तो
मार दिया जाना पंछियों का
जो उड़कर उस पार हो लिए
रंगनी थी दिवार
कि जब तक खून लाल ना हो
जमीन भींग ना जाए
और हम सोते रहें
देर रात जश्न मनाते
शराब पी बे- सूद
अपनी औरतों को मारते
हम अलग नहीं
चौराहे
अलग रंग के
अलग शहरों के
घटना एक सी
रेप कर दिया
चाकू मार दिया
हम एक हैं अलग नहीं
ये खून हरा है
खून बहेगा तबतक
जबतक वो लाल नहीं होता
मरेगी औरतें, मारेगा आदमी
होंगे रेप
चलेंगे चाकू
आदमी सोच रहा
हम हरे खून वाले
जब बहेंगे
तब बहेगा जहर
तो खून लाल कर दो देवता
या पानी बना बहा दो सब
आ जाने दो प्रलय
अब जलमग्न हो जाने पर ही धूल पाएगी दुनिया
हम हो पायेंगे इंसान
तब ये खून लाल होगा
Deepti Sharma
शुक्रवार, 3 जनवरी 2020
Review:The baptism of the Holy Spirit (Aramaic roots I) (vol.200101)-E
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लाॅकडाउन 2 - मोदी जी....सुनो:- धीरे धीरे ही सही बीते इक्किस वार सोम गया मंगल गया कब बीता बुधवार कब बीता बुधवार हो गया अजब अचंभा लगता है इतवार हो गया ज्यादा लंबा दाढ़ी भी ...4 वर्ष पहले
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Gatyatmak Jyotish app - विज्ञानियों को ज्योतिष नहीं चाहिए, ज्योतिषियों को विज्ञान नहीं चाहिए।दोनो गुटों के झगडें में फंसा है गत्यात्मक ज्योतिष, जिसे दोनो गुटों के मध्य सेतु ...4 वर्ष पहले
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2019 का वार्षिक अवलोकन (अट्ठाईसवां) - खत्म होनेवाला है हमारा इस साल का सफ़र। 2020 अपनी गुनगुनी,कुनकुनी आहटों के साथ खड़ा है दो दिन के अंतराल पर। चलिए इस वर्ष को विदा देते हुए कुछ बातें कहती...4 वर्ष पहले
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इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...5 वर्ष पहले
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गुड्डू आओ ... गोलगप्पे खाएँ .... - गुड्डू आओ ... चलें .. गोलगप्पे खाएँ कुछ खट्टे-मीठे .. तो कुछ चटपटे-चटपटे खाएँ चलो .. चलें ... अपने उसी ठेले पे .. स्कूल के पास ... आज .. जी भर के ... मन भ...5 वर्ष पहले
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cara mengobati herpes di kelamin - *cara mengobati herpes di kelamin* - Penyakit herpes genital baik pada pria maupun pada wanita kerap menjadi permasalahan tersendiri, karena resiko yang le...5 वर्ष पहले
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आइने की फितरत से नफरत करके क्या होगा - आईने की फितरत से नफरत करके क्या होगा किरदार गर नहीं बदलोगे किस्सा कैसे नया होगा हर बार आईना देखोगे धब्बा वही लगा होगा आईने लाख बदलो सच बदल नहीं सकते ज...6 वर्ष पहले
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शर्मसार होती इंसानियत.. - *इंसानियत का गिरता ग्राफ ...* आज का दिन वाकई एक काले दिन के रूप में याद किया जाना था. सबेरे जब समाचार पत्रों में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले इस समाचा...6 वर्ष पहले
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कूड़ाघर - गैया जातीं कूड़ाघर रोटी खातीं हैं घर-घर बीच रास्ते सुस्तातीं नहीं किसी की रहे खबर। यही हाल है नगर-नगर कुत्तों की भी यही डगर बोरा लादे कुछ बच्चे बू का जिनपर...6 वर्ष पहले
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता - घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ नाम बचे है बाकी तीज त्योहार कहाँ ...7 वर्ष पहले
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लिखते रहना ज़रूरी है ! - पिछले कई महीनों में जीवन के ना जाने कितने समीकरण बदल गए हैं - मेरा पता, पहचान, सम्बन्ध, समबन्धी, शौक, आदतें, पसंद-नापसंद और मैं खुद | बहुत कुछ नया है लेकिन...7 वर्ष पहले
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इन आँखों में बारिश कौन भरता है .. - बेतरतीब मैं (३१.८.१७ ) ` कुछ पंक्तियाँ उधार है मौसम की मुझपर , इस बरस पहले तो बरखा बरसी नहीं ,अब बरसी है तो बरस रही ,शायद ये पहली बारिशों का मौसम...7 वर्ष पहले
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सवाल : हम आपदाओं में फेल क्यों? जवाब में यह हकीकत पढि़ए - राजस्थान के एक हिस्से में बाढ़ का कहर है और लोग आपदा से घिरे हैं। प्रशासनिक अमला इतना असहाय नजर आ रहा है। आपदाएं हमेशा आती है और सरकारी तंत्र लाचार नजर आ...7 वर्ष पहले
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ब्लॉगिंग : कुछ जरुरी बातें...3 - पाठक हमारे ब्लॉग पर हमारे लेखन को पढने के लिए आता है, न कि साज सज्जा देखने के लिए. लेखन और प्रस्तुतीकरण अगर बेहतर होगा तो यकीनन हमारा ब्लॉग सबके लिए लाभदा...7 वर्ष पहले
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गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो - *गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो * लगभग दो वर्ष के लंबे अंतराल के पश्चात् परम श्रद्धेय स्वामीजी संवित् सोमगिरि जी महाराज के दर्शन करने (अभी 1 जुलाई) को गया तो मन भ...7 वर्ष पहले
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जिन्द्गी - जिन्दगी कल खो दिया आज के लिए आज खो दिया कल के लिए कभी जी ना सके हम आज के लिए बीत रही है जिन्दगी कल आज और कल के लिए. दोस्तों आज मेरा जन्म दिन भ...7 वर्ष पहले
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हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे - *हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगेहाँ ! चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे* जो रात होगी तो जमी से चाँदी बटोर लेंगे चाँदी की फिर पायल बना लम्हों ...7 वर्ष पहले
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Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...7 वर्ष पहले
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गीत अंतरात्मा के: आशा - गीत अंतरात्मा के: आशा: मैं एक आशा हूँ मेरे टूट जाने का तो सवाल ही नहीं होता मैं बनी रहती हूँ हर एक मन में ताकि हर मन जीवित रह सके मुझे खुद को बचाए ही र...8 वर्ष पहले
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'जंगल की सैर ' - मेरी पुरुस्कृत बाल कहानी 'जंगल की सैर ' मातृभारती पर। पढ़े और अपनी राय दें http:matrubharti.com/book/5492/8 वर्ष पहले
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पानी की बूँदें - पानी की बूँदे भी, मशहूर हो गई । कल तक जो यूँही, बहती थी बेमतलब, महत्वहीन सी यहाँ वहाँ, फेंकी थी जाती, समझते थे सब जिसके, मामूली सी ही बूँदें, आज वो पहुँच स...8 वर्ष पहले
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खोया बच्चा..... - आज एक हास्य कविता एक बच्चा रो रहा था , मेले में अनाउंसमेंट हो रहा था , जल्दी आएं जिन का बच्चा हो ले जाएँ | तभी सौ से ज्यादा लोग वहां आते है जल्दी से बच...8 वर्ष पहले
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स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...8 वर्ष पहले
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बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...8 वर्ष पहले
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विंडोज आधारित सिस्टम में गुगल वाइस टाइपिंग - *विंडोज आधारित सिस्टम में गुगल वाइस टाइपिंग* हममें से अधिकांश लोगों को टंकण करना काफी श्रमसाध्य एवं उबाऊ कार्य लगता है और हम सभी यह सेाचते हैं कि व्यक...8 वर्ष पहले
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Happy Teacher's Day - “गुरु का हाथ” - *पिसते… घिसते… तराशे जाते…* *गिरते… छिलते… लताडे जाते…* *मांगते… चाहते… ठुकराए जाते…* *गुजर जाते हैं चौबीस या इससे ज्यादा साल…* *लगे बचपन से… बहुत लोग फरिश...9 वर्ष पहले
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...9 वर्ष पहले
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ज़िन्दगी का गणित - कोण नज़रों का मेरे सदा सम रहा न्यून तो किसी को अधिक वो लगा घात की घात क्या जान पाये नहीं हम महत्तम हुए न लघुत्तम कहीं रेखा हाथों की मेरे कुछ अधिक वक्र ...9 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...9 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...9 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...9 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...10 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...10 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...10 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...10 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...11 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...11 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...12 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...12 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
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