नींद जब जाती उचट है ...
नींद जब जाती उचट है रात को ,
जाने क्या क्या सोचता है आदमी
पंख सुनहरे लगा कर आस के ,
चाँद तक जा पहुंचता है आदमी
दरिया में बीते दिनों की याद के ,
तैरता है ,डुबकियाँ है मारता
गुजरे दिन के कितने ही किस्से हसीं,
कितनी ही आधी अधूरी दास्ताँ
ह्रदय पट पर खयालों के चाक से,
लिखता है और पोंछता है आदमी
नींद जब जाती उचट है रात को,
जाने क्या क्या सोचता है आदमी
किसने क्या अच्छा किया और क्या बुरा ,
उभरती है सभी यादें मन बसी
कौन सच्छा दोस्त ,दुश्मन कौन है,
किसने दिल तोडा और किसने दी खुशी
कितने ही अंजानो की इस भीड़ में,
कोई अपना खोजता है आदमी
नींद जब जाती उचट है रात को,
जाने क्या क्या सोचता है आदमी
मदन मोहन बाहेती'
नींद जब जाती उचट है रात को ,
जाने क्या क्या सोचता है आदमी
पंख सुनहरे लगा कर आस के ,
चाँद तक जा पहुंचता है आदमी
दरिया में बीते दिनों की याद के ,
तैरता है ,डुबकियाँ है मारता
गुजरे दिन के कितने ही किस्से हसीं,
कितनी ही आधी अधूरी दास्ताँ
ह्रदय पट पर खयालों के चाक से,
लिखता है और पोंछता है आदमी
नींद जब जाती उचट है रात को,
जाने क्या क्या सोचता है आदमी
किसने क्या अच्छा किया और क्या बुरा ,
उभरती है सभी यादें मन बसी
कौन सच्छा दोस्त ,दुश्मन कौन है,
किसने दिल तोडा और किसने दी खुशी
कितने ही अंजानो की इस भीड़ में,
कोई अपना खोजता है आदमी
नींद जब जाती उचट है रात को,
जाने क्या क्या सोचता है आदमी
मदन मोहन बाहेती'