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शनिवार, 25 मई 2013

आमो का मज़ा

       
                  १ 
हम उनके चूसे आम को ,फिर से है चूसते ,
देखो हमारे  इश्क की ,कैसी है इन्तहा 
आता है स्वाद आम का पर संग में हमें ,
उनके लबों के स्वाद का भी मिलता है मज़ा 
                  २ 
उनके गुलाबी रसभरे ,होठों से था लगा ,
कितने नसीबोंवाला था,'घोटू'वो  आम था 
उनने जो छोड़ा ,हमने था ,छिलका उठा लिया ,
उनके लबों का उसपे लिपस्टिक निशान था 
                   ३ 
था खुशनसीब आम वो ,उनने ले हाथ में,
होठों से अपने लगा के रस उसका पी लिया
गुठली भी चूसी प्रेम से ,ले ले के जब मज़े  ,
इठला के बड़े गर्व से ,गुठली ने ये कहा 
दिखने  में तो लगती हूँ बड़ी सख्त जान मै ,
मुझको दिया मिठास  है अल्लाह का शुक्रिया 
उनने लगा के होठों से रस मेरा ले  लिया  ,
 मैंने भी  उनके रस भरे ,होठों का रस पिया 
                       ४ 
वो चूसते थे आम ,हमने छीन ले लिया ,
उसकी मिठास ,स्वाद हमें आज भी है याद 
हमने जो चूसा आया हमको स्वाद दोगुना ,
थी आम की भी लज्जत ,तेरे होंठ का भी स्वाद 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

निराला अंदाज

  

उनकी हया और शर्म का ,अंदाज निराला 
आये है स्विमिंग पूल में और बुर्का है डाला 
कहने को  तो आये है हनीमून    मनाने 
अपने पति को देते ना घूंघट  वो उठाने 
चाहे है आम चूसना ,ले ले के वो मजे 
बिगड़े न लिपस्टिक कहीं और लब रहे सजे 
गीले भी नही  हो और  नहाने  की तलब है 
'घोटू'इन हुस्नवालों का ,अंदाज गजब है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

अंजुली भर जल और शपथ



मंदिर में, आरती के बाद ,
शंख में पानी भर छिडके हुए छींटे ,
या आचमनी से दिया गया ,
चरणामृत और तुलसी दल ,
भगवान का  ये ही असली प्रसाद होता है
आप लेकर तो देखिये,
कितना स्वाद होता है 
क्योंकि इसमें आपके इष्ट का,
आशीर्वाद  होता है 
मंदिर में छिडके गए पानी के चंद  छींटे,
आपको पवित्र बना देते है 
पूजन के समय ,पानी के कलश  में ,
पान के पत्ते को डुबा ,चंद छींटों से ,
'स्नानम समर्पयामी 'कह कर हम,
भगवान् को स्नान करा देते है 
अंजुलीभर जल की महिमा महान बताते है  
अंजुली भर जल हाथ में लेकर,
बड़े बड़े संकल्प किये जाते है 
राजा बली ने संकल्प कर,
वामन अवतार को दे दिया ,
तीनो लोकों का दान 
और राजा  हरिश्चन्द्र ने कितने कष्ट उठाये,
रखने अपने संकल्प का मान 
मेरे सास ससुर ने भी अंजुली में जल भर कर 
एक महान काम किया था 
अपनी बेटी को मुझे दान दिया था 
बड़े बड़े ऋषि ,जब कुपित होते थे,
अंजुली में जल भर कर शाप दिया करते थे 
जिससे दुष्यंत जैसे राजा,
शकुन्तला को भुला दिया करते थे
अगस्त्य मुनी को तो,
समुद्र ने इतना कुपित किया था 
कि उन्होंने ,तीन अंजुली में ,समुद्र पी लिया था 
जब कोई भ्रष्टाचार उजागर होता है ,
या कोई शर्मनाक बात होती है 
तो ये चुल्लू भर पानी में ,डूबने वाली बात होती है 
हम रोज रोज,समाचार पढ़ते है ,
कि हमारे नेता ,अगस्त्य मुनी की तरह,
देश की दौलत के अथाह समुद्र को ,
अंजुली में भर भर कर पिए जा रहे है 
और हम प्यासे छटपटा  रहे है  
 अंजुली भर पानी की महत्ता देख कर ,
मेरे मन में आया है एक विचार 
कि जब भी सरकार में,
किसी बड़े अधिकारी का अपोइन्टमेंट  हो,
या मंत्री को शपथ दिलाई जाए अबकी बार 
तो उनके हाथ में अंजुली भर जल भर कर  ,
उनसे लिया जाए ये वचन ,
कि जनता की सच्चे दिल से सेवा करेंगे हम 
और बेईमानी ,भ्रष्टाचार या घोटालों से ,
मीलों दूर  रहेंगे  हम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
    

शुक्रवार, 24 मई 2013

गैया के सींगों से डरिये

       

गैया जैसी भोली जनता ,तुम माँ कह कर जिसे बुलाते 
मीठी मीठी बातें करके ,आश्वासन की घास चराते 
बछड़े के मुख,छुआ स्तन, सारा दूध दुहे तुम जाते 
पगहा बंधन बाँध रखा है ,जिससे वो ना मारे लातें 
उसका बछड़ा भूखा पर तुम,मुटिया रहे दूध  पी पीकर 
बचे दूध की बना मिठाई ,या मख्खन खाते हो जी भर 
बूढी होती,काटपीट कर ,मांस भेज देते विदेश में 
तुम कितने अत्याचारी हो ,हो कसाई तुम श्वेत वेश में 
गाय दुधारू ,पर मत भूलो ,उसके सींग ,बड़े है पैने 
जिस दिन वो विद्रोह करेगी ,पड  जाये लेने के देने 
तो समझो,चेतो नेताजी ,बहुत खा लिया,अब मत खाओ 
भूखी गैया तड़फ रही है, उसे पेट भर घास खिलाओ 
उसको गुड दो और बंटा दो,माँ कहते हो ,ख्याल रखो तुम 
उसके बछड़े के हिस्से का,दूध उसी को पीने दो तुम 
अगर किसी दिन आक्रोशित हो,सींग उठा यदि दौड़ी गायें 
और पडी तुम्हारे पीछे , दौडोगे  तुम दायें ,बायें 
गैया के सींगों से डरिये ,जिस दिन ये तुमपर भड़केगी 
अपना हक पाने के खातिर , तुम्हे हटा कर ही दम लेगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 



बूढ़े नेता

          बूढ़े नेता 
        
अक्सर ये देखा है ,
फूल जो गंधहीन होते है ,
ज्यादा समय तक ,
खिले रहते ,टिकते है 
कई तो बारह माह ही विकसते है 
और खुशबू वाले फूल ,जो अपनी सुगंध से ,
वातावरण को महकाते है 
जल्दी से मुरझाते है ,
या तोड़ लिए जाते है 
तो श्रीमान  ,
अब तक तो आप गए होंगे जान 
कि मानवता और संवेदनशीलता की,
खुशबू से विहीन ,हमारे नेता ,
बूढ़े होने पर भी ,सत्ता की टहनी पर ,
क्यों रहते है विराजमान 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

गुरुवार, 23 मई 2013

सुरक्षा

                

तपती धूप  और गर्मी में,
गली गली और सड़कों पर ,
घूम घूम वोट मांगने वाले नेताजी ,
जब मंत्री बन गए चुनाव जीत कर 
तो उन्हें अपनी सुरक्षा का ख्याल आया 
और उनकी सुरक्षा के लिए ,
'ब्लेक केट'का एक दस्ता आया 
गली गली जब वोट मांगते  थे तो,
सुरक्षा की उन्हें नहीं थी परवाह 
पर मंत्री  पद पाते ही,
हो गयी है सुरक्षा की चाह 
क्योंकि ,अब वो डरते है बेचारे  
कुर्सी पर बैठ कर किये गए उनके घोटाले 
अगर उजागर हो गए ,
तो जनता उन्हें जूते ना मारे 

मदन मोहन बाहेती' घोटू'  

जनता का ख्याल

       

मंत्री बनते ही ,नेताजी ने कर दिया एलान 
वो जब भी पार्लियामेंट या, किसी आयोजन में जाते है,
तो सुरक्षा के कारणों से ,
सारे रास्ते कर दिए जाते है जाम 
इससे जनता होती है  परेशान  
इसलिए करवाया जाए कोई एसा  इंतजाम 
जिससे जनता न हो परेशान 
अब उनके बंगले में तैनात है एक हेलिकोफ्टर 
जिस पर चढ़ ,वो जाते है इधर उधर 
और आने जाने में ,
ज्यादा समय भी नहीं होता है बेकार 
देखा ,नेताजी को जनता की परेशानी का ,
है कितना ख्याल !

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तलाक़

           
             तलाक़  
एक नेताजी,जो बड़े संस्कारी है 
और जिन्हें कुर्सी बड़ी प्यारी  है 
पूजा पाठ और कर्मकांड में विश्वास रखते है 
(और बड़े बड़े काण्ड करते है )
उन्होंने एक  आयोजन करवाया 
अपने  भरोसे वाले पंडितजी को बुलवाया 
विवाह संस्कार के सारे कर्मकांडो को करवाया 
खुद दूल्हा बने  और,
कुर्सी को दुल्हन बनवाया 
 कुर्सी के साथ विवाह वेदी के सात फेरे भी लिये 
और जनम जनम का साथ निभाने के 
सात वचन भी दिये 
पर बदकिस्मती से ,अगले चुनाव में ,
उनकी पार्टी का सूपड़ा साफ़ हो गया 
और बेचारे नेताजी का,
कुर्सी से तलाक़ हो गया 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वाटर ऑफ़ गेंजेस

   

जादूगर,अक्सर एक जादू दिखाते रहते है
जिसे वाटर ऑफ़ गेंजेस कहते है
जिसमे जादूगर एक खाली बर्तन दिखाता है
थोड़ी देर में उसमे पानी भर आता है 
वो उसे फिर खाली कर देता है
और जादू से ,थोड़ी देर में फिर भर देता है
इस तरह बर्तन खाली होता और भरता  रहता है
पूरे खेल तक ये सिलसिला चलता रहता है   
माननीय मनमोहनसिंह जी के हाथ
नौ बरस पहले आया था खाली गिलास
उन्होंने जादूगर की तरह उसे पानी से भर दिया
पर कामनवेल्थ गेम के घोटाले ने उसे खाले कर दिया
उन्होंने जादू  से फिर भरा
अबकी बार टू जी के घोटाले ने खाली करा
अगली बार फिर भरा
तो कोल गेट ने खाली करा  
पिछले नौ साल से ये ही सिलसिला चल रहा है
गिलास खाली हो हो कर भर रहा है
गिलास अब भी खाली का खाली है ,
पर कोई बात ना चिंता की है
'वाटर ऑफ़ गेंजेस 'का खेल ख़तम होने में ,
एक बरस बाकी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 21 मई 2013

बदलती दुनिया

         

इलास्टिक ने नाडे  को गायब किया ,
और ज़िप आई,बटन को खा गयी 
परांठे ,पुरियों को पीज़ा का गया ,
सिवैयां ,चाइनीज नूडल खा गयी 
दादी नानी की कहानी खा गए,
टी वी पर ,दिनरात चलते सीरियल 
चिट्ठियां और लिफाफों को खा गए ,
एस एम् एस और ई मेल ,आजकल 
स्लेट पाटी ,गुम  हुई,निब भी गयी ,
होल्डर,श्याही की बोतल और पेन 
आजकल  ये सब नज़र आते नहीं ,
बस चला करते है केवल जेल  पेन 
फोन काले चोगे वाला खो गया ,
सब के हाथों में है मोबाईल हुआ 
नज़र टाईप राईटर आते नहीं,
कंप्यूटर है  ,इस तरह काबिज हुआ 
लाला की परचून की सब दुकाने,
बड़े शौपिंग माल सारे खा गए 
बंद सब एकल सिनेमा हो गए ,
आज मल्टीप्लेक्स इतने छा  गए 
ग्रामोफोन और रेडियो गायब हुए,
सारा म्यूजिक अब डिजिटल हो गया 
इस कदर है दाम सोने के बढे ,
चैन से सोना भी मुश्किल  हो गया 
एक पैसा,चवन्नी और अठन्नी ,
नोट दो या एक का अब ना मिले 
दौड़ता है मशीनों सा आदमी ,
जिन्दगी में चैन भी अब ना मिले 
चोटियाँ और परांदे गुम  हो गए ,
औरतों के कटे ,खुल्ले  बाल है 
नेताओं ने देशभक्ती छोड़ दी ,
लगे है सब लूटने में माल है 
अपनापन था,खुशी थी ,आनंद था 
होते थे संयुक्त सब परिवार जब 
छह डिजिट की सेलरी तो हो गयी ,
सिकुड़ कर एकल हुए परिवार अब 
सभी चीजें ,छोटी छोटी हो गयी ,
आदमी के दिल भी छोटे हो गए
समय के संग ,बदल हम तुमभी गए  
मै हूँ बूढा ,जवां तुम भी ना रहे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आप आये



बहुत तडफा ,मन अभागा 
कई,कितनी रात जागा 
जब सपन  तुमने चुराये 
आप आये 
पावडे ,पलकें पसारे 
राह तुम्हारी  निहारे 
मिलन को मन छटपटाये 
आप आये 
नींद नैनों से रही जुड़ 
देख कर तुमको गयी उड़ 
प्रेम अश्रु ,डबडबाये
आप आये 
बांह में, मै  तुम्हे भरके 
तन ,बदन मन एक करके 
एक दूजे में समाये 
आप आये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

बरसों बीते

           
 बरसों बीते ,बरस बरस कर 
कभी दुखी हो ,कभी हुलस कर 
जीवन सारा ,यूं ही गुजारा ,
हमने मोह माया में फंस कर 
कभी किसी को बसा ह्रदय में ,
कभी किसी के दिल में बस कर 
कभी दर्द ने बहुत रुलाया ,
आंसू सूखे,बरस बरस कर 
और कभी खुशियों ने हमको ,
गले लगाया ,खुश हो,हंस कर 
हमने जिनको दूध पिलाया ,
वो ही गए हमें  डस डस  कर 
यूं तो बहुत हौंसला है पर,
उम्र गयी हमको बेबस  कर 
और बुढ़ापा ,लाया स्यापा ,
कब तक जीयें,तरस तरस कर 
ऊपर वाले ,तूने  हमको ,
बहुत नचाया,अब तो बस कर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापे की थकान

    

आजकल हम इस कदर से थक रहे है 
ऐसा लगता ,धीरे धीरे   पक रहे  है 
बड़े मीठे और रसीले हो गये  है,
देखने में पिलपिले  से लग रहे है
दिखा कर के चेहरे पे नकली हंसी ,
अपनी सब कमजोरियों को ढक रहे है 
अपने दिल का गम छुपाने के लिए,
करते सारी कोशिशे  भरसक रहे  है 
नहीं सुनता है हमारी कोई भी , 
मारते बस डींग हम नाहक रहे है 
सर उठा कर आसमां को देखते,
अपना अगला आशियाना  तक रहे है 
'घोटू'करना गौर मेरी बात पर ,
मत समझना यूं ही नाहक बक रहे है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

गलियों का मज़ा

           

प्रेम की सकड़ी गली में दो समा सकते नहीं ,
कृष्ण राधा मिलन साक्षी ,कुञ्ज की गलियाँ रही 
रसिक भंवरा ही ये अंतर बता सकता है तुम्हे 
फूलों में ज्यादा मज़ा या फिर मज़ा कलियों में है 
काजू,पिश्ता,बादामों का ,अपना अपना स्वाद पर 
सर्दियों में,धुप में ,फुर्सत में ,छत पर बैठ कर 
खाओगे,मुंह से लगेगी ,छोड़ पाओगे नहीं,
छील करके खाने का ,जो मज़ा मूंगफलियों में है 
कंधे से कंधा मिलाओ,भले टकरा भी गये 
कोई कुछ भी ना कहेगा ,गली का कल्चर है ये 
इसलिये लगती भली है 'घोटू'हमको ये गली,
वो मज़ा या थ्रिल कभी आता न रंगरलियों में है 
बनारस की सकड़ी गलियाँ ,प्यारी रौनक से भरी ,
दिल्ली की वो चाट पपड़ी ,परांठे वाली  गली 
जलेबी सी टेडी मेडी ,पर रसीली स्वाद  है ,
नहीं सड़कों पर मिलेगा, जो मज़ा  गलियों में है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मन सनातन

   

विषय भोगों से सना तन 
 मन सनातन 
मांस मज्जा से बना तन ,
 मन सनातन 
ज्ञान गीता भागवत का सुना करते 
और सपने स्वर्ग के हम बुना  करते 
मंदिरों में चढ़ाया करते   चढ़ावा 
कर्मकांडों को बहुत देते बढ़ावा 
तीर्थाटन ,धर्मस्थल ,देवदर्शन 
मगर माया मोह में उलझा रहे मन 
सोच है  लेकिन पुरातन 
मन सनातन 
कामनाये  ,काम की, हर दम मचलती
लालसाएं कभी भी है  नहीं घटती 
और जब कमजोरियों का बोध आता 
कभी हँसते ,या स्वयं पर क्रोध  आता 
इस तरह संसार के   बंध  गए बंधन
समस्यायें आ रही है नित्य  नूतन 
तोड़ बंधन ,करें चिंतन 
मन सनातन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 

सीटियाँ

    
जवानी में खूब हमने बजाई थी सीटियाँ,
                     लड़कियों को छेड़ने या फिर  पटाने  वास्ते 
और चौकीदार भी सीटी बजाता रात भर,
                     चौकसी रखने को  और सबको जगाने वास्ते 
स्कूलों के दिनों में ,करने किसी को हूट हम,
                      जीभ उंगली से दबाते ,निकलती थी सीटियाँ 
और पिक्चर हॉल में,हेलन का आता डांस जब ,
                      याद है हमको बहुत थी बजा करती  सीटियाँ 
सनसनाती जब  हवाएं,बजाती है सीटियाँ,
                        करके विसलिंग ,कई आशिक ,बात दिल की सुनाते 
डरते है सुनसान रस्ते पर अकेले लोग जब,
                          पढ़ते है हनुमान चालीसा या सीटी   बजाते 
होठ करके गोल हम सीटी बजा कर बोलते ,
                          यारों 'आल इज वेल'है ,ये सीटियों का खेल है 
चलने से पहले या रस्ता साफ़ करने के लिए,
                            हमने देखा,हमेशा सीटी बजाती रेल है 
बस में कंडक्टर बजाता ,सड़क पर ट्राफिक पुलिस ,
                              ड्रिल कराता 'पी .टी .'टीचर और बजाता सीटियाँ 
और प्रेशर कुकर में जब ,जाते सब्जी ,दाल पक,
                               ध्यान तुम्हारा दिलाने  ,वो बजाता सीटियाँ  
जब किसी को देख कर के,मन में सीटी सी बजे ,
                                तो समझ लो इश्क का है पहला सिग्नल मिल गया 
उस हसीना स्वीटी से ,शादी करी,सीटी बजी ,
                                तो गए तुम काम से और तुम्हारा दिल भी गया 
फाउल हो तो छोटी बजती ,गोल तो लम्बी बजे,
                                 बजाता रहता है सीटी ,रेफरी फूटबाल  में 
इश्क की या चौकसी की,मस्ती की या खुशी की ,
                                  सीटियाँ तो बजती ही रहती ,सदा ,हर हाल में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   
 

रविवार, 19 मई 2013

श्री और संत का खेल

    

फंसा बुकी जाल में हूँ,खिलाड़ी कमाल मै हूँ,
        पिच पे की घिचपिच ,घोटाला  विराट है 
हरे हरे फील्ड पर ,कमाने को हरे नोट ,
       हारने को किये फिक्स ,थोड़े स्पॉट   है 
फेंक कर के नो बाल ,रन दो तो मिले माल,
       एक ही पारी में ऐसे , रन दिए  आठ है 
धन का अनंत खेल ,श्री और संत मेल,
          अंत में मिले है जेल, खोये ठाठबाट  है 

घोटू 

मिर्च मसाले

      

मसाला ,
ये शब्द होता है बड़ा प्यारा 
क्योंकि इसमें आता है साला 
हर एक की अलग अलग खुशबू ,
अलग अलग स्वाद 
जीवन और खाने को बनाते है लाजबाब 
सबका अपना अपना रूप रंग होता है 
जैसे हल्दी पीली और धनिया गोल होता है 
जीरा ,जीर्ण शीर्ण ,राइ गोल नन्ही सी ,
और लोंग  माथे पर ,मुकुट सा पहने सी 
सिर्फ एक मिर्ची है जो कई रंगों वाली है 
हरी,लाल,पीली है और कभी काली है 
मोटी  है ,पतली है, लम्बी है, छोटी है
और गोलमोल कालीमिर्च होती है 
तुंदियल सी शिमलामिर्च  
लाल,हरी और पीली होती है 
और छोटी सी लोंगा मिर्च ,
ज़रा सी खा लो तो मुंह में आग लगा दे,
इतनी चरपरी होती है 
भोजन में चटकारे,सारे के सारे,
मिर्ची से ही आते है 
लोग सी सी कर ,सिसकारियां  भरते है  ,
पर चाव से खाते है 
बिना मिर्ची के,चाट का ठाठ,
एकदम फीका पड़ जाता है 
जितनी झन्नाट  होती है,उतना मज़ा आता है 
आज खालो,तो दुसरे दिन सुबह तक,
अपना असर दिखाती है 
पर खाने की रंगत ,मिर्ची से ही आती  है 
इस जीवन में रंगत और स्वाद ,
साले और बीबी से ही आता है 
लोग भले ही सी सी करते है,पर सुहाता है 
इसीलिये साले ,मसाले की तरह होते है ,
और औरत को मिर्ची भी कहा जाता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 18 मई 2013

जन्मदिवस की बधाई

   

आपका आया जन्मदिन ,आपको कोटिश बधाई 
आपकी इस जिन्दगी में ,रहे सब खुशियाँ समाई 
           कोई चिंता ना सताये   
            खूब मीठी नींद आये 
           आप हरदम मुस्कराये     
          गम नहीं नजदीक आये  
          स्वास्थ्य सुन्दर,भली सेहत 
              आये ना कोई मुसीबत 
               स्वजनों का प्यार पायें
              हमेशा खुशियाँ मनाये 
आपके इस मृदुल मुख पर ,रहे रौनक सदा छाई 
आपका आया जन्मदिन ,आपको कोटिश बधाई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे संभालो

    

दुःख पीड़ा में ,इक दूजे का हाथ बटा लो
मै तुम्हे सम्भालूँ ,तुम मुझे संभालो 
जब भी आती याद जवानी की वो बातें
 दिन मस्ती के होते थे और मादक रातें  
बीत गया वो दौर खुशी का ,हँसते ,गाते 
अब तो बस यादें है जिनसे मन बहलाते 
आपा  धापी में जीवन की ,बस मशीन बन 
चलते ,रुकते ,यूं ही बीत गया सब जीवन 
भूली बिसरी उन यादों को  आओ खंगालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे  संभालो ,,
तुम संग बंधन बाँध ,बंधे दुनियादारी में 
फंसे गृहस्थी के चक्कर,जिम्मेदारी में 
बच्चों का पालन पोषण और बीमारी में 
जीवन बीत गया यूं ही मारामारी में 
उमर काट दी ,यूं ही घुट घुट ,रह कर चिंतित 
पर हम दोनों,इक दूजे पर ,अब अवलंबित 
एक दूसरे को सुख दुःख में,देखो भालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ, तुम मुझे संभालो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

और अभी तक ,मै क्वांरा बैठा हुआ हूँ



मुझको जीवनसाथी के लिए ,
तलाश थी एक एसी लड़की की 
जो दिखने में सुन्दर हो,
और हो पढीलिखी 
मेरी माँ चाहती थी सजातीय हो ,
घर के कामकाज में निपुण हो 
संस्कारी और सर्वगुण संपन्न हो 
और पिताजी चाहते थे ,उसके माँ बाप ,
ढेर सा दहेज़ दे सकें,इतने संपन्न हो 
दादी जी चाहती थी ,जन्मपत्री का सही  मिलान
बत्तीस गुण मिल जाये 
बहू हो ऐसी जो काम करे दिन भर और,
रात को उनके पैर भी दबाये 
कभी कोई मुझे पसंद आती ,
तो वो मुझे कर देती रिजेक्ट 
कभी कोई मुझे पसंद करती ,
तो मै कर देता उसे रिजेक्ट 
कभी कोई लड़की मुझे और मै उसे  ,
कर लेता पसंद 
तो या तो मेरे मम्मी पापा को 
 पसंद नहीं आता ये सम्बन्ध 
या उसके मम्मी पापा ,नहीं होते रजामंद 
लगता है ऐसी सर्वगुण संपन्न लडकियां 
भगवान् ने बनाना करदी बंद 
फिर भी ,अगली दूकान पर शायद ,
सबकी पसंद का सामान मिल जाए 
यही आस मन में समेटा हुआ हूँ 
और अभी तक मै क्वांरा बैठा हुआ हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्रेम की साप्ताहिकी

 

गुरु को शुरू हुआ ,
नज़र मिली पहली बार 
शुक्रवार को डेटिंग ,
शनिवार ,हुआ प्यार 
रविवार ,शादी की ,
सोमवार ,मधुर मिलन 
मंगल को मनमुटाव,
और बुध को 'सेपरेशन'
गुरुवार ,प्रेम गुरु,
ढूंढ रहे नयी फ्रेंड 
प्रेम एक हफ्ते का,
कैसा ये नया ट्रेंड 
घोटू 

तुम रिश्तों को क्या समझोगे ?

 तुम  रिश्तों को को क्या  समझोगे ?

 जब   बासंती ऋतू आती है ,
                         कलियों  की गलियाँ जाते हो
देखा फूल ,आयी जो खुशबू ,
                          गुंजन करते , मंडराते     हो
करके फूलों का  अवगुंठन ,
                           करते  हो रसपान मधुर तुम
डाल डाल पर ,पुष्प पुष्प पर ,
                            इधर  उधर भटका करते तुम
      तुम रस के लोभी भँवरे हो,
        तन भी काला ,मन भी काला
                        तुम रिश्तों को क्या समझोगे ?
जब चुनाव का मौसम आता ,
                           तुम गलियाँ गलियाँ जाते हो
देते आश्वासन और भाषण ,
                            जनता को तुम  बहकाते  हो
करते लम्बे लम्बे वादे ,
                             जो न कभी पूरे  हो पाते
तुमको केवल वोट चाहिये ,
                              जन सेवा की चाह बताके
            तुम सत्ता के लोभी नेता ,
            उजले कपडे पर मन काला
                               तुम रिश्तों को क्या समझोगे ?   
हर मौसम में,हर दिन ,हर पल ,
                                 जोड़ तोड़ कर ,जैसे ,तैसे
तुम पैसे के पीछे  पागल ,
                                  तुम्हे कमाने है बस पैसे
परिवार को किया विस्मरित
                                  कर बूढ़े माँ बाप ,तिरस्कृत
इतनी दौलत ,इतना पैसा ,
                                  किसके  लिये कर  रहे संचित
               फिरते भागे ,मगर अभागे
                मन भी काला ,धन भी काला
                                 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
      
             


गुरुवार, 16 मई 2013

ग्रीष्म

       ग्रीष्म

ये धरती जल रही है
गरम लू  चल रही है
सूर्य भी जोश में है
बड़े आक्रोश में है
गयी तज शीत रानी 
उषा ,ना  हाथ आनी
और है दूर   संध्या
बिचारा करे भी क्या
उसे ये खल रहा है
इसलिए  जल रहा है
धूप  में तुम न जाना
तुम्हारा तन सुहाना
देख सूरज जलेगा
मुंह  काला  करेगा
बचाना धूप से तन
ग्रीष्म का गर्म मौसम
भूख भी है रही घट 
मोटापा भी रहा छट
न सोना बाथ  जाना 
न जिम में तन खपाना
पसीना यूं ही बहता
निखरता रूप रहता
प्राकृतिक ये चिकित्सा
निखारे रूप सबका
ये सोना तप रहा है 
क्षार सब हट रहा है
निखर कर पूर्ण कुंदन
चमकता तुम्हारा तन
लगो तुम बड़ी सुन्दर
बदन करती  उजागर
तुम्हे  सुन्दर बनाती
ग्रीष्म हमको सुहाती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

जीवन चक्र

                जीवन चक्र

बचपन
निश्छल मन
सबका दुलार, अपनापन
जवानी
 बड़ी दीवानी
कभी आग कभी पानी
रूप
अनूप
जवानी की खिली धूप 
चाह
अथाह
प्यार ,फिर विवाह
मस्ती
दिन दस की
और फिर गृहस्थी
बच्चे
लगे अच्छे
पर बढ़ने लगे खर्चे
काम
बिना आराम
घर चलाना नहीं आसान
जीवन
भटकते रहे हम
कभी खशी कभी गम
बुढापा
स्यापा
हानि हुई या मुनाफ़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

सोमवार, 13 मई 2013

राजनीति से घिन आती है



भ्रष्टाचारी,बेईमानी ,
                     देखो जिधर उधर गड़बड़ है 
इस हमाम में सब नंगे है ,
                      सब ही इक दूजे से बढ़   है 
          कोई किस पर करे भरोसा 
           सभी तरफ धोखा  ही धोखा 
पड़े हुए आदश फर्श पर,
                         और सफ़ेद अब रक्त हो गया 
राजनीति से घिन आती है ,
                           ये  मन इतना दग्ध    हो गया 
चोरबाजारी ,घूस,रिश्वते ,
                             घोटाले  और हेरा फेरी 
लूट खसोट कर रहे सब ही ,
                               आधी तेरी,आधी मेरी 
               राजनीति के इस  अड्डे  में
               गिरे पतन के सब गड्डे   में 
बहुत जरूरी ,जैसे तैसे,
                          इन्हें बचाना  तख़्त हो गया 
राजनीती से घिन आती है ,
                            ये मन इतना  दग्ध हो गया 
रोज़ रोज़ हो रहे उजागर ,
                              नए नए सकें ,घोटाले 
सभी कोयले के दलाल है ,
                               हाथ सभी के काले ,काले 
              इक दूजे को लगे बचाने 
              भूल गए आदर्श  पुराने 
सत्ता की लिप्सा के सुख में, 
                              मन इतना अनुरक्त  हो गया 
राजनीति से घिन आती है ,
                              ये मन इतना दग्ध  हो गया  

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
                 
     
               

डाक्टर और इलाज़

             

एक महिला  ,
गयी अपने फेमिली डाक्टर के पास 
और कहने लगी होकर उदास 
डाक्टर साहब,मेरे होठ बहुत सूखते है 
इसका बतलाइए कोई उपचार 
डाक्टर बोल ,इस बिमारी का,
 सबसे अच्छा है प्राकृतिक उपचार 
अपने पति से करवाइए ढेर सारा प्यार 
उनका चुम्बन और प्यार का लुब्रिकेशन ,
आपके होठों को गीला बना देगा 
गुलाबी और रसीला बना देगा 
महिला बोली ,यदि पति से ही,
 करवाना होता इलाज
तो मै क्यों आती आपके पास 
आप किस काम के है ?
क्या डाक्टर नाम के है 
जब ले रहे है फीस आप 
तो आप ही करिए इलाज़ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू  

शनिवार, 11 मई 2013

दूल्हे की हौसला अफजाई

           दूल्हे की हौसला अफजाई

जिन्दगी सारी ही तुझको ,सर झुका के काटनी ,
                             आज तो तू बैठ ले ,घोड़ी पे रह कर के तना
एक दिन तो शेर बन जा,शेरवानी पहन कर ,
                              पूरा जीवन ,गीदड़ों  की तरह ही है काटना
सेहरे से ,तेरा चेहरा ,ढक  रखा है इसलिये ,
                               उडती रंगत ,परेशानी ,कोई पाए भांप ना 
हौसला अफजाई को इतने बाराती साथ है ,
                                 डालने में ,वधूमाला ,हाथ  जाए  काँप  ना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 
 

सोमवार, 6 मई 2013

फुल्लो की फ्रोक

    

कहीं पर पढ़ी थी ,एक छोटी सी कहानी 
एक थी फुल्लो  रानी 
गाँव की छह सात साल की अबोध बालिका 
बचपन में ही हो गयी थी ,उसकी सगाई 
और उसकी माँ ने थी उसको या बात समझाई 
ससुरालवालों के सामने शर्म करते है 
कभी वो सामने आ जाए तो मुंह ढकते है 
एक दिन वो पहन कर के फ्रोक 
खेल रही थी सहेलियों के साथ 
तभी ससुरालवालों को सामने से आता देख ,
फुल्लो ने हड़बड़ी में क्या किया 
अपनी फ्रोक  ऊंची की,और मुंह ढक लिया 
नन्ही मासूम को माँ की बात याद आयी 
लेकिन वो ये समझ न पायी 
मुंह तो ढक लिया पर नीचे से वो नगन है 
आज की राजनीती का भी ये ही चलन है 
जब कोइ किसी  नेता पर,
 भष्टाचार का इल्जाम लगाता है        
तो फुल्लो  की तरह ,फ्रोक से ,
 अपना मुंह ढकने की कोशिश तो  करता है ,
 पर नीचे का नंगापन ,सबको दिख जाता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

किसी की ख़ुशी-किसी का गम

    किसी की ख़ुशी-किसी का गम

नेताजी के घर पोता पैदा हुआ ,
चमचों ने ख़ुशी मनाई
और बांटी मिठाई
पर कुछ देशप्रेमी विद्वजन व्यथित हुए
एक,दो नए स्कीमो का बोझ ,
देश को और झेलना पडेगा ,
इस चिंता में चिंतित हुए
क्योंकि नेताजी ने ,अब तक की,
 पीढ़ियों का इंतजाम तो कर लिया था,
अब एक नयी पीढ़ी और आगई है ,
उसका इंतजाम भी करना पडेगा
और इसका हर्जाना ,
आम आदमी को भरना पडेगा

 घोटू

रविवार, 5 मई 2013

पति का बजन घटाने के नुस्खे

   

देश की सन्नारियों !
अपने पति की प्यारियों 
यदि आपके पति का बजन बढ़ रहा है 
और उन पर मोटापा चढ़ रहा है 
डॉक्टर को दिखाओगे ,मोटी  फीस लेगा 
ढेरों टेस्ट लिख देगा 
गोलियां और इंजेक्शन देगा 
और अंत में ये ही सलाह देगा 
इनके खाने पर पाबंदी लगाइये 
इनका बजन घटाइए 
और वो ही बात मै आपसे अभी कह रहा हूँ 
बजन कम करने के तरीके मुफ्त में बता दे रहा हूँ 
पहला तरीका आप ये अपनाइए 
खराब खाना पकाइये 
कभी नमक कम,कभी मिर्ची ज्यादा 
कभी चपाती टेडी मेडी बेल कर ,थोड़ी जलादों 
कभी दाल कच्ची रखो ,कभी चावल ज्यादा गला दो 
अचार मुरब्बे को डाइनिंग टेबल से दूर रखो ,
और ऐसा कुछ बनाए 
जो पतीजी  को कम भाये ,
और वो कम खाये 
और फिर उनको प्यार से बतलाएं कि ,
पंडितजी ने जन्मपत्री देख कर ,ये बात कही है 
कि आजकल हमारे ग्रह ठीक नहीं है 
शनी वक्री है और राहु का साया है 
निदान के के लिए हम दोनों को ,
शनिवार और मंगलवार का व्रत बतलाया है 
इस तरह धीरे धीरे ,प्यार से पति को पटाइये
कभी शनि का डर दिखा कर,
कभी खराब भोजन बना कर ,
कैसे भी उनका भोजन कम करवाइए 
और बीच बीच में उनकी तारीफ़ करते रहिये 
और बार बार ये कहिये 
आजकल आप थोड़े स्लिम होगए है ,
और स्मार्ट लगने लगे है 
पहले से ज्यादा जवान लगने लगे है 
फिर देखो ये नुस्खा गजब का काम करेगा 
आपके पति के मोटापे पर ,
रामबाण का काम करेगा 
पर अगर वो इस तरह प्यार से न पट पाये 
और आपसे छुप छुप कर होटल में खाएं 
तो दूसरा तरीका है ,उन्हें जलाइये 
अपने किसी पड़ोसी से दोस्ती बढाइये 
अपने पति के आगे,
 उसकी स्मार्टनेस की तारीफ़ करिए  
और पति के मन में थोड़ी इर्ष्या का भाव भरिये 
वो देखो पड़ोसी कितना सुन्दर सजीला है 
कसा कसा बदन जैसे सांचे में ढला है 
आपकी तरह नहीं थुलथुला है 
उनमे अह्सासे कमतरी का भाव जगाइये 
और आप पतिदेवता को थोडा चिढ़ाइये
वो थोड़ा जलेंगे ,थोडा कुढेंगे 
और खुद को फिट रखने की प्रेरणा लेंगे 
क्योंकि चिंता आदमी को जला देती है 
और ये जलन ,बजन घटा देती है 
बीच बीच में पति को प्यार का डोज देती रहिये 
आजकल आप स्मार्ट दीखते है,कहती रहिये 
जब से आप संतुलित पौष्टिक खाना खाने लगे है 
पड़ोसी से भी ज्यादा स्मार्ट नज़र आने लगे है 
बस थोडा सा बजन और कम हो जाए ,
तो मज़ा आ जाए गा 
मुझे यकीन है ,ये नुस्खा आपके जरूर काम आयेगा 
कोई भी नुस्खा अपनाएँ 
मेरी तरफ से आपको शुभ कामनाएं 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
   
   

मामा भांजा

       मामा भांजा
एक पुरानी कहावत के अनुसार
जमाई,भांजा और सुनार
ये कभी अपने नहीं होते ,
आप करके देख लीजिये व्यवहार 
द्वापर युग का था जब ज़माना
प्रसिद्ध हुए थे ,दो भांजे और दो मामा
पहले भांजे श्री कृष्ण और मामा कंस
भांजे ने किया था मामा का अंत
क्योंकि मामा अत्याचारी बड़ा था
उसे मारने भगवान को अवतार लेना पड़ा था 
दूसरे प्रसिद्ध मामा है मामा शकूनी
कुटिलता में उनकी बुद्धि थी दूनी
हित में अपने भांजे के
इतने उलटे फांसे फेंके
कि महाभारत युद्ध करवा दिया
खुद भी मरे और भांजे को भी मरवा दिया
और इस युग में भी रेल मिनिस्टर
मामा श्री पवन बंसल
के साथ ,कहते है भांजे ने किया छल
रेलवे प्रमोशन के नाम पर कर घोटाला
खुद भी फसे ,और मामा को भी फसा डाला
अब असलियत क्या है ,
ये तो मामा भांजे दोनों जानते है
पर इस हमाम में सब नंगे हैं,
हम तो इतना मानते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 4 मई 2013

खबर क्या होती है ?

खबर क्या होती है ?

खबर वो होती है जो सबसे अलग दिखाये
जिसमे कुछ नवीनता नज़र आये
 नेताजी ने कहीं रिबिन काटा
या नेताजी को कुत्ते ने काटा  
ये तो 'रूटीन' समाचार है ,
खबर तब बनती है जब रिबिन काटनेवाले ,
नेताजी कुत्ते को काट खाये
अब जैसे पुलिसवाले,
 रिश्वतखोरी के लिये बदनाम है 
बिना पैसा लिए करते नहीं कुछ काम है
आम आदमी परेशान है
शिकायत या ऍफ़ आई आर दर्ज करने में भी ,
पुलिसवाले रिश्वत लेते है
पर खबर तब बनती है जब,
एक बच्ची पर बलात्कार की शिकायत ,
दर्ज ना करवाने के लिए ,
थानेदार साहब ,लडकी के बाप को ,
दो हज़ार रुपयों की रिश्वत देते है 
नेताओं के अनर्गल प्रलाप ,
तो यूं ही अक्सर सुनते रहते है आप
पर खबर तब बनती है जब ,
सूखे तालाबों को भरने के लिए ,
नेताजी कहते है 'करो पेशाब'
मंत्री और नेताओं के,
 भ्रष्टाचार के किस्से रोज आ रहे है 
और शासनकर्ता ,एक दूसरे को बचा रहे है
एक केन्द्रीय मंत्री ने किसी,
 सामुदायिक विकास के कार्य में ,
लाखों रुपयों की हेराफेरी की ,
जब ये समाचार टी .वी .पर आता है
तो खबर तब बनती है ,
जब दूसरा केन्द्रीय मंत्री  उसे बचाता है 
कहता , है केंद्र का मंत्री और बस लाखों की हेराफेरी ,
यह अविश्वसनीय लगता है 
क्योंकि केंद्र का मंत्री तो ,
करोड़ों की हेराफेरी करता है
ऐसी हास्यप्रद,फूहड़ ख़बरें ,आपको गुदगुदायेगी
मन में पीड़ा भी होगी ,हंसी भी आयेगी
और भाई साहब ,खबर तो तब बनेगी ,
जब ऐसे भ्रष्ट लोगों की चोकड़ी की सरकार ,
फिर से सत्ता में आ जायेगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दास्ताने इश्क

      दास्ताने इश्क

थी बला की खूबसूरत ,वो हसीना ,नाज़नीं ,
                   देख कर के जिसको हम पे छा गयी दीवानगी
शोख थी,चंचल वो जालिम,कातिलाना थी अदा ,
                   छायी जिस की छवि दिल पर ,रहती सुबहो-शाम थी 
इश्क था चढ़ती उमर का,सर पे चढ़ कर बोलता ,
                   त़ा उमर रटते रहे हम ,माला जिसके   नाम की
उसने नज़रे इनायत की,जब बुढ़ापा आ गया ,
                    सूख जब फसलें गयी तो बारिशें किस काम की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 2 मई 2013

छोटी इलायची -बड़ी इलायची

 

एक बड़ी नाजुक सी,एक बड़ी  फूहड़ सी 
एक बाल बिखराये ,और एक सुगढ़  सी 
एक हरी भरी सुन्दर ,नन्ही सी ,प्यारी सी 
एक बड़ी मोटी और बेडोल ,काली   सी 
एक रम्य ,रम्भा सी ,एक राक्षस वर्णी 
खुशबूए दोनों की ,मगर एक ही  धर्मी 
भोजन ,मिष्ठानो में ,वही स्वाद लाती है 
बार बार हमको ये,लेकिन सिखलाती है 
रूप रंग भ्रामक है ,सिर्फ शकल मत देखो 
सही परख आवश्यक ,अन्दर के गुण देखो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

मै कोई राम नहीं हूँ

    

मै इस देश की बड़ी हस्ती 
भले ही इस पोजिशन पर ,
बैठाया गया था जबरजस्ती 
पर अब इस  ओहदे की पड़  गयी है आदत 
और देश में जब भी कोई घोटाला होता है ,
तो विरोधी दल सब 
मुझको उसमे इन्वोल्व करते है 
और मेरे इस्तीफे की मांग करते है 
भैया,न तो ये रामराज्य है ,न मै राम हूँ 
जो  धोबी के कहने पर ,
अपनी पत्नी को घर से निकाल दूं 
और उमर भर करता रहूँ पश्चाताप 
क्या ये अच्छी बात है ,बतलाइये आप 
मै तो मनमोहन श्री कृष्ण हूँ,
महाभारत करवाउंगा 
कौरव और पांडवों को लडवाऊँगा
और खुद चुपचाप सारथी  बना , 
अर्जुन का रथ चलाऊंगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 1 मई 2013

टी की वेरायटी

          टी की वेरायटी

चाय की होती है अलग अलग वेरायटी
जैसे आसाम की टी
गोल गोल बारीक दाने ,जब लेते है उबाल 
तो चाय बनती है कड़क और रंगत दार
और दार्जिलिग टी की
होती है बड़ी नाजुक,लम्बी ,छारहरी  पत्ती
उबलते पानी को जरा देर ही छूती
आ जाती है हलकी सी रंगत ,पर खुशबू अनूठी
और फिर ग्रीन चाय ,न फ्लेवर ,न रंगत
मगर एन्टी ओक्सिडेंट से भरी है,
देती है अच्छी सेहत
कहने को तो सब चाय होती है
पर सब का स्वाद,रंगत और तासीर ,
अलग अलग होती है
और जिसको ,जिसकी आदत पड़ जाती है
वो ही उसके मन भाती  है
बीबियाँ भी  होती है,चाय की तरह,
कोई कड़क,कोई रंगीली
कोई छरहरी ,खुशबू से भरी
कोई बेरंग,पर गुणों की खान
आपको कौनसी वाली पसंद है श्रीमान ?
पीछे से किसी की आवाज आई,
भैया ,हमको तो बुरके  वाली है पसंद
'टी बेग 'लेते है और गरम पानी में ,
डुबा डुबा कर लेते है स्वाद का आनंद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

सुरक्षा

                सुरक्षा 
आपने पढ़ा क्या आज का अखबार
कुछ दरिंदों ने ,एक पांच वर्ष की ,
अबोध बालिका के साथ,किया बलात्कार
हाँ,हाँ,पढ़ा तो है ,पर ये खबर पुरानी लगती है
आजकल तो  रोज अखबारों में ,
ऐसी  खबर छपती है
चलती बस या सड़कों पर दौड़ती कार
महिलाएं हो रही है बलात्कार की शिकार
और सत्ताधारी,जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए है
अपनी कुर्सी बचाने में जुटे हुए है
कहते है हम कर रहे है घटना की छानबीन
और इस दरमियान फिर  हो जाती है,
ऐसी ही घटनाएं दो तीन
ऐसी दरिंदगी के समाचारों से ,
हमारा तो कलेजा हिल जाता है
और टी .वी .चेनलो को दो दिन का मसाला,
और विपक्ष को सरकार को घेरने का ,
मुद्दा मिल जाता है 
सब अपनी अपनी राजनेतिक रोटियां सेकते है
और हम मूक दर्शक से देखते है 
अब तो इस माहोल से घृणा होने लगी है
इंसानियत चिन्दा चिन्दा होने लगी है
देश की महिलायें भले ही हो कितनी ही असुरक्षित 
उन्हें  इसकी कोई परवाह नहीं ,
चिंता  तो ये है कि उनकी कुर्सी रहे सुरक्षित

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

अब बुढ़ापा आ गया है

        अब बुढ़ापा आ गया है

फुदकती थी,चहकती थी ,गौरैया सी जो जवानी ,
                       आजकल वो धीरे धीरे ,लुप्त सी  होने लगी है
प्रभाकर से, प्रखर होकर,चमकते थे ,तेजमय थे ,
                        आई संध्या ,इस तरह से ,चमक अब खोने लगी है
'पियू '  पियू'कह मचलता था पपीहा देख पावस ,
                          इस तरह हो गया बेबस ,उड़ भी अब पाता नहीं है
भ्रमर मन,रस का पिपासु ,इस तरह बन गया साधु ,
                           देखता खिलती कली  को,मगर मंडराता  नहीं है
इस तरह हालात क्यों है ,शिथिल सा ये गात क्यों है ,
                            चाहता मन ,कर न पाता ,हुई इसी बात क्या है
देख कर यह परिवर्तन,बड़ा ही बेचैन  था मन,
                             समय ने हँस कर बताया ,अब बुढ़ापा आ गया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

निद्रा के पंचांग

                 निद्रा के पंचांग
                            १
                         तन्द्रा
     एक तरफ दिल ये कहता है,सोना बहुत जरूरी
     लेकिन एक तरफ होती है ,जगने की मजबूरी
     जागे भी हम,ऊंघें भी हम,झपकी भी है आती
     ऐसी हालत जब होती है ,तन्द्रा है कहलाती
                              २
                          करवट  
       कभी सोचते है ,इधर आयेगी   वो 
        कभी सोचते है ,उधर   आयेगी  वो
        इधर ढूंढते है,उधर  ढूंढते  है
         हम नींद को हर तरफ ढूंढते है
        इन्ही उलझनों में पड़े जब भटकना
       इसको ही कहते है ,करवट बदलना
                               ३ 
                          खर्राटे
        मन में जो भी  दबी हुई , रहती  है  बातें
        कुछ मजबूरी वश जिनको हम कह ना पाते 
        जल्दी जल्दी  बाहर निकले ,जब सो जाते
         समझ में नहीं आते ,बन  जाते है खर्राटे
                               ४
                         सपने
         मन के अन्दर  की दबी हुई भावनायें
        या किस्से ,अनसुने ,अनकहे ,अनचाहे
         छिपा हुआ डर  और अनसुलझी समस्यायें
        अधूरे अरमान  ,सब,सपने बन कर आये
                               ५
                         नींद
          न इधर की खबर है
          न उधर की खबर है
          पड़ी शांत    काया ,
          बड़ी  बेखबर    है
          दबी बंद आँखों में ,
          सपने है रहते 
           रहे शांत तन मन ,
           उसे  नींद  कहते

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
           


रविवार, 28 अप्रैल 2013

मिठाई और घी -खूब खा और खुश होकर जी

        मिठाई और घी -खूब खा और खुश होकर  जी

हमारे डाक्टर साहब ने हमें चेक किया ,
और सलाह दी
खाना बंद करो मख्खन,शक्कर और घी
और मिठाइयाँ ,जैसे गुलाबजामुन और जलेबी
वर्ना हो जायेगी 'ओबेसिटी'
बदन हो जाएगा भारी
और लग जायेगी 'डाइबिटीज 'की बिमारी
हमने कहा'डाक्टर साहब ,
हमें बतलाइये एक बात
हमारे श्री कृष्ण भगवन
बचपन से ही खूब खाते थे ,
दूध,दही,मिश्री और मख्खन
तभी इतनी ताकत आई थी कि ,
उंगली पर उठालिया था गोवर्धन
और किया था कंस का हनन
इतनी गोपियों के संग रचाते थे रास
आठ पटरानियो के ह्रदय में करते थे वास
सोलह हज़ार रानियों के थे पति
अच्छे खासे 'स्लिम' थे,
उन्हें तो कोई बिमारी नहीं लगी
हमारे  गणेशजी भगवान,गजानन कहलाते
जम  कर के खूब मिठाई है  खाते
लड्डू और मोदक का भोग है लगाते
और हर कार्य में पहले है पूजे जाते
तो मख्खन मिश्री खानेवाले कृष्ण भगवान कहाते है
और मोदक प्रेमी गजानन ,अग्र देव बन पूजे जाते है
ये सब मख्खन और मिठाई की महिमा है
और हमें आप कहते है ,ये खाना मना है
हमारा मन तो ये कहता है ,
मख्खन,मिठाई और घी
जी भर के खा ,और खुश होकर जी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जिन्दगी

            जिन्दगी

बड़ा सीधा जिंदगी का फलसफा है
वही मिलता ,जो कि किस्मत में लिखा है 
होना है जो भी वो हो कर के रहेगा,
सभी बातें ,पहले से ही तयशुदा है 
जो तुम्हारा है तो तुमको ही मिलेगा ,
नाम उस पर अगर तुम्हारा गुदा है
एक ही माँ बाप की संतान है पर,
किस्मतें हर एक की होती जुदा है
बुरा मत सोचे किसीका ,खुद गिरोगे ,
तुम्हारे भी सामने ,गड्डा खुदा है
अपना अपना लेखा  सब ही भोगते है,
कोई खुश है और कोई गमजदा है
करम कर,उस पर नतीजा छोड़ दे तू,
भाग्य में जो है,वही देता खुदा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तरक्की

       तरक्की

भीड़ जबसे ये उमड़ने लग गयी है
सड़क की चोडाई बड़ने लग गयी है
इस तरह इमारतों के उगे  जंगल,
गाँव की सूरत बदलने  लग गयी है 
मुश्किलों से साइकिल आती नज़र थी ,
कई कारें वहां चलने   लग गयी है
जलते थे मिटटी के चूल्हे जिन घरों में ,
अब वहां पर गेस  जलने लग गयी है
तेल के दिये  नहीं अब टिमटिमाते,
ट्यूब लाइट अब चमकने लग गयी है
कभी उपले थापती आती नज़र थी ,
बेटियाँ ,स्कूल पढने लग गयी है
नमस्ते अब हाई ,हल्लो ,हो गया है ,
चिठ्ठियाँ ,ई मेल बनने लग गयी है
 तरक्की ने इस तरह है  पग पसारे ,
सभी की हालत सँवरने  लग गयी है
'घोटू'लेकिन  भाईचारा हो गया गुम ,
बात बस ये मन में खलने लग गयी है
घोटू 

काश !

         काश !
नीम के पेड़ो  पर ,आम जो लग जाये
या कौवे के तन पर,मोर पंख उग आये
सारी स्विस की बेंकें ,हो जायेगी  खाली,
नेताओं के मन में ,ईमान जो जग जाये
घोटू

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

बारह की बारहखड़ी

        बारह की बारहखड़ी

गणित में गिनती का एक सरल नियम है ,
कि एक के बाद ,दो आता है
मगर जब एक ,दो के साथ आता है ,
तो बारह बन जाता है
और बारह का अंक ,
बड़ा महत्वपूर्ण अंग है मानव जीवन का
क्योंकि यह प्रतीक है परिवर्तन का
बारह बरस की उम्र के बाद ,
लड़का हो या लड़की ,
सब में परिवर्तन आने लगता है
किशोर मन ,यौवन की पगडण्डी पर ,
आगे की तरफ ,बढ़ जाने लगता है
विश्व के हर केलेंडर में ,
बारह महीने ही होते है और,
बारह महीनो बाद ,वर्ष बदल जाता है
नया साल आता है
और घडी भी ,सिर्फ,
बारह बजे तक ही समय दिखाती है
और उसके बाद फिर एक बजता है,
और नए समय की गति चल जाती है
इस ब्रह्माण्ड में भी ,बारह राशियाँ होती है ,
जो जीवन के चक्र को चलाती है
और जब ग्रह  ठीक होते है,
किस्मत बदल जाती है
म्रत्यु के उपरान्त ,
  बारहवें के   बाद ,
परिवार ,जाने वाले को भूल जाता है
और फिर से नया सिलसिला ,
आरम्भ  हो जाता है
जब जब भी पृथ्वी पर ,पाप बढ़ा है
और भगवान को अवतार लेना पड़ा है
तो उन्होंने भी बारह के अंक पर ध्यान दिया है
श्री राम ने दिन के बारह बजे  और
श्री कृष्ण ने रात के बारह बजे अवतार लिया है
और दुष्टों का नाश किया है
परिवर्तन लाकर ,शांति का प्रकाश दिया है
इसलिए मेरी समझ में यह आता है
की बारह के बाद,हमेशा परिवर्तन आता है
बारह की बारहखड़ी ,
जिसने भी  पढ़ी है
उसके हमेशा पौबारह हुए है ,
और तकदीर ऊपर चढ़ी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



बुढापे के हालात

बुढापे के हालात

आप को अब क्या बताएं,क्या कहे ,
                                उम्र के इस दौर के हालात क्या है
जिन्दगी के सिर्फ बीते छह दशक है ,
                                लोग कहते है बुढापा  आ गया   है
अनुभव और निपुणता से भर गए जब ,
                                 'इम्प्लोयर ' ने 'रिटायर' कर दिया है
बच्चे भी तो ज्यादा कुछ सुनते नहीं है ,
                                   सोचते है बुड्ढा अब  सठिया गया है
बुढ़ापे की उम्र ऐसी आई है ये ,
                                      बड़े उलटे  अनुभव  होने लगे  है
नींद यूं तो आजकल कम  आ रही है ,
                                      हाथ,पाँव मगर अब सोने लगे है 
आजकल सिहरन बदन में नहीं होती ,
                                         झुनझुनी पर पाँव में आने लगी है
हुस्न क्या देखें किसी का ,खुद की ही अब ,
                                          आईने में शकल धुंधलाने  लगी है
यूं तो सब कडवे अनुभव हो रहे है,
                                            खून में मिठास पर बढ़ने  लगा है
काम का प्रेशर तो सारा  घट गया है,
                                            मगर 'ब्लड प्रेशर' बहुत बढ़ने लगा है
शान से सर पर सजे थे बाल काले ,
                                            उनकी रंगत में सफेदी  आ गयी  है
हसीनाएं कहती है अंकल या बाबा ,
                                           ऐसी  हालत  अब हमें  तडफा गयी है
मन तो करता है बहुत कुछ करें लेकिन,
                                           आजकल कुछ भी तो कर पाते नहीं है
भूख भी कम हो गयी ,पाबंदियां है,
                                           मिठाई ,पकवान कुछ    खाते  नहीं है
तरक्की की सीढियां तो चढ़ गए पर ,
                                            सीढियां  चढ़ने में दिक्कत आ रही है
मेहनत  अब हमसे हो पाती नहीं है ,
                                               जरा चल लो,सांस फूली जा रही है
देख कर बेदर्दियाँ इस जमाने की ,
                                             दर्द सा अब सीने में उठने  लगा है
अपने ही अब बेरुखी दिखला रहे है,
                                               इसलिए दिल आजकल घुटने लगा है
बांसुरी अब बेसुरी सी हो गयी है ,
                                            जिधर देखो उधर ही अब समस्या   है
आप को अब क्या बताएं,क्या कहें,
                                             उम्र के इस दौर के   हालात क्या है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
                                              

                                  

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