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शनिवार, 20 जुलाई 2024

बच्चे तो रौनक है घर की 


जीवन में खुशियां लाने को अनमोल भेंट ये ईश्वर की 

बच्चे तो रौनक है घर की 


नन्हे मुन्ने ,भोले भाले ,मासूम बहुत ,निश्चल निर्मल 

पहले चलते घुटने घुटने फिर चलते उंगली पकड़ पकड़ 

पल में रोना पल में हंसना ,पल में दुध्दू पल में सुस्सु 

है चेहरे पर मुस्कान कभी तो गालों पर बहते आंसू 

गोदी में आना ,सो जाना पलकों पर निंदिया पल भर की

बच्चे तो रौनक है घर की 


उनके छोटे-मोटे झगड़े ,हर रोज लगे ही रहते हैं 

मम्मी से शिकायत करते पर,

पापा से डर कर रहते हैं 

हरदम ही लगी रहा करती 

इनकी कुछ ना कुछ फरमाइश 

ये ढेरों खिलौने पा जाए ,हरदम रहती 

 इनकी ख्वाहिश 

दिनभर करते ही रहते हैं , ये शैतानी दुनिया भर की

बच्चे तो है रौनक घर की 


बच्चे जब होते हैं घर में तो चहल पहल सी रहती है 

सन्नाटा नहीं काटता है ,घर में हलचल सी रहती है 

ये बाल स्वरूप कन्हैया है ,नटखट इनकी लीलाएं हैं 

तुम्हारे जीवन में हरदम खुशियां बरसाने आए हैं 

इन पर न्योछावर कर दो तुम

 ममता अपने जीवन भर की 

बच्चे तो रौनक है घर की


मदन मोहन बाहेती घोटू

झुर्रियां


झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 

छा गई पूरे तन पर हैं अब झुर्रियां 


मेरा कोमल बदन जो था मांसल कभी 

हर जगह अब तो चमड़ी सिकड़ने लगी

अंग तन के गए पड़ है ढीले सभी 

हाथ में झुर्रियां,पांव में झुर्रियां 

झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 


जोश था जो जवानी का सब खुट गया

ऐसा आया बुढ़ापा कि मैं लुट गया 

गाल थे जो गुलाबी, भरी झुर्रियां 

आइना भी उड़ाता है अब खिल्लियां

झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 


उम्र ऐसी बड़ी बेवफा हो गई 

सारे चेहरे की रौनक दफा हो गई 

जब कहती है बाबा हमें सुंदरिया 

तो चलती है दिल पर कई छुर्रियां 

झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां झुर्रियां 

छा गई पूरे तन पर अब झुर्रियां 


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 1 जुलाई 2024

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स्वजनों से 


मेरे  सारे रिश्तेदारों 

प्यारे संगी साथी यारों 

मैं अब अस्सी पार हो रहा 

व्यथित और बीमार हो रहा 

गिरती ही जाती सेहत है 

चलने फिरने में दिक्कत है

 बीमारी तन तोड़ रही है 

याददाश्त संग छोड़ रही है

मैं और मेरी पत्नी साथी 

हर सुख दुख में साथ निभाती 

लेकिन वह भी तो वृद्धा है 

पर उसकी मुझ में श्रद्धा है 

जैसे तैसे कष्ट सहन कर 

मेरी सेवा करती दिनभर

 बेटी बेटे दूर बसे हैं 

अपने झंझट में उलझे हैं 

बना रखी है सब ने दूरी 

अपनी अपनी है मजबूरी 

भले शिथिल हो गए अंग है 

लेकिन जीने की उमंग है 

भले साथ ना देती काया 

पर न छूटती मोह और माया 

हटता नहीं मोह का बंधन 

सबसे मिलने को करता मन 

आना जाना मुश्किल है अब 

व्यस्त काम में रहते  है सब 

लेकिन मेरी यही अपेक्षा 

वृद्धो की मत करो उपेक्षा 

भूले भटके जब भी हो मन 

दिया करो हमको निज दर्शन 

तुम्हें देख मन होगा हलका 

दो आंसू हम लेंगे छलका 

शिकवे गिले दूर हूं सारे 

सुन दो मीठे बोल तुम्हारे 

तुमको छू महसूस कर सकूं 

तुम्हें निहारूं और ना थकू 

थोड़ा समय निकालो प्यारो 

मेरे सारे रिश्तेदारों 


मदन मोहन बाहेती घोटू

होली का त्यौहार 


आओ आओ मनाए सब यार 

 प्यार से होली का त्यौहार 

रंगों के संग खुशियां बरसे 

उड़े अबीर गुलाल 

मनाए होली का त्यौहार 


यह प्यारा त्योंहार रंगीला 

हर कोई है नीला पीला 

धूम मच रही है बस्ती में 

झूम रहे हैं सब मस्ती में 

आपस में कोई भेद नहीं है 

जीवन का आनंद यही है

 ले पिचकारी सभी कर रहे 

रंगों की बौछार 

मनाएं होली का त्यौहार


रात होलिका दहन किया था 

बैर भाव को फूंक दिया था 

प्रभु नाम का जीता था जप

हार गया था हिरनाकश्यप

जीत गया प्रहलाद भक्त था

प्रभु भक्ति में अनुरक्त था

लिया प्रभु ने उसके खातिर

नरसिंह का अवतार 

मनाएं होली का त्योंहार 


मदन मोहन बाहेती घोटू

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