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रविवार, 23 जून 2024

भुनना 


 मैंने देखा है दुनिया में ,

कि औरों की प्रगति देखकर 

मन में लगती आग ,जलन से ,

जलते भुनते लोग अधिकतर 


लेकिन ऐसे जलना भुनना,

कोई बात नहीं है अच्छी 

पर कुछ चीज़ें ऐसी होती 

जो भुनने पर लगती अच्छी 


भुनता जब मक्की का दाना 

तो वह पॉपकॉर्न बन जाता 

उसकी सख्ती मिट जाती है 

वह स्वादिष्ट नरम हो जाता 


भुन जाती है अगर मूंगफली 

वह चिनिया बादाम हो जाती 

खो देती तैलीय स्वाद है ,

वह खस्ता लजीज हो जाती 


पर जब  अन्न का दाना भुनता 

तो वह बीज नहीं रह जाता 

काम आता है एक बार ही

काम नहीं दोबारा आता 


इसीलिए अन्न के दाने से 

अगर भुने तो पछताओगे 

स्वादिष्ट बनोगे एक बार 

पर फिर न कभी उग पाओगे 


निज  ऊर्जा शक्ति खो दोगे 

यदि गलत राह को चुनते हो

तुम कभी पनप पाओगे 

यदि ज्यादा जलते भुनते हो


भुनना है भुनो रुपये से 

जो को भुन देता सिक्के चिल्लर 

लेकिन उसकी कृय शक्ति में 

आता नहीं जरा भी अंतर


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 19 जून 2024

कन्हैया बचपन में 


तू तो बड़ा ही था शैतान,

 कन्हैया बचपन में 

करे सबको था परेशान, 

बिरज की गलियन में 


कभी किसी की हंडिया तोड़ी ,

कभी किसी की छींका तोड़ा 

माखन खाया मुंह लिपटा कर 

गोप सखा में बांटा थोड़ा 

करती थी जब गोपी शिकायत 

छुप जाता था आंगन में

 तू तो बड़ा ही था शैतान 

कन्हैया बचपन में 


बाल सखा संग धेनु चराता 

बैठ कदंब पर मुरली बजाता 

जमुना में जब नहाती गोपिया 

उन सबके तू वस्त्र चुराता 

करता था सबको परेशान 

कन्हैया बचपन में 

तू तो बड़ा ही था शैतान

 कन्हैया बचपन में 


भोली राधा बरसाने की 

हुई दीवानी मुरली धुन की 

ऐसी जोड़ी बनी तुम्हारी 

आज पूजती दुनिया सारी 

तेरी लीला बड़ी महान,

कन्हैया बचपन में 

तू तो बड़ा ही था शैतान 

कन्हैया बचपन में


मदन मोहन बाहेती घोटू

कोरा कागज 


मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था 


पहले दौर में इस पर लिखा गया अआ इ ई 

उसके बाद आई अंग्रेजी की एबीसीडी फिर मछली जल की है रानी

और हंप्टी डंप्टी की कहानी 

फिर प्लस माइनस गुणा और भाग 

ज्ञान ,विज्ञान,साहित्य और इतिहास 

बस एक डिग्री पाना ही मेरा लक्ष्य था 

जब मैं जन्मा था बस एक कोरा कागज था 


इसके बाद जवानी का उन्माद आया 

मन में किसी के प्यार का नशा छाया 

दिल की भावनाएं उस कोरे कागज पर

उभरने लगी प्रेम पत्र बनकर 

वह भी क्या गजब की उम्र आई थी 

किसी के प्रति इतनी दीवानगी छाई थी

वह जवानी वाला दौर भी गजब था 

मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था 


फिर शादी हुई और गृहस्थी का फेरा 

घर चलाने की चिंता ने था घेरा 

नौकरी और बिजनेस में व्यस्त रहकर लिखता रहा बस हिसाब कोरे कागज पर 

धीरे-धीरे वक्त के संग संग 

काला होता गया मेरा सफ़ेद  रंग 

जैसे काले बालों का रंग सफेद झक था 

मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था 


उम्र के साथ जब बुढ़ापे ने पकड़ा 

धीरे-धीरे कई बीमारी में जकड़ा 

अंग पड़े ढीले, बिगड़ने लगी सेहत 

पहले जैसी रही ना हमारी अहमियत 

मुड़े तुड़े कागज की हालत हो गई दयनीय बस इतनी जगह खाली थी जिस पर लिखा जाना था स्वर्गीय 

नियति ने लिखा हुआ पहले ही सब था 

मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था


मदन मोहन बाहेती घोटू

पिताजी आप धन्य है 
न तुमसा कोई अन्य है 

जब से मैंने आंखें खोली 
मिला आपका प्यार 
चिपक आपके कंधे पाया 
था आनंद अपार 
कदम कदम चलना सिखलाया 
मुझको संभल संभल कर 
कभी उछाला और संभाला,
दूर किया मेरा डर 
तुमने अक्षर ज्ञान कराया, 
गिनती, लिखना ,पढ़ना 
कैसे लड़ना बाधाओं से ,
कैसे आगे बढ़ना 
मुसीबत ने जब भी घेरा ,
बने सहारा मेरा 
ज्ञान दीप बन किया उजाला, 
जब भी छाया अंधेरा
ऊंची नीची परिस्थितियों में ,
कभी नहीं घबराना 
विचलित होना नहीं ,सदा ही
 हंसना और मुस्काना 
जीवन सीधा और सरल हो ,
रहन-सहन हो सादा  
सदा सात्विक भोजन करना 
उम्र मिलेगी ज्यादा 
करना नहीं घमंड कभी भी 
गुस्सा कभी न करना 
जितना भी हो सके हमेशा
प्रभु का नाम सुमरना 
चले आपके पदचिन्हों पर
आज सुखी हम सारे
ढेरों आशीर्वाद मिले हैं 
छूकर चरण तुम्हारे

कमाया बहुत पुण्य है 
पिताजी आप धन्य है

मदन मोहन बाहेती घोटू

चोंचलो के दिन गए 


अब हमारे चोंचलों के दिन गए 


मांग को तेरी सजाने को सुहाने 

आसमान से चांद तारे तोड़ लाने 

के दीवाने हौसलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए 


कभी तुम पर जान करने को निछावर 

हमेशा ही हम रहा करते थे तत्पर 

पंख लगा कर उड़ें,छूले आसमां को,

उड़ानों के उन पलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए 


जवानी के दिनों की वो मधुर बातें 

याद आती, मन को समझा नहीं पाते 

उमर ने पर काट डाले हैं हमारे ,

जवानी के जलजलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए 


अब तो यादों के सहारे जी रहे हैं 

दुखी मन हैऔर आंसू पी रहे हैं 

जैसे तैसे गुजरती हैं जिंदगानी 

मस्ती वाले उन पलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए


मदन मोहन बाहेती घोटू

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