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बुधवार, 15 मार्च 2023

कभी कभार 

रोज-रोज की बात न करता, कहता कभी कभार 
बरसा दिया करो हम पर भी ,तुम थोड़ा सा प्यार

 प्यासी आंखें निरखा करती ,तेरा रूप अनूप 
 हम पर भी तो पड़ जाने दो गरम रूप की धूप 
 हो जाएंगे शांत हृदय के ,दबे हुए तूफान 
 जन्म जन्म तक ना भूलूंगा, तुम्हारा एहसान
 मादक मदिरा के यौवन की यदि छलका दो जाम
 सारा जीवन ,न्योछावर कर दूंगा तेरे नाम 
 रहे उम्र भर ,कभी ना उतरे ,ऐसा चढ़े खुमार रोज-रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार
 बरसा दिया करो हम पर भी, तुम थोड़ा सा प्यार
 
घड़ी दो घड़ी बैठ पास में सुन लो दिल की बात 
अपने कोमल हाथों से सहला दो मेरे हाथ 
ना मांगू चुंबन आलिंगन, ना मांगू अभिसार
मुझे देख तिरछी चितवन से मुस्कुरा दो एक बार 
 तुम्हारा कुछ नहीं जाएगा करके यह उपकार लेकिन मुझको मिल जाएगा खुशियों का संसार 
मुझे पता है तुम जवान, मैं जाती हुई बहार 
 रोज रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार 
बरसा दिया करो हम पर भी बस थोड़ा सा प्यार

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बीत गया फिर एक बरस 

लो बीत गया फिर एक बरस 
कुछ दिन चिंताओं में बीते,
कुछ दिन खुशियों के हंस हंस हंस 
लो बीत गया फिर एक बरस 

हर रोज सवेरे दिन निकला,
 हर रोज ढला दिन ,शाम हुई 
 कोई दिन मस्ती मौज रही 
 तो मुश्किल कभी तमाम हुई 
 सुख दुख ,दुख सुख का चक्र चला,
 जैसा नीयति ने लिखा लेख 
 जो भी घटना था घटित हुआ,
 हम मौन भुगतते रहे ,देख 
 जो होनी थी वह रही होती 
 कुछ कर न सके ,हम थे बेबस
 लो बीत गया फिर एक बरस 
 
 रितुये बदली ,गर्मी ,सर्दी ,
 आई बसंत ,बादल बरसे 
 जीना पड़ता है हर एक को 
 मौसम के मुताबिक ढल करके 
 परिवर्तन ही तो जीवन है,
 दिन कभी एक से ना रहते 
 हैं विपदा तो आनंद कभी 
 जीवन कटता सुख दुख सहते 
 आने वाले वर्षों में भी,
  यह चक्र चलेगा जस का तस 
  लो बीत गया फिर एक बरस 
  
ऐसे बीता, वैसे बीता,
या जैसे तैसे बीत गया 
उम्मीद लगाए बैठे हैं,
 खुशियां लाएगा वर्ष नया 
 पिछले वर्षों के अनुभव से 
 हमने जो शिक्षा पाई है 
 वह गलती ना दोहराएंगे 
 यह हमने कसमें खाई है 
 कोशिश होगी आने वाला
 हर दिन हो सुखद, हर रात सरस 
 लो बीत गया फिर एक बरस

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बदलाव 

जीवन बड़ा हसीन ना रहा ,जो पहले था
 मन उतना रंगीन ना रहा ,जो पहले था 
 
अब लगाव कम हुआ, विरक्ति भाव आ गया
ईश्वर के प्रति थोड़ा भक्ति भाव आ गया 
मोह माया से धीरे-धीरे उचट रहा मन 
कहीं न टिकता, इधर उधर ही भटक रहा मन 
खुद पर कोई यकीन ना रहा ,जो पहले था 
मन उतना रंगीन ना रहा,जो पहले था 

कुछ करने को पहले जैसा जोश नहीं है 
जो होता है, हो जाता है, होश नहीं है 
धीरे-धीरे समय हाथ से फिसल रहा है 
जीने के प्रति सोच, नजरिया बदल रहा है 
जीवन अब शौकीन ना रहा ,जो पहले था 
मन उतना रंगीन ना रहा,जो पहले था

मदन मोहन बाहेती घोटू 
झुक गया इंसान

जमाने भर के बोझे ने,कमर मेरी झुका दी है ,
और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा 
दुखी है मन मेरा कहता ,सताया और जो मुझको,
 तुम्हारा चैन,सुख खुशियां ,सभी कुछ लूट जाऊंगा

 झुकी नजर तुम्हारी थी, तुम्हारा रूप मस्ताना झुका था में तुम्हारी आशिकी में होकर दीवाना 
तुम्हें पाने की हसरत में किए समझोते झुक झुक कर 
न था मालूम जीवन भर ,पड़ेगा झुक के पछताना 
मेरी दीवानगी का फायदा तुम भी ले रही इतना 
सब्र का बांध कहता है, बस करो ,टूट जाऊगा
जमाने भर के बोझे ने , कमर मेरी झुका दी है,
और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा

 मेरे दाएं, मेरे बाएं ,मुसीबत ढेर सारी है 
 परेशां मन कभी रहता, कभी कोई बीमारी है  सुकूं से जी नहीं पाता, कभी भी एक पल दो पल
 तुम्हारी जी हजूरी में ,बिता दी उम्र सारी है बहुत गुबार,गुब्बारे में, दिल के हैं शिकायत का,
 हवा इसमें भरो मत तुम, नहीं तो फूट जाऊंगा
 जमाने भर के बोझे ने कमर मेरी झुका दी है ,
 और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
गलतफहमी 

तुम आए और रुके
मेरे पैरों की तरफ झुके
मैं मूरख व्यर्थ ही रहा था गदगद 
तुम झुके हो मेरे प्रति होकर श्रद्धानत 
और छूना चाहते हो मेरे पाद
चरण स्पर्श कर मांगने आए हो आशीर्वाद 
पर तुम्हारे झुकने में नहीं कोई श्रद्धा का भाव था
  यह तो तुम्हारा नया पैंतरा था, दाव था 
 तुम तो झुके थे खींचने के लिए मेरी टांग 
 या चीते की तरह झपट कर लगाने को छलांग 
तुम्हारा धनुष सा झुकना तीर चलाने के लिए था 
या चोरों सा मेरे घर में सेंध लगाने के लिए था तुम झुके थे सर्प की तरह दंश मारने
 या फिर कुल्हाड़ी की तरह मुझे काटने 
और मैं यूं ही हो गया था गलतफहमी का शिकार 
क्योंकि मुश्किल है बदलना तुम्हारा व्यवहार बिच्छू डंक नहीं मारेगा, यह सोचना है नादानी 
और हमेशा खारा ही रहता है समंदर का पानी तुम भले ही लाख धोलो गंगाजल से 
पर सफेदी की उम्मीद मत करना काजल से

मदन मोहन बाहेती घोटू

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