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सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

उड़ परिंदे उड़

उड़ परिंदे उड़ 
रोज होने वाली जीवन की
गतिविधियों से जुड़
उड़ परिंदे उड़ 

देख है कितना दिन चढ़ा
सोच रहा क्या पड़ा पड़ा 
 पंख तू अपने फड़फड़ा 
 कदम लक्ष्य की और बढ़ा
  अपना आलस झाड़ कर 
  दाना पानी जुगाड़ कर 
  जीने को ये करना पड़ता 
 और पेट है भरना पड़ता 
  कोई मदद को ना आएगा 
  तू भूखा ही मर जाएगा 
  इसलिए ऊंची उड़ान भर,
  तू पीछे मत मुड़
  उड़ परिंदे उड़

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 3 अक्टूबर 2021

तुम इज्जत करो बुजुर्गों की

कुछ खाने से परहेज नहीं ,कुछ पीने से परहेज नहीं उल्टी-सीधी हरकत करने से भी है कोई गुरेज नहीं करती परहेज बुजुर्गों से, क्यों नई उमर की नई फसल 
जबकि मालूम उन्हें उनकी भी ये ही हालत होनी कल

आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की 
तुम इज्जत करो बुजुर्गो की

जो सोचे सदा तुम्हारा हित, हैं खेरख्वाह सोते जगते
जिनके कारण तुम काबिल हो, वो नाकाबिल तुमको लगते 
उनके विचार संकीर्ण नहीं उनकी भी सोच आधुनिक है 
वो है भंडार अनुभव का,और प्यार भरा सर्वाधिक है दिल उनका अब भी है जवान, मत देखो बूढ़ी हुई शकल 
करती परहेज बुजुर्गों से क्यों नई उमर की नई फसल

आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की 
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की
 
 यह सच है कि उनमें तुमने अंतर आया एक पीढ़ी का 
पर ऊंचा तुम्हें उठाने उनने, काम किया है सीढ़ी का 
 वह संरक्षक है, शिक्षक है ,वह पूजनीय सन्मान करो 
उनके आशीर्वादो से तुम, निज जीवन का उत्थान करो 
तुम खुश किस्मत हो कि उनका साया है तुम्हारे सर पर 
करती परहेज बुजुर्गों से ,क्यों नई उमर की नई फसल

आवश्यक बहुत हिफाजत है संस्कृति के इन दुर्गों की 
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की

मदन मोहन बाहेती घोटू
 क्या होगा
 
जब डॉक्टर ही बिमार पड़े तो फिर मरीज का क्या होगा जब पत्नीजी दिन रात लड़े तो पति गरीब का क्या होगा

 जब मुंह के दांत ही आपस में, हरदम टकराते रहते हैं, तो दो जबड़ों के बीच फंसी, मासूम जीभ का क्या होगा 
 
हमने उनपे दिल लुटा दिया और उनसे मोहब्बत कर बैठे  पर उनने ठुकरा दिया हमेअब इस नाचीज़ का क्या होगा

 वह दूर दूर बैठे, घंटों , जब आंख मटक्का करते हैं किस्मत ने मिला दिया जो तो,मंजर करीब का क्या होगा
 
अरमानों से पाला जिनको, कर रहे तिरस्कृत वह बच्चे बूढ़े होते मां बाप दुखी, उनकी तकलीफ का क्या होगा

कहते हाथों की लकीरों में, किस्मत लिखता ऊपरवाला मेहनत से घिसें लकीरे तो, उनके नसीब का क्या होगा

 महंगाई से तो ना लड़ते,लड़ते कुर्सी खातिर नेता ,
होगा कैसे उन्नत यह देश , इसके भविष्य का क्या होगा

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 30 सितंबर 2021

लकीरे 

चित्रकार के हाथों जब लकीरे उकरती है 
तो कैनवास पर जागृत हो जाती है एक सूरत 
किसी नक्शे की लकीरे,जब दीवारें बन कर उगती है 
तो खड़ी हो जाती है एक इमारत 
लकीरों की ज्यामिति के बल पर ही ,
इंसान चांद तक पहुंच पाता है 
पगडंडी सी लकीरे ,जब प्रगति करती है
 तो राजमार्ग बन जाता है 
 नारी की मांग में सिंदूर की लकीर 
 उसके सुहागन होने की निशानी है 
 परंपरा की लकीरों पर चलकर ही,
 हमें अपनी संस्कृति बचानी है 
 महाजनों के पदचिन्हों की लकीरें 
 हमारी प्रगति के लिए पथ प्रदर्शक है 
 नारी के तन की वक्ररेखाएं 
 उसे बनाती बहुत आकर्षक है 
 परेशानी में आदमी के माथे पर 
 चिंता की लकीरें खिंच जाती है 
 हमारे सलोने चेहरे पर झुर्रियों की लकीरें 
 बढ़ती हुई उम्र का अहसास कराती है 
 हमारी हथेली में लकीरों में 
 भगवान ने लिख कर भेजी हमारी तकदीर है 
 आप माने ना माने मगर यह सच है 
 कि हर बंदा लकीर का फकीर है

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 29 सितंबर 2021

गुब्बारे 

भैया हम गुब्बारे हैं 
भरी हवा है, फूल रहे हम मगर गर्व के मारे हैं 
भैया हम गुब्बारे हैं 
अभी जवानी है, तनाव है,चमक दमक चेहरे पर है 
उड़े उड़े हम फिरते, जैसे लगे हुए हम पर, पर हैं 
बच्चे हम संग खेल रहे ,हम बच्चों का मन बहलाते
शुभअवसर पर, साज सजावट में हम सबके मनभाते  संग हवा के उड़ते रहते, हम निरीह बेचारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं
दिखने की ढब्बू है लेकिन हम तन के कमजोर बड़े 
जाते फूट,अगर छोटा सा कांटा भी जो हमें गढ़े
यूं भी धीरे-धीरे हवा निकल जाती, मुरझाते हम
क्षणभंगुर है जीवन फिर भी रहते हैं मुस्काते हम 
प्राणदायिनी हवा ,हवा में बसते प्राण हमारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू

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