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बुधवार, 4 अगस्त 2021

बारिश तब और अब 

अब भी पानी बरसा करता, अब भी छाते बादल काले पर अब आते मजे नहीं है, वह बचपन की बारिश वाले

 अब ना घर के आगे कोई, बहती है नाली पानी की, 
 ना कागज की नाव बनाकर बच्चे उसमें छोड़ा करते
 नहीं भीगने से डर लगता, बारिश का थे मजा उठाते,
  नंगे पैरों छप छप छप छप ,उसके पीछे दौड़ा करते
  
 अब न कबेलू वाली छत है ,जिससे टप टप टपके पानी जहां-जहां चूती छत ,नीचे बर्तन और पतीला रखना 
  पूरे परिवार के संग, बैठ मजा लेना बारिश का, 
और वह मां का बड़े प्यार से, गरमा गरम पकौड़े तलना

 वह बारिश में भीग नाचना,उछल कूद और करना मस्ती, जब स्कूल की रेनी डे की छुट्टी की थी घंटी बजती  
बना घिरोंदे गीली माटी से, खुश होना खेला करना 
हरी घास पर लाल रंग की बीरबहूटी जब थी  मिलती  

तब बादल की गरज और थी, तब बिजली की चमकऔरथी ,
रिमझिम मस्त फुहारों में जब ,नाचा करती वर्षा रानी 
तब बारिश में जीवन होता, मेह के संग था नेह बरसता,
अब तो केवल आसमान से, बस बरसा करता है पानी

मदन मोहन बाहेती घोटू
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मंगलवार, 3 अगस्त 2021

बारिश तब और अब 

अब भी पानी बरसा करता, अब भी छाते बादल काले पर अब आते मजे नहीं है, वह बचपन की बारिश वाले

 अब ना घर के आगे कोई, बहती है नाली पानी की, 
 ना कागज की नाव बनाकर बच्चे उसमें छोड़ा करते
 नहीं भीगने से डर लगता, बारिश का थे मजा उठाते,
  नंगे पैरों छप छप छप छप ,उसके पीछे दौड़ा करते
  
 अब न कबेलू वाली छत है ,जिससे टप टप टपके पानी जहां-जहां चूती छत ,नीचे बर्तन और पतीला रखना 
  पूरे परिवार के संग, बैठ मजा लेना बारिश का, 
और वह मां का बड़े प्यार से, गरमा गरम पकौड़े तलना

 वह बारिश में भीग नाचना,उछल कूद और करना मस्ती, जब स्कूल की रेनी डे की छुट्टी की थी घंटी बजती  
बना घिरोंदे गीली माटी से, खुश होना खेला करना 
हरी घास पर लाल रंग की बीरबहूटी जब थी  मिलती  

तब बादल की गरज और थी, तब बिजली की चमकऔरथी ,
रिमझिम मस्त फुहारों में जब ,नाचा करती वर्षा रानी 
तब बारिश में बारिश होती ,तब बारिश में जीवन होता
अब तो केवल आसमान से, बस बरसा करता है पानी

मदन मोहन बाहेती घोटू
,

 बरसा है पानी
दबे पांव आ गया बुढ़ापा 

मैंने कितना रोका टोका बात न मानी 
दबे पांव आ गया बुढ़ापा गई जवानी 

मैंने लाख कोशिशें की, कि यह ना आए 
फूल जवानी का न कभी भी मुरझा पाए 
कितने ही नुस्खे अपनाएं, पापड़ बेले 
जितने भी हो सकते थे, सब किये झमेले
च्यवनप्राश के चम्मच चाटे, टॉनिक पिए 
किया फेशियल और बाल भी काले किये
 रंग-बिरंगे फैशन वाले कपड़े पहने 
 बन स्मार्ट, लगा तेज फुर्तीला रहने 
 जिम में जाकर करी वर्जिशें,भागा दौड़ा 
 लेकिन ये ना माना, आकर रहा निगोड़ा 
 मैं जवान हूं, सोच सोच कर मन बहलाया
  हुई कोशिशें लेकिन मेरी सारी जाया 
  धीरे धीरे थी मेरी आंखें धुंधलाई
  और कान से ऊंचा देने लगा सुनाई
  तन की आभा क्षीण, अंग में आई शिथिलता 
  मुरझाया मुख, जो था कभी फूल सा खिलता 
  शनेःशनेःचुस्ती फुर्ती में कमी आ गयी
  मेरे मन में बेचैनी सी एक छा गयी
  और लग गई, तन पर कितनी ही बिमारी
 थोड़ी थोड़ी मैंने भी थी हिम्मत हारी
 पर फिर मैंने,अपने मन को यह समझाया 
 यह जीवन का चक्र, रोक कोई ना पाया
 इस से डरो नहीं तुम बिल्कुल मत घबराओ
 बल्कि उम्र के इस मौसम का मजा उठाओ 
 क्योंकि यही तो बेफिक्री की एक उमर है 
 ना चिंता है, भार कोई भी ना सर पर है
  जो भी कमाया,जीवन में,उपभोग करो तुम
   मरना सबको एक दिवस है, नहीं डरो तुम 
   समझदार अंतिम पल तक है मजा उठाता 
  डरो नहीं , इंज्वॉय करो तुम यार बुढ़ापा

मदन मोहन बाहेती घोटू
घर के झगड़े 

घर के झगड़े ,घर में ही सुलझाए जाते 
लोग व्यर्थ ही कोर्ट कचहरी को है जाते 

संग रहते सब ,कुछ अच्छे, कुछ लोग बुरे हैं 
यह भी सच है ,नहीं दूध के सभी धुले हैं 
छोटी-छोटी बातों में हो जाती अनबन
एक दूसरे पर तलवारे ,जाती है तन
वैमनस्य के बादल हैं तन मन पर छाते
घर के झगड़े घर में ही सुलझाए जाते 

कुछ में होता अहंकार, कुछ में विकार है 
इस कारण ही आपस में पड़ती दरार है 
होते हैं कुछ लोग,हवा जो देते रहते 
आग भड़कती है तो मज़ा लूटते रहते 
जानबूझकर लोगों को है लड़ा भिड़ाते
घर के झगड़े ,घर में ही  सुलझाए जाते 

पर जबअगला है थोड़ी मुश्किल में आता 
सब जाते हैं खिसक कोई ना साथ निभाता
 इसीलिए इन झगड़ों से बचना ही हितकर 
 जीना मरना जहां ,रहे हम सारे मिलकर 
 बादल हटते , फूल शांति के है खिल जाते 
 घर के झगड़े घर में ही सुलझाए  जाते

मदन मोहन बाहेती घोटू

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