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सोमवार, 2 अगस्त 2021

जीने की ललक

 जिस्म गया पक , पैर कब्र में रहे लटक है 
 फिर भी लंबा जिएं, मन में यही ललक है 
 
 तन के सारे अंग, ठीक से काम न करते 
 तरह-तरह की बीमारी से हम नित लड़ते 
 कभी दांत में दर्द ,कभी है मुंह में छाले 
 पर मन करता,सभी चीज का मजा उठा ले
 खा लेते कुछ,पाचन तंत्र पचा ना पाता 
 सांस फूलती ,ज्यादा दूर चला ना जाता 
 लाख दवाई खाएंगे, टॉनिक पिएंगे 
 लेकिन मन में हसरत है, लंबा जिएंगे 
 हुस्न देख, आंखों में आती नयी चमक है
 फिर भी लंबा जिएं, मन में यही ललक है 
 
कोई अपंग अपाहिज है ,चल फिर ना सकता 
फिर भी उसका मन लंबा जीने को करता 
 इस जीने के लिऐ न जाने क्या क्या होता 
 कोई चलाता रिक्शा, कोई बोझा ढोता 
 कोई अपना जिस्म बेचता ,जीने खातिर 
 कोई चोरी करता ,कोई बनता शातिर 
 इस जीने के चक्कर में कितने मरते हैं 
 जो जो पापी पेट कराता ,सब करते हैं 
 गांव-गांव में गली-गली में रहे भटक है 
 फिर भी लंबा जिएं,मन में यही ललक है 
 
कोई वृद्ध है, नहीं पूछते बेटी बेटे 
दिन भर तन्हा यूं ही रहते घर में बैठे 
बड़े तिरस्कृत रहते ,होता किन्तु अचंभा 
उनके मन में भी चाहत, वो जिए लंबा 
बंधा हुआ मन है मोह माया के चक्कर में 
उलझा ही रहता है बच्चों में और घर में 
हैं बीमार अचेत,सांस वेंटीलेटर पर 
फिर भी चाहें, बढ़ जाएं जीवन के कुछ पल 
दुनिया में क्यों रहते सब के प्राण अटक  है 
फिर भी लम्बा जिएं मन में यही ललक है

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 31 जुलाई 2021

देर लगा करती है 

इस जीवन में काम बहुत से ,
धीरज धर कर ही होते हैं ,
किंतु लालसा जल्दी पाने की,
तो दिन रात लगा करती है 
बेटा बेटी भाई बहन तो ,
पैदा होते ही बन जाते हम,
पर दादा या नाना बनने 
में तो देर लगा करती है 

काम बहुत से बिन मेहनत के 
हो जाते हैं जल्दी जल्दी 
भले आप कुछ करो ना करो,
 तन का हो जाता विकास है 
 लेकिन ज्ञान तभी मिलता है,
 जब मिल जाता कोई गुरु है 
 जो करता है मार्ग प्रदर्शित 
 जीवन में आता प्रकाश है 
 इस शरीर में सात चक्र हैं
  उन्हें जागृत करना पड़ता,
  बिना तपस्या योग साधना ,
  कुंडलिनी नहीं जगा करती है 
  इस जीवन में काम बहुत से
  धीरज धड़कन ही होते हैं 
  किंतु लालसा जल्दी पाने,
  की दिनरात लगी रहती है 
  
पहले दांत दूध के गिरते,
है फिर नए दांत आते हैं ,
अकल दाढ़ के आने में पर, 
फिर भी लग जाते हैं बरसों 
हरेक फसल उगने ,पकने का,
 अपना अपना टाइम होता ,
 यूं ही हथेली पर पल भर में ,
 नहीं उगा करती है सरसों 
 इस मरुथल में हम सब के सब 
 माया पीछे भाग रहे हैं 
 ललचाती मृगतृष्णा हमको,
 ये दिनरात ठगा करती है
  इस जीवन में काम बहुत से
 धीरज धर कर ही होते हैं 
 किंतु लालसा जल्दी पाने 
 की दिन रात लगी रहती है

मदन मोहन बाहेती घोटू
बदलाव 

दिल के टूटे बर्तन किस से ठीक कराऊं
मुझे गांव में मिलता नहीं ठठेरा कोई 
ना तो कोई धर्मशाला ना सराय है ,
मैं तलाशता, मिलता नहीं बसेरा कोई 

कहीं आजकल प्यास बुझाने प्याऊ लगती,
 ना मिलता माटी मटके का ठंडा पानी 
 ना तो कोई कुआं दिखता है ना पनघट है ,
 ना ही पानी भरती पनिहारिने सुहानी 
 कुछ पल मैं, विश्राम करूं ,बैठूं निरांत से
 बहुत ढूंढता मिल पाता ना, डेरा कोई 
 दिल के टूटे बर्तन किस से ठीक कराऊं,
 मुझे गांव में मिलता नहीं ठठेरा कोई 
 
अब संयुक्त परिवार ना रहे पहले जैसे
 बिखर गए सब भाई बहन और चाचा ताऊ 
 अपनों में ही अपनेपन का भाव ना रहा,
 सारे रिश्ते ,अब बनावटी और दिखाऊं
 जिसके संग जी खोल कर सकूं बातें दिल की ,
 ऐसा मुझको नजर  न आता मेरा कोई 
 दिल के टूटे बर्तन किस से ठीक कराऊं
 मुझे गांव में मिलता नहीं ठठेरा कोई

मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं स्वस्थ हूं 

हाथ पांव है काम कर रहे चलता फिरता ,
खुश रहता हूं मौज मनाता और मस्त हूं
 मैं स्वस्थ हूं 
 ना जोड़ों में दर्द, न  मुझको बीपी शुगर ,
 नहीं फूलती सांस, दमा है ना खांसी है 
 जमकर के मैं सुबह शाम, खाना खाता हूं 
 और खुराक भी मेरी अच्छी ही खासी है 
 ना बनती है गैस ,नहीं पाचन में दिक्कत ,
 तन कर चलता, कमर जरा भी झुकी नहीं है 
 मेरी पूरी दिनचर्या पहले जैसी है ,
 जीवन की गति कहीं जरा भी रुकी नहीं है 
 आया ना बदलाव वही जीवन जीता हूं ,
 जिस जीवन शैली का अब तक अभ्यस्त हूं
 मैं स्वस्थ हूं 
 माना खाने पीने पर कुछ पाबंदी है ,
 फिर भी चोरी चुपके थोड़ा  चख लेता हूं 
 आंखें थोड़ी धुंधली पर लिख पढ़ लेता हूं ,
 आती-जाती सुंदरियों को तक लेता हूं 
 काम-धाम कुछ नहीं, सवेरे पेपर चाटू,
 और रात को टीवी सदा देखता रहता 
 इसी तरह से वक्त काटता हूं मैं अपना,
 सुनता रहता सबकी अपनी कभी न कहता
 कुछ ना कुछ तो हरदम करता ही रहता हूं,
 रहूं न खाली ,रखता खुद को सदा व्यस्त हूं
  मैं स्वस्थ हूं
  पर ऐसी ना बात कि सब पहले जैसा है ,
  कुछ तन में और कुछ मन में बदलाव आ गया
  मुझ में जो आया है सो तो आया ही है ,
  अपनों के अपनेपन में बदलाव आ गया 
  क्योंकि रहा ना कामकाज का,ना कमाऊं हूं,
   इसीलिए है कदर घट गयी मेरी घर में 
   क्यों हर वृद्ध इस तरह होता सदा उपेक्षित,
    परेशान हो सोचा करता हूं अक्सर मैं
 अब ना पहले सी गर्मी है नहीं प्रखरता,
    ढलता सूरज हूं, अब होने लगा अस्त हूं 
    मैं स्वस्थ हूं

  मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 26 जुलाई 2021

बस दो मीठे बोल बोल दो

मैं लूखी रोटी खा लूंगा, मत खिलाओ तुम पूरी तलवां
 भले जलेबी ना खाने दो ,ना खिलाओ गाजर का हलवा 
मीठा खाने की पाबंदी, डायबिटीज में लगा रखी है
कई दिनों से मैंने टुकड़ा ,भर मिठाई भी नहीं चखीहै किंतु प्यार पर लगा रखी है, जो पाबंदी उसे खोल दो
 प्यार भरे और मीठे मीठे, मुंह से बस दो बोल बोल दो 

एक नजर जो भरी प्यार से मुझ पर डाल अगर तुम दोगी 
थोड़ी सी राहत पा लेगा ,यह बीमार,तड़पता रोगी   
मिश्री सी मुस्कान तुम्हारी, कुछ उसका मीठा पन दे दो 
भरे चासनी वाले मुख से ,एक मीठा सा चुंबन दे दो 
छूट जरा सी तो दे दो ,मत इतना ज्यादा कंट्रोल दो 
 प्यार भरे और मीठे मीठे,मुंह से बस दो बोल ,बोल दो
 
 डॉक्टर ने जो भी लगाया है उनमें कोई पथ्य न छूटे 
 ना तो लागे हींग फिटकरी , सांप मरे, लाठी  ना टूटे
अपनी काजू की कतली से,कोमल कर से बस सहला दो 
रसगुल्ले जैसे अधरों से कुछ रस टपका ,मन बहला दो  
डाल शरबती नजरें मुझ पर ,मुंह में मिश्री मेरे घोल दो 
प्यार भरे और मीठे मीठे, मुंह से बस दो बोल, बोल दो

मदन मोहन बाहेती घोटू

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