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मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

नव  वर्ष की शुभकामना

ऐसा  यह  नूतन वर्ष रहे  
खुशियां बरसे और हर्ष रहे

ना रहे कोरोना धरती पर
आ जाए जिंदगी पटरी पर
सबका दुःख और संताप घटे
हर चेहरे पर से मास्क हटे
फिर रौनक हो बाज़ारों में
फिर मस्ती हो त्योंहारों में
फिर से पनपे भाईचारा
खुशहाल रहे ये जग सारा
हर जीवन में ,उत्कर्ष रहे
ऐसा यह नूतन वर्ष रहे

घोटू 

सोमवार, 12 अप्रैल 2021

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दबदबा पत्नी का

रखती तू मुझको दबाकर ,तुझसे दब कर रहता मैं ,
किन्तु जब सर दर्द करता ,तो दबाती है तू ही
थके पावों को दबा कर ,देती है राहत मुझे ,
मानसिक सब दबाबों में ,मुझको समझाती तू ही
अपनी बाहों में दबा कर , देती सुख की नींद है ,
बाँध कर निज बाजूवों  में  लगा लेती  जब गले  
प्यार का दबदबा  तेरा ,देता परमानन्द है ,
अच्छा लगता ,दब के रहना  तेरे अहसानो  तले
दबा कर के दर्द पीड़ा और आंसूं आँख में ,
मुस्करा कर ,मिलती जुलती ,काम में रहती फंसी
कभी ममतामयी माँ तू ,तो सुशीला बहू भी ,
कभी घर की व्यवस्थापक ,कभी पति की प्रेयसी
छोटी छोटी बात में ,कितना ही झगड़े रात में ,
प्यार से बस तू ही देती ,सुबह प्याला चाय का
तेरा मेरा रिश्ता सच्चा ,लबालब है प्यार से ,
जिसने चख्खा, वो ही जाने ,दबदबे का जायका
लोग कहते ,तुझसे डरता ,दब्बू और डरपोक मैं ,
मानता हूँ ,सच है ये ,पर मुझे इसका गम नहीं
झांकअपने गिरेबां में देखेगा तो पायेगा
बीबी से दबने में कोई भी किसी से कम नहीं  
पत्नी से दब कर के रहने  का मज़ा ही और है ,
जिसने पाया,सुख उठाया ,ना मिला ,वो बदनसीब
आपकी हर एक  हरकत पे नज़र बीबी की है ,
वो ही सुख दुःख बुढ़ापे में ,आपके रहती करीब

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम मुझे मंजूर हो

चाँद का टुकड़ा नहीं ,जन्नत की ना तुम हूर हो
यार तुम ,जैसी भी हो,जो हो,मुझे मंजूर हो

रूप परियों सा नहीं तो मेरे मन में गम नहीं
सच्चे दिल से चाहती हो ,तुम मुझे ये कम नहीं
तुममे अपनापन है ,मन में समर्पण का भाव है
गरिमा व्यक्तित्व में  है , सोच में ठहराव है
ना सुरा ना जाम तुम पर नशे से भरपूर हो
यार तुम जैसी भी हो ,जो हो ,मुझे मंजूर हो

 गुलाबों की नहीं रंगत बदन में ,पर महक तो है
लरजते इन लबों पर पंछियों  जैसी ,चहक तो है
तेरी आँखों में तारों सी ,चमक है ,जगमगाहट है
छुवन में प्यार, उल्फत की ,गर्मजोशी की आहट है
तुम बसी हो दिल में मेरे , मेरे मन का नूर हो
यार तुम ,जैसी भी  हो ,जो हो ,मुझे मंजूर हो
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू '

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

वो दिन प्यारे नहीं  रहे

डियर,डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
दो तन एक जान वाले वो ,दावे सारे नहीं रहे

संगेमरमर सी सुन्दर तुम ,ताजमहल सी लगती थी
मुलाक़ात घंटों की तुमसे ,पल दो पल सी लगती थी
नींद नहीं आती थी और हम रात रात भर जगते थे
डूबे रहते ,सदा प्यार में ,हम दीवाने लगते थे
नाज़ और नखरे मनभाते ,अब वो तुम्हारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

चाचा ताऊ दादा दादी ,साथ साथ सब रहते थे
घर में कितनी रौनक रहती ,बच्चे सभी चहकते थे
मिल कर के त्योंहार मनाते ,होली और दिवाली सब
छायी रहती थी जीवन में ,मस्ती और खुश हाली तब
 वो  संयुक्त गृहस्थी का सुख  ,भाईचारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

हाथों से पंखा डुलता ,मटकी का पानी पीते थे
मेहनत करते ,चलते फिरते ,लम्बी आयु जीते थे
ईर्ष्या द्वेष नहीं था मन में ,सीधासादा  जीवन था
काम आना सुखदुख में सबके ,आपस में अपनापन था
स्वागत करने ,अतिथियों का ,बांह पसारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

दौड़ आधुनिकता की अंधी में, हम मर्यादा भूल गए  
बहे हवा में पश्चिम की निज संस्कृति के प्रतिकूल गए
वृक्षों की पूजा करना और पंछी को देना दाना
चींटी को आटा  बिखराना ,नव पीढ़ी ने ,कब जाना
संस्कार पहलेवाले सब ,अब वो हमारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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