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शनिवार, 25 जुलाई 2020

पुरानी  बातें

क्या आपने ऐसा मस्ती भरा बचपन जिया है
नमक मिर्च लगा कर ठंडी रोटी खायी है
और हाथों की ओक से पानी पिया है
बरसात में ,कागज की नाव को ,
पानी में तेरा कर,उसके पीछे दौड़े है
पेड़ों पर चढ़ कर ,कच्ची इमलियाँ ,
या पके हुए जामुन तोड़े है
क्या आपने कच्चे आम या शरीफे ,
तोड़ कर पाल में पकाये है
खेतों से चुरा कर ,गन्ने चूस कर खाये है
कंचे खेले है ,लट्टू घुमाये है
 गिल्ली डंडे खेल के मजे उठाये है  
मैदानों में या छत पर ,
पतंगों के पेंच लड़ाने का मज़ा लिया है
क्या आपने कभी ऐसा मस्ती भरा जीवन जिया है

क्या आपने एक या दो  पैसे में ,
पानी की रंगीन कुल्फी खायी है
क्या चूरनवाले ने ,आपकी चूर्ण की पुड़िया पर ,
एक तीली से छूकर ,आग लगाई है
क्या आपने सिनेमा देखने के बाद ,
बाहर निकलते समय ,एक आने में ,
फिल्म के गानों  की किताब खरीदी है
क्या कभी अपने किसी रिश्तेदार से ,
जाते समय एक रूपये का नोट पाने पर ,
आपने गर्व से महसूस की रईसी है
क्या आपको पता है कि केरोसिन को ,
मिट्टी का तेल क्यों कहते है जब कि ,
मिट्टी से कभी भी तेल निकल नहीं पाता
क्या आप जानते है कि माचिस को दियासलाई
और उससे पहले 'आगपेटी 'था कहा जाता
क्या आप उँगलियों के बीच पेन्सिल दबा कर ,
मास्टरजी के हाथों मार खाये है
या शैतानी करने पर ,क्लास में मुर्गे बन कर ,
या पिछली बेंच पर खड़े हो ,ढीठ से मुस्काये है
क्या आपने गाय के थनो से,
 निकलती हुई धार का उष्म दूध पिया है
क्या कभी आपने ,ऐसा मस्ती भरा बचपन जिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
वो भी क्या जमाना था

जब तुम्हारे लाल लाल होठों की तरह
लगे रहते थे लाल पोस्ट बॉक्स हर जगह
जो लोगों को प्रेम के संदेशे पहुंचाते थे
और तुम्हारी काली काली जुल्फों की तरह ,
कालेचोगे वाले टेलीफोन,घरों की शोभा बढ़ाते थे
अब तुम्हारे होठों की लाली की तरह ,
वो लाल पोस्टबॉक्स ,भी लुप्त हो गए है
और जैसे तुम्हारी जुल्फें भी काली न रही ,
वैसे ही वो काले टेलीफोन ,सुप्त हो गए है

वो भी क्या जमाना था
जब आदमी की जेब में अगर
ख़जूर छाप, सौ का एक नोट आजाता था
तो आदमी गर्व से ऐंठ जाता था
और ख़जूर छाप ,डालडा वनस्पति से ,
बने हुए खाने को खाकर ,
आदमी का गला बैठ जाता था
 ३  
वो भी क्या जमाना था ,
जब बिटको या बंदर छाप काले दन्त मंजन से ,
घिस कर लोग दांत सफ़ेद करते थे
और मिट्टी से ,हाथ मैले नहीं होते ,धुला करते थे

वो भी क्या जमाना था
जब वास्तव में पैसा चलता था
गोल गोल ताम्बे का एक पैसे का सिक्का ,
लुढ़काने पर ,आगे बढ़ता था

वो भी क्या जमाना था
जब न फ्रिज होते थे न वाटरकूलर
पतली सी गरदन मटकाती,मीठी की सुराही ,
पिलाती थी शीतल जल

वो भी क्या जमाना था
जब न ऐ,सी,थे न डेजर्ट कूलर होते थे
खस की टट्टी पर पानी छिड़क ,
गर्मी की दोपहरी में घर ठन्डे होते थे    
और रात को सब लोग ,
खुली हवा में छत पर सोते थे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

प्यार का कबूलनामा

तुम्हे प्यार करते है ,करते रहेंगे ,बुढ़ापे में हम
हमारी मोहब्बत न कम कर सकेगा ,उम्र का सितम

जवानी का जज्बा ,अभी भी है जिन्दा
उड़ाने है भरता ,ये दिल का परिंदा
चुहलबाजियां वो ,वही चुलबुलापन
उमर बढ़ गयी पर ,अभी भी है कायम
तुम्हे अपने दिल में,बसा कर रखेंगे जब तक है दम
तुम्हे प्यार करते हैं ,करते रहेंगे ,बुढ़ापे में हम

हुए बाल उजले ,दिल भी है उजला
था पहले भी पगला ये अब भी है पगला
तुम्हारी भी आँखों में ,उल्फत वही है
हमारे दिलों में मोहब्बत वही है
दिलोजान में तुम ,समाये हुए हो ,हमारे सनम
तुम्हे प्यार करते है ,करते रहेंगे ,बुढ़ापे में हम

वही हुस्न तुममे ,नज़र देखती है
मोहब्बत कभी ना ,उमर देखती है
तुम्हे छू के अब भी ,सिहरता बदन है
धधकती हृदय में ,मोहब्बत अगन है
हम मरते दम तक ,निभाएंगे उल्फत ,तुम्हारी कसम
तुम्हे प्यार करते है ,करते रहेंगे , बुढ़ापे में हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
छेड़खानी

जवानी में मुझको ,बहुत तुमने छेड़ा ,
बुढ़ापे में छोड़ी  ना  आदत पुरानी
अब भी तुम्हे जब भी मिलता है मौका ,
नहीं बाज आते ,किये छेड़खानी

न अब तुम जवां हो ,न अब हम जवां है
शरारत का अब वो ,मज़ा ही कहाँ है
तुम्हारा सताना ,वो मेरा लजाना
मगर अब भी पहले सा कायम रहा है
हमारी उमर में ,नहीं शोभा देता ,
वही चुलबुलापन और हरकत पुरानी
जवानी में मुझको ,बहुत तुमने छेड़ा ,
बुढ़ापे में छोड़ी ना आदत पुरानी

ये सच है कि ज्यों ज्यों ,बढ़ी ये उमर है
त्यों त्यों मोहब्बत ,गयी उतनी बढ़ है
जवां अब भी दिल ,प्यार से है लबालब ,
भले ही बदन पर ,उमर का असर है
तुम्हारे लिए दिल ,अब भी है पागल ,
दीवाने हो तुम ,प्यार की मैं  दिवानी
जवानी में मुझको ,बहुत छेड़ते थे ,
बुढ़ापे  छोड़ी ना ,वो आदत पुरानी

जबसे मिले हो ,ये हमने है जाना
तुम्हारा मिज़ाज है ,बड़ा आशिकाना
दिनोदिन मोहब्बत की दौलत बढ़ी है ,
भले घट गया रूप का ये खजाना
पर अंदाज शाही ,वही प्यार का है ,
मोहब्बत की दुनिया के हम राजा रानी
जवानी में हमको ,बहुत तुमने छेड़ा ,
बुढ़ापे में छोड़ी ना आदत पुरानी

शरारत में अब भी ,बड़े हो धुरंधर
गुलाटी न भूला ,भले बूढा बंदर
ये छेड़खानी ,सुहाती है ,होती ,
एक गुदगुदी सी ,मेरे दिल के अंदर
तुम्हारी हंसी और ठिठौली के कारण ,
अभी तक सलामत ,हमारी जवानी
जवानी में हमको ,बहुत छेड़ते थे ,
बुढ़ापे में छोड़ी  ना ,आदत पुरानी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापे में बदलाव की जरूरत

अब तो तुम हो गए रिटायर ,उमर साठ के पार हो गयी
जीवन की पद्धिति बदलने की तुमको दरकार हो गयी

अब तक बहुत निभाए तुमने ,वो रिश्ते अब तोड़ न पाते
परिस्तिथि ,माहौल देख कर ,जीवन का रुख मोड़ न पाते
वानप्रस्थ की उमर आ गयी ,मगर गृहस्थी में उलझे हो ,
छोड़ दिया तुमको कंबल ने ,तुम कंबल को छोड़ न पाते

ये तुमने खुद देखा होगा ,कि ज्यों ज्यों बढ़ रही उमर है
नहीं पूछता तुमको कोई ,तुम्हारी घट रही कदर  है
अब तुम चरण छुवाने की बस ,मूरत मात्र रह गए बन कर ,
त्योहारों और उत्सव में ही ,होता तुम्हारा आदर है

त्याग तपस्या तुमने इतनी ,की थी सब बेकार हो गयी
जीवन की पद्धिति बदलने ,की तुमको दरकार हो गयी

शुरू शुरू में निश्चित बच्चों का बदला व्यवहार खलेगा
अपनों से दुःख पीड़ा पाकर ,हृदय तुम्हारा बहुत जलेगा
ये मत भूलो ,उनमे ,तुममे ,एक पीढ़ी वाला अंतर है ,
तुमको सोच बदलना होगा सोच पुराना नहीं चलेगा

इसीलिये उनके कामों में ,नहीं करो तुम दखलंदाजी
बात बात पर नहीं दिखाओ ,अपना गुस्सा और नाराजी
वो जैसे जियें जीने दो ,और तुम अपने ढंग से जियो ,
सबसे अच्छा यही तरीका ,तुम भी राजी ,वो भी राजी

खुल कर जीने की जरूरत अब,खुद अपने अनुसार होगयी
जीवन की पद्धिति बदलने ,की तुमको दरकार हो गयी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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