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बुधवार, 15 जुलाई 2020

प्रणय निवेदन

पाने  को प्यार तुम्हारा
मैंने डाली है  अरजी
अपनाओ या ठुकराओ  
आगे तुम्हारी  मरजी

मैं सीधा ,सादा भोला ,
हूँ एक गाँव का छोरा
सात्विक विचार है मेरे ,
छल और प्रपंच में कोरा

मैं मेहनतकश  बन्दा हूँ ,
और पढ़ालिखा हूँ प्राणी
अच्छे संस्कार भरे है ,
हूँ खालिस हिन्दुस्तानी

जो कहता ,सच कहता हूँ ,
ना बात बनाता फरजी
अपनाओ या ठुकराओ ,
आगे तुम्हारी मरजी

स्पष्ट  सोच है मेरी ,
और सादा रहन सहन है
बरसाता प्यार सभी पर ,,
मेरा निर्मल सा मन है  
 
अब समझो बुरा या अच्छा
दुनियादारी में कच्चा
मैं करता नहीं दिखावा ,
हूँ एक आदमी सच्चा

जैसा दिखता हूँ बाहर ,
वैसा ही हूँ  अंदर जी
अपनाओ या ठुकराओ ,
आगे तुम्हारी मरजी

ऐसे जीवन साथी की ,
है मुझको बहुत जरूरत
जिसकी अच्छी हो सीरत ,
और बुरी नहीं हो सूरत

जो सीमित साधन में भी
मेरा घरबार चला ले
हो सीधी और घरेलू ,
बस रोटी दाल बनाले

इक दूजे की इच्छा का ,
जो करती हो आदर जी
अपनाओ या ठुकराओ
आगे तुम्हारी मरजी

कंधे से मिला कर कंधा ,
जो मेरा साथ निभाये
मैं उस पर प्रेम लुटाऊं ,
वो मुझ पर प्रेम  लुटाये

हो मिलन प्रवृत्ति वाली ,
घर में सब संग जुड़े वो
हो उच्च विचारों वाली ,
तितली सी नहीं उड़े वो

जिसका तन भी हो सुन्दर ,
और मन भी हो सुन्दर जी
अपनाओ या ठुकराओ ,
आगे तुम्हारी  मरजी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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मंगलवार, 14 जुलाई 2020

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गयी भैंस पानी में

हम कितना कुछ खो देते है ,देखो अपनी नादानी में
जब वक़्त दूहने का आता  ,तब भैंस खिसकती पानी में

हम सही समय पर सही जगह पर करते अपना वार नहीं
रह जाता इसीलिये उजड़ा ,बस पाता  है  संसार नहीं
अपनी संकोची आदत से ,हम बात न दिल की कह पाते
हो जाती बिदा किसी संग वो ,हम यूं ही तड़फते रह जाते
फिर दुःख के गाने गाते है ,हम इस दुनिया बेगानी में
जब वक्त दूहने का आता ,तब भैंस खिसकती पानी में

हम कद्र समय की ना करते ,देता है समय हमें धोखा
जाता है कितनी बार फिसल ,हाथों में आया जो मौका
सीटी दे ट्रैन निकल जाती ,हम उसे पकड़ ना  पाते है  
जब खेत को चिड़िया चुग जाती ,हम सर पकड़े पछताते है
हो जाता बंटाधार सदा  थोड़ी सी आना कानी  में
जब वक़्त दूहने का आता ,तब भैस खिसकती पानी में

करने की टालमटोल सदा ,आदत पीड़ा ही देती है
सींचो ना सही समय पर जो ,तो सूखा करती खेती है
हम बंधना चाहते है उनसे ,पर रिश्ता कोई जोड़ लेता
हम देखरेख तरु की करते ,फल आते कोई तोड़ लेता
हो पाता है वो काम नहीं ,जो हो सकता आसानी में
जब वक़्त दूहने का आता ,तब भैंस खिसकती पानी में

हम दर कर रहते दूर दूर ,देखा करते होकर अधीर
लेकिन जब सांप निकल जाता ,हम पीटा करते है लकीर  
ये हिचक हमारी दुश्मन है ,कमजोरी है ,कायरता है
मन के सब भाव प्रकट कर दो ,वरना सब काम बिगड़ता है
मुंहफट ,स्पष्ट करो बातें ,यदि पाना कुछ जिंदगानी में
जब वक़्त दूहने का आता ,तब भैंस खिसकती पानी में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मैं पुराना हो गया हूँ

गया यौवन बीत अब ,गुजरा जमाना हो गया हूँ
मैं पुराना हो गया हूँ
कहते है कि नया नौ दिन ,पुराना टिकता है सौ दिन
इसलिए मैं भी टिकाऊ ,होता जाता हूँ दिनो दिन
इन दीवारों पर अनुभव का पलस्तर  चढ़  गया है
इसलिए मंहगा हुआ घर  ,मूल्य मेरा बढ़ गया है
पहले अधकचरा ,नया था ,अब सयाना हो गया हूँ
मैं पुराना हो गया हूँ
उम्र  ज्यों ज्यों  बढ़ रही है ,आ रही  परिपक़्वता  है
 पुराना जितना हो चावल,अधिक उतना महकता है
शहद ज्यों ज्यों हो पुरानी ,गुणों का उत्थान होता
दवाई का काम  करता ,पका यदि जो पान होता
अस्त होता सूर्य ,सुनहरी सुहाना हो गया हूँ
मैं  पुराना हो गया हूँ
कई घाटों का पिया जल ,आ गयी मुझमे  चतुरता
अब पका सा आम हूँ मैं , आ गयी मुझमे मधुरता
वृद्धि होती ज्ञान की जब ,वृद्ध है हम तब कहाते
पुरानी 'एंटीक ' चीजे ,कीमती  होती  बताते
देखली दुनिया ,तजुर्बों का खजाना हो गया हूँ
मैं पुराना हो गया हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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