एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

सोमवार, 1 जून 2020

             संगत का असर

              एक छक्का
देखो संगत के असर,का है कितना तथ्य
दाल बिचारी मूंग की ,बन जाती है पथ्य
बन जाती है पथ्य ,साथ चावल का पाती
तो स्वादिष्ट सुपाच्य ,खिचड़ी मन को भाती
मिला मसाले तलें ,मंगोड़ी का लो जलवा
घी चीनी संग बने गरिष्ठ  दाल का हलवा

घोटू 

re: How to remove a site from top 10 for important keywords

Negative SEO with Satisfaction Guaranteed
http://www.blackhat.to

शनिवार, 30 मई 2020

पलायन गीत
(कोरोना काल में गावों को पलायन
करनेवाले मजदूरों की मानसिकता
दर्शाता हुआ एक गीत )

फैल रह्यो शहर में कोरोनवा रे
गाँव चलो  भइया  फौरनवा  रे
बंद है बज़ार और कारखाने जब तक
रोजी नहीं रोटी नहीं ,भूखे पेट कब तक
जियेंगे हम बिना भोजनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
आई चीन देश से है ,बिमारी जबर है ये
ताला बंदी लम्बी ही ,खिचेंगी खबर है ये
कैसे होगा अपना गुजरवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
करेंगे क्या इतने दिन ,बैठ के बेकार यहाँ
बिमारी मारे न मारे ,भूख देगी मार यहाँ
अब तो उचट गया मनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
होय रहे खरचा है ,थोड़े जो बचे थे पैसे
रेल बंद ,बेस बंद ,ऐसे में जाएंगे  कैसे
आओ चले निकल पैदलवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
गाँव में परिवार संग ,खुशियां अनोखी होगी
रूखीसूखी जैसी भी हो,खाने को दो रोटी होगी
अपनी माटी अपना अंगनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

re: Additional Details

hi there

After checking your website SEO metrics and ranks, we determined
that you can get a real boost in ranks and visibility by using
aour Deluxe Plan:
https://www.hilkom-digital.com/product/deluxe-seo-plan/

thank you
Mike

शुक्रवार, 29 मई 2020

जीवन का सफर
 
है  तीन चरण का ये जीवन  ,बचपन यौवन ,वृद्धावस्था
सुख दुःख पीड़ायें ,हंसी ख़ुशी ,कांटों, फूलों का  गुलदस्ता
 रहता है प्यार भरा  बचपन ,कटता मस्ती से विहंस विहंस
यौवन आता  फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक

माँ के आँचल की छाया में ,कटता बचपन ,किलकारी भर
घर में माँ बाप बहन भाई ,सब लाढ़ लड़ाते है  जी भर
ना चिंता कोई ना ही फ़िकर ,मासूम शकल भोली भोली
एक हंसना और एक रोना बस ,आती है केवल दो बोली
हम जाते सबकी गोदी में ,खुश हो मुस्काते हुलस हुलस
यौवन आता  फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक

फिर आये जवानी मतवाली, मन में नूतन उत्साह लिए
सुंदरता देख मचलता मन ,उसको पाने की चाह लिए
मिलता कोई जीवनसाथी ,बस जाती दिल की बस्ती है
दिन पंख लगा उड़ जाते है ,छाती जीवन में मस्ती है
जब भार गृहस्थी का पड़ता ,मोहमाया में जाते फंस फंस
यौवन आता फुर्र हो जाता और कटे बुढ़ापा टसक टसक

फिर आती उम्र बुढ़ापे की ,लगती है एक पहेली सी
चुभती है कभी शूल जैसी ,लगती है कभी सहेली सी
जो बीज बोये थे, फल देंगे ,करते रहते ये आशा हम
पर तिरस्कार जब मिलता है,बन जाते एक तमाशा हम
अपनों से प्यार नहीं मिलता ,और हम जाते है तरस तरस
यौवन आता फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-