एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

कोरोना -एक पद

माई री मोहे ,बहुत सतायो कोरोना
मौ से कहत रहो घर माही ,बाहर घूमो फिरो ना
मुंह पर पट्टी बाँध सभी से ,गज भर दूर रहो ना
बार बार साबुन से अपने ,हाथ पड़े अब   धोना
मुख से छीनी ,गरम जलेबी ,अरु रबड़ी का दोना
काम धाम की हो गयी छुट्टी ,दिनभर केवल सोना
आलस के बस फूल गयो अब तन का कोना कोना
ग्वाल बाल सब कंवारे बिचारे ,ना शादी नहीं गौना
कह 'घोटू 'सब तंग हो गये ,अब तो मुक्ति दो ना

घोटू  
 
छुट्टी ही छुट्टी

तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
तब तक ,जब तक ना हो जाये , तुम्हारी  दुनिया से कुट्टी

जब करते काम तरसते है हम ,एक सन्डे की छुट्टी खातिर
उस दिन आराम ,मौज मस्ती ,परिवार संग रहना हिलमिल
यदि लम्बी छुट्टी मिल जाती ,मन बाग़ बाग़ हो जाता था
तब ऐसा लगता ,सोने में जैसे सुहाग  मिल जाता था
मिलती थी 'अर्नलीव 'लेकिन 'इनकैश 'कराते ,लालच वश
यह सोच ,रिटारमेंट बाद ,जी भर लेंगे ,छुट्टी का रस
 हो जाते  किन्तु  रिटायर जब  ,दुनिया लगती ,लुट्टी लुट्टी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी

जब मिला रिटायरमेंट हमें ,कुछ  दिन  बीबी ने बात सुनी
अब छोटी छोटी बातों पर ,हो जाती अक्सर कहा सुनी
वो बना बहाना कोई भी ,अब हमें 'अवोइड '  करती है
उनके इस बेगानेपन पर ,इस दिल पर छुरियां चलती है
हो गए आलसी हम थोड़े ,आदत बन गया निठल्लापन
ऐसा लगता है स्वादहीन ,रसहीन हो गया ये जीवन
कोई भी रखता ,ख्याल नहीं ,क्यों मन को तसल्ली दे झुन्ठी
तुम साठ  साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी

दिन भर घर में बैठे  रहते ,करना धरना कुछ काम नहीं
कुछ समय ठीक ,पर पूरे दिन ,हम कर सकते ,आराम नहीं
माना कि हुआ है तन ढीला लेकिन दिमाग फुर्तीला है
चलते फिरते सब हाथ  पैर ,और मन अब भी रंगीला है
पच्चीस प्रतिशत से ज्यादा ,जीवन जीना अब भी बाकी
तो इतना तो हक़ बनता है ,कर सकते कुछ ताका झांकी
है अब भी कीमत लाखों की ,जब तक हो बंद पड़ी मुठ्ठी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
एक सवैया -हिरण हो गया

 नैन बसी सुन्दर छवि रमणी की ,हिरणी से नैन ,रूप मतवारो
 हिरन हुई सब चाह ,लोग जब ,समझायो भेद हिरण को सारो
स्वरण हिरण पीछे गए राम जी ,इहाँ रावण  सीता हर  डारो
काले हिरण की चाह  के कारण ,जेल गयो ,सलमान  बिचारो

घोटू 
कोरोना पर घोटू का एक पद

माई री मोहे बहुत सतायो कोरोना
मोसे कहत ,रहो घर में ही ,बाहर घूमो फिरो ना
 मुख से छीनी ,गरम जलेबी अरु रबड़ी का दोना
कामधाम तज ,पड़े निठल्ले ,दिन भर घर में सोना
आलस के वश ,फूल गया है ,तन का कोना कोना
परेशान  सब  ,कंवारे बेचारे ,ना शादी ना गौना
मुख पर पट्टी ,गज भर दूरी ,बस रोना  ही रोना
कह 'घोटू' कवि ,तंग हुए सब ,अब तो मुक्ति दो ना

घोटू 

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

वृद्ध चालीसा

दोहा
हे ज्ञानी और महामना ,तुम अनुभव की खान
देव तुल्य तुम हो पुरुष ,कोटिशः तुम्हे प्रणाम
वृद्ध नहीं समृद्ध तुम , उमर  साठ से पार
कृपादृष्टी बरसाइये ,कर हम पर उपकार

चौपाई
जय जय देव बुजुर्ग हमारे
तुम्ही विरासत दुर्ग हमारे
बरसे सब पर प्यार तुम्हारा
सर पर आशीर्वाद  तुम्हारा  
पग पग पर हो ,सच्चे  शिक्षक
मन से हो  सबके शुभ चिंतक
करते फ़िकर सभी घरभर की
रखो खबर ,अन्दर  बाहर की
 सिखलाते हो  ,पाठ ज्ञान का
शुभ स्वास्थ्य और खान पान का
परम्पराओं के रखवाले
सब रीति रिवाज संभाले
सुना पुराने किस्से ,गाथा
गर्वित ऊंचा होता माथा
आती चमक बुझी आँखों में
तुमसे कोई नहीं लाखों में
अनुभव की जब होती वृद्धि
आत्मा में आ जाती  शुद्धि
साठ  साल इसमें लग जाते
तब जाकर तुम वृद्ध कहाते
कर देती सरकार रिटायर
तुम्हे बैठना पड़ता है घर
दिन भर पेपर करते चाटा
गलती पर ,बच्चों को डांटा
टीवी से  बस   चिपके रहते
बुरा न कभी ,किसी से कहते
ढला हुआ तन ,मन में  गर्मी
छूट न पाती ,पर  बेशरमी
आँखे फाड़ करो तुम देखा
रूप षोडसी ,सुंदरियों का
ये आदत ,अब भी है बाकी
करते रहते ,ताका झांकी
बना  बहाने ,करते बातें
इसी तरह बस मन बहलाते
यूं तो बिगड़ा ,साज तुम्हारा
है आशिक़ मिज़ाज  तुम्हारा
हो कितना ही बूढा बन्दर
नहीं गुलाटी वो भूले पर
ढीले है पुरजे सब तन के
फिर भी रहते हो बनठन के
बालों पर ख़िज़ाब लगाते
याद जवानी की फिर लाते
दिन दिन सेहत बिगड़ रही है
तुमको  इसका ख्याल नहीं है
है मधुमेह ,बढ़ रही ,शक्कर
पर मिठाइयां ,खाते  जी भर
और स्वाद के मारे थोड़े
खाओ समोसे ,चाट पकोड़े
बड़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर
फ़िक्र नहीं करते रत्ती भर  
बस करते ,जो आये मन में
चाह पूर्ण हो सब जीवन में
पास डॉक्टरों  के भी जाते
दवा,गोलियां रहते  खाते
यही सोच कर ,लेते टॉनिक
जीवन हो लम्बा ,जाऊं टिक
इतनी जीर्ण शीर्ण है काया
नहीं छूटती ,तुमसे माया
कितनी बार हृदय है टूटा
परिवार का मोह न छूटा
देता ध्यान न कोई तुम पर
तुमको सबकी चिंता है पर
त्योंहारों में घर के सारे
छूते है आ चरण तुम्हारे
बस तुम इससे खुश हो जाते
लगते प्यारे ,रिश्ते नाते
लेकिन तुम्हे  जान कर बूढा
लोग समझते ,घर का कूड़ा
तन कमजोर  न मन कमजोरी
विनती इसीलिये कर जोरी
उलझो मत परिवार मोह में
सिमटे मत तुम रहो खोह में
सबकी  चिंता  करना छोडो
मोह माया का ,पिंजरा तोड़ो
अब भी समय,जाग तुम जाओ
प्रभु चरणों में ध्यान लगाओ
भजन करो तुम सच्चे मन से
हरि सुमरन  में लगो लगन से
इस जीवन से तर जाओगे
वरना यूं ही मर जाओगे

दोहा
चालीसा यह वृद्ध का ,कह घोटू समझाय
मोह तजो प्रभु को भजो ,जन्म सफल हो जाय

अथः श्री वृद्ध चालीसा सम्पूर्ण

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-