छुट्टी ही छुट्टी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
तब तक ,जब तक ना हो जाये , तुम्हारी दुनिया से कुट्टी
जब करते काम तरसते है हम ,एक सन्डे की छुट्टी खातिर
उस दिन आराम ,मौज मस्ती ,परिवार संग रहना हिलमिल
यदि लम्बी छुट्टी मिल जाती ,मन बाग़ बाग़ हो जाता था
तब ऐसा लगता ,सोने में जैसे सुहाग मिल जाता था
मिलती थी 'अर्नलीव 'लेकिन 'इनकैश 'कराते ,लालच वश
यह सोच ,रिटारमेंट बाद ,जी भर लेंगे ,छुट्टी का रस
हो जाते किन्तु रिटायर जब ,दुनिया लगती ,लुट्टी लुट्टी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
जब मिला रिटायरमेंट हमें ,कुछ दिन बीबी ने बात सुनी
अब छोटी छोटी बातों पर ,हो जाती अक्सर कहा सुनी
वो बना बहाना कोई भी ,अब हमें 'अवोइड ' करती है
उनके इस बेगानेपन पर ,इस दिल पर छुरियां चलती है
हो गए आलसी हम थोड़े ,आदत बन गया निठल्लापन
ऐसा लगता है स्वादहीन ,रसहीन हो गया ये जीवन
कोई भी रखता ,ख्याल नहीं ,क्यों मन को तसल्ली दे झुन्ठी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
दिन भर घर में बैठे रहते ,करना धरना कुछ काम नहीं
कुछ समय ठीक ,पर पूरे दिन ,हम कर सकते ,आराम नहीं
माना कि हुआ है तन ढीला लेकिन दिमाग फुर्तीला है
चलते फिरते सब हाथ पैर ,और मन अब भी रंगीला है
पच्चीस प्रतिशत से ज्यादा ,जीवन जीना अब भी बाकी
तो इतना तो हक़ बनता है ,कर सकते कुछ ताका झांकी
है अब भी कीमत लाखों की ,जब तक हो बंद पड़ी मुठ्ठी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
तब तक ,जब तक ना हो जाये , तुम्हारी दुनिया से कुट्टी
जब करते काम तरसते है हम ,एक सन्डे की छुट्टी खातिर
उस दिन आराम ,मौज मस्ती ,परिवार संग रहना हिलमिल
यदि लम्बी छुट्टी मिल जाती ,मन बाग़ बाग़ हो जाता था
तब ऐसा लगता ,सोने में जैसे सुहाग मिल जाता था
मिलती थी 'अर्नलीव 'लेकिन 'इनकैश 'कराते ,लालच वश
यह सोच ,रिटारमेंट बाद ,जी भर लेंगे ,छुट्टी का रस
हो जाते किन्तु रिटायर जब ,दुनिया लगती ,लुट्टी लुट्टी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
जब मिला रिटायरमेंट हमें ,कुछ दिन बीबी ने बात सुनी
अब छोटी छोटी बातों पर ,हो जाती अक्सर कहा सुनी
वो बना बहाना कोई भी ,अब हमें 'अवोइड ' करती है
उनके इस बेगानेपन पर ,इस दिल पर छुरियां चलती है
हो गए आलसी हम थोड़े ,आदत बन गया निठल्लापन
ऐसा लगता है स्वादहीन ,रसहीन हो गया ये जीवन
कोई भी रखता ,ख्याल नहीं ,क्यों मन को तसल्ली दे झुन्ठी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
दिन भर घर में बैठे रहते ,करना धरना कुछ काम नहीं
कुछ समय ठीक ,पर पूरे दिन ,हम कर सकते ,आराम नहीं
माना कि हुआ है तन ढीला लेकिन दिमाग फुर्तीला है
चलते फिरते सब हाथ पैर ,और मन अब भी रंगीला है
पच्चीस प्रतिशत से ज्यादा ,जीवन जीना अब भी बाकी
तो इतना तो हक़ बनता है ,कर सकते कुछ ताका झांकी
है अब भी कीमत लाखों की ,जब तक हो बंद पड़ी मुठ्ठी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '