कोरोना और वनवास
हे राम तुम्हारी कथा ,व्यथा से बहुत रुला देती हमको
जिस दिन मिलना था राजपाट,उस दिन वनवास मिला तुमको
पर काश तुम्हे वनवास नहीं , होती कुछ सजा ,कैद जैसी
चौदह वर्षों ,बंध चारदीवारी में ,होजाती ऐसी की तैसी
मैं खुद इस दहशत से गुजरा हूँ ,मैंने ये पीड़ा भोगी है
इस हालत में अच्छा खासा ,इंसां बन जाता रोगी है
कोरोना की विपदा कारण जब हुई देश की थी बंदी
चालीस दिन तक ,घर से बाहर ,ना निकलो,यह थी पाबंदी
मरघट सी शान्ति बाज़ारों में ,ना हलचल थी ना चहलपहल
खामोश अकेले तन्हाई में ,रो रो कर कटता था हर पल
मैंने रह चारदीवारी में ,महसूस किया ,घुट घुट ,तिल तिल
है आसां वनवास झेलना ,पर घरवास झेलना मुश्किल
यह वनवास नहीं ,अपितु था ,सुन्दर मौका देश भ्र्मण का
तरह तरह के लोगों के संग ,मिलना जुलना ,रहन सहन का
खुली हवा में साँसें लेना ,नदियों का निर्मल जल पीना
पंछी सा उन्मुक्त चहकना ,अपनी मन मर्जी से जीना
ना पाबंदी ,ना डर कोई ,लोकलाज का ,राजधर्म का
स्वविवेक से निर्णय लेना ,करना जो मन कहे ,कर्म का
कभी अहिल्या श्राप छुड़ाना ,कभी बेर शबरी के खाना
बिन वनवास बड़ा मुश्किल था ,भक्त कोई हनुमत सा पाना
दुष्ट अहंकारी रावण का ,कर पाए तुम नाश राम जी
अच्छा हुआ ,केकैयी माँ ने ,दिया तुम्हे वनवास राम जी
वर्ना अगर कैद जो घर में ,रहते ,टूट टूट जाता दिल
है आसां वनवास झेलना ,पर घरवास बड़ा ही मुश्किल
याद करो परमार्थ ,पार्थ की ,थी पुरुषार्थ भरी वह गाथा
राज्य हस्तिनापुर पाने को ,महाभारत का युद्ध हुआ था
पांच पांडव एक तरफ थे ,और सामने सौ सौ कौरव
कुटिल शकुनि ने ध्रुतक्रीड़ा में जीता उनका सब गौरव
माँगा आधा राज्य ,मिला वनवास ,भटकने उनको वन वन
जीत स्वयम्बर ,अर्जुन लाया ,बनी द्रोपदी ,सबकी दुल्हन
गर वनवास नहीं जाते और यूँही मांगते रहते निज हक़
नहीं कोई उनकी कुछ सुनता ,सब प्रयत्न हो जाते नाहक
यह वनवास काम में आया ,किया भ्र्मण और मित्र बनाये
हुआ युद्ध जब महाभारत का,तब वो सभी साथ में आये
कृपा कृष्ण की ,जीते पांडव ,राज्य चलाया ,सबने हिलमिल
है आसां वनवास झेलना ,पर घरवास बड़ा ही मुश्किल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हे राम तुम्हारी कथा ,व्यथा से बहुत रुला देती हमको
जिस दिन मिलना था राजपाट,उस दिन वनवास मिला तुमको
पर काश तुम्हे वनवास नहीं , होती कुछ सजा ,कैद जैसी
चौदह वर्षों ,बंध चारदीवारी में ,होजाती ऐसी की तैसी
मैं खुद इस दहशत से गुजरा हूँ ,मैंने ये पीड़ा भोगी है
इस हालत में अच्छा खासा ,इंसां बन जाता रोगी है
कोरोना की विपदा कारण जब हुई देश की थी बंदी
चालीस दिन तक ,घर से बाहर ,ना निकलो,यह थी पाबंदी
मरघट सी शान्ति बाज़ारों में ,ना हलचल थी ना चहलपहल
खामोश अकेले तन्हाई में ,रो रो कर कटता था हर पल
मैंने रह चारदीवारी में ,महसूस किया ,घुट घुट ,तिल तिल
है आसां वनवास झेलना ,पर घरवास झेलना मुश्किल
यह वनवास नहीं ,अपितु था ,सुन्दर मौका देश भ्र्मण का
तरह तरह के लोगों के संग ,मिलना जुलना ,रहन सहन का
खुली हवा में साँसें लेना ,नदियों का निर्मल जल पीना
पंछी सा उन्मुक्त चहकना ,अपनी मन मर्जी से जीना
ना पाबंदी ,ना डर कोई ,लोकलाज का ,राजधर्म का
स्वविवेक से निर्णय लेना ,करना जो मन कहे ,कर्म का
कभी अहिल्या श्राप छुड़ाना ,कभी बेर शबरी के खाना
बिन वनवास बड़ा मुश्किल था ,भक्त कोई हनुमत सा पाना
दुष्ट अहंकारी रावण का ,कर पाए तुम नाश राम जी
अच्छा हुआ ,केकैयी माँ ने ,दिया तुम्हे वनवास राम जी
वर्ना अगर कैद जो घर में ,रहते ,टूट टूट जाता दिल
है आसां वनवास झेलना ,पर घरवास बड़ा ही मुश्किल
याद करो परमार्थ ,पार्थ की ,थी पुरुषार्थ भरी वह गाथा
राज्य हस्तिनापुर पाने को ,महाभारत का युद्ध हुआ था
पांच पांडव एक तरफ थे ,और सामने सौ सौ कौरव
कुटिल शकुनि ने ध्रुतक्रीड़ा में जीता उनका सब गौरव
माँगा आधा राज्य ,मिला वनवास ,भटकने उनको वन वन
जीत स्वयम्बर ,अर्जुन लाया ,बनी द्रोपदी ,सबकी दुल्हन
गर वनवास नहीं जाते और यूँही मांगते रहते निज हक़
नहीं कोई उनकी कुछ सुनता ,सब प्रयत्न हो जाते नाहक
यह वनवास काम में आया ,किया भ्र्मण और मित्र बनाये
हुआ युद्ध जब महाभारत का,तब वो सभी साथ में आये
कृपा कृष्ण की ,जीते पांडव ,राज्य चलाया ,सबने हिलमिल
है आसां वनवास झेलना ,पर घरवास बड़ा ही मुश्किल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '