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शुक्रवार, 9 नवंबर 2018



लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम

(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )

दीपावली के बाद दूसरे  दिन

भाईदूज को  लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी

और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी

बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,

रह रहे हो अपने ससुराल में

कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,

साला साली है किस हाल में

प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले

मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले

तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट

बाकी बचे चार बहने और भाई आठ

तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है

और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है

'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है

और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है

तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है

और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है

दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी

यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी

हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना

पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना

जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत

और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत

और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे

उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे

'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है

और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है

बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी

तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी

और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना

तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना

और यदि लोकसभा का सत्र रहा हो चल

तो वहां,सत्ता और विपक्ष,

एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'

अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर

और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर

और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी

पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी

और चाइना वालों का भरोसा नहीं,

वीसा देंगे या ना देंगे

फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे

तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना

फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम

(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )

दीपावली के बाद दूसरे  दिन

भाईदूज को  लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी

और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी

बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,

रह रहे हो अपने ससुराल में

कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,

साला साली है किस हाल में

प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले

मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले

तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट

बाकी बचे चार बहने और भाई आठ

तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है

और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है

'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है

और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है

तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है

और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है

दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी

यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी

हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना

पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना

जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत

और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत

और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे

उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे

'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है

और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है

बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी

तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी

और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना

तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना

और यदि लोकसभा का सत्र रहा हो चल

तो वहां,सत्ता और विपक्ष,

एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'

अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर

और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर

और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी

पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी

और चाइना वालों का भरोसा नहीं,

वीसा देंगे या ना देंगे

फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे

तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना

फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रिश्ते-मधुर और चटपटे

रिश्तों का दूध,थोड़े से खटास से,
जब जाता है फट
तो बस छेना बन कर जाता है सिमट
जो प्यार की चाशनी में उबाले जाने पर
बन जाता है रसगुल्ला,
स्वादिष्ट,रसीला और मनहर
सूजी की छोटी छोटी पूड़ियाँ,
प्यार की स्निघ्ता में धीरे धीरे तली जाए,
तो बन जाती है फुलकियाँ
जिनको अगर खाया जाए,
आपसी रिश्तों का,चटपटा पानी भर
तो वो गोलगप्पे,स्वाद की घूंटो से,
देते है खुशियाँ भर
धनिया और पुदीने के,
पत्तों सा सादा जीवन,
प्यार के मसालों के साथ पिस कर ,
बन जाता है चटपटी चटनी
जीवन की राहें ,जलेबी की तरह,
कितनी ही टेडी हो,
प्यार के रस में डूब कर,
बन जाती है स्वादिष्ट और रस भीनी
सिर्फ प्यार की शर्करा में ही एसा मिठास है,
जो बिना डायबिटीज के दर से,
जीवन में मधुरता भरता है
रिश्तों में अपनापन,
चाट का वो मसाला है,
जो जीवन को चटपटा और स्वादिष्ट करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रिश्ते-मधुर और चटपटे

रिश्तों का दूध,थोड़े से खटास से,
जब जाता है फट
तो बस छेना बन कर जाता है सिमट
जो प्यार की चाशनी में उबाले जाने पर
बन जाता है रसगुल्ला,
स्वादिष्ट,रसीला और मनहर
सूजी की छोटी छोटी पूड़ियाँ,
प्यार की स्निघ्ता में धीरे धीरे तली जाए,
तो बन जाती है फुलकियाँ
जिनको अगर खाया जाए,
आपसी रिश्तों का,चटपटा पानी भर
तो वो गोलगप्पे,स्वाद की घूंटो से,
देते है खुशियाँ भर
धनिया और पुदीने के,
पत्तों सा सादा जीवन,
प्यार के मसालों के साथ पिस कर ,
बन जाता है चटपटी चटनी
जीवन की राहें ,जलेबी की तरह,
कितनी ही टेडी हो,
प्यार के रस में डूब कर,
बन जाती है स्वादिष्ट और रस भीनी
सिर्फ प्यार की शर्करा में ही एसा मिठास है,
जो बिना डायबिटीज के दर से,
जीवन में मधुरता भरता है
रिश्तों में अपनापन,
चाट का वो मसाला है,
जो जीवन को चटपटा और स्वादिष्ट करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्थरों के दिल पिघल ही जायेगे
—————————————
छोड़ नफरत,बीज बोओ प्यार के,
चमन में कुछ फूल खिल ही जायेगे
पत्थरों के कालेजों में मोम के,
चंद कतरे तुम्हे मिल ही जायेंगे
समर्पण की सुई,धागा प्रेम का,
फटे रिश्ते,कुछ तो सिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी जोर है,,
कलेजे हों सख्त,हिल ही जायेगे
यज्ञ   का फल मिलेगा जजमान को,
आहुति में फेंके तिल ही जायेंगे
बेवफा तुम और हम है बावफा,
इस तरह तो टूट दिल ही जायेंगे
अगर पत्थर फेंकियेगा कीच में,
चंद  छींटे तुम्हे मिल ही जायेंगे
करके देखो नेता की आलोचना,
कई चमचे,तुम पे पिल ही जायेगे
कोई भी हो देश कोई भी शहर,
एक दो सरदार मिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी है कशिश,
पत्थरों के दिल पिघल ही जायेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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