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रविवार, 7 अक्टूबर 2018

चार पंक्तियाँ -६ 

दीवारें  चमकदार थी और सेहतमंद थी 
रहती थी लगी रौनकें ,सबको पसंद थी 
इन खंडहरों को देख कर अंदाज लगा लो ,
था एक जमाना ,जब ये इमारत  बुलंद थी 

घोटू 
जल में रह कर कछुवे का विद्रोह  
      
तालाब भर में खौफ था ,मगरूर मगर का ,
       सब डरते थे ,मैंने भी उनकी बात मान ली 
कुछ दिन दबाये पैर ,दुबक कर पड़ा रहा ,
        एक दिन खुले में तैरने की ,ख़ुशी जान ली 
       यूं कायरों की  जिंदगी से मौत भली है 
       जीने को अपने ढंग से आजाद सभी है, 
 मन में मेरे विद्रोह के स्वर जागृत हुये 
              जल में रह बैर मैंने मगर से थी ठान ली ,
      देखा निडर सा तैरता मुझको तालाब में 
    कुछ मछलियां भी आ गयी थी मेरे साथ में 
अपने खिलाफ होती बगावत को देख कर ,
          जालिम मगर ने बंद कर अपनी जुबान ली 
     कोई से कभी भी नहीं डरने की बात थी 
     सीना उठा ,मुकाबला ,करने की बात थी 
मिल कर लड़ोगे ,आतयायी भाग जाएंगे ,
               एकता की शक्ति थी सबने ही जान ली 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
ना जाने क्यूँ ?

ना जाने क्यूँ ,मेरे संग  ही ,ऐसा सदा गुजरता है 
तन का शेर दहाड़ मारता,मन का चूहा डरता  है 

जब भी लड़की कोई देखता ,मेरा ध्यान भटक जाता 
उसके रूप ,चाल,यौवन में ,मेरा हृदय  अटक जाता 
पर बीबीजी की  नज़रों  में ,मेरा  कृत्य  खटक  जाता
और उस रात ,मुझे सोफे पर ,भूखा  सोना पड़ता है 
तन का शेर दहाड़ मारता  ,मन का चूहा डरता  है 

मेरी पत्नी ,सदा उँगलियों पर ही मुझे नचाती है 
पा टीवी  रिमोट भावना ,बदले की जग जाती है 
ख़ुश होता  मैं ,बटन दबा ,तस्वीर बदलती जाती है 
कोई तो है ,जो कि इशारों पर मेरे भी ,चलता  है 
तन का शेर दहाड़  मारता ,मन का चूहा डरता है 

मोबाईल पा ,बड़ी कुलबुलाहट ,हाथों को लगती है 
टच स्क्रीन देख कर ऊँगली अपने आप फिसलती है 
नये फेसबुक फ्रेंड बनाने ,तबियत मेरी मचलती है 
पर बीबी के डर  के मारे ,चुप ही रहना  पड़ता है  
तन का शेर दहाड़ मारता ,मन का चूहा डरता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2018

वणिक पुत्र

            
मैंने तुम्हारी महक को,
प्यार की ऊष्मा देकर
अधरों के वाष्प यन्त्र से,
इत्र बना कर,
दिल की शीशी में,एकत्रित कर लिया है,
ता कि उम्र भर खुशबू ले सकूँ
मैंने तुम्हारा यौवन रस,
मधुमख्खी कि तरह,
बूँद बूँद रसपान कर,
दिल के एक कोने में
मधुकोष बना कर,संचित कर लिया है,
ता कि जीवन भर ,रसपान कर सकूँ
मैंने तुम्हारे अंगूरी अधरों से,
तुम्हारी मादकता का आसवन कर
एकत्रित कि गयी मदिरा को,
पर्वतों के शिखरों में,छुपा कर भर दिया है
ताकि उम्र भर पी सकूँ
क्योंकि संचय करना,मेरा रक्त गुण है
मै एक वणिक पुत्र हूँ

बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

बदलते हालात 

इस तरह मौसम बदलने लग गये है 
चींटियों के पर निकलने  लग गये है 
अपना सिक्का जमाने की होड़ में ,
खोटेसिक्के भी अब चलने लग गये है 
खोलने दूकान एक बजाज की ,
चिन्दी पा ,चूहे  उछलने लग गये है 
चंद पत्थर बन स्वयंभू  देवता ,
आस्था लोगो की छलने लग गये है 
हाथ उनके एक जुगनू क्या लगा ,
चाँद पाने को मचलने लग  गये  है 
कांव कांव छोड़ 'कुहू कू 'करे ,
कव्वे ,कोयल में बदलने लग गये है 
आसमां पर चढ़ गया उनका अहम ,
गर्व के मारे उछलने लग गये  है 
' घोटू '  मौसम आगया बरसात का ,
टरटरा मेंढक  निकलने लग गये है 

घोटू 

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