जल में रह कर कछुवे का विद्रोह
तालाब भर में खौफ था ,मगरूर मगर का ,
सब डरते थे ,मैंने भी उनकी बात मान ली
कुछ दिन दबाये पैर ,दुबक कर पड़ा रहा ,
एक दिन खुले में तैरने की ,ख़ुशी जान ली
यूं कायरों की जिंदगी से मौत भली है
जीने को अपने ढंग से आजाद सभी है,
मन में मेरे विद्रोह के स्वर जागृत हुये
जल में रह बैर मैंने मगर से थी ठान ली ,
देखा निडर सा तैरता मुझको तालाब में
कुछ मछलियां भी आ गयी थी मेरे साथ में
अपने खिलाफ होती बगावत को देख कर ,
जालिम मगर ने बंद कर अपनी जुबान ली
कोई से कभी भी नहीं डरने की बात थी
सीना उठा ,मुकाबला ,करने की बात थी
मिल कर लड़ोगे ,आतयायी भाग जाएंगे ,
एकता की शक्ति थी सबने ही जान ली
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '