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सोमवार, 6 नवंबर 2017

अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी 

आलस तन में बसा ,रहे ना अब फुर्तीले 
खाना वर्जित हुए ,सभी पकवान रसीले 
मीठा खाना मना,तले पर पाबंदी  है 
भूख न लगती,पाचनशक्ति भी मंदी है
खा दवाई की रोज गोलियां ,हम जीते है 
चाट पकोड़ी मना ,चाय फीकी पीते है 
दांत गिर गए ,चबा ठीक से ना पाते हम 
पुच्ची भर में बदल गया हो जैसे चुंबन 
यूं ही मन समझाने वाली उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी 
'आर्थराइटिस 'है घुटनो में रहती जकड़न 
थोड़ी सी मेहनत से बढ़ती दिल की धड़कन 
'डाइबिटीज 'के मारे सब अंग खफा हो गए 
मिलन और अवगुंठन के दिन ,दफा हो गए 
वो उस करवट हम इस करवट ,सो लेते है 
आई लव यू आई लव यू ,कह खुश हो लेते है 
कभी यहां पीड़ा है ,कभी वहां दुखता है 
फिर भी दिल का दीवानापन ,कब रुकता है 
अब तो बस ,सहलानेवाली  ,उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर  आगयी 
 कहने,सुनने की क्षमता भी क्षीण हो चली 
अंत साफ़ दिखता पर आँखें धुंधली धुंधली 
छूटी मौज मस्तियाँ ,मोह माया ना छूटी 
देते रहते खुद को यूं ही तसल्ली ,झूठी 
कोसों दूर बुढ़ापा ,हम अब भी जवान है 
मन ही मन ,अंदर से रहते परेशान है 
बात बात पर अब हमको गुस्सा आता है 
बीती यादों में मन अक्सर खो जाता है 
यूं ही मन बहलानेवाली उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर आ गयी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
दिल मगर दिल ही तो है 

हरएक सीने में धड़कता ,है छुपा बैठा कहीं,
चाह पूरी जब न होती,मसोसना भी पड़ता है 
कभी अनजाने ही जब ,जुड़ जाता ये है किसी से,
नहीं चाहते हुए उसको ,तोडना भी पड़ता  है 
कभी चोंट खाकर जब ,पीता है वो खूं के आंसू,
उसकी मासूमियत को ,कोसना भी पड़ता है 
कभी देख कर किसी को,जब मचल जाता है,
तो किसी के साथ उसको ,जोड़ना भी पड़ता है 
बात दिल की है ,कोई दिलदार कोई दिलपसंद,
तो कोई है दिलरुबाँ ,दिलचस्प है और दिलनशीं 
कोई दिलवर है कोई दिलसाज कोई दिलफरेब ,
दिल दीवाने को सुहाती है किसी की दिलकशी 
कोई होता संगदिल तो कोई होता दरियादिल ,
जब किसी पे आता तो देता ये मुश्किल ही तो है 
इसकी आशिक़ मिजाजी का ओर है ना छोर है,
कुछ भी हो,कैसा भी हो,ये दिल मगर दिल ही तो है 


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

थोड़े बड़े भी बन जाइये 

सवेरे सवेरे चार यार ,मिलो,घूमो फिरो,
नींद खुले औरों की ना जोर से चिल्लाइये 
भंडारा परसाद खूब खाओ लेके स्वाद मगर ,
डब्बे भर लाद लाद ,घर न ले जाइये 
औरतें और बच्चे सब ,घूम रहे आसपास ,
अपनी जुबान को शालीन तुम  बनाइये 
सर की सफेदी का लिहाज करोऔर डरो
बूढ़े हो गए हो यार,बड़े भी बन जाइये 

घोटू 

बुधवार, 1 नवंबर 2017

तुम रहो हमेशा सावधान 

वह कलकल करती हुई नदी 
तट  की  मर्यादा बीच   बंधी 
उसकी सुन्दरता ,अतुलनीय 
वह सुन्दर,सबको बहुत प्रिय 
मैं था सरिता को सराह रहा 
एक वृक्ष किनारे ,कराह रहा 
बोला ,तुम देख रहे कल कल 
पर मैंने देखा है बीता  कल 
जब इसमें आता है उफान 
मर्यादाओं का छोड़  भान 
जब उग्र रूप है यह धरती 
सब कुछ है तहस नहस करती  
जैसे शीतल और मंद पवन 
मोहा करती है सबका  मन 
पर जब तूफ़ान बन जाती है 
तो कहर गजब का ढाती है 
है मौन  शांत  धरती माता 
पर जब उसमे  कम्पन आता 
तब  आ जाती ऐसी तबाही 
सब कुछ हो जाता धराशायी 
सुंदर,सज धज कर मुस्काती 
पत्नी सबके ही मन भाती 
जीवन में खुशियां भरती है 
पर उग्र रूप जब धरती है 
तो फिर वह कुपित केकैयी बन 
जिद मनवाती ,जा कोप भवन 
पति असहाय हो दशरथ सा 
लाचार बहुत और बेबस सा 
माने पत्नी की जिद हरेक 
बनवास बने ,राज्याभिषेक 
ये नदी,हवा,धरती,नारी 
जिद पर आती ,पड़ती भारी 
कब बिगड़ जाय ,ना रहे ज्ञान 
तुम रहो हमेशा  सावधान 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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