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सोमवार, 21 मार्च 2016

ढपोरशंख

 भाषणबाजी में अव्वल, करने धरने में शून्य अंक,
आज के नेता हो चले हैं, जैसे कि ढपोरशंख ।

रोज नए नए वादे होते, करने के न इरादे होते,
जनता को भी लिए लपेटे, इनके कई कई प्यादे होते ।

राजनीति एक दल दल जैसी, ये खुद ही बन गए पंक,
निरे निखट्टू आज के नेता, जैसे कि ढपोरशंख ।

बस चुनाव में इनका आना, जीत कर ठेंगा है दिखाना,
वादे इनको याद करा दो, पहले से तैयार बहाना ।

दल बदलू और स्वार्थ परक ये, अपनो को ही मारे डंक,
लाभ के लिए कुछ भी कर दें, हो गए ये ढपोरशंख ।

होली तो इनकी ही हो ली, इनकी ही होती है दीवाली,
असली पैसों से ये खेले, पर सारे हैं लोग ये जाली ।

मुँह बाये हम आम लोग हैं, माल खा रहे ये कलंक,
अव्वल अब मक्कारी में भी, ये नेता हैं ढपोरशंख ।

- प्रदीप कुमार साहनी

रविवार, 20 मार्च 2016

होली-रंगों का त्योंहार

 होली-रंगों का त्योंहार

        आज होली दिवस भी है,
         रंगों का  त्योंहार भी है
पर्व कल था जो दहन का
आस्थाओं के दमन का
कुटिलता के नाश का दिन
भक्ति के  विश्वास का दिन
         शक्ति के उस परिक्षण में
         जीत भी है ,हार भी है
         आज होली  दिवस भी है,
          रंगों का त्योंहार भी है
  आग  भी है, फाग भी है
जलन है  अनुराग भी है
दाह भी है,  डाह भी है
चाह भी है, आह भी है 
          अजब है संयोग देखो,
          प्यार है,प्रतिकार भी है
          आज होली  दिवस भी है,
           रंगों का  त्योंहार भी है
आज उत्सव है मदन का
पर्व है ये  मधु मिलन का
प्रीत का,मनमीत का दिन
मचलते  संगीत का दिन
         आज रंगों में बरसता,
          प्यार है,मनुहार भी है
         आज होली  दिवस भी है,
          रंगों का  त्योंहार भी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 19 मार्च 2016

बीबी का एडिक्शन

           बीबी का एडिक्शन

जिस दिन खाने को ना मिलती ,है बीबीजी  डाट हमे ,
     वो सारा का सारा  दिन ही, सूना सूना सा लगता  है
जिस सुबह नहीं हमको मिलती ,उनकी हाथों की बनी चाय ,
     उस दिन गायब रहती चुस्ती ,और मन सुस्ती से भरता है
जिस उनके हाथों छोंकी , है दाल न होती थाली में,
       उस दिन रोटी का टुकड़ा भी,मुश्किल से गले उतरता है
जिस दिन न मिले उनकी झिड़की,खुल ना पाती दिल की खिड़की
      जिस दिन तकरार नहीं होती ,उस दिन ना प्यार उमड़ता है
जिस दिन वो नहीं रूठती है,मिलता ना मज़ा मनाने का ,
      उनकी लुल्लू और चप्पू में  ,आता आनन्द निराला है
वो नाज़ ,अदायें नखरों से हर रोज लुभाती रहती है ,
    हो जाती  मेहरबान जिस दिन ,तो कर देती मतवाला है
जिस दिन ना देती है पप्पी ,वो ऑफिस जाने के पहले ,
   उस दिन जाने क्यों ऑफिस में ,दिन भर झुंझलाहट रहती है
इतना 'एडिक्ट'हो गया हूँ ,मैं इस 'लाइफ स्टाइल 'का ,
   ना चलता उन  बिन काम भले ,कितनी ही खटपट  रहती है

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'        
     

फिसलन

      फिसलन

फिसलता कोई कीचड़ में ,फिसलता कोई पत्थर पर
कोई चिकनाई में  फिसले ,कोई  बर्फीले  पर्वत  पर
कोई  फिसले है चढ़ने में,कोई फिसले उतरने  में
फिसलने कितनी ही आती ,सभी के आगे  बढ़ने में
जो पत्थर पर पड़ा पानी ,फिसलते लोग है अक्सर
बड़ा फिसलन भरा  होता ,है पानी में पड़ा पत्थर
फिसलना एक क्रिया जो,न की जाती पर हो जाती
उन्हें जब हम पकड़ते है,वो हाथों से फिसल  जाती
हसीं हो जिस्म और चेहरा ,फिसलती नज़रें है सबकी
बड़ी फिसलन भरी होती, है ये राहें महोब्बत  की
जुबां  गलती से जो फिसले ,बात में में फर्क हो जाता
हंसाई जग में होती है  और बेड़ा गर्क  हो   जाता
फंसा लालच के चक्कर में,फिसल इंसान जाता है
चंद  चांदी के सिक्कों पर ,फिसल  ईमान जाता है
फिसलती हाथ  से सत्ता और पत्ता कटता है जिनका
उन्हें रह रह सताता है ,जमाना बीते उन दिन का
जवानी जब फिसलती है ,बुढ़ापा  घेर लेता है
अर्श से फर्श पर आना ,जरा सी देर   लेता  है
बड़ी फिसलन है दुनिया में,संभल कर चाहिए चलना
 नहीं तो मुश्किलें  होगी ,पड़ेगा हाथ फिर  मलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बुधवार, 16 मार्च 2016

आओ बदल लें खुद को थोड़ा

बड़ी-बड़ी हम बातें करते,
पर कुछ करने से हैं डरते,
राह को थोड़ा कर दें चौड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

ख्वाब ये रखते देश बदल दें,
चाहत है परिवेश बदल दें,
पर औरों की बात से पहले,
क्यों न अपना भेष बदल दें ।

चोला झूठ का फेंक दे आओ,
सत्य की रोटी सेंक ले आओ,
दौड़ा दें हिम्मत का घोड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

एक बहाना है मजबूरी,
खुद से है बदलाव जरुरी,
औरों को समझा तब सकते,
खुद सब समझो बात को पूरी ।

भीड़ में खुद को जान सके हम,
स्वयं को ही पहचान सकें हम,
अहम को मारे एक हथौड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

दो चेहरे हैं आज सभी के,
बदल गए अंदाज सभी के,
अपनी दृष्टि सीध तो कर लें,
फिर खोलेंगे राज सभी के ।

पथ पर पग पल-पल ही धरे यूँ,
जब-जब जग की बात करे यूँ,
क्या कर जब तक दंभ न तोड़ा,
आओ बदल ले खुद को थोड़ा ।

-प्रदीप कुमार साहनी

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