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मंगलवार, 15 मार्च 2016

बीबी की अहमियत

      बीबी की अहमियत

एक फिलम,
'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे 'थी आई
जो लोगों के मन इतनी भायी
कि एक सिनेमा हाल में ,
कितने ही वर्षों चल गई
उन्ही सितारों की ,
एक दूसरी फिल्म,'दिलवाले'भी बनी,
पर पता ही न चला ,
कब आई,और कब गई
इस उदाहरण का इतना सा सार है
बिना दुल्हनिया के ,दिलवाले बेकार है
हमे ये हक़ीक़त समझने की जरूरत है
जिंदगी में लम्बा चलने के लिए ,
दुल्हनिया की कितनी अहमियत है

घोटू

सबसे अच्छी हीरोइन

सबसे अच्छी हीरोइन

एक दिन ,पत्नीजी ने ,अपने ही अंदाज से ,
मेरी क्लास ले ली और बोली,
एक बात बताना सच्ची सच्ची
तुमको ,फिल्म की कौनसी हीरोइन
लगती है अच्छी
मुझे लगा कि ये गंगा उल्टी क्यों बह रही है
कहीं ये मेरे पत्नीव्रत धर्म का,
 इम्तहान  तो नहीं ले रही है
अब मैं क्या बताता
किस के गुण गाता
मेरी सांप छूछन्दर वाली गति थी ,
न निगलते बनता था न उगलते
फिर भी मैंने जबाब दिया ,
थोड़ा संभलते संभलते
मैंने कहा जानेमन
मेरी जिंदगी की फिलम
की सबसे खूबसूरत हीरोइन हो तुम
जब से मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ लिया है
इन फिलम वाली हीरोइनों का,
 ख्याल ही छोड़ दिया है
वो बोली बनो मत ,मुझे सब पता है
हीरोइनों को देख कर ,
तुम्हारे मन में क्या क्या पकता है
मैंने तो यूं ही पूछ लिया था,लगाने को पता
कि मेरी और तुम्हारी चॉइस में ,
कितनी है समानता
मैंने भी अपना दिल खोल दिया
और हिम्मत करके बोल दिया
एक दीपिका पदुकोने है ,कनक की छड़ी है
उसकी आँखे बड़ी बड़ी है
लम्बी , दुबली पतली और छरहरी है
पर उसका रूप हमको भाया नहीं है
क्योंकि उसका बदन ,तुमसा गदराया नहीं है
एक अनुष्का शर्मा है ,जिसकी तरफ ,
गलती से भी नहीं झाँका है
क्योंकि विराट कोहली से उसका टांका है
हाल ही आई ,आलिया भट्ट  अच्छी है
पर अभी छोटी नादान  बच्ची है
कटरीना,जबसे रणवीर कपूर के कटी है ,
रहती  परेशान है
उसे फिर से याद  या सलमान हैं
और प्रियंका,
जिसने बजा दिया अपना विदेशों में भी डंका
कभी 'मेरीकॉम 'बन बॉक्सिंग करती है
कभी पोलिस इन्स्पेटर बन अकड़ती है
उसे तो चाहते हुए भी लगता डर है
ये आजकल की हीरोइनें ,
हमारी पसंद के बाहर है
हमारे जमाने की हीरोइनें ,
बैजन्तीमाला की तरह इठलाती थी
मालासिंहा की तरह ,धूल के फूल खिलाती थी
मीनाकुमारी की तरह ,दारू पीकर ,पति को लुभाती थी
मंदाकिनी की तरह झरने में नहाती थी
श्रीदेवी या हेमा मालिनी होती थी
स्वच्छंद विहारिणी होती थी
रूप में परी होती थी
यौवन से भरी होती थी
आज की हीरोइनें उनके आगे
पानी तक भी नहीं मांगे
अब तो वो भूले बिसरे गीत बन गई है
जो जब भी याद आतें है
हम गुनगुनाते है
अब तुम पूछ रही तो बताना मेरा फर्ज है
और सच कहने में क्या हर्ज है
मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ हीरोइन ,/
मेरी सास की बेटी है
जो मेरे सामने ही बैठी है
जो कभी जूही चावला सी लगती है ,
कभी राखी है ,कभी रेखा है
मैंने जब भी उसे देखा है,
नए अंदाज में देखा है
मेरी बेगम ,एक लाजबाब हस्ती है
फूल खिलाती है,जब हंसती है
जिसके आगे छोटे नबाब सैफ अली खान की,
ज़ीरो फिगर वाली,बेगम,करीना भी पानी भरती है
आजकल तो रोज रोज ही,
नयी नयी हीरोइनों का दौर है
पर तुममेरी सदाबहार हीरोइन हो,
तुम्हारी बात ही और है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 12 मार्च 2016

हम अंग्रेजी छोड़ न पाये

          हम अंग्रेजी छोड़ न पाये

अंग्रेजों ने भारत छोड़ा,हम अंग्रेजी छोड़ न पाये
रहे गुलामी में ही बंध कर,वो जंजीरें तोड़ न पाये
केवल नहीं बोलते,पढ़ते,अंग्रेजी है ,पीते ,खाते
बच्चे जाते ,इंग्लिश स्कूल ,अपनी भाषा बोल न पाते
नहीं जलेबी,पोहा,इडली,उन्हें चाहिए पीज़ा,बरगर
करे नाश्ता,खाएं पास्ता। ऐसा भूत चढ़ा है सर पर
कहते है माता को मम्मी,'डेड'पिताजी को कहते है
बिन शादी के,लड़की लड़के ,पति पत्नी जैसे रहते है
धर्म कर्म और संस्कार को,इनने बिलकुल भुला दिया है
मातपिता को वृद्धाश्रम में ,भेज दिया और रुला दिया है
इंग्लिश में तारीफ़ करते है ,इंग्लिश में देते है गाली
इनके लिए ,महज छुट्टी ही ,होती होली और दिवाली
यूं त्योंहार मनाया जाता ,होटल जाते ,खाना खाने
जबसे 'योग 'बना है 'योगा',इसे लगे है ये अपनाने
भूल गए 'बसंत पंचमी' 'वेलेंटाइन'दिवस मनाते
दे कर कार्ड ,मदर फादर डे ,को है अपना फर्ज निभाते
राग रागिनी ,ना मन भाती, पाश्चात्य संगीत  लुभाता 
इंग्लिशदां लोगों से मिलना जुलना और रखते है नाता
भारतीय संस्कृति भुला कर ,पाश्चात्य में ऐसे भटके
न तो इधर के,नहीं उधर के ,बने त्रिशंकु से हम लटके
वेद,उपनिषद,गीता,गंगा, से हमख़ुद को जोड़ न पाये
अंग्रेजों ने भारत छोड़ा ,हम अंग्रेजी ,छोड़  न पाये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मारे गए गुलफाम

       मारे गए गुलफाम

मुझको उनने घास तक डाली नहीं ,
         खेत कोई और ही आ चर  गया
चवन्नी को मुझको तरसाते रहे ,
         और तिजोरी ,दूसरा ले भर गया
मुझको मीठी मीठी बातों से लुभा ,
मिठाई के लिए ,ललचाते  रहे ,
मिठाई का डिब्बा मेरे सामने ,
        दूसरा ही कोई आ ,चट  कर गया
या तो तुम चालू थी या वो तेज था ,
या मैं ही बुद्धू था,गफलत में रहा ,
नग जो जड़ना था अंगूठी में मेरी ,
           दूसरे की अंगूठी में जड़ गया
शराफत में अपनी फजीयत कराली,
मुफ्त में मारे  गए ,गुलफाम हम,
प्रेमपाती हमने थी तुमको  लिखी,
         दूसरा ही कोई आकर पढ़ गया
क्या बताएं आशिकी में आपकी,
किस कदर का ,जुलम है हम पर हुआ ,
हमको ऊँगली तलक भी छूने न दी,
         दूसरा ,पंहुची पकड़ कर,बढ़ गया
हमने सोचा था,हंसी तो फस गई ,
उल्टा मुश्किल में फंसा हम को दिया ,
चौबे जी ,दुबे जी  बन कर रह गए ,
         छब्बे जी बनने का चक्कर मर गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बेटियां

                        बेटियां

बेटी को तो 'बेटा' कह कर ,अक्सर लोग बुलाते है
पर भूले से, भी बेटे को  ,'बेटी'  कह  ना   पाते  है
बेटी होती भले परायी , अपनापन  ना  जाता  है 
बेटा ,अपना होकर ,अक्सर, बेगाना  हो जाता है
बेटी ,शादी होने पर भी ,गुण  पीहर के  गाती  है
बेटे के सुर बदला करते ,जब  शादी हो जाती है
बेटे ,उदगम भूल ,नदी का ,चौड़ा पाट  देखते  है
अपना पुश्तैनी सब ,वैभव  ,ठाठ और बाट देखते है 
आज ,बदौलत जिनकी उनने ,ये धन दौलत पायी है
तिरस्कार ,उनका करते है, जिनकी सभी कमाई है
हक़ रखते ,उनकी दौलत पर,उन्हें  समझते नाहक़ है
लायक उन्हें बनाया जिनने ,वो लगते नालायक  है
वृद्ध हुए माँ बाप , दुखी हो,घुटते  रहते  है मन में
बेटे ,उनको बोझ समझ कर ,छोड़ आते ,वृद्धाश्रम में
या फिर उनको  छोड़ अकेला,खुद विदेश बस जाते है
केवल उनका ,अस्थिविसर्जन ,करने भर को आते है
माता पिता , वृद्ध जब होते,रखती ख्याल बेटियां है
उनके ,सब सुख दुःख में करती ,साझसँभाल  बेटियां है
क्योंकि बेटियां ,नारी होती, उनमे ममता  होती है
दो परिवार ,निभाया करती,उनमे क्षमता  होती है
बेटी तो  अनमोल निधि है,और प्यार का सागर  है
खुशनसीब वो होते जिनको,  बेटी देता  ईश्वर  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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