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शनिवार, 16 जनवरी 2016

देशी खाना

       देशी खाना

रोज रोज तू  नूडल खाये,बर्गर खाये, पीज़ा
जंक फ़ूड पर आज देश का ,बच्चा बच्चा रीझा
        कभी खा देशी खाना लाल
       बढ़ाये सेहत ,स्वाद  कमाल
सोने सी मक्का की रोटी ,सौंधा सरसों का साग
गुड के संग तू खा ले बेटा ,जाग जाएंगे भाग
        साथ में तड़के वाली दाल
         बढ़ाये सेहत ,स्वाद कमाल
मीठा गुड की गरम लापसी, डाल ढेर सा  घी
एक बार खा,बार बार फिर ,ललचायेगा जी
        साथ में गरम कढ़ी तू डाल
         बढ़ाये सेहत, स्वाद  कमाल
सोंधी सोंधी खुशबू वाली ,प्यारी बाटी ,दाल
और साथ में चाख चूरमो ,घी से माला माल
         साथ में हो चटनी की झाल
          बढ़ाये सेहत स्वाद  कमाल
महाराष्ट्र का झुनका भाकर ,दक्षिण, इडली,डोसा 
 बहुत भायेगा तुझे बिहारी, प्यारा  लिट्टी चोखा
         और फिर रसगुल्ला, बंगाल
           बढ़ाये सेहत ,स्वाद कमाल
उबले ताजे गन्ना रस में ,चावल वाली खीर
सबका मन सदियों से मोहे,क्या रांझा ,क्या हीर
         स्वाद की इसके नहीं मिसाल
          बढाए सेहत, स्वाद  कमाल
नयी उमर की नयी फसल तुम,हम है बीते कल के
देख आज भी फौलादी है,हम भी उसी  नसल के
          हवा पश्चिम की,तुम  बेहाल
           बदल लेगा तू अपनी चाल 
          कभी खा देशी खाना  लाल 
           बढ़ाये सेहत ,स्वाद  कमाल  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
             

 
एक बार खा ,याद आएगी ,तुझे देश की मिट्टी
              
                 

उलझन

        उलझन

बाले , तेरे बाल जाल में , उलझ  गए  है  मेरे  नैना
इसीलिये श्रृंगार समय तुम उलझी लट सुलझा मत लेना
 अगर लगा कर कोई प्रसाधन ,धोवो और संवारो जब  तुम,
बहुत मुलायम और रेशमी ,होकर सभी निखर  जाएंगे
इन्हें सुखाने,निज हाथों से ,लिए तोलिया ,जब झटकोगी ,
एक एक कर ,जितने भी है,मोती  सभी ,बिखर  जाएंगे
कुछ तो गालों को चूमेंगे ,कुछ  बिखरें  तुम्हारे  तन पर ,
किन्तु बावरे मेरे नैना ,इन्हे फिसलने, तुम देना मत
क्योकि देर तक साथ तुम्हारा ,इन्हे उलझने में मिलता है ,
कंचन तन पर फिसल गए तो ,बिगड़ जाएगी इनकी आदत
 ये भोले है,ये क्या जाने ,उलझन का आनंद  अलग है ,
कोई उलझ उलझ कर ही तो,अधिक देर तक ,रहता टिक है
चुंबन हो कोमल कपोल का, या सहलाना कंचन काया ,
होता बहुत अधिक रोमांचक ,लेकिन वह सुख ,बड़ा क्षणिक है
इसीलिये जब लट  सुलझाओ ,अपने मन की कंघी से तुम,
इनको जैसे तैसे करके ,अपने पास रोक तुम लेना
बाले,तेरे बाल जाल  में ,उलझ गए है मेरे नैना
इसीलिये  श्रृंगार समय तुम ,उलझी  लट सुलझा मत लेना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

एक अरसा गुजर गया

     एक अरसा गुजर गया

सोने की लालसा ,
आग की सुनहरी लपटों की तरह ,
इस तरह फ़ैल रही है ,
कि आदमी के जागने और सोने में,
कोई अंतर ही नहीं रह गया है 
नैतिकता ,जल रही है,
और रह रह कर ,
काले धुवें का गुबार ,
 वातावरण को  
इस तरह आच्छादित कर रहा है,
कि  मुझे स्वच्छ नीला आसमान  देखे ,
एक  अरसा  गुजर गया है

घोटू   

साकार-निरंकार

     साकार-निरंकार

मैं कार हूँ
आविष्कार हूँ
चलायमान हूँ,
चमत्कार हूँ
      मैं कार हूँ
      विकार हूँ
      चाटुकार हूँ
      बलात्कार हूँ  
मैं कार हूँ
अहंकार हूँ
हुंकार  हूँ
हाहाकार हूँ
       मैं कार हूँ
       ओंकार हूँ
       जगती का कारक ,
       निरंकार हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 9 जनवरी 2016

हमसफर न हुए

चंद कदम भर साथ तुम रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

पग पग वादा करते ही रहे,
होकर भी एक डगर न हुए ।

तेरी बातें सुन हँसती हैं आँखें,
खुशबू से तेरी महकती सांसे,

दो होकर भी एक राह चले थे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

एक ही गम पर झेल ये रहे,
होकर भी एक हशर न हुए ।

फिर से तेरी याद है आई,
पास में जब है इक तन्हाई,

भ्रम में थे कि हम एक हो रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

अच्छा हुआ जो भरम ये टूटा,
होकर भी एक नजर न हुए ।

दिल में दर्द और नैन में पानी,
अश्क कहते तेरी मेरी कहानी,

यादें बन गये वो चंद लम्हें,
संग चल कर हमसफर न हुए,

धरा रहा हर आस दिलों का,
होकर भी एक सफर न हुए ।

-प्रदीप कुमार साहनी

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