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शनिवार, 16 जनवरी 2016

उलझन

        उलझन

बाले , तेरे बाल जाल में , उलझ  गए  है  मेरे  नैना
इसीलिये श्रृंगार समय तुम उलझी लट सुलझा मत लेना
 अगर लगा कर कोई प्रसाधन ,धोवो और संवारो जब  तुम,
बहुत मुलायम और रेशमी ,होकर सभी निखर  जाएंगे
इन्हें सुखाने,निज हाथों से ,लिए तोलिया ,जब झटकोगी ,
एक एक कर ,जितने भी है,मोती  सभी ,बिखर  जाएंगे
कुछ तो गालों को चूमेंगे ,कुछ  बिखरें  तुम्हारे  तन पर ,
किन्तु बावरे मेरे नैना ,इन्हे फिसलने, तुम देना मत
क्योकि देर तक साथ तुम्हारा ,इन्हे उलझने में मिलता है ,
कंचन तन पर फिसल गए तो ,बिगड़ जाएगी इनकी आदत
 ये भोले है,ये क्या जाने ,उलझन का आनंद  अलग है ,
कोई उलझ उलझ कर ही तो,अधिक देर तक ,रहता टिक है
चुंबन हो कोमल कपोल का, या सहलाना कंचन काया ,
होता बहुत अधिक रोमांचक ,लेकिन वह सुख ,बड़ा क्षणिक है
इसीलिये जब लट  सुलझाओ ,अपने मन की कंघी से तुम,
इनको जैसे तैसे करके ,अपने पास रोक तुम लेना
बाले,तेरे बाल जाल  में ,उलझ गए है मेरे नैना
इसीलिये  श्रृंगार समय तुम ,उलझी  लट सुलझा मत लेना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

एक अरसा गुजर गया

     एक अरसा गुजर गया

सोने की लालसा ,
आग की सुनहरी लपटों की तरह ,
इस तरह फ़ैल रही है ,
कि आदमी के जागने और सोने में,
कोई अंतर ही नहीं रह गया है 
नैतिकता ,जल रही है,
और रह रह कर ,
काले धुवें का गुबार ,
 वातावरण को  
इस तरह आच्छादित कर रहा है,
कि  मुझे स्वच्छ नीला आसमान  देखे ,
एक  अरसा  गुजर गया है

घोटू   

साकार-निरंकार

     साकार-निरंकार

मैं कार हूँ
आविष्कार हूँ
चलायमान हूँ,
चमत्कार हूँ
      मैं कार हूँ
      विकार हूँ
      चाटुकार हूँ
      बलात्कार हूँ  
मैं कार हूँ
अहंकार हूँ
हुंकार  हूँ
हाहाकार हूँ
       मैं कार हूँ
       ओंकार हूँ
       जगती का कारक ,
       निरंकार हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 9 जनवरी 2016

हमसफर न हुए

चंद कदम भर साथ तुम रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

पग पग वादा करते ही रहे,
होकर भी एक डगर न हुए ।

तेरी बातें सुन हँसती हैं आँखें,
खुशबू से तेरी महकती सांसे,

दो होकर भी एक राह चले थे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

एक ही गम पर झेल ये रहे,
होकर भी एक हशर न हुए ।

फिर से तेरी याद है आई,
पास में जब है इक तन्हाई,

भ्रम में थे कि हम एक हो रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

अच्छा हुआ जो भरम ये टूटा,
होकर भी एक नजर न हुए ।

दिल में दर्द और नैन में पानी,
अश्क कहते तेरी मेरी कहानी,

यादें बन गये वो चंद लम्हें,
संग चल कर हमसफर न हुए,

धरा रहा हर आस दिलों का,
होकर भी एक सफर न हुए ।

-प्रदीप कुमार साहनी

शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

तमाशा सब देखेंगे

          तमाशा सब देखेंगे
ऐसा क्या था ,जिसके कारण ,थे इतने मजबूर
आग लगा दिल की बाती  में,भाग गए तुम दूर ,
       पटाखा  जब फूटेगा ,तमाशा सब देखेंगे 
मन की सारी दबी भावना ,राह हुई अवरुद्ध
इतना ज्यादा भरा हुआ है ,तन मन में बारूद
एक हल्की चिंगारी भी ,विस्फोट करे भरपूर
        पटाखा जब फूटेगा ,तमाशा सब देखेंगे
इतने घाव दे दिए तुमने ,अंग अंग में है पीर
लिखी विधाता ने ये कैसी ,विरहन की तक़दीर
मलहम नहीं लगा तो ये बन जाएंगे नासूर
           बहे पीड़ा की लावा  ,तमाशा सब देखेंगे
तुमने  झूंठी प्रीत दिखा कर,करा दिया मदपान
भरे  गुलाबी  डोर आँख में  ,होंठ  बने  रसखान
जब भी पान रचेगा ला कर ,इन होठों पर नूर ,
           बदन सारा महकेगा ,तमाशा सब देखेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

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