एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

टी वी और बुढ़ापा

            टी वी और बुढ़ापा

न होती चैनलें इतनी,न इतने सीरियल होते ,
बताओ फिर बुढ़ापे में,गुजरता वक़्त फिर कैसे
बिचारा एक टीवी ही ,गजब का है जिगर रखता ,
छुपा कर दिल में रखता है ,फ़साने कितने ही ऐसे
कभी भी हो नहीं सकता ,कोई 'ओबिडियन्ट' इतना,
कि जितना होता है टीवी ,इशारों पर,बदलता  स्वर
नाचता रहता है हरदम ,हमारी मरजी के माफिक ,
भड़ासें अपनी हम सारी ,निकाला करते है उसपर
हमेशा  ही किये  नाचा   ,हम बीबी के  इशारों पर,
नहीं ले पाये पर बदला, सदा हिम्मत ही  हारी है
इसलिए  हाथ में रिमोट ले,जब बदलते चैनल ,
ख़ुशी   होती है कम से कम ,कोई सुनता हमारी है
कभी देखे नहीं थे जो ,नज़ारे हम ने दुनिया  के ,
वो सतरंगी सभी चीजे ,दिखाता हमको टीवी है
फोन स्मार्ट भी अब तो , हमारे हाथ आया है ,
हुए इस युग में हम पैदा ,हमारी खुशनसीबी है
दूर से बैठे बैठे ही ,शकल हम देखते सबकी ,
तरक्की इतनी कर लेंगे ,कभी सोचा न था ऐसे
न होती  चैनलें इतनी ,न इतने सीरियल होते,
बताओ फिर बुढ़ापे में, गुजरता वक़्त फिर कैसे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

जानवर और मुहावरे

           जानवर और मुहावरे

कितनी अच्छी अच्छी बातें,हमें जानवर है सिखलाते
उनके कितने ही मुहावरे , हम  हैं  रोज  काम में लाते
भैस चली जाती पानी में ,सांप छुछुंदर गति हो जाती
और मार कर नौ सौ चूहे ,बिल्ली जी है हज को जाती
अपनी गली मोहल्ले में  आ ,कुत्ता शेर हुआ करता है
रंगा सियार पकड़ में आता ,जब वो हुआ,हुआ करता है
बिल्ली गले कौन बांधेगा ,घंटी,चूहे सारे  डर जाते है 
कोयल और काग जब बोले , अंतर तभी  समझ पाते है
बॉस दहाड़े दफ्तर में पर ,घर मे भीगी बिल्ली बनता
सांप भले कितना टेढ़ा हो,पर बिल में है सीधा घुसता
 काटो नहीं ,मगर फुंफ़कारो ,तब ही सब दुनिया डरती है
देती दूध ,गाय की  लातें , भी हमको सहनी पड़ती है
मेरी बिल्ली ,मुझसे म्याँऊ ,कई बार ऐसा होता है
झूंठी प्रीत दिखाने वाला ,घड़ियाली  आंसू  रोता है
चूहे को चिंदी मिल जाती ,तो वह है बजाज बन जाता
बाप मेंढकी तक ना मारी  , बेटा  तीरंदाज  कहाता
कुवे के मेंढक की दुनिया ,कुवे में ही सिमटी  सब है
आता ऊँट  पहाड़ के नीचे ,उसका गर्व टूटता  तब है
भले दौड़ता हो तेजी से ,पर खरगोश हार जात्ता है
कछुवा धीरे धीरे चल कर ,भी अपनी मंजिल पाता है
रात बिछड़ते चकवा,चकवी ,चातक चाँद चूमना चाहे
बन्दर क्या जाने अदरक का ,स्वाद भला कैसा होता है
रोटी को जब झगड़े बिल्ली ,और बन्दर झगड़ा सुलझाये
बन्दर बाँट इसे कहते है,सारी  रोटी खुद खा जाए
कोई बछिया के ताऊ सा ,सांड बना हट्टा कट्टा है
कोई उल्लू सीधा करता ,कोई उल्लू का पट्ठा  है
मैं ,मैं, करे कोई बकरी सा ,सीधा गाय सरीखा कोई
हाथी जब भी चले शान से ,कुत्ते भोंका करते यों  ही 
चींटी के पर निकला करते ,आता उसका अंतकाल है
रंग बदलते है गिरगट  सा ,नेताओं का यही हाल है
कभी कभी केवल एक मछली ,कर देती गन्दा तालाब है
जल में रहकर ,बैर मगर से ,हो जाती हालत खराब है
उन्मादी जब होगा हाथी ,तहस नहस सब कुछ कर देगा
है अनुमान लगाना मुश्किल,ऊँट कौन करवट  बैठेगा
जहाँ लोमड़ी पहुँच न पाती,खट्टे वो अंगूर बताती
डरते बन्दर की घुड़की से ,गीदड़ भभकी कभी डराती
सीधे  है पर अति होने पर,गधे दुल्लती बरसाते है
साधू बन शिकार जो करते ,बगुला भगत कहे जाते है
ये सच है बकरे की अम्मा ,कब तक खैर मना पाएगी
जिसकी भी लाठी में दम है ,भैस उसी की  हो जायेगी
कौवा चलता चाल हंस की ,बेचारा पकड़ा  जाता है
धोबी का कुत्ता ना घर का,और न घाट का रह पाता है
 घोडा करे  घास से यारी ,तो खायेगा  क्या बेचारा
जो देती है दूध ढेर सा ,उसी गाय को मिलता चारा
दांत हाथियों के खाने के ,दिखलाने के अलग अलग है
बातें कितनी हमें  ज्ञान की ,सिखलाते पशु,पक्षी सब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

ईश्वर पूजन और मनोकामना

 ईश्वर पूजन और मनोकामना

हम विघ्नहर्ता गणेशजी की,
 आराधना करते है
और उनसे ये याचना करते है
हमें सुख ,शांति,समृद्धि दे ,
व्यापार में वृद्धि दे
ऋद्धि और सिद्धि दे
जब क़ि हम ये जानते है,
ऋद्धि और सिद्धि ,गणेशजी की पत्नियां है
जो खड़ी रहती है उनके दांये,बाएं
हमारी ये कैसी आस्था है
पूजा कर,मोदक चढ़ा,
हम उनसे उनकी पत्नियां ,
ऋद्धि सिद्धि मांगते है,
ये हमारे लालच की पराकाष्ठा है
हम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं
और कामना करते है लष्मी को पाने की
यहाँ भी हमारी कोशिश होती है ,
उनकी पत्नी को हथियाने की
हम शिव जी की करते है भक्ती
और मांगते है उनसे  शक्ति
जबकि शक्ति स्वरूपा दुर्गा उनकी पत्नी है,
हम ये जानते है
फिर भी हम उनसे उनकी पत्नी,
याने  शक्ति मांगते है
कृष्ण के मंदिर में जाकर हम उन्मादे
रटा  करते है 'राधे राधे'
सबको पता है राधा कृष्ण के प्रेयसी है
उनके दिल में बसी है
इसतरह किसी की प्रेयसी नाम
उसी के सामने जपना ,सरे आम
वो भी सुबह शाम
जिससे वो हो जाए हम पर मेहरबान 
अरे कोई भी भगवान
हो कितना ही दाता और दयावान
आशीर्वाद देकर तुम्हे समृद्ध बनाएगा
पर क्या अपनी पत्नी ,
भक्तों में बाँट पायेगा
फिर भी ,हम थोड़ी सी पूजा कर ,
और चढ़ा कर के परसाद
करते है उनसे उनके पत्नी की फ़रियाद
और उसको पाने की ,
कामना करते हर पल है
सचमुच,हम कितने पागल है
घोटू 

मच्छर की फ़रियाद

                  मच्छर की फ़रियाद

गौर वर्ण तुम सुन्दर देवी ,मै अदना सा मच्छर काला
तुम्हारे गालों  पर  बैठूं , करूं रूप रसपान तुम्हारा
गोरे हाथों में काला'हिट' लेकर तुम मुझ पर बरसाती
इधर उधर उड़ता फिरता मैं ,नानी मुझे याद आ जाती
तुम हिटलर सी 'हिट'लेकर के,करती बहुत जुलम हो मुझ पर
मुश्किल से मैं जान बचाता ,तुम्हारी जुल्फों में छिप कर
पर तुमतो बगदादी जैसी ,बन जाती हो एक जेहादी
बड़ी क्रूर ,आतंकी बनकर ,सदा चाहो मेरी  बरबादी
या नरेंद्र मोदी सी बन कर ,जब तुम्हारा जादू चलता
मेरी हालत कॉंग्रेस सी ,हो जाती पतली  और खस्ता
तुम्हे पता है ,हम सब मच्छर ,पानी में है पनपा करते
पानीदार तुम्हारा चेहरा ,इसीलिये है उस पर मरते
गोर गालों पर काला तिल,बनू ,निखारूँ रूप तुम्हारा
मुझ पर दया करो तुम देवी ,मैं तुम्हारा ,आशिक प्यारा 
गौर वर्ण तुम सुन्दर देवी ,मैं अदना सा मच्छर काला    
तुम्हारे गालों पर बैठूं ,करूँ  रूप  ,रसपान  तुम्हारा
   
मदन मोहन बाहेती'घोटू'               

 '

मूल तो फिर मूल है पर ब्याज प्यारा है...


हलचल अन्य ब्लोगों से 1-