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बुधवार, 9 सितंबर 2015

मच्छर की दीवानगी

     मच्छर की दीवानगी

एक मच्छर मतवालो ,प्यार में दीवानो भयो,
ढूंढत रह्यो ,इहाँ उहाँ ,अपनी  मच्छरानी कूँ 
गुनन गुनन गीत गाय,गाँव गाँव ,गली गली ,
फिरत रह्यो,टेरत रह्यो ,प्रीतम  दीवानी  कूँ
सुन्दर सी नारी के ,गालन पर तिल देख्यो ,
चिपट गयो तिल पर जा,मच्छरानी जानी कूँ
अंधे के हाथन में ,जैसे की बटेर लगी,
ढूंढत रह्यो मच्छरानी ,पाय गयो रानी कूँ

घोटू

ग़ज़ल

       ग़ज़ल
यहाँ  कुछ  लोग  मच्छराना है
जिनकी आदत ही भिनभिनाना है
गाल पर बैठना है चुपके से ,
और हौले से काट जाना है
बजन हल्का है बात हलकी है,
रोग भारी मगर फैलाना  है
काम करते है अब अँधेरे में ,
रौशनी देख मुंह छिपाना है
 बात करते है आग शोलों की,
डर के धुँवें से भाग जाना है
चूसते रहते खून है सबका ,
शौक बतलाते आशिकाना है
कौन है,कितने है क्या बतलाएं,
आपने ,हमने ,सबने जाना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 5 सितंबर 2015

हे माखन के चोर तुम्हारा स्वागत है...


हे माखन के चोर तुम्हारा स्वागत है
हे राधा चितचोर तुम्हारा स्वागत है
आओ लाओ सतयुग त्रेता द्वापर तुम
ये कलियुग घनघोर तुम्हारा स्वागत है...

छेड़ो ऐसी बंसी की धुन जग झूमे
तुम बोलो जैसे वैसे ही जग घूमे
कर दो कुछ ऐसा कि प्रेम की पवन चले
हे मनमोहन आओ तुम्हारा स्वागत है...

फिर से मित्र सखाओं का तुम नारा दो
व्याप्त अनैतिकताओं को घाव करारा दो
दिखलाओ लीला ऐसी कि पाप मिटे
है लीलाधर आओ तुम्हारा स्वागत है...

दो गीता का ज्ञान सभी को नई तरह से
खोलो अंतर्मन के द्वार सभी के नई तरह से
काम क्रोध मद मोह सभी की अति रोको
हे योगिराज - हे कृष्ण तुम्हारा स्वागत है
हे 'सबसे चर्चित मित्र'तुम्हारा स्वागत है...

- विशाल चर्चित

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

कच्चा -पक्का

      कच्चा -पक्का
कच्ची उमर का प्यार
रहता है दिन चार
कचनार की कच्ची कली
लगती है मन को भली
कच्चे धागों का बंधन
बांधे रखता है आजीवन
कच्ची नींव पर बनी इमारत 
खड़ी रहेगी कब तक?
जो  कान का कच्चा होता है
कई बार खाता धोखा है
कच्ची केरी जब पकती है
मिठास से भरती  है
आम जब ज्यादा पक जाता है
डाल से टपक जाता है 
पका हुआ पान
न खांसी  न जुकाम
कोई अपनी बातों से पका देता है
सबको थका देता है
पका हुआ खाना जल्दी पचता है
पक्का रंग मुश्किल से निकलता है
संगीत के सुरों से सजता है गाना पक्का
आजकल तो पैसा भी होता है कच्चा पक्का 

घोटू

दो क्षणिकाएँ

      दो क्षणिकाएँ
             १
वो बेटा ,
जो होता है माँ बाप की आँखों का तारा,
जिसमे उनके प्राण अटकते है
बूढ़े होने पर वो ही माँ बाप ,
उस बेटे की आँखों में खटकते है
               २
वृक्ष की डाल ,
जब फलों से लद  जाती है ,
थोड़ी झुक जाती है
आदमी ,बुढ़ापे में ,
जब अनुभव से लद जाता है,
उसकी कमर झुक जाती है
समझदार ,वो कहलाते है
जो लदे  हुए फलों का
और बुढ़ापे के अनुभवो का ,
फायदा उठाते है

घोटू 

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