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गुरुवार, 20 नवंबर 2014

बदलाव -बढ़ती उमर का

            बदलाव -बढ़ती  उमर का

पेट कल भी भरा करता था इसी से ,
                पेट भरती  आजकल  भी तो यही है
फर्क ये है कल गरम फुलका नरम थी,
                आजकल ये डबल रोटी   हो गयी  है
साथ जिसके जागते थे रात भर हम ,
                  जगाती  है हमें अब भी ,रात भर वो
तब जगा  करते थे मस्ती मौज में हम,
                 नहीं सोने देती है अब खांस कर वो
पहले सहला ,लगा देते आग तन में,
                 हाथ नाजुक ,कमल पंखुड़ी से नरम जो
हो गए है आजकल वो खुरदुरे से ,
                 अब भी राहत देते है खुजला   बदन को
था  ज़माना प्रेम से हमको खिलाती ,
                  कभी रसगुल्ला ,जलेबी या मिठाई
आजकल  मिठाई पर पाबंदियां है ,
                  देती सुबहो शाम है हम को दवाई  
रोकती हमको पुरानी हरकतों से ,
                   कहती ब्लडप्रेशर  तुम्हारा बढ़ न जाये
जोश होता हिरण ,रहते मन मसोसे ,
                    बुढ़ापे ने हमको क्या क्या  दिन दिखाये

मदन मोहन बाहेती''घोटू'

सोमवार, 17 नवंबर 2014

तुम्हारे हाथों में

              तुम्हारे हाथों में

जो हाथ पकाते जब खाना ,तो गजब स्वाद भर जाता है
छू लेती जिन्हे हरी मेंहदी ,तो लाल रंग   रच जाता   है
जिन हाथों का कर पाणिग्रहण ,रिश्ता बंधता जीवन भर का
जिन हाथों की ही फुर्ती से ,चलता है काम सभी घर का
जो हाथ प्रेम से सहला कर ,पति मन में प्रेम जगाते है
जिन हाथों के ही बाहुपाश में ,दो प्रेमी बंध  जाते है
जिन हाथों में आ पैसा भी ,बहती गंगा बन जाता है
बस एक इशारा जिनका सब पतियों को खूब नचाता है
जिन हाथों में बेलन आता ,तो रोटी बना खिलाता है
गुस्से में पर वो ही बेलन ,हथियार बड़ा बन जाता है
रोता बच्चा खुश हो जाता है आकर के जिन हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
 
मदन मोहन  बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

शिकायत-तकिये की

         शिकायत-तकिये की

एक तकिये ने अपनी मालकिन से की ये शिकायत ,
              अकेले छोड़ कर के  साहब को जब आप जाते है
आप तो चैन से मइके में जाकर मौज करते है,
                इधर दो रात मे ही निकल मेरे प्राण   जाते है
बदल जाता है मेरा हुलिया ,हालत बिगड़ती है,
                 मौन सहता हूँ सब कुछ ,बोल भी तो मैं नहीं  सकता,
कभी टेढ़ा ,कभी सीधा,कभी ऐसे ,कभी वैसे,
                  बड़ी बेरहमी से साहब जी, मुझको दबाते है

घोटू 

जाती बहार के फल

        जाती बहार के फल

खिलता है तो लगता है सुहाना और महकता ,
                मौसम में  हर एक फूल पर चढ़ता शबाब है
अनुभव की बात आपको लेकिन हम बताएं ,
                  गुलकंद बन ,अधिक मज़ा देता  गुलाब है
मौसम में तो मिलते थे हमें रोज ही खाने ,
                  अब मुश्किलों से मिलते है,वो भी कभी कभी,
खाकर के देखो आम तुम जाती बहार के ,
                    पड़ जाते नरम,स्वाद में पर लाजबाब है

घोटू

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