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शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

मन उच्श्रृंखल

          मन उच्श्रृंखल

इधर उधर भटका करता है ,हर क्षण,हरपल
मन उच्श्रृंखल 
कभी चाँद पर पंहुच ,सोमरस पिया करता
कभी चांदनी साथ किलोलें ,किया करता
करता है अभिसार कभी संध्या के संग में
हो जाता है  लाल , कभी  उषा  के  रंग में
कभी तारिकाओं के संग है मौज मनाता
कभी बांहों में,निशा की,बंध  कर खो जाता
सो जाता है कभी ओढ़ ,रजनी  का आँचल
मन उच्श्रृंखल
कभी किरण के साथ ,टहलने निकला करता
कभी भोर के साथ ,छेड़खानी  है करता
कभी पवन के साथ,मस्त होकर है  बहता
कभी कली के आस पास मंडराता रहता
कभी पुष्प रसपान किया करता ,बन मधुकर
कलरव करता ,कभी पंछियों के संग ,उड़ कर
नहीं किसी के बस में ये दीवाना ,पागल
मन उच्श्रृंखल  
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

समझदार औरतें

          समझदार औरतें

              फायदा
सर्दियों के शुरू होने के पहले ,
खरीदती है गर्मियों के कपडे
और गर्मियों केशुरु होने पर,
ऊनी कपडे खरीद कर लाती है
सुनने में तो अजीब लगता है,
लेकिन कुछ समझदार औरतें,
'ऑफ सीजन डिस्काउंट सेल'का ;
फायदा इस तरह उठाती है

           देर से आने की दुआ

बच्चे देर से आते हैं ,तो घबराती है
पति देर से आये तो खफा हो जाती है
मगर 'डोमिनो 'में पिज़्ज़ा का ऑर्डर देकर ,
उसके देर से आने की दुआ मनाती है

घोटू

तीन सामयिक क्षणिकाए

तीन सामयिक क्षणिकाए
            साहस
फंसे कानूनी फंदे में ,बड़े नामी थे एडीटर
बहुत जो संत पूजित थे ,आज है जेल के अंदर
कृष्ण खुद को बताते थे ,भटकते साँई है दर दर
एक लड़की के साहस ने ,दिया है देखो क्या क्या कर

           पुलिस वाले
हम पुलिस वाले है
हमारी मजबूरियों के भी अंदाज निराले है
आज की  राजनैतिक व्यवस्था को कोसते है
क्योंकि कल तक डंडे से ठोकते थे,
आज उन्हें सलाम ठोकते है

          नया कुत्ता
मेरी गली के ,दूसरी मंजिल के फ्लेट में,
किसी ने एक कुत्ता पाला
गली के कुत्तो ने ,उसकी आवाज सुनी ,
हंगामा कर डाला
उनकी गली में नया कुत्ता आ जाये ,
वो हजम ना कर पाये
इसलिए ,उसके फ्लेट के नीचे ,
भोंकते रहे,चिल्लाये
पर जब   कुछ बस न चला तो चुपचाप,
रिरियाते ,अपने आप
फ्लेट की नीची सीढ़ी के आसपास ,
कर के चले गए पेशाब

घोटू 
 

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

जवानी सलामत रहे

               जवानी सलामत रहे

नाती ,पोते पोतियों की शादियां होने लगी ,
                उसपे भी हम कहते हैं कि सलामत है जवानी
इसी जिंदादिली ने है अभी तक ज़िंदा रखा ,
                  वरना अब तक खत्म हो जाती हमारी कहानी
बुढ़ापा तन का नहीं,अहसास मन का अधिक है ,
                   जंग हमको बुढ़ापे से ,लड़ते रहना   चाहिये
सोचता है जिस तरह ,इंसान बनता उस तरह,
                    हमेशा खुद को जवां ,हमको समझना चाहिये
घोटू     

नाम

             नाम

होते है सबके अलग अलग ,अपने नाम है
कुछ नाम कमाते है करके नेक काम  है
होते ही पैदा सबसे पहले मिलती चीज जो ,
होती जो तुम्हारी है ,वो तुम्हारा  नाम है
बच्चे के पीछे नाम रहता उसके बाप का,
बीबी के पीछे रहता वो शौहर का नाम है
करते है बुरे काम जो,बदनाम वो होते,
बदनाम जो हुए तो क्या,उसमे भी नाम है  
लगती जो पीछे नाम के दुम जात पात की,
होता बिगड़ना चालू ,यहीं पर से काम है
होता है शुरू सिलसिला ,अलगाव ,बैर का,
बंट  जाता कई खेमो में,इंसान आम है
कुछ राजनेता और थोड़े धरम के गुरु,
लगते चलाने अपनी अपनी ,सब दुकान है
है ईंट वही,चूना वही,वो ही पलस्तर ,
रंग जाते अलग रंग में ,सबके मकान है
तन जाती क्यों तलवारें है ,मजहब के नाम पर,
अल्लाह है वो ही,वो ही यीशु ,वो ही राम है
खिलता हुआ चमन है अपना मादरे वतन ,
हैम एक है और एक अपना हिन्दुस्थान है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

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