एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 21 मार्च 2013

काहे बखेड़ा करते है

     काहे बखेड़ा करते है 

मोह माया के चक्कर में हम,मन को मैला करते है
खुश भी होते,परेशान भी,मुश्किल झेला करते है
ऊपर चढ़ते है इठला कर,झटके से नीचे गिरते ,
खेल सांप का  और सीडी का ,हरदम खेला करते है
कोई जरा बुराई करदे ,तो उतरा करता चेहरा ,
कोई जब   तारीफ़ कर देता,खुश हो फैला करते है
सब से आगे बढ़ने की है जिद हममे  इतनी रहती,
सभी परायों और अपनों को,पीछे ठेला करते है
बिना सही रस्ता पहचाने ,पतन गर्द में गिर जाते,
बिना अर्थ जीवन का जाने,व्यर्थ झमेला करते है
खाली हाथों आये थे और खाली हाथों जायेंगे,
कुछ भी साथ नहीं जाता पर तेरा मेरा करते है
'घोटू'जितना भी जीवन है,हंसी ख़ुशी जी भर जी लें ,
उठक पटक में उलझा खुद को,काहे  बखेड़ा  करते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अविरल जीवन

        अविरल जीवन

जल से बादल,बादल से जल
मेरा जीवन चलता अविरल
सुख आते है,मन भाते है
संकट आते,टल जाते है 
कभी गरजना भी पड़ता है
कभी कड़कना भी पड़ता  है
कभी हवा में उड़ता चंचल
जल से बादल ,बादल से जल
कभी रुई सा उजला,छिछला
विचरण  करता हूँ मै  पगला
कभी प्रसव पीड़ा में काला
होता जल बरसाने वाला
घुमड़ घुमड़ छाता धरती पर
जल से बादल,बादल से जल
उष्मा से निज रूप बदलता
तप्त धरा को शीतल करता
उसे हरी चूनर पहराता
विकसा बीज,खेत लहराता
बहती नदिया,भरे सरोवर
जल से बादल,बादल से जल

मदन मोहन बाहेती'घोटू;

बुधवार, 20 मार्च 2013

जीवन तो है चाट चटपटी

      जीवन तो है चाट चटपटी  

जीवन तो है तला पकोड़ा ,मस्त चटपटा ,गरम गरम ,
                       कोई चेप चेप चटनी से,इसके मज़े  उठाता है
है परहेज किसी को मिर्ची से या तली वस्तुओं से ,
                        'क्लोस्ट्राल 'नहीं बढ़ जाए ,खाने में घबराता है
आलू की टिक्की सा यौवन,गरम गरम ,सौंधी खुशबू,
                         जैसे लगता चाट चटपटी,मुंह में आता है पानी
कोई 'टोन्सिल 'से डरता है तो कोई 'इन्फेक्शन 'से,
                           मन ललचाता फिर भी खाने में करता आना कानी
एक गोलगप्पे से जैसा ,जब हो खाली ये जीवन,
                          इसमें भरो चटपटा पानी ,मुंह में  रख्खो ,खा जाओ
 तीन समोसे के कोनो में ,तीन लोक दर्शन कर लो ,
                            जी भर इनका मज़ा उठाओ, निज मन को मत तरसाओ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

माँ की मेहरबानियाँ

      माँ की मेहरबानियाँ

दूध ,दही,खोया पनीर या 'चीज 'नाम  कुछ भी दे दो,
               लेकिन अपने मूल रूप में,सिर्फ घास  का था तिनका
गौ माता ने मुझको अपना प्यार दिया और अपनाया ,
                निज स्तन की धारा से ,निर्माण किया है इस तन का
मुझ से ज्यादा ,क्या जानेगा ,कोई महिमा माता की ,
                 मै क्या था,माँ की ममता ने,क्या से क्या है बना दिया
दिये  पौष्टिक  गुण इतने ,भरकर मिठास का मधुर स्वाद ,
                   मै तो था एक जर्रा केवल,मुझे आसमां   बना दिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

रविवार, 17 मार्च 2013

सपने सपने -कब है अपने

सपने सपने -कब है अपने

सपने सपने
कब है अपने
ये अपने ही जाये  होते 
खुलती आँख,पराये होते
बचपन में ,राजा ,रानी के
किस्सों से ,दादी,नानी के
और वैभव के ,किशोर मन में
खो जाते ,जीवन उलझन में
कुछ सच होते,कुछ तडफाते
सपने तो है ,आते जाते
आये ,बिना बुलाये होते
खुलती आँख,पराये होते
जब यौवन की ऋतू मुस्काती
फूल विकसते,कोकिल  गाती 
कोई मन में बस जाता है
तो वो सपनो में आता   है
फिर शादी और जिम्मेदारी
रोज रोज की मारामारी
हरदम मुश्किल,ढाये होते
खुलती आँख ,पराये होते
फिर जब होती है संताने 
सपने फिर लगते है आने
बच्चे जो लिख पढ़ जायेंगे
काम बुढापे में आयेंगे  
बेटा बेटी ,अपने जाये
शादी होते,हुये पराये
बस यादों के साये  होते 
खुलती आँख,पराये होते  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-