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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

शिशु की भाषा

          शिशु की भाषा

नन्हे शिशु की,होती बस दो भाषा है
एक तो वो हँसता है ,एक वो रोता है
इन्ही दो भाषाओँ में वो,सब कुछ व्यक्त किया करता है
इन भाषाओँ की ,कोई लिपि नहीं होती,
और इन्हें समझने के लिए ,
कोई अक्षर या भाषा के ज्ञान की जरुरत नहीं होती
बच्चा जब हँसता है ,
किलकारियां भरता है ,
तो सभी के चेहरे पर खुशियाँ छाती है
उसकी मुस्कान की भाषा ,
सबको समझ में आ जाती है
पर बच्चा जब रोता है,
अपने कोमल से कपोलों को आंसूं से भिगोता है
सारा घर परेशान होता है
क्योंकि ये भाषा ,हर एक को समझ नहीं आती है
सिर्फ एक माँ है ,जो कि समझ पाती है
कि उसे भूख लगी है या पेट में दर्द है
या उसके कपडे गीले हो गए है और सर्द है
अपने कलेजे के टुकड़े की ये दो भाषाएँ
पूर्ण रूप से जिन्हें ,समझ सकती है बस मायें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

पेट के खातिर

          पेट के खातिर
पेट के खातिर न जाने ,क्या क्या करता आदमी
पेट के खातिर ही जीता और मरता  आदमी
पेट में जब आग लगती ,तो बुझाने के लिये ,
जो न करना चाहिए ,वो कर गुजरता  आदमी
नौकरी ,मेहनत  ,गुलामी,में स्वयं को बेच कर,
अपना और परिवार सबका ,पेट भरता  आदमी
खेत में हल चला कर के,अन्न उपजाता कई ,
तब कहीं दो रोटियां खा,गुजर करता  आदमी
मूक ,निर्बल जानवर को,काट,उनका मांस खा,
भूख अपनी मिटाने  में,नहीं डरता  आदमी
पाप और अपराध इतने,हो रहे संसार में ,
पेट पापी के लिए ,बनता बिगड़ता  आदमी
पेट हो खाली अगर तो,भजन भी होता नहीं,
इसलिए ,पहले भजन के ,पेट भरता आदमी
कहते हैं कि  दिल का रास्ता,पेट से है गुजरता ,
पहले भरता पेट है फिर इश्क करता  आदमी
पेट भरने के लिये  ,खटता  है और जीता है वो,
या कि जीने के लिये है,पेट भरता   आदमी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सज़ा

आज अपने दिल को सज़ा दी मैंने
उस की हर बात भुला दी मैंने 

एक एक पल दफ़ना दिया मैंने
गुलदस्ता यादों का जला दिया मैंने
बात जिस पर वो मुस्कुराती थी 
वोह हर अलफ़ाज़ मिटा दिया मैंने 

मेरी दुनिया तो खाख़ से आबाद हुई 
दिल-इ-आतिश को ही बुझा दिया मैंने 

आज यादों की मज़ार पर आई थी वोह 
मुंह फेर के अपना भुला दिया मैंने 

अब कोई रिश्ता नहीं है दरमियाँ अपने 
अकेलेपन से भी एक रिशा बना लिया मैंने 

आज अपने दिल को सज़ा दी मैंने
उस की हर बात भुला दी मैंने....

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

राजभोग से

                राजभोग से

भोज थाल में सज,सुन्दर से
भरे हुऐ  ,पिस्ता  केसर से
अंग अंग में ,रस है तेरे
लुभा रहा है मन को मेरे
स्वर्णिम काया ,सुगठित,सुन्दर
राजभोग  तू ,बड़ा मनोहर
बड़ी शान से इतराता है
तू  इस मन को ललचाता है
जब होगा उदरस्त  हमारे
कुछ क्षण स्वाद रहेगा प्यारे
मज़ा आएगा तुझ को खाके
मगर पेट के अन्दर  जाके
सब जाने नियति क्या होगी
और कल तेरी गति क्या होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपने अपने ढंग

       अपने अपने ढंग

जब भी ये आये है तो ,रोकी नहीं जाये  फिर ,
                करोगे नहीं तो देगी ,दम ये निकाल कर 
बैठे बैठे नारी करे,खड़े खड़े नर करे ,
                सड़क किनारे कभी ,तो कभी दीवार पर 
शिशु करे सोते सोते ,गोदी में या रोते रोते,
                 पंडित करे है कान  पे  जनेऊ  डाल   कर
कोई डर  जाये  करे,कोई पिट जाये  करे,
                  बूढ़े करे धीरे धीरे ,देर तक ,संभाल   कर 
टांग उठा ,करे कुत्ता,जगह को सूंघ सूंघ ,
                  बिजली का खम्बा कोई,पास देख भाल कर
करने  के सबके है ,अपने तरीके अलग,
                    बड़ा ही सुकून मिले  ,इसको निकाल कर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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