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शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

पेट पूजा

                पेट पूजा

आओ हम तुम बैठ
हाथों में ले प्लेट,
पहले पेट पूजा करें
अपना पेट भरें
क्योंकि कोई भी काम ठीक से,
तभी होता है,जब पेट भरता है 
इस पापी पेट के कारण ,
आदमी क्या क्या नहीं करता है
पेट,शरीर का वो अंग है,
जो सबसे ज्यादा आलसी और सुस्त है
हाथ ,पाँव,मुंह,आँख और दांत,
सभी काम करते है,चुस्त है
पर पेट आराम से बैठा ,
इन अंगों से काम करवाता है
और बैठा बैठा ,मजे से खाता है 
पेट,पेटी जैसा है,
इसमें सब कुछ समा जाता है
पेट की अपनी कोई पसंद नहीं होती,
वो जिव्हा की पसंद पर निर्भर है
जिव्हा ,स्वाद ले ले कर खाती है,
और बेचारा पेट,जाता भर है 
जो भी मुंह,पीता या खाता है
पेट में चला जाता है
और पेट,बैठा बैठा उसे पचाता है
पेट में सिर्फ खाना पीना ही  नहीं ,
कई चीजें जाती है
जैसे कोई खबर हो या राज की बात ,
औरतों के पेट में जाती है ,
मगर पच ना पाती है  
नेताओं का पेट बड़ा मोटा होता है,
जिसमे करोड़ों की रिश्वत समां जाती है
फिर भी उनकी भूख नहीं जाती है
गरीब का पेट ,पिचका हुआ होता है,
और मेहनत  मजदूरी करके ,जब वो कुछ खाता है 
तब पीठ और पेट का अंतर नज़र आता है 
लालाओं के पेट,काफी बड़े रहते है
जिसे तोंद कहते है
ये ऐसे लोग होते है,जो खूब खाते है ,
तोंद बढ़ाते है,
फिर तोंद के कारण ही परेशान रहते है
घबराहट में ,आदमी के पेट में पानी पड  जाता है
और ज्यादा हंसने पर पेट में बल पड़ने लगते है
और ज्यादा भूख लगने पर,
पेट में चूहे दौड़ने लगते है
बाबा रामदेव ने टी वी पर
अपना पेट हिला हिला कर ,
करोड़ों भक्त बना लिए है
और अरबों कमा लियें है
समझदार महिलायें ,जानती है ,
कि  पति को  किस तरह पटाया जाता है
वो पति के पेट का ,पूरा ख्याल रखती है,
क्योंकि ,दिल का रास्ता ,पेट से होकर जाता है
पेट के खातिर ,कितनी ही नर्तकियां
बेली डांस करती है,पेट को नचा नचा
कोई भी काम ,अच्छी तरह करने के पहले ,
पेट की पूजा की जाती है
और कोई भी काम की सिद्धि के लिए,
बड़े पेट वाले याने लम्बोदर  गणेश जी ,
को पूजा चढ़ाई जाती है
आदमी की जिंदगी का उदयकाल,
नौ महीने तक माँ के पेट में ही रहता है 
और जिंदगी भर,आदमी ,पेट के चक्कर में ही,
दिन रात काम में ही  लगा रहता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'




दुविधा


मेरे कमरे में अब
धूप नहीं आती
खिड़कियाँ खुली रहती हैं
हल्की सी रौशनी है
मन्द मन्द सी हवा
गुजरती है वहाँ से
तोड़ती है खामोशी
या शुरू करती है
कोई सिलसिला
किसी बात के शुरू होने
से खतम होने तक का ।
कुछ पक्षी विचरते हैं
आवाज़ करते हैं
तोड़ देते हैं अचानक
गहरी निद्रा को
या आभासी तन्द्रा को ।
कभी बिखरती है
कोई खुशबू फूलों की
अच्छी सी लगती है
मन को सूकून सा देती है
पर फिर भी
नहीं निकलता
सूनापन वो अकेलापन
एक अंधकार
जो समाया है कहीं
किसी कोने में ।
©दीप्ति शर्मा


शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

तुम बसंती -मै बसंती

      तुम बसंती -मै बसंती

      तुम बसंती ,मै बसंती
      लग रही है बात बनती
गेंहू बाली सी थिरकती,
                  उम्र  है बाली तुम्हारी
पवन के संग झूमती हो,
                   बड़ी सुन्दर,बड़ी प्यारी
आ रही तुम पर जवानी,
                    बीज भी भरने  लगे है
और मै तरु आम्र का हूँ,
                    बौर अब खिलने लगे है
     तुम बहुत मुझको लुभाती,
       सच बताऊँ बात मन की
         तुम बसंती, मै  बसंती
           लग रही है बात बनती
खेत सरसों के सुनहरे ,
                        में खड़ी  तुम,लहलहाती 
स्वर्ण सी आभा तुम्हारी,
                        प्रीत है मन में जगाती
डाल पर ,पलाश की मै ,
                        केसरी  सा पुष्प प्यारा
मिलन की आशा संजोये ,
                         तुम्हे  करता हूँ निहारा
       पीत  तुम भी,पीत मै भी,
      आयें कब घड़ियाँ मिलन की
         तुम बसंती,मै बसंती
         लग रही है बात बनती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मन- बसंत

                   मन- बसंत

मन बसंत था कल तक जो अब संत हो गया
अभिलाषा ,इच्छाओं का बस अंत   हो गया
जब से मेरी ,प्राण प्रिया ने करी ,ठिठौली ,
राम करूं क्या ,बूढा  मेरा   कंत     हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

मै क्या करूं

               मै क्या करूं

पत्नी की सुनता तो 'जोरू का गुलाम'हूँ,
             माँ की सुनता,तुम कहती 'मम्मी के चमचे'
बच्चों को डाटूँ  तो कहलाता हूँ 'जालिम',
              करूं प्यार तो कहती मै 'बिगाड़ता बच्चे'
घर पर रहता तो कहते मै 'घर घुस्सू'हूँ,
                बाहर रहूँ घूमता  'आवारा ' कहलाता
कम खाता तो कहती मै 'कमजोर हो रहा',
                'मोटे होकर फूल रहे' यदि ज्यादा खाता
खर्चा करता तो कहती हो 'खर्चीला 'हूँ,
                 ना करता तो कहती हो 'कंजूस'बहुत मै
मेरी  समझ नहीं आता ,क्या करूं ना करूं ,
                 कोई बताये क्या करना कन्फ्यूज बहुत मै

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

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