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सोमवार, 17 सितंबर 2012

मंहगाई ने कमर तोड़ दी

              मंहगाई ने कमर तोड़ दी

हे मनमोहन!कुछ तो सोचो,

                                 तुमने है दिल तोडा
मंहगाई ने कमर तोड़ दी,
                                 नहीं कहीं का छोड़ा
रोज रोज बढ़ते दामों का,
                               सबको लगता  कोड़ा
घोटालों से लूट देश को,
                               एसा हमें झिंझोड़ा
अब खुदरा व्यापार विदेशी,
                              हाथों में  है छोड़ा
डीजल ने दिल जला दिया है,
                             सभी चीज   का तोडा
और सातवाँ गेस सिलेंडर,
                              महंगा हुआ  निगोड़ा
लंगड़ा लंगड़ा दौड़ रहा,
                             सूरज का सातवां घोड़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 16 सितंबर 2012

जीवन झंझट

         जीवन झंझट

थोडा सा आराम मिला है, मुझको जीवन की खट पट में

कुछ इकसठ में,कुछ बांसठ में,कुछ त्रेसठ में,कुछ चोंसठ में
  चलता यह गाडी के नीचे,पाले गलत फहमियां   सारी
मै था मूरख श्वान समझता ,मुझ से ही चलती है  गाडी
जान हकीकत, मै पछताया,खटता रहा यूं ही फ़ोकट में 
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खट पट में
मै था एक कूप मंडुप सा,कूए  में सिमटी थी दुनिया
नहीं किसी से लेना देना ,,बस मै था और मेरी दुनिया
निकला बाहर तो ये जाना,सचमुच ही था ,कितना शठ मै
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खटपट में
उलझा रहा और की रट में,मं में  प्यार भरी चाहत  थी
आह मिली तो होकर आहत,राह ढूंढता था  राहत की
यूं ही फंसा रखा था मैंने,खुदको  बे मतलब,झंझट  में
थोडा सा आराम मिला है,मुझको  जीवन की खटपट में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 
 

शनिवार, 15 सितंबर 2012

जीवन लेखा

                 जीवन लेखा

जीवन के इस दुर्गम पथ पर,पग पग पर भटकाव लिखा है

कहीं धूप का रूप तपाता, कहीं छाँव  का ठावं   लिखा    है
तड़क भड़क है शहरों वाली,बचपन वाला गाँव लिखा   है
गीत लिखे कोकिल के मीठे, कागा  का भी काँव लिखा है
पासे फेंक  खेलना जुआ  ,हार जीत का दाव लिखा  है
कहीं किसी से झगडा,टंटा ,कहीं प्रेम का भाव लिखा है
 अच्छे बुरे  कई लोगों से,जीवन भर टकराव लिखा है
प्रीत परायों ने पुरसी है,अपनों से   अलगाव   लिखा है
लिखी जवानी में उच्श्रन्खलता ,वृद्ध हुए ,ठहराव  लिखा है
वाह रे ऊपरवाले  तूने,जीवन भर   उलझाव लिखा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आ प्रिये कि प्रेम का हो एक नया श्रृंगार अब.....


    आ प्रिये कि हो नयी 
         कुछ कल्पना - कुछ सर्जना,
                आ प्रिये कि प्रेम का हो 
                        एक नया श्रृंगार अब.....

       तू रहे ना तू कि मैं ना 
               मैं रहूँ अब यूं अलग
                       हो विलय अब तन से तन का 
                               मन से मन का - प्राणों का,
                                     आ कि एक - एक स्वप्न मन का
                                             हो सभी साकार अब....

              अधर से अधरों का मिलना
                      साँसों से हो सांस का,
                             हो सभी दुखों का मिटना
                                    और सभी अवसाद का,
                                           आ करें हम ऊर्जा का
                                                  एक नया संचार अब.....

                       चल मिलें मिलकर छुएं
                               हम प्रेम का चरमोत्कर्ष,
                                      चल करें अनुभव सभी
                                                आनंद एवं सारे हर्ष,
                                                        आ चलें हम साथ मिलकर
                                                                 प्रेम के उस पार अब....

                                 ध्यान की ऐसी समाधि
                                        आ लगायें साथ मिल,
                                                 प्रेम की इस साधना से
                                                         ईश्वर भी जाए हिल,
                                                                आ करें ऐसा अलौकिक
                                                                         प्रेम का विस्तार अब....

                                                                         - VISHAAL CHARCHCHIT

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

मनाने का भाव


हिंदी दिवस 
मनाने का भाव 
अपनी जड़ों को सीचने का भाव है . 
राष्ट्र भाव से जुड़ने का भाव है . 
भाव भाषा को अपनाने का भाव है . 

हिंदी दिवस 
एकता , अखंडता और समप्रभुता का भाव है . 
उदारता , विनम्रता और सहजता का भाव है . 
समर्पण,त्याग और विश्वास का भाव है . 
ज्ञान , प्रज्ञा और बोध का भाव है . 

हिंदी दिवस
अपनी समग्रता में 
खुसरो ,जायसी का खुमार है . 
तुलसी का लोकमंगल है 
सूर का वात्सल्य और मीरा का प्यार है . 

हिंदी दिवस 
कबीर का सन्देश है 
बिहारी का चमत्कार है 
घनानंद की पीर है 
पंत की प्रकृति सुषमा और महादेवी की आँखों का नीर है . 


हिंदी दिवस 
निराला की ओजस्विता 
जयशंकर की ऐतिहासिकता 
प्रेमचंद का यथार्थोन्मुख आदर्शवाद 
दिनकर की विरासत और धूमिल का दर्द है . 


हिंदी दिवस 
विमर्शों का क्रांति स्थल है 
वाद-विवाद और संवाद का अनुप्राण है 
यह परंपराओं की खोज है 
जड़ताओं से नहीं , जड़ों से जुड़ने का प्रश्न है . 

हिदी दिवस 
इस देश की उत्सव धर्मिता है 
संस्कारों की आकाश धर्मिता है 
अपनी संपूर्णता में, 
यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता है .





रचनाकार-डॉ मनीष कुमार मिश्र
असोसिएट
भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र ,
राष्ट्रपति निवास, शिमला
manishmuntazir@gmail.com

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