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बुधवार, 20 जून 2012

नींद

         नींद

बिन बुलाये चली आती,नींद ऐसी मेहमां

किन्तु ये होती नहीं है,हर किसी पे मेहरबां
नरम बिस्तर रेशमी,आना नहीं,ना आयेगी
भरी बस या ट्रेन में भी,आना है,आ जायेगी
जब किसी से प्यार होता,और दिल जाता है जुड़
बड़े लम्बे पंख फैला,नींद फिर जाती है उड़
देखने जिसकी झलक को,तरसते है ये नयन
उन्हें आँखों में बसाती,नींद ला सुन्दर  सपन
बहुत जब बेचैन होता,मन किसी की याद में
नींद भी आती नहीं है,उस विरह की रात में
और मिलन की रात में भी,नींद उड़ जाती कहीं
हो मिलन दो प्रेमियों का,बीच में आती नहीं
उठ  रहा हो ज्वार दिल में,और प्रीतम संग  है
प्रीत के उन मधु क्षणों में,नहीं करती तंग  है
ये थकन की प्रेमिका है,बंद होते ही पलक
एक मुग्धा नायिका सी,चली आती बेझिझक
है बडी बहुमूल्य निद्रा,स्वर्ण के भण्डार  से
आती है तो कहते सोना आ गया है प्यार से
गरीबों की दोस्त,खुशकिस्मत बहुत होते है वो
चैन सोने की नहीं ,पर चैन से   सोते है   वो
अमीरों से मगर इसका बैर है दिन रैन का
पास में सोना  बहुत  पर नहीं सोना चैन का
नींद है चाहत सभी की,दोस्त के मानिंद है
नींद क्या है,क्या बताएं,नींद तो बस  नींद है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



सज,संवर मत जाओ छत पर

    सज,संवर मत जाओ छत पर

इस तरह तुम सज संवर कर,नहीं जाया करो छत पर

मुग्ध ना हो जाए चंदा ,   देख कर ये  रूप      सुन्दर
है बड़ा आशिक  तबियत,दिखा कर सोलह कलायें
लगे ना कोशिश करने , किस तरह् तुमको रिझाये
और ये सारे सितारे, टिमटिमा  ना आँख   मारे
छेड़खानी लगे करने ,पवन छूकर  अंग सारे
है बहुत बदमाश ये तम,पा तुम्हे छत पर अकेला
लाभ अनुचित ना उठाले  ,और करदे कुछ  झमेला
देख कर कुंतल तुम्हारे,कुढ़े ना दल बादलों के
लाख गुलाबी लब,भ्रमर, गुंजन करें ना पागलों से
समंदर मारे उंछालें ,रात पूनम की समझ कर
इसलिए जाओ न छत पर,रात में तुम सज संवर कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कल के लिये

     कल के  लिये

आस है कल अगर फल की ,आज पौधे रोंपने है

विरासत के वजीफे,नव पीढ़ियों को   सौंपने  है
मार कर के कुंडली ,कब तलक  बैठे तुम  रहोगे
सभी सत्ता ,सम्पदा,सुख को समेटे  तुम रहोगे
थक गये हो,पक गये हो,हो गये बेहाल से तुम
टपक सकते हो कभी भी,टूट  करके डाल से तुम
छोड़ दो ये सभी बंधन, मोह, माया में भटकना
एक दिन तस्वीर बन,दीवार पर तुमको लटकना
वानप्रस्थी इस उमर में,भूल जाओ  कामनायें
प्यार सब जी भर लुटा दो,बाँट दो   सदभावनाएँ
याद रख्खे पीढियां,कुछ काम एसा  कर दिखाओ
कमाई  कर ली बहुत , अब नाम तुम अपना कमाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

सोमवार, 18 जून 2012

दस्तक मॉनसून की


पड़ चुकी है दस्तक
मॉनसून की यारों;
घटायें हर तरफ अब
घिरने लगी हैं |

हर वर्ग हर शख्स
था इंतज़ार में इसके;
मौसम के कोप से
निजात था पाना |

अमीर थे सोचते 
कि मौसम होगा ठंढा;
ए.सी. नहीं चलेगा
तो बिजली बिल बचेगा |

गरीब था सोचता
कि बारिश जो होगी;
बाल-बच्चे परिवार
कुछ चैन से रहेंगे |

किसान का सर्वस्व तो 
मॉनसून पे ही निर्भर;
जो बारिश न हुई तो
सब कुछ लूट जायेगा |

जो लूटने में लगे हैं
हर माह उनका मॉनसून है;
इन्तजार तो हिस्सा है
बस आम जनता का ही |

बारिश की बूंदें अब
भिगोने है लगी;
प्यास हर किसी की 
है मिटाने में लगी |

झर-झर करती बूंदें
खुशहाल करती जिंदगी;
हर दिल को हर्षाती
दस्तक ये मॉनसून की |

कलम


(मेरी पहली कविता | यह मैंने तब लिखी थी जब मैं आठवीं कक्षा में था| )

कलम शान है हम बच्चों की, छात्रों का हथियार है,
यही कलम दिलवाता सबको, सारा अधिकार है |

है कलम छोटा शस्त्र, पर इसकी शक्ति अपार है,
बड़े-बड़े वीर आगे इसके बन जाते चिड़ीमार हैं |

इसके बल पर मिट सकता जो फैला अनाचार है,
हरेक देश की गरिमा है यह, सबका जीवन सार है |

दीखता है छोटा लेकिन यह शिक्षा का भंडार है,
कलम से तुलना करने पर छोटा पड़ता तलवार है |

मान बचाने को कलम की, हम बिलकुल तैयार हैं,
इससे नाता जोड़ ले प्यारे हो सकता उद्धार है |

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