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शुक्रवार, 15 जून 2012

कार्ड का रिकार्ड

कार्ड का रिकार्ड

मेरा परिचय

मेरा आधार कार्ड
मेरी पहचान
मेरा वोटर कार्ड
मेरा धन
मेरा क्रेडिट कार्ड
मेरा ऋण
मेरा डेबिट कार्ड
मेरी पूँजी
मेरा ए टी एम कार्ड
मेरा कम्युनिकेशन
मेरा सिम कार्ड
मेरा जीवन
कार्डों का एक रिकार्ड
प्लेयिंग कार्ड याने ताश के पत्तों का,
बना हुआ एक महल है,
कब तक टिक पायेगा
क्षण भंगुर है,
जाने कब डिस्कार्ड कर दिया जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 14 जून 2012



इंतिहाऐं इश्क की कम नहीं होती
वो अक्सर टूट जाया करती हैं
मुकम्मल सी वो कुछ यादें
बातों के साथ छूट जाया करती हैं
पहलू बदल जाते हैं जिंदगी के
उन तमाम किस्सों को जोड़ते
जुड़ती है तब जब
ये साँसे डूब जाया करती हैं
©दीप्ति शर्मा

बुधवार, 13 जून 2012

कुछ बातें छोड़ आयी हूँ


आज मैं यादें छोड़ आयी हूँ
कुछ बातें छोड़ आयी हूँ
कुछ खट्टी कुछ मीठी
मुलाक़ातें छोड़ आयी हूँ
चार साल का अनुभव
और वो हँसी मज़ाक़
साथ ले अपने
कुछ पहलुओं को
कुछ वादों को छोड़ आयी हूँ
कुछ बातें छोड़ आयी हूँ
क्या कहूँ क्या दोस्त बने
किसी ने हँसकर पीठ थपथपाई
तो किसी ने पीठ पीछे
मुँह फेरकर जीभ फिराई
पहचान तो गयी रंग भाव
हर एक शख़्स का
उन रंग भाव के मैं
कुछ कसक छोड़ आयी हूँ
शायद कुछ असर छोड़ आयी हूँ
कुछ बातें छोड़ आयी हूँ
कुछ को साथ रखने की
हरदम ख़वाहिश है तो
कुछ की कड़वी बातें झेल आयी हूँ
कुछ बातें छोड़ आयी हूँ
कुछ बातें बुरी लगी किसी की
तो चुप रहना बेहतर समझा
जो चार साल में नहीं बदला
उसे बदलने की चाह छोड़ आयी हूँ
कुछ बातें छोड़ आयी हूँ
बेहतर तो नहीं कह सकती
अपने हर साल को
गुज़र गया हर लम्हा
रोते गाते हँसते..
बहुत कुछ सोचा था पर
अपने अहसासों के दरमियान
तमन्नाओं के आईने में
धुँधली तस्वीरें छोड़ आयी हूँ
कुछ बातें छोड़ आयी हूँ ।
© दीप्ति शर्मा

दे दो एक सदा


दे दो एक सदा कि अब भी आ जाऊंगा,
लौट के वापस मैं तेरे पास ही आऊंगा;
जख्म जो दिए थे तुने, उन्हें भूल चूका हूँ,
बिना नए जख्म लिए रह कैसे पाऊंगा |

बेवफाई से भी तेरी मुझे मोहब्बत सी है,
चमक तेरी आँखों का फिर वापस लाऊंगा ;
उलाहने भी तेरी लगती हैं एक अदा दिलनशीं, 
उन अदाओं को भूलकर कैसे रह पाऊंगा |

सास का अहसास

 सास का अहसास

मर्दों  के लिए सास का अहसास

होता है बड़ा खास
सास की बोली का मिठास
और उमड़ता प्यार और विश्वास
अपने दामाद
को सास सदा देती है आशीर्वाद
मन में रख कर ये आस
वो जितना सुखी रहेगा
उसकी बेटी को भी उतना ही सुख देगा
और लड़कियों के लिए वो ही सास
बन जाती है गले की फांस
वो कहते है ना,
सास शक्कर की
तो भी टक्कर की
ये कैसा चलन  है
औरत को औरत से ही होती जलन है
और जाने अनजाने
वो बहू को सुनती रहती है ताने
बहू का जादू उसके बेटे पर चल गया है
और उसका बेटा,
उसके हाथ से निकल गया है
एक मुहावरा है,
सास नहीं ना ननदी
बहू फिरे  आनंदी
क्या ये एकल परिवार का चलन
का कारण है,सास बहू की आपसी जलन
माइके का और  ससुराल का ,
अपना अपना ,अलग अलग कल्चर होता है
आपस में एडजस्ट करने पर ,
परिवार सुखी रहता है,वरना रोता है
इसमें क्या शक है
अपने अपने ढंग से जीने का,
हर एक को हक है
सबको थोडा थोडा  एडजस्टमेंट जरूरी है
तभी मिटती दूरी है
माइके और ससुराल की संस्कृतियों में,
होना चाहिए मेल
तभी हंसी ख़ुशी चलती है,
गृहस्थी की  रेल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

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